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मानव विकास Geography class 12 Book 1 Chapter 3 Notes


Chapter 3 


मानव विकास



वृद्धि और विकास

  • वृद्धि और विकास दोनों समय के संदर्भ में परिवर्तन को इंगित करते हैं
  • अंतर यह है कि वृद्धि मात्रात्मक होती  है। इसका चिह्न धनात्मक अथवा ऋणात्मक हो सकता है।
  • इसका अर्थ है कि परिवर्तन धनात्मक (वृद्धि दर्शाते हुए) अथवा ऋणात्मक (ह्रास/ कमी  इंगित करते हुए) हो सकता है।
  • विकास का अर्थ गुणात्मक परिवर्तन है इसका अर्थ है - विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक वर्तमान दशाओं में वृद्धि हो।
  • विकास उस समय होता है जब सकारात्मक वृद्धि होती है तथापि सकारात्मक वृद्धि से सदैव विकास नहीं होता।
  •  विकास उस समय होता है जब गुणवत्ता में सकारात्मक परिवर्तन होता है।

उदाहरणत : - 

  • किसी निश्चित समयावधि में यदि किसी नगर की जनसंख्या एक लाख से दो लाख हो जाती है तो हम कहते हैं नगर की वृद्धि हुई।
  • फिर भी यदि आवास जैसी सुविधाएँ, मूलभूत सेवाओं की व्यवस्था तथा अन्य विशेषताएँ पहले जैसी ही रहती हैं तब इस वृद्धि के साथ विकास नहीं जुड़ा हुआ है।

 

वृद्धि   (Growth)

 

विकास (Development) 


 

मात्रात्मक

Quantity 

 

गुणात्मक

Qualiity


 

धनात्मक

positive 

 

धनात्मक

positive 


 

ऋणात्मक  negative

 

 

गुणवत्ता में सकारात्मक परिवर्तन

 

 

 

 

मानव  विकास

मानव विकास की अवधारणा का प्रतिपादन डॉ. महबूब-उल-हक के द्वारा किया गया था। 

इनके अनुसार -

  • मानव विकास लोगों के विकल्पों में वृद्धि करता है उनके जीवन में सुधार लाता है।इस अवधारणा मेंसभी प्रकार के विकास का केंद्र बिंदु मनुष्य है।ये विकल्प स्थिर नहीं हैं बल्कि परिवर्तनशील हैं।

  • विकास का मूल उद्देश्य ऐसी दशाओं को उत्पन्न करना है जिनमें लोग सार्थक जीवन व्यतीत कर सकते हैं। सार्थक जीवन केवल दीर्घ नहीं होता। जीवन का कोई उद्देश्य होना भी आवश्यक है।

  • इसका अर्थ है कि लोग स्वस्थ हों, अपने विवेक और बुद्धि का विकास कर सकते हों, वसमाज में प्रतिभागिता करें और अपने उद्देश्यों को पूरा करने में स्वतंत्र हो।

  • लोगों के विकल्पों में वृद्धि करने के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और संसाधनों तक पहुँच में उनकी क्षमताओं का निर्माण करना महत्त्वपूर्ण है।यदि इन क्षेत्रों में लोगों की क्षमता नहीं है तो विकल्प भी कम हो जाते हैं।

उदाहरणत –

1. एक अशिक्षित बच्चा डॉक्टर बनने का विकल्प नहीं चुन सकता क्योंकि उसका विकल्प शिक्षा के अभाव में सीमित हो गया है।

2. इसी प्रकार प्रायः निर्धन लोग बीमारी के लिए चिकित्सा उपचार नहीं चुन सकते क्योंकि संसाधनों के अभाव में उनका विकल्प सीमित हो जाता है।

 

मानव विकास के चार स्तम्भ

1.       समता - समता का अर्थ है - प्रत्येक व्यक्ति को उपलब्ध अवसरों के लिए समान पहुँच की व्यवस्था करना है।  लोगों को उपलब्ध अवसर लिंग, प्रजाति, आय और धर्म के आधार पर किसी प्रकार का कोई  भेदभाव नहीं होना चाहिए


2.     सतत पोषणीयता - सतत पोषणीय मानव विकास के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक पीढ़ी को समान अवसर मिले।समस्त पर्यावरणीय वित्तीय एवं मानव संसाधनों का उपयोग भविष्य को ध्यान में रख कर करना चाहिए। इन संसाधनों में से किसी भी एक का दुरुपयोग भावी पीढ़ियों के लिए अवसरों को कम करेगा।

 

3.     उत्पादकता - लोगों में क्षमताओं का निर्माण करके ऐसी उत्पादकता में निरंतर वृद्धि की जानी चाहिए अंततः जन-समुदाय ही राष्ट्रों के वास्तविक धन होते हैं इस प्रकार उनके ज्ञान को बढ़ाने के प्रयास अथवा उन्हें बेहतर चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध कराने से उनकी कार्यक्षमता बेहतर होगी।

 

4.     सशक्तीकरण - सशक्तीकरण का अर्थ है- अपने विकल्प चुनने के लिए शक्ति प्राप्त करना। ऐसी शक्ति बढ़ती हुई स्वतंत्रता और क्षमता से आती है । लोगों को सशक्त / मजबूत करने के लिए सुशासन ( अच्छा शासन ) एवं लोकोन्मुखी नीतियों ( जन कल्याण की नीतिकी आवश्यकता होती है। सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए  समूहों के सशक्तीकरण का विशेष महत्त्व है।

 

मानव विकास के उपागम

1.        आय उपागम - यह मानव विकास के सबसे पुराने उपागम है इसमें मानव विकास को आय के साथ जोड़ कर देखा जाता है ।आय का स्तर किसी व्यक्ति द्वारा भोगी जा रही स्वतंत्रता के स्तर को परिलक्षित करता है आय का स्तर ऊँचा होने पर, मानव विकास का स्तर भी ऊँचा होगा।


2.        कल्याण  उपागम - यह उपागम मानव को लाभार्थी अथवा सभी विकासात्मक गतिविधियों के लक्ष्य के रूप में देखता है। यह उपागम शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा और सुख-साधनों पर उच्चतर सरकारी व्यय का तर्क देता है। सरकार कल्याण पर अधिकतम व्यय करके मानव विकास के स्तरों में वृद्धि करने के लिए जिम्मेदार है।


3.       न्यूनतम आवश्यकता  उपागम - इसमें छः न्यूनतम आवश्यकताओं जैसे- स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन, जलापूर्ति, स्वच्छता और आवास की पहचान की गई थी। इसमें मानव विकल्पों के प्रश्न की उपेक्षा की गई है और मूलभूत आवश्यकताओं की व्यवस्था पर जोर दिया गया है। इस उपागम को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने प्रस्तावित किया था।

 

4.       क्षमता उपागम - इस उपागम का संबंध प्रो. अमर्त्य सेन से है। इनके अनुसार जब मानव की संसाधनों तक पहुँच होगी तब उस की क्षमताओं का निर्माण होगा जिससे मानव विकास संभव हो पायेगा है।

 

  • 1990 ई. से प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) मानव विकास प्रतिवेदन प्रकाशित कर रहा है। यह प्रतिवेदन मानव विकास स्तर के अनुसार सभी सदस्य देशों की कोटि, क्रमानुसार सूची उपलब्ध कराता है। मानव विकास सूचकांक और गरीबी सूचकांक यू.एन.डी.पी. द्वारा प्रयुक्त मानव विकास मापन के दो महत्त्वपूर्ण सूचकांक हैं।


मानव विकास स्कोर के आधार पर देशों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है

  स्रोत : मानव विकास प्रतिवेदन, 2021-2022

 

 

मानव विकास का स्तर


 

मानव विकास सूचकांक का स्कोर

 

देशों की संख्या



 

अति उच्च

 

0.800 से ऊपर



 

66

 

उच्च




 

0.700 से 0.799 के बीच

 

49

 

मध्यम

 

0.550 से 0.699 के बीच



 

44


 मानव विकास सूचकांक (HDI) के आधार पर शीर्ष 10 देशों 

 

 



मानव विकास सूचकांक [ Human Development Index) :

HDI का मुख्य उपयोग देशों के विकास की तुलना में किया जाता है। यह अंक देशों के बीच विकासशीलता के अनुपात को स्पष्ट करने में मदद करता है। उच्च HDI वाले देश उन देशों को दर्शाते हैं जहां जीवनकाल, शिक्षा, और आय स्तर सभी में अच्छा प्रदर्शन हो रहा है।





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