Chapter 5
द्वितीयक क्रियाएँ
द्वितीयक क्रियाएँ
- द्वितीयक गतिविधियों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का मूल्य बढ़ जाता है।
- प्रकृति में पाए जाने वाले कच्चे माल का रूप बदलकर यह उसे मूल्यवान बना देती है।
- द्वितीयक क्रियाओं के द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का मूल्य बढ़ जाता है
- मनुष्य अपने कौशल , तकनीक , पूंजी और श्रम की सहायता से कच्चे माल को उत्पाद के रूप में बदल देता है
विनिर्माण
विनिर्माण से अभिप्राय किसी भी वस्तु का उत्पादन है।
- हस्तशिल्प कार्य से लेकर
- लोहे व इस्पात को गढ़ना
- प्लास्टिक के खिलौने बनाना,
- कंप्यूटर के अति सूक्ष्म घटकों को जोड़ना
- अंतरिक्ष यान निर्माण इत्यादि सभी प्रकार के उत्पादन को विनिर्माण - के अंतर्गत हो माना जाता है।
विनिर्माण की प्रक्रिया की विशेषता
- शक्ति का उपयोग
- एक ही प्रकार की वस्तुओं का विशाल उत्पादन
- कारखानों में विशिष्ट श्रमिक जो मानक वस्तुओं का उत्पादन करते हैं।
- विनिर्माण आधुनिक शक्ति के साधन एव मशीनरी के द्वारा या पुराने साधनों द्वारा किया जाता है।
आकार पर आधारित उद्योग
1. कुटीर उद्योग
- कुटीर उद्योग ऐसे उद्योगों को कहा जाता है जिनमें लोग अपने परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर स्थानीय कच्चे माल की सहायता से अपने घर पर ही दैनिक उपयोग की वस्तुओं का निर्माण करते हैं
कुटीर उद्योग की मुख्य विशेषता
- यह घरों से शुरू किए जा सकते हैं
- पूंजी और परिवहन के साधन इन उद्योगों को प्रभावित नहीं करते
- कच्चा माल एवं बाजार दोनों ही स्थानीय स्तर पर उपलब्ध होते हैं
- भारी मशीनों की आवश्यकता नहीं होती
- हाथ के साधारण औजार ही उपयोग में आते हैं
- ऐसे उद्योग को शुरू करने के लिए बहुत अधिक
- राशि की जरूरत भी नहीं होती
कुटीर उद्योग के उदाहरण
- मोमबत्ती बनाना
- अचार बनाना
- कागज के थैले बनाना
- बांस की टोकरी बनाना
2. छोटे पैमाने के उद्योग
- यह कुटीर उद्योग से भिन्न है
- इन उद्योगों में उत्पादन की तकनीक और निर्माण स्थल दोनों कुटीर उद्योग से अलग होते है
- इस उद्योग में निर्माण स्थल घर से बाहर कारखाना होता है
- इसमें भी स्थानीय कच्चे माल का उपयोग किया जाता है
- इस उद्योग में अर्ध कुशल श्रमिक और शक्ति के साधनों से चलने वाले यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है
- इस उद्योग में रोजगार के अवसर अधिक होते हैं
3. बड़े पैमाने के उद्योग
- बड़े पैमाने के उद्योग छोटे पैमाने के उद्योग से भिन्न होते हैं
- इनमें विशाल बाजार, विभिन्न प्रकार का कच्चा माल, शक्ति के साधन, कुशल श्रमिक, विकसित प्रौद्योगिकी, अधिक उत्पादन एवं अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है
- पिछले 200 वर्षों में इस प्रकार के उद्योगों का विकास हुआ है पहले यह उद्योग ब्रिटेन, अमेरिका तथा यूरोप में लगाए जाते थेलेकिन आज के समय में यह दुनिया के सभी भागों में हो गए हैं
कच्चे माल पर आधारित उद्योग
- कृषि आधारित
- खनिज आधारित
- रसायन
आधारित
- वन आधारित
- पशु आधारित
1. कृषि आधारित उद्योग
- खेतों से प्राप्त कच्चे माल को विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा तैयार माल में बदलकर विक्रय हेतु ग्रामीण एवं नगरीय बाजारों में भेजा जाता है।
- प्रमुख कृषि आधारित उद्योग में भोजन तैयार करने वाले उद्योग शक्कर, अचार, फलों के रस, पेय पदार्थ (चाय कॉफी, कोकोआ) मसाले, तेल एवं वस्त्र (सूती रेशमी, जूट) तथा रबड़ उद्योग आते हैं।
2. खनिज आधारित उद्योग
- इन उद्योगों में खनिजों को कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है।
- कुछ उद्योग लौह अंश वाले धात्विक खनिजों का उपयोग करते हैं जैसे कि लौह इस्पात उद्योग जबकि कुछ उद्योग अलौह धात्विक खनिजों का उपयोग करते हैं जैसे एल्युमिनियम, ताँबा एवं जवाहरात उद्योग।
- सीमेंट, मिट्टी के बर्तन आदि उद्योगों में अधात्विक खनिजों का प्रयोग होता है।
3. रसायन आधारित उद्योग
- इस प्रकार के उद्योगों में प्राकृतिक रूप में पाए जाने वाले रासायनिक खनिजों का उपयोग होता है
- जैसे - पेट्रो रसायन उद्योग में खनिज तेल (पैट्रोलियम) का उपयोग होता है।
- नमक, एवं पोटाश उद्योगों में भी प्राकृतिक खनिजों को काम में लेते हैं।
- कुछ रसायनिक उद्योग लकड़ी एवं कोयले से प्राप्त कच्चे माल पर भी निर्भर हैं।
4. वन आधारित उद्योग
- वनों से प्राप्त कई मुख्य एवं गौण उपज कच्चे माल के रूप में उद्योगों में प्रयुक्त होती है।
- फर्नीचर उद्योग के लिए इमारती लकड़ी, कागज उद्योग के लिए लकड़ी,
5. पशु आधारित उद्योग
- चमड़ा एवं ऊन पशुओं से प्राप्त प्रमुख कच्चा माल है।
- चमड़ा उद्योग के लिए चमड़ा एवं ऊनी वस्त्र उद्योग के लिए ऊन पशुओं से ही प्राप्त की जाती है।
- हाथी दाँत उद्योग के लिए दाँत भी हाथी से मिलता है।
6. स्वामित्व पर आधारित उद्योग
I). सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग
- यह उद्योग सरकार के अधीन होते है
- इन उद्योगों का प्रबंधन सरकार द्वारा किया जाता है
- समाजवादी देशों में ऐसे उद्योग अधिक होते हैं
II). निजी क्षेत्र के उद्योग
- ऐसे उद्योगों का मालिक कोई एक व्यक्ति या कंपनी होती है
- ऐसे उद्योगों का संचालन निजी संगठन द्वारा होता है
- पूंजीवादी देशों में ऐसे उद्योग अधिक होते हैं
- भारत में टाटा , बिरला , रिलायंस इसके उदाहरण है
III). संयुक्त क्षेत्र के उद्योग
- इन उद्योगों का संचालन सरकार और निजी कंपनियां मिलकर करती हैं
- HPCL और HPCL MITTAL ENERGY LIMITED इसका उदाहरण है
स्वच्छंद उद्योग
- स्वच्छंद उद्योग व्यापक विविधता वाले स्थानों में स्थित होते हैं
- यह किसी विशिष्ट कच्चे माल पर निर्भर नहीं होते हैं
- यह उद्योग संगठक पुरजों पर निर्भर रहते हैं जो कहीं से भी प्राप्त किए जा सकते हैं
- इसमें उत्पादन कम मात्रा में होता है एवं श्रमिकों की भी कम आवश्यकता होती है
- यह उद्योग प्रदूषण नहीं फैलाता है
आधुनिक बड़े पैमाने पर होने वाले विनिर्माण की विशेषता -
1. उत्पादन की विधियाँ / कौशल का विशिष्टीकरण
- शिल्प तरीके से कारखाने में थोड़ा ही सामान उत्पादित किया जाता है। इसकी लागत
अधिक आती है। जबकि अधिक उत्पादन का संबंध बड़े पैमाने पर बनाए जाने वाले सामान से
है जिसमें प्रत्येक कारीगर निरंतर एक ही प्रकार का कार्य करता है।
- यंत्रीकरण –किसी कार्य को पूर्ण करने के लिए मशीनों का
प्रयोग करना।
- स्वचालित यंत्रीकरण की विकसित अवस्था
है।
2. प्रोद्योगिकीय नवाचार
- प्रौद्योगिक नवाचार, शोध एवं विकासमान युक्तियों के द्वारा विनिर्माण की गुणवत्ता को नियंत्रित करने, अपशिष्टों के निस्तारण एवं प्रदूषण के विरुद्ध संघर्ष करने का महत्त्वपूर्ण पहलू है।
- संगठनीय ढांचा एवं नवाचार–आधुनिक निर्माण की विशेषताएँ है कि प्रोद्योगिकि एवं श्रम विभाजन के द्वारा कम प्रयास एवं अल्प लागत से अधिक माल का उत्पादन करता है। बड़े पैमाने पर विनिर्माण हेतु अधिक पूँजी, बड़े संगठन एवं प्रशासकीय अधिकारी वर्ग की भी आवश्यकता होती है।
3. उद्योगों की स्थिति को प्रभावित करने वाले कारक
- बाजार तक अभिगम्यता
- कच्चे माल की प्राप्ति तक अभिगम्यता
- श्रम आपूर्ति तक अभिगम्यता
- शक्ति के साधनों तक अभिगम्यता
- परिवहन और संचार की सुविधाओं तक अभिगम्यता
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