Chapter 4
प्राथमिक क्रियाएं
आर्थिक
क्रिया
- मनुष्य की
वह सभी क्रियाएं जिनसे मनुष्य को धन की प्राप्ति होती है आर्थिक
क्रिया कहलाती है
प्राथमिक क्रियाकलाप
- प्राथमिक क्रियाकलाप ऐसे क्रियाकलाप होते है जो प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर निर्भर होते हैं ये निम्न प्रकार के है
1. कृषि
2. पशुपालन
3. आखेट
4. खनन
5. मछली पालन
6. संग्रहण
7. वानिकी
आखेट और भोजन संग्रह
- मानव सभ्यता के आरंभिक युग में आदिमकालीन मानव अपने जीवन निर्वाह के लिए अपने आस पास के वातावरण पर निर्भर रहता था। उसका जीवन-निर्वाह दो कार्यों द्वारा होता था
1. शिकार करना - पशुओं का आखेट करना
2. भोजन संग्रह - खाने योग्य जंगली पौधे एवं कंद-मूल एकत्रित करना
- आदिमकालीन समाज जंगली पशुओं पर निर्भर था।
- अधिक शीत एवं अत्यधिक गर्म प्रदेशों के रहने वाले लोग आखेट द्वारा जीवन-यापन करते थे।
- फिर धीरे - धीरे तकनीकी विकास हुआ तटवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोग अब मछली पकड़ने का कार्य करने लगे थे ।
- अवैध शिकार के कारण जीवों की कई जातियाँ या तो लुप्त हो गई हैं या संकटापन्न है।
- प्राचीन काल के आखेटक ( शिकारी ) पत्थर या लकड़ी के बने औजार एवं तीर इत्यादि का प्रयोग करते थे, जिससे मारे जाने वाले पशुओं की संख्या सीमित रहती थी।
- भोजन संग्रह एवं आखेट प्राचीनतम अर्थिक क्रियाएँ हैं। विश्व के विभिन्न भागों में यह कार्य विभिन्न स्तरों पर विभिन्न रूपों में किया जाता है।
भोजन संग्रह विश्व के किन दो भागों में याद आता है
1. उच्च अक्षांश के क्षेत्र उत्तरी कनाडा, उत्तरी यूरोपिया एवं' द- चिली
2. निम्न अक्षांश के क्षेत्र अमेजन बेसिन, उष्णकटिबंधीय अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया दक्षिण पूर्वी एशिया
- आधुनिक समय में भोजन संग्रह के कार्य का कुछ भागों में व्यापारीकरण भी हो गया है।
- ये लोग कीमती पौधों की पत्तियाँ, छाल एवं औषधीय पौधों को सामान्य रूप से संशोधित कर बाजार में बेचने का कार्य भी करते हैं।
- पौधे के विभिन्न भागों का ये उपयोग करते हैं।
उदाहरण -
1) छाल - कुनैन, चमड़ा एवं कार्क
2) पत्तियों-पेय पदार्थ, दवाइयाँ एवं कांतिवर्द्धक वस्तुएँ
3) रेशे - कपड़ा बनाना
4) फल - भोजन , तेल के लिए
5) पेड़ के तने - रबड़, बलाटा, गोंद व राल
पशुचारण
- आखेट पर निर्भर रहने वाले लोगों ने जब ये महसूस किया कि केवल आखेट से जीवन का भरण-पोषण नहीं किया जा सकता है, तब मानव ने पशुपालन के बारे में सोचा।
- अलग – अलग जलवायुविक दशाओं में रहने वाले लोगों ने उन क्षेत्रों में पाए जाने वाले पशुओं का चयन करके पालतू बनाया।
- भौगोलिक कारकों एवं तकनीकी विकास के आधार पर वर्तमान समय में पशुपालन व्यवसाय निर्वहन अथवा व्यापारिक स्तर पर किया जाता है।
चलवासी पशुचारण
- चलवासी पशुचारण एक प्राचीन जीवन-निर्वाह व्यवसाय रहा है
- जिसमें पशुचारक अपने भोजन, वस्त्र, शरण, औजार एवं यातायात के लिए पशुओं पर ही निर्भर रहता था ।
- वे अपने पालतू पशुओं के साथ पानी एवं चरागाह की उपलब्धता एवं गुणवत्ता के अनुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित होते रहते थे। इन पशुचारक वर्गों के अपने-अपने निश्चित चरागाह क्षेत्र होते थे ।
भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में कई प्रकार के पशु पाले जाते हैं ।
- उष्णकटिबंधीय अफ्रीका में गाय - बैल प्रमुख पशु हैं
- सहारा एवं एशिया के मरुस्थलों में भेड़, बकरी एवं ऊँट पाला जाता है।
- तिब्बत एवं एंडीज के पर्वतीय भागों में याँक व लामा
- आर्कटिक और उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्रों में रेडियर पाला जाता है
चलवासी पशुचारण के तीन प्रमुख क्षेत्र -
- पहला क्षेत्र - उत्तरी अफ्रीका के एटलाटिक तट से अरब प्रायद्वीप होता हुआ मंगोलिया एवं मध्य चीन तक फैला है।
- दूसरा क्षेत्र - यूरोप तथा एशिया के टुड़ा प्रदेश
- तीसरा क्षेत्र - दक्षिणी पश्चिमी अफ्रीका एव मेडागास्कर द्वीप
वाणिज्य पशुधन पालन
- चलवासी पशुचारण की अपेक्षा वाणिज्य पशुधन पालन अधिक व्यवस्थित एवं पूँजी प्रधान है।
- वाणिज्य पशुधन पालन पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित है एवं फार्म भी स्थायी होते है। यह फार्म विशाल क्षेत्र पर फैले होते हैं
- पूरे क्षेत्र को छोटी-छोटी इकाइयों में विभाजित कर दिया जाता है। चराई को नियंत्रित करने के लिए इन्हें बाड़ लगाकर एक दूसरे से अलग कर दिया जाता है।
- जब चराई के कारण एक छोटे क्षेत्र की घास समाप्त हो जाती है तब पशुओं को दूसरे छोटे क्षेत्र में ले जाया जाता है।
- वाणिज्य पशुधन पालन में पशुओं की संख्या भी चरागाह की वहन क्षमता के अनुसार रखी जाती है
- यह एक विशिष्ट गतिविधि है, जिसमें केवल एक ही प्रकार के पशु पाले जाते हैं।
- प्रमुख पशुओं में भेड़, बकरी, गाय-बैल एवं घोड़े हैं। इनसे प्राप्त मांस, खालें एवं ऊन को वैज्ञानिक ढंग से ससाधित एवं डिब्बा बंद कर विश्व के बाजारों मे निर्यात कर दिया जाता है।
- पशुफार्म में पशुधन पालन वैज्ञानिक आधार पर व्यवस्थित किया जाता है। इसमें मुख्य ध्यान पशुओं के प्रजनन, जननिक सुधार बीमारियों पर नियंत्रण एवं उनके स्वास्थ्य पर दिया जाता है।
- विश्व में न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, अर्जेंटाइना, युरूग्वं एव USA में वाणिज्य पशुधन पालन किया जाता है
कृषि
- निर्वाह कृषि
- रोपण कृषि
- विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि
- मिश्रित कृषि
- डेयरी कृषि
- भूमध्य सागरीय कृषि
- बाजार के लिए सब्जी खेती एवं उद्यान कृषि
- सहकारी कृषि
- सामूहिक कृषि
निर्वाह कृषि
ये दो प्रकार की है
1. आदिकालीन निर्वाह कृषि
- इसमें
भूमि के क्षेते टुकड़ों पर आदिम वृधि औजारों जैसे - लकड़ी के हल, और युदाई
पारने वाली छड़ी से खेती की जाती है |यह येती परिवार की मदद से की जाती है
- इस फसल से येवल परिवारों की जरुरतो को पूरा किया जत
हैं।
- विासान जमीन के लुकड़े को साफ करके अपर जपने परिवार
के भरण पोषण के लिए अनाज
उठाता है।
- जब मृदा की उर्वरता कम हो जाती है तो किसान उस भूमि
को फोड़ देते हैं, फिर
येती के लिए इसरी भूमि तैयार करते है।
- इस प्रकार की कृषि से मृदा की उर्वरता बढ़ती हैं |
- इसमें किसान उपरकों का प्रयोग नहीं करते इसलिए इस
कृषि में उत्पादन कम होता
[ अन्य नाम ]
- उत्तर पूर्व भारत में - झूमिंग
- मध्य
अमेरिका में मिल्पा
- मलेशिया में लादांग
2. गहन निर्वाह कृषि
इस प्रकार की कृषि मानसून एशिया के घने बसे देशों में की जाती है । गहन निर्वाह कृषि के दो प्रकार हैं।
1. चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि :-
- इसमें चावल प्रमुख फसल होती है।
- अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है एवं कृषि कार्य में कृषक का संपूर्ण परिवार लगा रहता है।
- भूमि का गहन उपयोग होता है एवं यंत्रों की अपेक्षा मानव श्रम का अधिक महत्त्व है।
- उर्वरता बनाए रखने के लिए पशुओं के गोबर की खाद एवं हरी खाद का उपयोग किया जाता है।
2. चावल रहित गहन निर्वाह कृषि :-
- मानसून एशिया के अनेक भागों में उच्चावच, जलवायु, मृदा तथा अन्य भौगोलिक कारकों की भिन्नता के कारण धान की फसल उगाना प्रायः संभव नहीं है।
- उत्तरी चीन, मंचूरिया, उत्तरी कोरिया एवं उत्तरी जापान में गेहूँ, सोयाबीन, जौ एवं सोरपम बोया जाता है।
- भारत में सिंध-गंगा के मैदान के पश्चिमी भाग में गेहूँ एवं दक्षिणी व पश्चिमी शुष्क प्रदेश में ज्वार-बाजरा प्रमुखत रूप से उगाया जाता है।
रोपण कृषि
- यूरोपीय लोगों ने विश्व के अनेक भागों का औपनिवेशीकरण किया तथा कृषि के कुछ अन्य रूपों की शुरुआत की जैसे - रोपण कृषि, रोपण कृषि मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना है
- यूरोपीय उपनिवेशों ने अपने अधीन उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में चाय, कॉफी, कोको, रबड़, कपास, गन्ना, केले एवं अनन्नास की पौध लगाई।
रोपण कृषि की विशेषता
- कृषि क्षेत्र का आकार बहुत विस्तृत होता है।
- अधिक पूँजी निवेश, उच्च प्रबंध एवं तकनीकी आधार
- वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग
- यह एक फसली कृषि है - किसी एक फसल के उत्पादन पर ही सकेंद्रण
- श्रमिक सस्ते मिल जाते हैं
- यातायात विकसित होता है जिसके द्वारा बागान एवं बाजार सुचारु रूप से जुड़े रहते हैं।
रोपण कृषि प्रमुख क्षेत्र
- फ्रांस ने पश्चिमी अफ्रीका में कॉफी एवं कोकोआ की पौध लगाई थी।
- ब्रिटेनवासियों ने भारत एवं लंका में चाय के बाग,
- मलयेशिया में रबड़ के बाग
- पश्चिमी द्वीप समूह में गन्ना एवं केले के बाग विकसित किए।
- स्पेन एवं अमेरिकावासियों ने फिलीपाइंस में नारियल व गन्ने के बागान लगाए।
- इंडोनेशिया में एक समय गन्ने की कृषि में होलैंड का एकाधिकार था
- ब्राज़ील में अभी भी कॉफ़ी के कुछ बागान हैं जिन्हें फेजेंडा कहा जाता है |
विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि
- मध्य अक्षांशों के आंतरिक अर्ध शुष्क प्रदेशों में इस प्रकार की कृषि की जाती है। इसकी मुख्य फसल गेहूँ है । अन्य फसलें मक्का, जौ, राई एवं जई भी बोई जाती है।
- इस कृषि में खेतों का आकार बहुत बड़ा होता है एवं खेत जोतने से फसल काटने तक सभी कार्य यंत्रों द्वारा संपन्न किए जाते हैं।
इस प्रकार की कृषि का क्षेत्र
- यूरेशिया के स्टेपीज
- उत्तरी अमेरिका के प्रेयरीज
- अर्जेंटाइना के पंपाज
- दक्षिणी अफ्रीका के वेल्डस
- आस्ट्रेलिया के डाउंस
- न्यूजीलैंड के केंटरबरी के मैदान में है
मिश्रित कृषि
- इस प्रकार की कृषि विश्व के अत्यधिक विकसित भागों में की जाती है,
- इस कृषि में खेतों का आकार मध्यम होता है।
- इसमें बोई जाने वाली फसलें गेहूँ, जौ, राई, जई, मक्का, चारे की फसल एवं कंद-मूल प्रमुख हैं।
- चारे की फसलें मिश्रित कृषि के मुख्य घटक हैं।
- फसल उत्पादन एवं पशुपालन दोनों को इसमें समान महत्त्व दिया जाता है।
- फसलों के साथ पशुओं जैसे- मवेशी, भेड़, सुअर एवं कुक्कुर आय के मुख्य स्त्रोत हैं।
- विकसित कृषि यंत्र, इमारतों, रासायनिक एवं वनस्पति खाद (हरी खाद) के गहन उपयोग आदि पर अधिक पूँजी व्यय के साथ ही कृषकों की कुशलता और योग्यता मिश्रित कृषि की मुख्य विशेषताएँ हैं।
डेयरी कृषि
- डेरी व्यवसाय दुधारु पशुओं के पालन-पोषण का सर्वाधिक उन्नत एवं दक्ष प्रकार है।
- इसमें पूँजी की भी अधिक आवश्यकता होती है।
- पशुओं के लिए छप्पर, घास संचित करने के भंडार एवं दुग्ध उत्पादन में अधिक यंत्रों के प्रयोग के लिए पूँजी भी अधिक चाहिए।
- पशुओं के स्वास्थ्य, प्रजनन एवं पशु चिकित्सा पर भी अधिक ध्यान दिया जाता है।
- इसमें गहन श्रम की आवश्यकता होती है।
- पशुओं को चराने, दूध निकालने आदि कार्यों के लिए वर्ष भर श्रम की आवश्यकता रहती है।
- डेरी कृषि का कार्य नगरीय एवं औद्योगिक केंद्रों के समीप किया जाता है, क्योंकि ये क्षेत्र ताजा दूध एवं अन्य डेरी उत्पाद के अच्छे बाजार होते हैं
- वर्तमान समय में विकसित यातायात के साधन, पास्तेरीकरण की सुविधा के कारण विभिन्न डेरी उत्पादों को अधिक समय तक रखा जा सकता है।
- वाणिज्य डेरी कृषि तीन प्रमुख क्षेत्र हैं, सबसे बड़ा प्रदेश उत्तरी पश्चिमी यूरोप का क्षेत्र है। दूसरा कनाडा एवं तीसरा क्षेत्र न्यूजीलैंड, दक्षिणी पूर्वी आस्ट्रेलिया एवं तस्मानिया है
भूमध्यसागरीय कृषि
- भूमध्यसागरीय कृषि अति विशिष्ट प्रकार की कृषि है।
- इसका विस्तार भूमध्यसागर के समीपवर्ती क्षेत्र में है
- खट्टे फलों की आपूर्ति करने में यह क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है।
- अंगूर की कृषि भूमध्यसागरीय क्षेत्र की विशेषता है।
- इस क्षेत्र के कई देशों में अच्छे किस्म के अंगूरों से उच्च गुणवत्ता वाली मदिरा का उत्पादन किया जाता है।
- निम्न श्रेणी के अंगूरों को सुखाकर मुनक्का एवं किशमिश बनाई जाती है। अंजीर एवं जैतून भी यहाँ उत्पन्न होता है।
- शीत ऋतु में जब यूरोप एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में फलों एवं सब्जियों की माँग होती है तब इसी क्षेत्र से पूर्ति की जाती है।
बाजार के लिए सब्जी खेती एवं उद्यान कृषि
- इस प्रकार की कृषि में अधिक मुद्रा मिलने वाली फसलें जैसे - सब्जियाँ, फल एवं पुष्प लगाए जाते हैं जिनकी माँग नगरीय क्षेत्रों में होती है।
- इस कृषि में खेतों का आकार छोटा होता है एवं खेत अच्छे यातायात साधनों के द्वारा नगरीय केंद्रों जहाँ ऊँची आय वाले उपभोक्ता रहते हैं।
- इसमें गहन श्रम एवं अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है।
- इसके अतिरिक्त सिंचाई, उर्वरक, अच्छी किस्म के बीज, कीटनाशी, हरित गृह एवं शीत क्षेत्रों में कृत्रिम ताप का भी इस कृषि में उपयोग होता है।
- इस प्रकार की कृषि उत्तरी पश्चिमी यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी पूर्वी भाग एवं भूमध्यसागरीय प्रदेश में अधिक विकसित है, जहाँ औद्योगिक क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व अधिक है।
- नीदरलैंड पुष्प उत्पादन में विशिष्टीकरण रखता है।
- यहाँ से बागबानी फसल विशेषतः ट्यूलिप (एक प्रकार का फूल) पूरे यूरोप के प्रमुख शहरों में भेजा जाता है।
- जिन प्रदेशों में कृषक केवल सब्जियाँ पैदा करता है वहाँ इसको 'ट्रक कृषि' का नाम दिया जाता है।
- ट्रक फार्म एवं बाजार के मध्य की दूरी, जो एक ट्रक रात भर में तय करता है, उसी आधार पर इसका नाम ट्रक कृषि रखा गया है।
- पश्चिमी यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका के औद्योगिक क्षेत्रों में उद्यान कृषि के अलावा कारखाना कृषि भी की जाती है।
- इसमें पशुधन पाला जाता है जिनमें विशेषतः गाय-बैल एवं कुक्कुर होते हैं।
सहकारी कृषि
- जब कृषकों का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य संपन्न करे उसे सहकारी कृषि कहते हैं।
- सहकारी संस्था कृषकों को सभी रूप में सहायता करती है।
- यह सहायता कृषि कार्य में आने वाली सभी चीजों की खरीद करने, कृषि उत्पाद को उचित मूल्य पर बेचने एवं सस्ती दरों पर प्रसंस्कृत साधनों को जुटाने के लिए होती है।
- सहकारी आंदोलन एक शताब्दी पूर्व प्रारंभ हुआ था एवं पश्चिमी यूरोप के डेनमार्क, नीदरलैंड, बेल्जियम, स्वीडन एवं इटली में यह सफलतापूर्वक चला।
- सबसे अधिक सफलता इसे डेनमार्क में मिली जहाँ प्रत्येक कृषक इसका सदस्य है।
- डेनमार्क में यह आंदोलन सर्वाधिक सफल रहा, जहाँ व्यावहारिक रूप से प्रत्येक कृषक इस आंदोलन का सदस्य है।
सामूहिक कृषि
- सामूहिक कृषि में उत्पादन के साधनों का स्वामित्व संपूर्ण समाज एवं सामूहिक श्रम पर आधारित होता है।
- इस प्रकार की कृषि का शुरुआत पूर्व सोवियत संघ में हुई थी
- जहाँ कृषि की दशा सुधारने एवं उत्पादन में वृद्धि व आत्मनिर्भरता प्राप्ति के लिए सामूहिक कृषि प्रारंभ की गई।
- इस प्रकार की सामूहिक कृषि को सोवियत संघ में कोलखहोत का नाम दिया गया।
- सभी किसान अपने संसाधन जैसे भूमि, पशुधन एवं श्रम को मिलाकर कृषि कार्य करते थे।
- ये अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भूमि का छोटा-सा भाग अपने अधिकार में भी रखते थे।
खनन
- खनन एक प्रक्रिया है जिसमें भूमि से खनिज और अन्य प्राकृतिक संसाधनों को निकाला जाता है।
- खनन का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि मानव समाज के उपयोग के लिए इन संसाधनों का उपयोग किया जा सके।
- प्राचीन काल में खनिजों का उपयोग औजार बनाने, बर्तन बनाने एवं हथियार बनाने तक ही सीमित था।
- इसका वास्तविक विकास औद्यौगिक क्राति के पश्चात् ही संभव हुआ एवं निरंतर इसका महत्त्व बढ़ता रहा है।
खनन कार्य को प्रभावित करने वाले कारक –
- भौतिक कारक खनिज निक्षेपों के आकार, श्रेणी एवं उपस्थिति की अवस्था
- आर्थिक कारक खनिज की माँग, विद्यमान तकनीकी ज्ञान एवं उसका उपयोग, अवसंरचना के विकास के लिए उपलब्ध पूंजी एवं यातायात व श्रम पर होने वाला व्यय
खनन की विधियाँ –
खनन के दो प्रकार हैं :
1. धरातलीय खनन
- धरातलीय खनन को विवृत खनन भी कहा जाता है।
- यह खनिजों के खनन का सबसे सस्ता तरीका है,
- क्योंकि इस विधि में सुरक्षात्मक पूर्वोपायों एवं उपकरणों पर खर्च अपेक्षाकृत कम होता है एवं उत्पादन शीघ्र व अधिक होता है।
2.भूमिगत अथवा कूपकी खनन
- जब अयस्क धरातल के नीचे गहराई में होता है
- तब भूमिगत अथवा कूपकी खनन विधि का प्रयोग किया जाता है।
- इस विधि में लंबवत् कूपक गहराई तक स्थित हैं.
- जहाँ से भूमिगत गैलरियाँ खनिजों तक पहुँचने के लिए फैली हैं।
- इन मार्गों से होकर खनिजों का निष्कर्षण एवं परिवहन धरातल तक किया जाता है।
- खदान में कार्य करने वाले श्रमिकों तथा निकाले जाने वाले खनिजों के सुरक्षित और प्रभावी आवागमन हेतु इसमें विशेष प्रकार की लिफ्ट वेधक (बरमा). माल ढोने की गाड़ियाँ तथा वायु संचार प्रणाली की आवश्यकता होती है।
- खनन का यह तरीका जोखिम भरा है क्योंकि जहरीली गैसें, आग एवं बाढ़ के कारण कई बार दुर्घटनाएँ होने का भय रहता है।
- विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश उत्पादन की खनन, प्रसंस्करण एवं शोधन कार्य से पीछे हट रहे हैं क्योंकि इसमें श्रमिक लागत अधिक आने लगी है।
- जबकि विकासशील देश अपने विशाल श्रमिक शक्ति के बल पर अपने देशवासियों के ऊँचे रहन-सहन को बनाए रखने के लिए खनन कार्य को महत्त्व दे रहे हैं।
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