Chapter 3
मानव विकास
वृद्धि और विकास
मानव विकास के चार स्तम्भ
मानव विकास के उपागम
मानव विकास का मापन
वृद्धि और विकास
वृद्धि और विकास दोनों समय के संदर्भ में परिवर्तन को इंगित करते हैं। अंतर यह है कि वृद्धि मात्रात्मक और मूल्य निरपेक्ष होती है। इसका चिह्न धनात्मक अथवा ऋणात्मक हो सकता है। इसका अर्थ है कि परिवर्तन धनात्मक (वृद्धि दर्शाते हुए) अथवा ऋणात्मक (ह्रास/ कमी इंगित करते हुए) हो सकता है। विकास का अर्थ गुणात्मक परिवर्तन है इसका अर्थ है- विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक वर्तमान दशाओं में वृद्धि न हो। विकास उस समय होता है जब सकारात्मक वृद्धि होती है। तथापि सकारात्मक वृद्धि से सदैव विकास नहीं होता। विकास उस समय होता है जब गुणवत्ता में सकारात्मक परिवर्तन होता है।
उदाहरण -
किसी निश्चित समयावधि में यदि किसी नगर की जनसंख्या एक लाख से दो लाख हो जाती है तो हम कहते हैं नगर की वृद्धि हुई। फिर भी यदि आवास जैसी सुविधाएँ, मूलभूत सेवाओं की व्यवस्था तथा अन्य विशेषताएँ पहले जैसी ही रहती हैं तब इस वृद्धि के साथ विकास नहीं जुड़ा हुआ है।
अनेक दशकों तक किसी देश के विकास के स्तर को केवल आर्थिक वृद्धि के संदर्भ में मापा जाता था। देश की अर्थव्यवस्था जितनी ज्यादा बड़ी होती थी उसे उतना ही अधिक विकसित लोगों के जीवन में परिवर्तन से कोई संबंध नहीं
विकास के महत्वपूर्ण पक्ष
किसी देश में लोग जीवन की गुणात्मकता का जो आनंद लेते हैं उन्हें जो अवसर उपलब्ध हैं जिन स्वतंत्रताओं का वे भोग करते हैं पहली बार इन विचारों को 80 के दशक के अंत और 90 के दशक के आरंभ में स्पष्ट किया गया था। इस संबंध में दो दक्षिण एशियाई अर्थशास्त्रियों महबूब-उल-हक और अमर्त्य सेन का कार्य महत्वपूर्ण है। मानव विकास की अवधारणा का प्रतिपादन डॉ. महबूब-उल-हक के द्वारा किया गया था। इनके अनुसार -
मानव विकास –
लोगों के विकल्पों में वृद्धि करता है उनके जीवन में सुधार लाता है। इस अवधारणा में सभी प्रकार के विकास का केंद्र बिंदु मनुष्य है। ये विकल्प स्थिर नहीं हैं बल्कि परिवर्तनशील हैं। विकास का मूल उद्देश्य ऐसी दशाओं को उत्पन्न करना है जिनमें लोग सार्थक जीवन व्यतीत कर सकते हैं। सार्थक जीवन केवल दीर्घ नहीं होता। जीवन का कोई उद्देश्य होना भी आवश्यक है। इसका अर्थ है कि लोग स्वस्थ हों, अपने विवेक और बुद्धि का विकास कर सकते हों, वे समाज में प्रतिभागिता करें और अपने उद्देश्यों को पूरा करने में स्वतंत्र हों। लोगों के विकल्पों में वृद्धि करने के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और संसाधनों तक पहुँच में उनकी क्षमताओं का निर्माण करना महत्त्वपूर्ण है। यदि इन क्षेत्रों में लोगों की क्षमता नहीं है तो विकल्प भी कम हो जाते हैं।
उदाहरण- एक अशिक्षित बच्चा डॉक्टर बनने का विकल्प नहीं चुन सकता क्योंकि उसका विकल्प शिक्षा के अभाव में सीमित हो गया है। इसी प्रकार प्रायः निर्धन लोग बीमारी के लिए चिकित्सा उपचार नहीं चुन सकते क्योंकि संसाधनों के अभाव में उनका विकल्प सीमित हो जाता है।
मानव विकास के चार स्तम्भ
समता :
समता का अर्थ है - प्रत्येक व्यक्ति को उपलब्ध अवसरों के लिए समान पहुँच की व्यवस्था करना है। लोगों को उपलब्ध अवसर लिंग, प्रजाति, आय और धर्म के आधार पर किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए ।
सतत पोषणीयता :
सतत पोषणीय मानव विकास के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक पीढ़ी को समान अवसर मिले। समस्त पर्यावरणीय वित्तीय एवं मानव संसाधनों का उपयोग भविष्य को ध्यान में रख कर करना चाहिए। इन संसाधनों में से किसी भी एक का दुरुपयोग भावी पीढ़ियों के लिए अवसरों को कम करेगा।
उत्पादकता :
लोगों में क्षमताओं का निर्माण करके ऐसी उत्पादकता में निरंतर वृद्धि की जानी चाहिए। अंततः जन-समुदाय ही राष्ट्रों के वास्तविक धन होते हैं। इस प्रकार उनके ज्ञान को बढ़ाने के प्रयास अथवा उन्हें बेहतर चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध कराने से उनकी कार्यक्षमता बेहतर होगी।
सशक्तीकरण :
सशक्तीकरण का अर्थ है- अपने विकल्प चुनने के लिए शक्ति प्राप्त करना। ऐसी शक्ति बढ़ती हुई स्वतंत्रता और क्षमता से आती है। लोगों को सशक्त / मजबूत करने के लिए सुशासन ( अच्छा शासन ) एवं लोकोन्मुखी नीतियों( जन कल्याण की नीति) की आवश्यकता होती है। सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए समूहों के सशक्तीकरण का विशेष महत्त्व है।
मानव विकास के उपागम
आय उपागम :
यह मानव विकास के सबसे पुराने उपागम है इसमें मानव विकास को आय के साथ जोड़ कर देखा जाता है। आय का स्तर किसी व्यक्ति द्वारा भोगी जा रही स्वतंत्रता के स्तर को परिलक्षित करता है। आय का स्तर ऊँचा होने पर, मानव विकास का स्तर भी ऊँचा होगा।
कल्याण उपागम :
यह उपागम मानव को लाभार्थी अथवा सभी विकासात्मक गतिविधियों के लक्ष्य के रूप में देखता है। यह उपागम शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा और सुख-साधनों पर उच्चतर सरकारी व्यय का तर्क देता है। सरकार कल्याण पर अधिकतम व्यय करके मानव विकास के स्तरों में वृद्धि करने के लिए जिम्मेदार है।
न्यूनतम आवश्यकता उपागम :
इसमें छः न्यूनतम आवश्यकताओं जैसे- स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन, जलापूर्ति, स्वच्छता और आवास की पहचान की गई थी। इसमें मानव विकल्पों के प्रश्न की उपेक्षा की गई है और मूलभूत आवश्यकताओं की व्यवस्था पर जोर दिया गया है। इस उपागम को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने प्रस्तावित किया था।
क्षमता उपागम :
इस उपागम का संबंध प्रो. अमर्त्य सेन से है। इनके अनुसार जब मानव की संसाधनों तक पहुँच होगी तब उस की क्षमताओं का निर्माण होगा जिससे मानव विकास संभव हो पायेगा है।
मानव विकास का मापन
मानव विकास सूचकांक (Human Development Index )–
मानव विकास सूचकांक (HDI) स्वास्थ्य, शिक्षा और संसाधनों तक पहुँच के आधार पर देशों का क्रम तैयार करता है। यह क्रम 0 से 1 के बीच के स्कोर पर आधारित होता है
स्वास्थ्य
स्वास्थ्य का मूल्यांकन करने के लिए चुना गया सूचक जन्म के समय जीवन-प्रत्याशा है। उच्चतर जीवन-प्रत्याशा का अर्थ है कि लोगों के पास अधिक दीर्घ और अधिक स्वस्थ जीवन जीने के ज्यादा अवसर हैं।
शिक्षा
प्रौढ़ साक्षरता दर और सकल नामांकन अनुपात ज्ञान तक पहुँच को प्रदर्शित करते हैं। पढ़ और लिख सकने वाले वयस्कों की संख्या और विद्यालयों में नामांकित बच्चों की संख्या दर्शाती है कि किसी देश विशेष में ज्ञान तक पहुँच कितनी आसान अथवा कठिन है।
संसाधनों तक पहुँच
संसाधनों तक पहुँच को क्रय शक्ति (अमेरिकी डॉलर में) के संदर्भ में मापा जाता है। 1990 ई. से प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) मानव विकास प्रतिवेदन प्रकाशित कर रहा है। यह प्रतिवेदन मानव विकास स्तर के अनुसार सभी सदस्य देशों की कोटि, क्रमानुसार सूची उपलब्ध कराता है। मानव विकास सूचकांक और गरीबी सूचकांक यू.एन.डी.पी. द्वारा प्रयुक्त मानव विकास मापन के दो महत्वपूर्ण सूचकांक हैं।
अन्तराष्ट्रीय तुलनाएं
मानव विकास की अंतर्राष्ट्रीय तुलनााएँ रोचक हैं। प्रदेश के आकार और प्रति व्यक्ति आय का मानव विकास से प्रत्यक्ष संबंध नहीं है। मानव विकास में बड़े देशों की अपेक्षा छोटे देशों का कार्य बेहतर रहा है। इसी प्रकार मानव विकास में अव्यवस्थित निर्धन राष्ट्रों का कोटि-क्रम धनी पड़ोसियों से ऊंचा रहा है। उदाहरण के तौर पर अपेक्षाकृत छोटी अर्थव्यवस्थाएँ होते हुए भी श्रीलंका, और टोबैगो का मानव विकास सूचकांक भारत से ऊंचा है। मानव विकास स्कोर के आधार पर देशों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है
मानव विकास सूचकांक के आधार पर देशों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जाता है?
High : शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा देना सरकार का मुख्य कार्य
Medium : ज्यादातर देश उपनिवेश थे अनेक देशों का विकास 1991 के बाद हुआ लोकोन्मुख नीति
Low : राजनीतिक उपद्रव गृहयुद्ध अकाल बीमारी
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