Chapter 1
जनसँख्या वितरण और घनत्व
INTRODUCTION -
लोग किसी देश के अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटक होते हैं। भारत की जनसंख्या (2011 की जनगणना) के अनुसार 121.0 करोड़ है ,भारत चीन के बाद विश्व में दूसरा सघनतम बसा हुआ देश है। भारत की जनसंख्या उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और आस्ट्रेलिया की मिलाकर कुल जनसंख्या से भी अधिक है। ऐसे में यह कहा जाता है कि इतनी बड़ी जनसंख्या निश्चित तौर पर इसके सीमित संसाधनों पर दबाव डालती है और देश में अनेक सामाजिक, आर्थिक समस्याओं के लिए उत्तरदायी हैं।
जनसंख्या आँकड़ों के स्रोत
हमारे देश में जनसंख्या के आंकड़ों को प्रति दस वर्ष बाद होने वाली जनगणना द्वारा एकत्रित किया जाता है।
- भारत की पहली जनगणना 1872 ई. में हुई थी
- पहली सपूर्ण जनगणना 1881 ई में संपन्न हुई थी।
जनसंख्या का वितरण
“ भारत में जनसँख्या का वितरण असमान है “ कथन का विश्लेषण कीजिये I भारत में जनसँख्या का वितरण असमान क्यों है इसके मुख्य कारणों पर चर्चा कीजिये I
भारत में जनसँख्या का वितरण असमान होने के कारण
- भौतिक कारक
- सामाजिक, आर्थिक, ऐतिहासिक कारक
- औद्योगिक कारक
भौतिक कारक -
जिन स्थानों पर उपजाऊ भूमि , जल की उपलब्धता , उचित जलवायु होती है वहां जनसँख्या अधिक होती है
औद्योगिक कारक -
दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलूरु, पुणे, अहमदाबाद, चेन्नई और जयपुर के नगरीय क्षेत्र, औद्योगिक विकास और नगरीकरण के कारण बड़ी संख्या में ग्रामीण-नगरीय प्रवासियों को आकर्षित कर रहे हैं। इसलिए इन क्षेत्रों में जनसंख्या का उच्च सांद्रण पाया जाता है।
सामाजिक , आर्थिक , ऐतिहासिक कारक -
स्थायी कृषि का उद्भव और कृषि विकास, मानव बस्ती के प्रतिरूप, परिवहन जाल-तंत्र का विकास, औद्योगीकरण और नगरीकरण हैं। ऐसा देखा गया है कि भारत के नदीय मैदानों और तटीय क्षेत्रों में स्थित प्रदेश सदैव ही विशाल जनसंख्या सांद्रण वाले प्रदेश रहे हैं।
जनसंख्या का घनत्व
जनसंख्या घनत्व का अर्थ
जनसंख्या के घनत्व को प्रति इकाई क्षेत्र में व्यक्तियों की संख्या द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। भारत का जनसंख्या घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. (2011) है 1951 ई. में जनसंख्या का घनत्व 117 व्यक्ति/वर्ग कि.मी. से बढ़कर 2011 में 382 व्यक्ति/प्रतिवर्ग कि.मी. होने से विगत 50 वर्षों में 200 व्यक्ति प्रति वर्ग कि. मी. से अधिक की उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। सबसे कम जनसंख्या घनत्व वाला राज्य अरुणाचल प्रदेश है 17 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. (2011) है सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व वाला राज्य बिहार है 1102 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. (2011) है
उच्च जनसँख्या घनत्व वाले राज्य
- बिहार : 1102 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी.
- बंगाल : 1029 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी.
- उत्तर प्रदेश : 828 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी.
- केरल : 859 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी.
- तमिलनाडु : 555 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी.
- दिल्ली : 11297 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी.
माध्यम जनसँख्या घनत्व वाले राज्य
- असम
- गुजरात
- हरियाणा
- झारखंड
- ओड़िसा
- आंध्र प्रदेश
निम्न जनसँख्या घनत्व वाले राज्य
- अरुणाचल प्रदेश
- सिक्किम
- मेघालय
- नागालैंड
- त्रिपुरा
- मिजोरम
जनसंख्या वृद्धि
जनसंख्या वृद्धि दो समय बिंदुओं के बीच किसी क्षेत्र विशेष में रहने वाले लोगों की संख्या में परिवर्तन को कहते हैं। इसकी दर को प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है। जनसंख्या वृद्धि के दो घटक होते हैं, प्राकृतिक (Natural) और अभिप्रेरित (Induced) जबकि प्राकृतिक वृद्धि का विश्लेषण अशोधित जन्म और मृत्यु दरों से निर्धारित किया जाता है. अभिप्रेरित -क्षेत्र में लोगों के अंतर्वर्ती और बहिर्वर्ती संचलन की प्रबलता द्वारा स्पष्ट किया जाता है। विगत एक शताब्दी में भारत में जनसंख्या की वृद्धि, वार्षिक जन्म दर और मृत्यु दर तथा प्रवास की दर के कारण हुई है और इसलिए यह वृद्धि विभिन्न प्रवृत्तियों को दर्शाती है। इस अवधि में वृद्धि की चार सुस्पष्ट प्रावस्थाओं को पहचाना गया है:
जनसँख्या वृद्धि की चार सुस्पष्ट प्रावस्थाओं
- प्रावस्था – क(Phase - 1) : 1901-1921
- प्रावस्था – ख(Phase - 2) : 1921-1951
- प्रावस्था – ग(Phase - 3) : 1951-81
- प्रावस्था – घ(Phase - 4) : 1981 से अब तक
1901-1921
1901-1921 की अवधि को भारत की जनसंख्या की वृद्धि की रूद्ध अथवा स्थिर प्रावस्था कहा जाता है क्योंकि इस अवधि में वृद्धि दर अत्यंत निम्न थी । यहाँ तक कि 1911- 1921 के दौरान ऋणात्मक वृद्धि दर दर्ज की गई। जन्म दर और मृत्यु दर दोनों ऊँचे थे जिससे वृद्धि दर निम्न बनी रही निम्न स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवाएँ, अधिकतर लोगों की निरक्षरता, भोजन और अन्य आधारभूत आवश्यकताओं का अपर्याप्त वितरण इस अवधि में मोटे तौर पर उच्च जन्म और मृत्यु दरों के लिए उत्तरदायी थे।
1921-1951
1921-1951 के दशकों को जनसंख्या की स्थिर वृद्धि की अवधि के रूप में जाना जाता है। देश-भर में स्वास्थ्य और स्वच्छता में व्यापक सुधारों ने मृत्यु दर को नीचे ला दिया। साथ ही साथ बेहतर परिवहन और संचार तंत्र से वितरण प्रणाली में सुधार हुआ। फलस्वरूप अशोधित जन्म दर ऊँची बनी रही जिससे पिछली प्रावस्था की तुलना में वृद्धि दर उच्चतर हुई।
1951-81
इस अवधि को भारत में जनसंख्या विस्फोट की अवधि के रूप में जाना जाता है। यह देश में मृत्यु दर में तीव्र ह्रास और जनसंख्या की उच्च प्रजनन दर के कारण हुआ। औसत वार्षिक वृद्धि दर 2.2 प्रतिशत तक ऊँची रही। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद केंद्रीकृत नियोजन प्रक्रिया के माध्यम से विकासात्मक कार्यों को आरंभ किया गया। अर्थव्यवस्था सुधरने लगी जिससे अधिकांश लोगों के जीवन की दशाओं में सुधार सुनिश्चित हुआ। तिब्बतियों, बांग्लादेशियों, नेपालियों, पाकिस्तानी का देश में प्रवास बढ़ा
1981 से वर्तमान तक
जनसंख्या की वृद्धि दर, यद्यपि ऊँची बनी रही, परंतु धीरे-धीरे मंद गति से घटने लगी ऐसी जनसंख्या वृद्धि के लिए अशोधित जन्म दर की अधोमुखी प्रवृत्ति को उत्तरदायी माना जाता है।
1981 से वर्तमान तक
यह देश में विवाह के समय औसत आयु में वृद्धि जीवन की गुणवत्ता विशेष रूप से स्त्री शिक्षा में सुधार से प्रभावित हुई। देश में जनसंख्या की वृद्धि दर अभी भी ऊँची है और विश्व विकास रिपोर्ट द्वारा यह प्रक्षेपित किया गया है कि 2025 ई. तक भारत की जनसंख्या 135 करोड़ को स्पर्श करेगी।
जनसंख्या वृद्धि में क्षेत्रीय भिन्नता
1991-2001 के दौरान:
कम वृद्धि दर वाले राज्य: केरल (9.4%), कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, गोवा, पुड्डुचेरी आदि में जनसंख्या वृद्धि 20% से कम रही।
ज्यादा वृद्धि दर वाले राज्य: उत्तर, उत्तर-पूर्व और मध्य भारत जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड आदि में वृद्धि दर 20-25% के बीच रही।
2001-2011 के दौरान:
अधिकांश राज्यों में जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार धीमी हुई। आंध्र प्रदेश में सबसे कम वृद्धि (3.5%) और महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा गिरावट (6.7%) दर्ज की गई। तमिलनाडु (3.9%) और पुड्डुचेरी (7.1%) में भी पहले से कम वृद्धि हुई।
भारत में किशोरों की जनसंख्या (2011):
आयु वर्ग 10-19 वर्ष के किशोरों की हिस्सेदारी 20.9% है। इसमें से:
- 52.7% लड़के (किशोर) हैं।
- 47.3% लड़कियाँ (किशोरियाँ) हैं।
किशोरों के समक्ष चुनौतियाँ
- कम आयु में विवाह
- निरक्षरता
- विद्यालय का बीच में छोड़ देना
- किशोरी माताओं में उच्च माता मृत्यु दर
- मदिरा सेवन
- उचित मार्गदर्शन का अभाव
- अपराध
राष्ट्रीय युवा नीति 2014
किशोर जनसंख्या के समग्र विकास के लिए यह नीति बनाई गयी थी राष्ट्रीय युवा नीति (2014) फरवरी 2014 में आरंभ की गई है भारत के युवाओं के लिए एक समग्र दूरदर्शी प्रस्ताव रखती है।
- "देश के युवाओं में बेहतर गुणों का विकास करना
- युवाओं को बेहतर मार्गदर्शन प्रदान करना
- युवाओं में देशभक्ति की भावना जागृत करना
राष्ट्रीय युवा नीति में 15-29 वर्ष के आयु समूह के व्यक्ति को 'युवा' के रूप में परिभाषित करती है। भारत सरकार ने 2015 में कौशल विकास तथा उद्यमिता के लिए नीति बनाई है ।
जनसँख्या संघटन
जनसँख्या संघटन , जनसँख्या भूगोल के अंतर्गत अध्ययन का एक सुस्पष्ट क्षेत्र है
- आयु और लिंग का विश्लेषण
- लोगों का निवास स्थान
- भाषा
- धर्म
- साक्षरता
- वैवाहिक स्थिति
- शिक्षा
- व्यवसाय
जनसँख्या संघटन
- ग्रामीण नगरीय संघटन
- भाषाई संघटन
- धार्मिक संघटन
- श्रम जीवी संघटन
ग्रामीण नगरीय संघटन
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 6,40,867 गाँव हैं जिनमें से 5,97,608 (93.2 प्रतिशत) गाँव बसे हुए हैं फिर भी पूरे देश में ग्रामीण जनसंख्या का वितरण समान नहीं है। हिमाचल प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत बहुत अधिक है। गोआ और मिज़ोरम राज्यों की कुल जनसंख्या का आधे से कुछ अधिक भाग गाँवों में बसता है। गाँवों का आकार भी काफ़ी हद तक भिन्न है। उत्तर-पूर्वी भारत के पहाड़ी राज्यों, पश्चिमी राजस्थान और कच्छ के रन में वह 200 व्यक्तियों से कम और केरल व महाराष्ट्र के कुछ भागों में यह 17,000 व्यक्ति तक पाया जाता है। ग्रामीण जनसंख्या के विपरीत भारत में नगरीय जनसंख्या का अनुपात (31.16 प्रतिशत) काफ़ी निम्न है लेकिन पिछले दशकों में यह वृद्धि की बहुत तीव्र दर को दर्शा रहा है। नगरीय जनसंख्या की वृद्धि दर संवृद्ध आर्थिक विकास, स्वास्थ्य और स्वास्थ्य संबंधी दशाओं में सुधार के कारण तेजी से बढ़ी है। कुल जनसंख्या की भाँति नगरीय जनसंख्या के वितरण में भी देश भर में भिन्नताएँ पाई जाती हैं
लगभग सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों में नगरीय जनसंख्या काफ़ी बढ़ी है। कोलकाता, मुंबई, बेंगलूरु-मैसूरु, मदुरै-कोयम्बटूर, अहमदाबाद-सूरत, दिल्ली, कानपुर और लुधियाना-जालंधर में ग्रामीण-नगरीय प्रवास सुस्पष्ट है।
भाषाई संघटन
- भारत में 179 भाषाएँ और 544 बोलियाँ (ग्रियर्सन के अनुसार)।
- 22 भाषाएँ संविधान में अनुसूचित हैं, बाकी गैर-अनुसूचित।
- हिंदी सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है।
- लघु भाषाएँ: संथाली, बोडो, मणिपुरी आदि।
- भाषाओं की सीमाएँ स्पष्ट नहीं होतीं — एक ही भाषा कई राज्यों में बोली जाती है।
भाषाई संघटन
धार्मिक संघटन
- हिंदू - सम्पूर्ण देश में लगभग
- मुस्लिम - जम्मू और कश्मीर, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, लक्षद्वीप, केरल
- ईसाई - ग्रामीण क्षेत्रों, गोवा, केरल, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड
- सिख - पंजाब, हरियाणा, दिल्ली
- बौद्ध - महाराष्ट्र, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख, त्रिपुरा, हिमाचल
- जैन - महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान
श्रम जीवी संघटन
श्रम जीवी संघटन
आर्थिक स्तर की दृष्टि से भारत की जनसँख्या को तीन वर्गों में बांटा जा सकता है
1) मुख्य श्रमिक – एक वर्ष में 183 दिन काम करता हो
2) सीमान्त श्रमिक -एक वर्ष में 183 दिन से कम काम करता हो
3) अश्रमिक
भारत में श्रमिकों की भागीदारी (2011):
- श्रमिकों का अनुपात: 39.8% (मुख्य और सीमांत दोनों शामिल)
- अश्रमिकों की संख्या: लगभग 60%
इसका मतलब है कि बड़ी संख्या में लोग रोज़गार में शामिल नहीं हैं। यह स्थिति आर्थिक चुनौतियों और बेरोजगारी की ओर इशारा करती है।
श्रम की प्रतिभागिता दर क्या होती है?
यह उस जनसंख्या का प्रतिशत है जो किसी न किसी आर्थिक गतिविधि (रोजगार/काम) में सक्रिय रूप से शामिल है।
बेटी बचाओ , बेटी पढाओ अभियान
बेटी पढाओ , बेटी बचाओ अभियान
समाज का विभाजन पुरुष, महिला और ट्रांसजेंडर में प्राकृतिक और जैविक रूप से माना जाता है। लेकिन वास्तव में समाज सब के लिए अलग-अलग भूमिका निर्धारित करता है और ये भूमिकाएँ फिर से सामाजिक संस्थाओं द्वारा सुदृढ़ कर दी जाती हैं। जिसके फलस्वरूप ये जैविक विभिन्नताएँ सामाजिक भेदभाव, अलगाव तथा बहिष्कार का आधार बन जाती हैं। आधी से ज्यादा जनसंख्या का बहिष्करण किसी भी विकासशील और सभ्य समाज के लिए एक गंभीर समस्या है।
सामान्य जन में किसी भी प्रकार का भेदभाव और विशेष रूप से जेंडर के आधार पर भेदभाव, मानवता के प्रति एक अपराध है। इसलिए सभी के लिए शिक्षा, रोज़गार, राजनीतिक प्रतिनिधित्व में समान अवसर, समान कार्य के लिए एक वेतन, स्वाभिमान के साथ जीवन जीने का अवसर सभी को मिले, इसके लिए विशेष प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
जो समाज इन सभी भेदभाव तथा बुराइयों को दूर करने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाता है, वह एक सभ्य समाज नहीं कहा जा सकता। भारत सरकार ने इन सभी को संज्ञान में लेते हुए तथा भेदभाव से होने वाले दुष्प्रभावों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय स्तर पर "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" सामाजिक अभियान चलाया है।
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