मानव पूंजी निर्माण अर्थ
"मानव पूंजी निर्माण" का अर्थ है लोगों की क्षमताओं, कौशल और ज्ञान को सुधारना और विकसित करना।
मानव का संसाधन के रूप में महत्त्व
- आधुनिक दुनिया में आर्थिक विकास के दृष्टिकोण से मानव संसाधन महत्वपूर्ण हैं।
- सभी योजनाकारों का मानना है कि एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण लोगों के विकास और मानव गतिविधि के संगठन पर निर्भर करता है।
- यदि मानव संसाधन का सही तरीके से विकास किया जाए, तो मानव की गुणवत्ता में वृद्धि की जा सकती है, जो किसी देश की अर्थव्यवस्था के वृद्धि और विकास की प्रक्रिया में सहायक है
"मानव पूंजी निर्माण उन व्यक्तियों की संख्या को प्राप्त करने और बढ़ाने की प्रक्रिया है जिनके पास कौशल, शिक्षा और अनुभव है जो किसी देश के आर्थिक और राजनीतिक विकास के लिए आवश्यक हैं
जी.एम. मायर
शिक्षा पर किए गए निजी और सार्वजनिक खर्च की अहमियत को केवल इसके सीधे परिणामों से नहीं आंका जा सकता। इसमें निवेश करना लोगों को ऐसे अवसर प्रदान करता है जिनकी वे खुद से उम्मीद नहीं कर सकते थे। इस निवेश के ज़रिए कई ऐसे प्रतिभाशाली लोग सामने आ सकते हैं जिनकी क्षमताएँ अन्यथा अनदेखी रह जातीं।
अल्फ्रेड मार्शल
पूंजी निर्माण के प्रकार
1. मानव पूंजी
- मानव पूंजी उस ज्ञान, कौशल, अनुभव और क्षमताओं का संग्रह है जो व्यक्ति अपने जीवन काल में प्राप्त करता है।
- यह व्यक्ति की शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य, और व्यक्तिगत विकास से जुड़ी होती है।
2. भौतिक पूंजी
- भौतिक पूंजी उन ठोस वस्तुओं और संसाधनों को संदर्भित करती है जो उत्पादन प्रक्रिया में उपयोग किए जाते हैं।
- इसमें मशीनें, उपकरण, भवन, और अन्य भौतिक संसाधन शामिल हैं।
मानव पूंजी निर्माण के स्रोत
मानव पूंजी के निर्धारक मानव पूंजी निर्माण के स्रोतों में वृद्धि करने के तरीकों को संदर्भित करते हैं।
1. शिक्षा पर व्यय
- शिक्षा पर व्यय देश में उत्पादक कार्यबल बढ़ाने का सबसे प्रभावी तरीका है।
- अधिकांश परिवार शिक्षा पर भारी खर्च करने का फैसला करते हैं,भले ही उन्हें ऋण लेना पड़े।
- शिक्षा एक व्यक्ति को जीवन भर अच्छा जीवन जीने में सक्षम बनाती है।
- शिक्षित व्यक्ति का श्रम कौशल अशिक्षित व्यक्ति से अधिक होता है
- शिक्षा आर्थिक विकास में योगदान देती है क्योंकि शिक्षा लोगों को अधिक कमाने की क्षमता प्रदान करती है
- शिक्षा बेहतर सामाजिक प्रतिष्ठा ,जीवन में बेहतर विकल्प चुनने में सक्षम बनती है
- शिक्षा समाज में हो रहे परिवर्तनों को समझने के के साथ नई प्रौद्योगिकियों के अनुकूलन की सुविधा प्रदान करती है
2. स्वास्थ्य पर व्यय
- स्वास्थ्य पर व्यय व्यक्ति को अधिक कुशल बनाता है क्योंकी इससे उत्पादन प्रक्रिया में योगदान बढ़ता है।
- एक बीमार व्यक्ति की तुलना में स्वास्थ्य व्यक्ति राष्ट्र के सकल घरेलू उत्पाद में अधिक योगदान देता है।
- इसलिए, स्वास्थ्य पर व्यय मानव पूंजी निर्माण का एक महत्वपूर्ण निर्धारक है। स्वास्थ्य व्यय विभिन्न रूपों में किया जा सकता है
i. टीकाकरण
ii. स्वास्थ्य जांच एवं स्वास्थ्य साक्षरता का प्रसार
iii. स्वच्छ पेयजल का प्रावधान, अच्छी स्वच्छता सुविधाएं
3. नौकरी पर प्रशिक्षण(On-the-Job-Training)
- नौकरी पर प्रशिक्षण से मानव पूंजी में सुधार के साथ भौतिक पूंजी की उत्पादकता में काफी वृद्धि होती है।
- इससे कर्मचारियों को अपने विशेष कौशल को निखारने में मदद मिलती है। इस कारण से, कई फर्म अपने कर्मचारियों को नौकरी पर प्रशिक्षण प्रदान करती हैं
- कर्मचारियों को फर्म में किसी अन्य कुशल कर्मचारी की देखरेख में या कर्मचारियों को कैंपस के बाहर प्रशिक्षण के लिए भेजा जा सकता है।
4. प्रवासन
- प्रवासन मानव पूंजी निर्माण में योगदान देता है क्योंकि यह लोगों के कौशल के उपयोग को सुगम बनाता है।
- प्रवासन में लागत शामिल है
i. एक स्थान से दूसरे स्थान तक परिवहन की लागत
ii. विभिन्न सामाजिक वातावरण में रहने की लागत।
- ग्रामीण क्षेत्रों से बेरोजगार लोग नौकरियों की तलाश में शहरी क्षेत्रों में प्रवास करते हैं
- जैसे इंजीनियर या डॉक्टर जैसे योग्य व्यक्ति उच्च वेतन के कारण दूसरे देशों में प्रवास करते हैं
5. वयस्कों के लिए अध्ययन कार्यक्रम
- प्राथमिक, माध्यमिक और विश्वविद्यालय स्तर पर औपचारिक शिक्षा के साथ साथ सरकार और गैर सरकारी संगठन वयस्कों को उनके कार्य क्षेत्रों में कुशल बनाने के लिए अध्ययन कार्यक्रम आयोजित करा सकते है
- इससे उनकी उत्पादकता बढ़ती है, जो मानव पूंजी निर्माण के स्रोत के रूप में कार्य करता है।
6. सूचना पर व्यय
- नौकरी के बाजारों और विशेष कौशल प्रदान करने वाले शैक्षणिक संस्थानों से संबंधित जानकारी कौशल निर्माण का एक महत्वपूर्ण निर्धारक है।
- यह लोगों को उनकी उत्पादक क्षमता को साकार करने में सक्षम बनाता है।
- सूचना पर व्यय मानव पूंजी निर्माण का एक और निर्धारक है।
मानव पूंजी निर्माण का महत्व या भूमिका
1. भौतिक पूंजी की उत्पादकता को बढ़ाता है
- मानव पूंजी निर्माण भौतिक पूंजी की उत्पादकता को बढ़ाता है ।
- जैसे विशेषज्ञ इंजीनियर और कुशल कर्मचारी मशीनों को बेहतर तरीके से संभाल सकते हैं।
- इससे उत्पादकता बढती है और विकास की गति तेज होती है
2. आविष्कार, नवाचार और तकनीकी सुधार
- मानव पूंजी का निर्माण नवीन विचारों और प्रौद्योगिकी में योगदान देने में सहायक होता है। शिक्षित और कुशल व्यक्ति नए समाधान और तकनीक विकसित कर सकते हैं, जो कि आर्थिक और सामाजिक समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।
3. जीवन प्रत्याशा में वृद्धि
मानव पूंजी के निर्माण से लोगों की जीवन प्रत्याशा में वृद्धि होती है स्वास्थ्य सुविधाएं और पौष्टिक भोजन की उपलब्धता लोगों को स्वस्थ और लंबा जीवन जीने में सक्षम बनाती है। इससे जीवन की गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है।
4. स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता
- मानव पूंजी निर्माण के तहत स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और शिक्षा के माध्यम से लोगों के स्वास्थ्य में सुधार होता है। अच्छे स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता से कार्यक्षमता और जीवन स्तर में सुधार होता है।
5. आर्थिक विकास
- मानव पूंजी निर्माण (जैसे शिक्षा, प्रशिक्षण, और कौशल विकास) से कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। कुशल और शिक्षित श्रमिक अधिक उत्पादक होते हैं, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वृद्धि होती है।
6. सामाजिक विकास
- मानव पूंजी निर्माण से सामाजिक सुधार होते हैं, जैसे कि सामाजिक समावेशिता, न्याय, और स्वास्थ्य में सुधार।
- जब लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं और शिक्षा मिलती है, तो समाज में समान अवसर बढ़ते हैं और जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।
मानव पूंजी निर्माण की समस्याएं
1. बढ़ती जनसंख्या
- तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या मानव पूंजी की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
- अधिक जनसंख्या आवास, स्वच्छता, जल निकासी, जल व्यवस्था, अस्पताल, शिक्षा, बिजली आपूर्ति जैसी आधारभूत सुविधाओं की प्रति व्यक्ति उपलब्धता को कम करती है।
- इससे जीवन की गुणवत्ता में गिरावट के साथ विशेष कौशल और ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता में गिरावट आती है।
2. प्रतिभा पलायन
- भारत जैसे विकासशील देश में जन्मे, शिक्षित और प्रशिक्षित लोग जैसे वैज्ञानिक, प्रशासक, अधिकारी, इंजीनियर, चिकित्सक, शिक्षाविद आदि अच्छे अवसर की तलाश में विकसित देशों में पलायन करते है ये किसी देश में मानव पूंजी निर्माण लिए गंभीर खतरा है।
- यह घरेलू अर्थव्यवस्था में मानव पूंजी निर्माण की प्रक्रिया को धीमा कर देता है।
3. अपर्याप्त जनशक्ति नियोजन
- देश में लगातार श्रम शक्ति की मांग बढ़ रही है लेकिन इसकी आपूर्ति संतुलन का कोई प्रयास नहीं हो पता है
- जिसकी वजह से भारत स्नातक बेरोजगारी की एक गंभीर समस्या का सामना कर रहा है यह मानव शक्ति और मानव कौशल की बर्बादी को दर्शाता है
4. प्राथमिक क्षेत्र में नौकरी पर प्रशिक्षण अपर्याप्त
- प्राथमिक क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है लेकिन पेशेवर कौशल के क्षेत्र में इस पर उचित ध्यान नहीं दिया गया है।
- प्राथमिक क्षेत्र में पारंपरिक ज्ञान हावी है,और 'नौकरी पर प्रशिक्षण कार्यक्रम’ बहुत कम हैं अर्थव्यवस्था के प्राथमिक क्षेत्र में मानव पूंजी निर्माण की गंभीर कमी है।
5. निम्न शैक्षणिक मानक
- उच्च शिक्षा के प्रसार के उत्साह में कई विश्वविद्यालय खोल रहे हैं, उनके शैक्षणिक मानकों की परवाह किए बिना।
- नतीजतन आधे-अधूरे स्नातकों और स्नातकोत्तरों की एक बड़ी सेना है, जिनके अपर्याप्त कौशल है
- यह मानव पूंजी के अंतरराष्ट्रीय बाजार में हमारी प्रतिस्पर्धात्मकता को भी कम करता है।
मानव पूंजी और मानव विकास
1. मानव पूंजी
- मानव पूंजी से तात्पर्य उन सभी गुणात्मक और मात्रात्मक संसाधनों से है जो व्यक्तियों में निहित होते हैं, जैसे कि शिक्षा, कौशल, अनुभव और स्वास्थ्य।
- मानव पूंजी में निवेश से -
1. उत्पादकता बढ़ती है।
2. व्यक्तियों की आय में वृद्धि होती है
3. देश के आर्थिक विकास को गति प्रदान करता है।
2. मानव विकास
- यह व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने पर केंद्रित है। इसमें जीवन की उम्मीद, स्वास्थ्य, शिक्षा, और समग्र जीवन की स्थिति शामिल होती है।
- मानव विकास के माध्यम से
1. लोगों की स्वास्थ्य सुविधाओं और जीवन के मानक में सुधार होता है।
2. कौशल और क्षमताओं में वृद्धि होती है
3. सामाजिक और आर्थिक असमानताये कम होती है
मानव संसाधन विकास के एक आवश्यक तत्व के रूप में शिक्षा
- शिक्षा मानव संसाधन विकास का एक अनिवार्य तत्व है यह आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन का महत्वपूर्ण कारक है
- शिक्षा से तात्पर्य शिक्षण, प्रशिक्षण और सीखने की प्रक्रिया से है (विशेष रूप से स्कूलों या कॉलेजों में)।
- भारत में अन्य देशों की तुलना में भारत में शिक्षा का प्रसार इतना उत्साहजनक नहीं रहा है। जहा विकसित देशों में 90 से 95 प्रतिशत साक्षरता दर है भारत में जनगणना 2011 के अनुसार,74.04 प्रतिशत आबादी साक्षर है।
शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय
सरकार द्वारा शिक्षा पर व्यय दो तरीकों से व्यक्त किया जाता है
1. कुल सरकारी व्यय के प्रतिशत के रूप में : यह सरकार के समक्ष योजनाओं में शिक्षा के महत्व को दर्शाता है। 1952-2014 के दौरान, यह 7.92 से बढ़कर 15.7 हो गया।
2. सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के रूप में : यह देश में शिक्षा के विकास पर खर्च की गई आय के अनुपात को दर्शाता है। 1952-2014 के दौरान यह 0.64 से बढ़कर 4.13 हो गया।
- सरकार प्राथमिक शिक्षा पर अधिक व्यय करती है कुल शिक्षा व्यय का एक बहुत बड़ा हिस्सा प्राथमिक शिक्षा पर खर्च होता है।
- सरकार उच्चतर/तृतीयक शैक्षिक संस्थाओं (उच्च शिक्षा के संस्थानों जैसे- महाविद्यालयों, बहुतकनीकी संस्थानों और विश्वविद्यालयों आदि) पर होने वाला व्यय सबसे कम है। यद्यपि औसत रूप से सरकार उच्चतर शिक्षा पर बहुत कम व्यय करती है, किंतु प्रति विद्यार्थी उच्चतर शिक्षा पर व्यय प्राथमिक शिक्षा की तुलना में अधिक है।
- जैसे-जैसे विद्यालय शिक्षा का प्रसार करेंगें तो हमें उच्चतर शैक्षिक संस्थानों से प्रशिक्षित और अधिक शिक्षकों की आवश्यकता होगी। अतः शिक्षा के सभी स्तरों पर व्यय में वृद्धि करना चाहिए।
- 2014-15 में, प्रति व्यक्ति शिक्षा व्यय में राज्यों के बीच काफी अंतर है, हिमाचल प्रदेश में यह 34,651 से लेकर बिहार में 4,088 तक है। इससे राज्यों में शैक्षिक अवसरों और उपलब्धियों में अंतर आता है।
निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान
- 1998 में भारत सरकार द्वारा नियुक्त तपस मजूमदार समिति ने 6-14 वर्ष की आयु के सभी भारतीय बच्चों को स्कूली शिक्षा के दायरे में लाने के लिए 10 वर्षों (1998-99 से 2006-07) में लगभग 1.37 लाख करोड़ रुपये के व्यय का अनुमान लगाया था।
- वर्ष 2009 में भारत सरकार ने बच्चों को मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम का कानून बनाया है जिसके अन्तर्गत 6-14 वर्ष के आयु-वर्ग के सभी बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जाती है।
भारत में शैक्षिक उपलब्धियाँ
भविष्य की संभावनाएँ शिक्षा के क्षेत्र में
1. सब के लिए शिक्षा अभी भी एक सपना
- यद्यपि वयस्क और युवा साक्षरता दरों में सुधार हो रहा है, किंतु आज भी देश में निरक्षरों की संख्या उतनी ही है जितनी स्वाधीनता के समय भारत की जनसंख्या थी।
- भारत की संविधान सभा ने 1950 में संविधान को पारित करते समय संविधान के नीति निदेशक तत्वों में स्पष्ट किया था कि सरकार संविधान पारित होने के दस साल के अंदर 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान करेगी। इस लक्ष्य को प्राप्त कर लेते तो अब तक शत-प्रतिशत साक्षरता हो गई होती।
2. लिंग समता
- अब साक्षरता में पुरुषों और महिलाओं के बीच का अंतर कम हो रहा है जो लिंग समता की दिशा में एक सकारात्मक विकास है।
- शिक्षा नारी की आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक स्तर में सुधार और साथ ही स्त्री शिक्षा, प्रजनन दर और स्त्रियों व बच्चों के स्वास्थ्य देखभाल पर अनुकूल प्रभाव डालती है।
- अतः साक्षरता स्तर सुधारने के इन प्रयासों एसे ही जरी रखना चाहिये जब तक शत-प्रतिशत वयस्क साक्षरता दर प्राप्त न हो जाये
3. उच्च शिक्षा लेने वालों की कमी
- भारत में शिक्षा का पिरामिड बहुत ही नुकीला है, जो दर्शाता है कि उच्चतर शिक्षा स्तर तक बहुत कम लोग पहुँच पाते हैं। इसमें युवाओं की बेरोजगारी दर भी उच्चतम है।
- राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2011-12 में ग्रामीण क्षेत्रों में स्नातक व ऊपर अध्ययन किया हो युवा पुरुषों के बीच बेरोजगारी दर 19 प्रतिशत थी। उनके शहरी समकक्षों में 16 प्रतिशत अपेक्षाकृत कम स्तर पर बेरोजगारी दर थी। सबसे गंभीर रूप जो से प्रभावित लोगों में लगभग 30 प्रतिशत बेरोजगार हैं जो युवा ग्रामीण महिला थीं।
- इसके विपरीत,ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में प्राथमिक स्तर के शिक्षित युवाओं में से केवल 3-6 प्रतिशत बेरोजगार थे।
स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में सरकारी हस्तक्षेप
- स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में सरकार का हस्तक्षेप जरुरी है क्यूंकि स्वास्थ्य और शिक्षा सेवा प्रदाता केवल लाभ अधिकतम करने पर ध्यान केंद्रित करते है उपभोक्ताओं को सेवाओं की गुणवत्ता और लागत के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती जिससे उनका शोषण होता है
सरकारी नियामक प्राधिकरण
1. शिक्षा मे
- संघ और राज्य स्तर पर शिक्षा मंत्रालय और शिक्षा विभाग तथा राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT), विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) जैसे विभिन्न संगठन शिक्षा क्षेत्र को विनियमित करते हैं।
2. स्वास्थ्य में
- संघ और राज्य स्तर पर स्वास्थ्य मंत्रालय, स्वास्थ्य विभाग और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) जैसे विभिन्न संगठन स्वास्थ्य क्षेत्र को विनियमित करते हैं।
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