प्रश्न - जनहित याचिका’ क्या है ?
उत्तर -
- कानून की सामान्य प्रक्रिया में कोई व्यक्ति तभी अदालत जाता है और उसका कोई व्यक्तिगत नुकसान हुआ हो तो उसके लिए अदालत से न्याय की मांग करता है
- लेकिन जब पीड़ित के अलावा कोई अन्य याचिका दाखिल करे तो इसे जनहित याचिका कहा जाता है
- इसमें अदालत पीड़ित को न्याय दिलाने का कार्य करती है
प्रश्न - न्यायपालिका की संरचना बताइए ?
उत्तर -
प्रश्न - न्यायिक पुनरावलोकन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर -
- न्यायिक पुनरावलोकन का अर्थ है कि सर्वोच्च न्यायलय किसी भी कानून की संवैधानिक जांच कर सकता है यदि कोई कानून संविधान के प्रावधानों के विपरीत हो तो उसे गैर-संवैधानिक घोषित कर सकता है।
- केंद्र-राज्य संबंध के मामले में भी सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति का प्रयोग कर सकता है।
प्रश्न - सक्रिय न्यायपालिका के क्या नुकसान है ?
उत्तर -
- न्यायपालिका में काम का बोझ बढ़ा है
- न्यायिक सक्रियता से विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के कार्यों के बीच अंतर करना मुश्किल हो गया है
- जैसे वायु और ध्वनि प्रदूषण दूर करना, भ्रष्टाचार की जांच व चुनाव सुधार करना इत्यादि विधायिका की देखरेख में प्रशासन को करना चाहिए।
- सरकार का प्रत्येक अंग एक-दूसरे की शक्तियों और क्षेत्राधिकार का सम्मान करें।
प्रश्न - हमें स्वतंत्र न्यायपालिका की आवश्यकता क्यों पड़ती है ?
उत्तर -
- हर समाज में व्यक्तियों के बीच, समूहों के बीच और सरकार के बीच विवाद उठते हैं।
- इन सभी विवादों को 'कानून के शासन के सिद्धांत' के आधार पर एक स्वतंत्र संस्था द्वारा सुलझाना चाहिए।
- 'कानून के शासन' का अर्थ यह है कि धनी और गरीब, स्त्री और पुरुष तथा अगड़े और पिछड़े सभी लोगों पर एक समान कानून लागू हो।
- न्यायपालिका की प्रमुख कार्य 'कानून के शासन' की रक्षा करना और कानून की सर्वोच्चता को सुनिश्चित करना होता है ।
- न्यायपालिका व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करती है, विवादों और झगड़ो को कानून के अनुसार सुलझाती है
- न्यायपालिका यह सुनिश्चित करती है कि लोकतंत्र की जगह किसी एक व्यक्ति या समूह की तानाशाही न ले ले।
- इसके लिए जरूरी है कि न्यायपालिका किसी भी राजनीतिक दबाव से मुक्त हो।
- हमारा संविधान हमें स्वतंत्र न्यायपालिका प्रदान करता है
- न्यायपालिका बिना किसी दबाव के फैसले ले सकती है
प्रश्न - भारत में न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया क्या है ?
उत्तर -
- मंत्रिमंडल, राज्यपाल, मुख्यमंत्री और भारत के मुख्य न्यायाधीश- ये सभी न्यायिक नियुक्ति की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में वर्षों से परंपरा बन गई है कि सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को इस पद पर नियुक्त किया जाएगा।
लेकिन इस परंपरा को दो बार तोड़ा भी गया है।
1. 1973 में तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों को छोड़कर न्यायमूर्ति ए. एन. रे. को भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
2. 1975 में न्यायमूर्ति एच आर खन्ना के स्थान पर न्यायमूर्ति एम एच बेग की नियुक्ति की गई।
- राष्ट्रपति , सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश की सलाह से करता है।
- इसका अर्थ यह हुआ कि नियुक्तियों के संबंध में वास्तविक शक्ति मंत्रिपरिषद् के पास है।
- 1982 से 1998 के बीच यह विषय बार-बार सर्वोच्च न्यायालय के सामने आया।
- शुरू में न्यायालय का विचार था कि मुख्य न्यायाधीश की भूमिका पूरी तरह से सलाहकार की है।
- लेकिन बाद में न्यायालय ने माना कि मुख्य न्यायाधीश की सलाह राष्ट्रपति को जरूर माननी चाहिए।
- अंतत: सर्वोच्च न्यायालय ने एक नई व्यवस्था की। इसके अनुसार सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश अन्य चार वरिष्ठतम् न्यायाधीशों की सलाह से कुछ नाम प्रस्तावित करेगा और इसी में से राष्ट्रपति नियुक्तियाँ करेगा।
- इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने नियुक्तियों की सिफारिश के संबंध में सामूहिकता का सिद्धांत स्थापित किया।
- इसी कारण आजकल नियुक्तियों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीशों के समूह का ज्यादा प्रभाव है।
- इस तरह न्यायपालिका की नियुक्ति में सर्वोच्च न्यायालय और मंत्रिपरिषद् महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।