मनोवैज्ञानिक गुणों में विभिन्नताएँ Notes in Hindi Class 12 Psychology Chapter-1 Book-1
0Team Eklavyaजुलाई 09, 2025
परिचय
हर व्यक्ति एक-दूसरे से भिन्न होता है – सोचने, समझने, सीखने और समस्याएँ हल करने की क्षमता में। कक्षा 11 में आपने ऐसे मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पढ़े जो मानव व्यवहार को समझाते हैं। अब इस अध्याय में आप जानेंगे कि ये भिन्नताएँ क्यों होती हैं, कैसे उत्पन्न होती हैं और उनका मूल्यांकन कैसे किया जाता है। बुद्धि एक ऐसा मनोवैज्ञानिक गुण है जो लोगों को एक-दूसरे से अलग बनाता है। इस अध्याय में आप बुद्धि का अर्थ, उसकी बदलती परिभाषाएँ, सांस्कृतिक प्रभाव, बौद्धिक क्षमताओं में अंतर और विशिष्ट योग्यताओं की समझ प्राप्त करेंगे।
मानव प्रकार्यों में व्यक्तिगत भिन्नताएँ
प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे से भिन्न होता है, चाहे वह भिन्न प्रजाति का हो या एक ही प्रजाति का। यह भिन्नता या विविधता ही प्रकृति को सुंदर और आकर्षक बनाती है। जैसे सभी चीजें एक ही रंग की हों तो संसार नीरस लगेगा, वैसे ही यदि सभी मनुष्य एक जैसे हों तो समाज भी एकरस हो जाएगा। हर व्यक्ति में शारीरिक (जैसे ऊँचाई, वजन) और मनोवैज्ञानिक (जैसे बुद्धिमत्ता, व्यवहार, सृजनशीलता) गुणों का एक विशिष्ट मिश्रण होता है, जिससे वह अद्वितीय बनता है। इन अंतर को ही ‘व्यक्तिगत भिन्नता’ कहा जाता है। कुछ मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि व्यवहार व्यक्ति की आंतरिक विशेषताओं से तय होता है, जबकि अन्य मानते हैं कि यह परिस्थिति पर निर्भर करता है — जिसे स्थितिवाद कहा जाता है। जैसे एक आक्रामक व्यक्ति अधिकारी के सामने विनम्र बन जाता है। यानी कई बार परिस्थिति, व्यक्ति के व्यक्तित्व से ज्यादा असर डालती है।
मनोवैज्ञानिक गुणों का मूल्यांकन
व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक गुण बहुत साधारण प्रतिक्रिया काल से लेकर जटिल भावनाओं जैसे प्रसन्नता तक जुड़े होते हैं। इन गुणों को समझने के लिए पहला कदम उनका मूल्यांकन (assessment) होता है, जो वैज्ञानिक विधियों से मापन द्वारा किया जाता है। मूल्यांकन औपचारिक (मानकीकृत और वस्तुनिष्ठ) या अनौपचारिक (व्यक्तिपरक) हो सकता है। उदाहरणस्वरूप, यदि हम कहते हैं कि "हरीश प्रभावी व्यक्ति है", तो यह उसके गुण का मूल्यांकन दर्शाता है। मूल्यांकन के आधार पर भविष्य में उसके व्यवहार की भविष्यवाणी की जा सकती है और यदि आवश्यक हो तो उसमें परिवर्तन भी लाया जा सकता है। मूल्यांकन का उद्देश्य समस्या के प्रकार पर निर्भर करता है — जैसे कमजोर छात्र के लिए बौद्धिक मूल्यांकन, सामाजिक समायोजन के लिए व्यक्तित्व मूल्यांकन, या प्रेरणा की कमी के लिए अभिरुचि का मूल्यांकन। ऐसे मूल्यांकन के लिए प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक और व्यवस्थित परीक्षण विधियाँ जरूरी होती हैं।
मनोवैज्ञानिक गुणों के कुछ क्षेत्र
मनोवैज्ञानिक गुण सरल और एकरेखीय नहीं होते, बल्कि ये बहुविमीय और जटिल होते हैं, जैसे किसी डिब्बे की लंबाई, चौड़ाई और ऊँचाई। किसी व्यक्ति का समग्र मूल्यांकन करने के लिए उसके संज्ञानात्मक, सांवेगिक और सामाजिक क्षेत्रों में व्यवहार को समझना जरूरी होता है। मनोवैज्ञानिकों की रुचि के पाँच प्रमुख गुण हैं: (1) बुद्धि, जो पर्यावरण को समझने और समस्याओं को हल करने की क्षमता को दर्शाती है; (2) अभिक्षमता, जो किसी व्यक्ति की संभावित कौशल अर्जन योग्यता को मापती है; (3) अभिरुचि, जो व्यक्ति की किसी विशेष कार्य में रुचि और वरीयता को बताती है; (4) व्यक्तित्व, जो किसी व्यक्ति की स्थायी विशेषताओं (जैसे – विनम्रता, संवेगात्मक स्थिरता) का आकलन करता है; और (5) मूल्य, जो व्यक्ति के आदर्शों और जीवन में व्यवहारों के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत होते हैं। इन सभी गुणों का मूल्यांकन व्यक्ति को समझने, भविष्यवाणी करने और मार्गदर्शन देने में सहायक होता है।
मूल्यांकन की विधियाँ
मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन के लिए कई विधियाँ अपनाई जाती हैं। मनोवैज्ञानिक परीक्षण वस्तुनिष्ठ और मानकीकृत होते हैं, जिनसे बुद्धि, अभिक्षमता जैसे गुणों का आकलन किया जाता है। साक्षात्कार विधि में व्यक्ति से बातचीत कर जानकारी ली जाती है, जैसे परामर्शदाता या पत्रकार करते हैं। व्यक्ति अध्ययन विधि में किसी व्यक्ति के जीवन और मनोसामाजिक परिवेश का गहन विश्लेषण किया जाता है, जिसमें साक्षात्कार, प्रेक्षण और प्रश्नावली जैसे साधन शामिल होते हैं। प्रेक्षण विधि में व्यक्ति के स्वाभाविक व्यवहार को व्यवस्थित रूप से देखा और रिकॉर्ड किया जाता है, हालाँकि इसमें प्रेक्षक की व्यक्तिनिष्ठता की संभावना होती है। आत्म-प्रतिवेदन विधि में व्यक्ति स्वयं अपने विश्वासों और अनुभवों के बारे में जानकारी देता है, जो प्रश्नावली, डायरी या साक्षात्कार के माध्यम से प्राप्त की जाती है। ये सभी विधियाँ मनोवैज्ञानिक गुणों के सटीक मूल्यांकन में सहायक होती हैं।
बुद्धि
बुद्धि व्यक्तियों की पारस्परिक भिन्नताओं को समझने की एक प्रमुख निर्मिति है, जिससे यह जाना जा सकता है कि कोई व्यक्ति अपने पर्यावरण के अनुसार अपने व्यवहार को कैसे ढालता है। सामान्यतः लोग बुद्धि को हाजिरजवाबी या तेज दिमाग समझते हैं, लेकिन मनोवैज्ञानिक इसे अधिक व्यापक रूप में देखते हैं। ऑक्सफोर्ड शब्दकोश के अनुसार, बुद्धि में प्रत्यक्षण, सीखने, समझने और जानने की क्षमता शामिल होती है। अल्फ्रेड बिने ने इसे अच्छे निर्णय, बोध और तर्क की योग्यता बताया, जबकि वेश्लर ने बुद्धि को सविवेक चिंतन, उद्देश्यपूर्ण व्यवहार और पर्यावरण से प्रभावी निपटने की समग्र क्षमता कहा। गार्डनर और स्टर्नबर्ग जैसे मनोवैज्ञानिकों ने यह भी जोड़ा कि बुद्धिमान व्यक्ति केवल पर्यावरण से अनुकूलन नहीं करता, बल्कि उसमें सक्रिय परिवर्तन भी लाता है। बुद्धि का गहराई से समझना इसके विभिन्न सिद्धांतों के अध्ययन से संभव है।
बुद्धि के सिद्धांत
बुद्धि के दो प्रमुख दृष्टिकोण
मनोमितिक या संरचनात्मक उपागम (Psychometric Approach)
बुद्धि कई मानसिक योग्यताओं का समूह होती है, जैसे – तर्क करना, सीखना, समस्या हल करना आदि। इसे मापने के लिए बुद्धिलब्धि (IQ) टेस्ट और स्कोर का उपयोग किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह जानना होता है कि व्यक्ति क्या कर सकता है, यानी उसकी संभावित मानसिक क्षमता क्या है।
सूचना प्रक्रमण उपागम (Information Processing Approach)
बुद्धि समस्याओं को हल करने की एक मानसिक प्रक्रिया है, जो यह दर्शाती है कि व्यक्ति कैसे सोचता और निर्णय लेता है। इसका मुख्य ध्यान व्यवहार के पीछे की सोच और तर्क पर होता है।
मनोमितिक उपागम पर आधारित सिद्धांत
1. अल्फ्रेड बिने – एक कारक सिद्धांत (One-Factor Theory)
बिने ने बुद्धि को समस्याओं को हल करने की क्षमता माना और इसके मापन के लिए पहला IQ परीक्षण विकसित किया। उनका मानना था कि बुद्धि कई योग्यताओं का एक समुच्चय होती है।
2. चार्ल्स स्पीयरमैन – दो-कारक सिद्धांत (Two-Factor Theory)
बुद्धि को G-Factor और S-Factors में बाँटा गया है। G-Factor (सा-कारक) सामान्य योग्यता है जो सभी कार्यों में सहायक होती है, जबकि S-Factors (वि-कारक) विशेष कार्यों के लिए विशिष्ट योग्यताएँ होती हैं। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति अच्छा गायक हो सकता है क्योंकि उसमें सामान्य बुद्धि (g) और संगीत की विशेष योग्यता (s) दोनों मौजूद होती हैं।
3. लुईस थरस्टन – 7 प्राथमिक मानसिक योग्यताएँ (Primary Mental Abilities)
4. आर्थर जेन्सेन – पदानुक्रमिक मॉडल (Hierarchical Model)
बुद्धि को दो स्तरों में बाँटा गया है। Level 1 में रटने और याद रखने की योग्यता शामिल है, जबकि Level 2 में सोचने, समझने और समस्या सुलझाने की उच्च स्तरीय मानसिक क्षमता होती है।
5. जे.पी. गिलफोर्ड – बुद्धि-संरचना मॉडल (Structure of Intellect Model)
उन्होंने बुद्धि को तीन भागों में बाँटा—संक्रियाएँ (जैसे सोच, स्मृति), विषयवस्तु (जैसे दृश्य, शब्द) और उत्पाद (जैसे संबंध, व्यवस्था)। इन तीनों के संयोजन से कुल 180 मानसिक क्षमताओं (6×5×6) के प्रकोष्ठ बनते हैं।
बहु-बुद्धि का सिद्धांत
हावर्ड गार्डनर ने बहु-बुद्धि सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसके अनुसार बुद्धि एकल तत्व नहीं बल्कि विभिन्न स्वतंत्र प्रकार की बुद्धियों का समूह है। प्रत्येक बुद्धि अलग कार्य करती है और किसी व्यक्ति में एक बुद्धि अधिक होने का अर्थ यह नहीं कि अन्य बुद्धियाँ भी उतनी ही होंगी। गार्डनर ने 8 प्रकार की बुद्धियों का वर्णन किया: (1) भाषागत बुद्धि – भाषा के प्रभावी उपयोग की योग्यता (लेखक, कवि), (2) तार्किक-गणितीय बुद्धि – तर्क और गणितीय समस्या हल करने की क्षमता (वैज्ञानिक, गणितज्ञ), (3) देशिक बुद्धि – मानसिक बिंबों का निर्माण और स्थानिक सोच (चित्रकार, वास्तुकार), (4) संगीतात्मक बुद्धि – ध्वनि, लय और संगीत सृजन की क्षमता (गायक, संगीतकार), (5) शारीरिक गतिसंवेदी बुद्धि – शरीर की कुशल गति और प्रदर्शन (खिलाड़ी, नर्तक), (6) अंतर्वैयक्तिक बुद्धि – दूसरों की भावनाओं को समझने और संबंध बनाने की योग्यता (परामर्शदाता, नेता), (7) अंतः व्यक्ति बुद्धि – स्वयं की भावनाओं और अभिप्रेरणाओं को समझने की योग्यता (दार्शनिक, आध्यात्मिक नेता), और (8) प्रकृतिवादी बुद्धि – प्राकृतिक दुनिया की पहचान और सराहना करने की क्षमता (किसान, जीवविज्ञानी)। ये सभी बुद्धियाँ किसी व्यक्ति की विशिष्ट क्षमताओं को दर्शाती हैं और मिलकर समस्या समाधान में सहायक होती हैं।
बुद्धि का त्रिचापीय सिद्धांत
राबर्ट स्टर्नबर्ग ने 1985 में त्रिचापीय बुद्धि सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने बुद्धि को तीन प्रमुख प्रकारों में विभाजित किया: घटकीय, आनुभविक, और सांदर्भिक। उनके अनुसार, बुद्धि वह क्षमता है जिससे व्यक्ति अपने पर्यावरण के प्रति अनुकूलन करता है, समाज और संस्कृति के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु पर्यावरण का चयन व उसमें परिवर्तन करता है। घटकीय (Componential) बुद्धि विश्लेषणात्मक होती है और समस्या समाधान, योजना बनाने व निष्पादन में सहायक होती है। आनुभविक (Experiential) बुद्धि व्यक्ति को पुराने अनुभवों से नए, सृजनात्मक समाधान खोजने में मदद करती है। जबकि सांदर्भिक (Contextual) बुद्धि व्यक्ति को अपने दैनिक जीवन के पर्यावरणीय परिस्थितियों से व्यवहारिक ढंग से निपटने और अनुकूलन करने की योग्यता प्रदान करती है। यह सिद्धांत बुद्धि को समझने में सूचना-प्रसंस्करण दृष्टिकोण का एक प्रमुख उदाहरण है।
बुद्धि की योजना, अवधान-भाव प्रबोधन तथा सहकालिक-आनुक्रमिक मॉडल
PASS मॉडल बुद्धि का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जिसे जे.पी. दास, जैक नागलीरी और किर्बी ने 1994 में विकसित किया। इसके अनुसार बुद्धि चार प्रमुख क्रियाओं – योजना (Planning), अवधान (Attention), सहकालिक प्रक्रमण (Simultaneous Processing) और आनुक्रमिक प्रक्रमण (Successive Processing) – पर आधारित होती है। यह मॉडल मस्तिष्क की तीन कार्यात्मक इकाइयों पर केंद्रित है। अवधान या भाव प्रबोधन व्यक्ति को किसी उद्दीपक पर ध्यान केंद्रित करने और जानकारी संसाधित करने में मदद करता है, जैसे परीक्षा की घोषणा पर किसी अध्याय पर विशेष ध्यान देना। सहकालिक प्रक्रमण में व्यक्ति विभिन्न जानकारियों को एक साथ जोड़कर उनका अर्थ निकालता है, जैसे रैवेन्स मैट्रिसेस में चित्रों का विश्लेषण करना। आनुक्रमिक प्रक्रमण में सूचनाओं को क्रम से याद रखा जाता है, जैसे गिनती या वर्णमाला सीखना। PASS मॉडल बुद्धि को केवल मापन नहीं बल्कि मानसिक प्रक्रियाओं की समझ के रूप में प्रस्तुत करता है।
योजना (planning) - योजना बुद्धि का एक आवश्यक
PASS मॉडल में योजना (Planning) तीसरी प्रमुख प्रक्रिया है, जो सूचना के प्राप्त और प्रक्रमित हो जाने के बाद सक्रिय होती है। यह व्यक्ति को लक्ष्य निर्धारित करने, विभिन्न विकल्पों पर विचार करने, योजना बनाकर उसे लागू करने और उसके परिणामों का मूल्यांकन करने की क्षमता देती है। जैसे परीक्षा की तैयारी के लिए छात्र समय सारणी बनाता है, समस्याओं का समाधान खोजता है, और ज़रूरत पड़ने पर अपनी रणनीति बदलता है। PASS की तीनों प्रक्रियाएँ—अवधान, सहकालिक/आनुक्रमिक प्रक्रमण, और योजना—ज्ञान के भंडार पर काम करती हैं और ये अंतःक्रियात्मक व गतिशील होती हैं। दास और नागलीरी ने इन प्रक्रियाओं को मापने के लिए संज्ञानात्मक मूल्यांकन प्रणाली (Cognitive Assessment System) विकसित की, जो 5 से 18 वर्ष के बच्चों की संज्ञानात्मक क्षमताओं का आकलन करती है। इस प्रणाली से प्राप्त जानकारी का उपयोग बच्चों की अधिगम समस्याएँ पहचानने और उन्हें दूर करने में किया जाता है। यह मॉडल बुद्धि के सूचना-प्रसंस्करण दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है।
बुद्धि में व्यक्तिगत भिन्नताएँ
कुछ लोग दूसरों की तुलना में अधिक बुद्धिमान होते हैं, इसका कारण आनुवंशिकता और पर्यावरण दोनों होते हैं। जुड़वाँ और दत्तक बच्चों पर हुए अध्ययन बताते हैं कि आनुवंशिकता का बुद्धि पर बड़ा प्रभाव होता है—जैसे साथ-साथ पले जुड़वाँ बच्चों की बुद्धि में 0.90 तक सहसंबंध पाया गया है। वहीं, अलग-अलग पले जुड़वाँ बच्चों में भी बुद्धि का उच्च सहसंबंध (0.72) दिखता है। दूसरी ओर, दत्तक बच्चों की बुद्धि जन्म देने वाले माता-पिता से अधिक मिलती है, लेकिन जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, उसकी बुद्धि गोद लेने वाले माता-पिता के स्तर के करीब पहुँचने लगती है, जो पर्यावरण के प्रभाव को दर्शाता है। अच्छे पोषण, शिक्षा और समृद्ध पारिवारिक वातावरण से बुद्धि का विकास होता है, जबकि वंचनात्मक पर्यावरण बुद्धि को सीमित कर सकता है। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि बुद्धि आनुवंशिकता और पर्यावरण की जटिल अंतःक्रिया का परिणाम है—आनुवंशिकता बुद्धि की सीमा तय करती है, और पर्यावरण उसे विकसित करता है।
बुद्धि का मूल्यांकन
1905 में अल्फ्रेड बिने और थियोडोर साइमन ने बुद्धि के मापन का प्रयास किया और 1908 में "मानसिक आयु" (Mental Age - MA) का संप्रत्यय दिया। मानसिक आयु बताती है कि बच्चा बुद्धि परीक्षण में अपनी उम्र के बच्चों की तुलना में कैसा प्रदर्शन करता है। कालानुक्रमिक आयु (Chronological Age - CA) वह होती है जो बच्चे के जन्म से लेकर वर्तमान तक की वास्तविक उम्र होती है। अगर मानसिक आयु, कालानुक्रमिक आयु से अधिक है, तो बच्चा तीव्रबुद्धि माना जाता है; यदि कम हो, तो उसे मंदबुद्धि समझा जाता है। 1912 में विलियम स्टर्न ने IQ (बुद्धि लब्धि) का सूत्र दिया:
IQ = (मानसिक आयु ÷ कालानुक्रमिक आयु) × 100
यदि किसी 10 वर्षीय बच्चे की मानसिक आयु 12 वर्ष है, तो उसका IQ 120 होगा। IQ का औसत मान 100 होता है, और अधिकांश लोग 90–110 के बीच होते हैं। 130 से ऊपर के व्यक्ति प्रतिभाशाली (gifted) और 70 से कम वाले बौद्धिक रूप से अशक्त (disabled) माने जाते हैं। बुद्धि लब्धि का वितरण एक सामान्य घंटाकार वक्र (normal curve) जैसा होता है, जिसमें बहुत अधिक या बहुत कम IQ वाले लोगों की संख्या बहुत कम होती है। IQ परीक्षणों से अत्यधिक तीव्रबुद्धि या मंदबुद्धि व्यक्तियों की पहचान की जा सकती है।
बुद्धि में विचलन
बौद्धिक न्यूनता
किसी जनसंख्या में जहाँ एक ओर प्रतिभाशाली और सृजनात्मक व्यक्ति होते हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जिन्हें साधारण कौशल सीखने में भी कठिनाई होती है। ऐसे बच्चों को "बौद्धिक रूप से अशक्त" कहा जाता है। अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ मेंटल डिफ़िशेंसी (AAMD) के अनुसार बौद्धिक अशक्तता में तीन मुख्य विशेषताएँ होती हैं: (1) बुद्धि लब्धि (IQ) 70 से कम, (2) अनुकूलित व्यवहार में कमी यानी आत्मनिर्भरता और सामाजिक समायोजन की कठिनाई, और (3) यह अवस्था 0 से 18 वर्ष के बीच प्रकट होनी चाहिए। बौद्धिक अशक्तता के चार स्तर माने जाते हैं: निम्न (IQ 55–70), सामान्य (IQ 35–55), तीव्र (IQ 20–40), और अतिगंभीर (IQ 20 से कम)। निम्न स्तर के व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकते हैं, नौकरी कर सकते हैं और परिवार चला सकते हैं। सामान्य अशक्त व्यक्ति कुछ कौशल सीख सकते हैं लेकिन उन्हें देखरेख की जरूरत होती है। तीव्र और अतिगंभीर अशक्तता वाले व्यक्ति जीवन भर दूसरों पर निर्भर रहते हैं और उन्हें संस्थागत देखभाल की आवश्यकता होती है।
बौद्धिक प्रतिभाशालिता
प्रतिभाशाली बच्चों का अर्थ:
प्रतिभा (Giftedness) उस असाधारण सामान्य योग्यता को कहते हैं जो व्यक्ति को कई क्षेत्रों में श्रेष्ठ निष्पादन करने में सक्षम बनाती है, जबकि प्रवीणता (Talent) किसी विशेष क्षेत्र जैसे कला, संगीत या सामाजिक कार्य में विशेष योग्यता को दर्शाती है। यद्यपि दोनों शब्द समान प्रतीत होते हैं, परंतु प्रतिभा व्यापक होती है और प्रवीणता विशिष्ट क्षेत्र तक सीमित।
लेविस टर्मन का अध्ययन (1925):
लेविस टर्मन ने 1500 ऐसे बच्चों का अध्ययन किया जिनका IQ 130 या उससे अधिक था। इस अध्ययन का उद्देश्य यह समझना था कि उच्च बुद्धि का व्यावसायिक सफलता और जीवन समायोजन से क्या संबंध होता है।
प्रतिभाशाली बालकों की विशेषताएँ:
उच्च बौद्धिक क्षमता और तेज सोचने की गति।
अच्छी स्मृति और नवीनता की ओर रुचि।
प्रश्न पूछने की प्रवृत्ति और समस्या सुलझाने की कुशलता।
तार्किक व सर्जनात्मक (रचनात्मक) सोच।
स्वतंत्र सोच और समूह से अलग राय रखना।
अकेले अध्ययन करना पसंद करना।
उच्च आत्म-सम्मान और अंदरूनी प्रेरणा।
शिक्षकों की दृष्टि में प्रतिभा का आधार:
High Ability (उच्च योग्यता)
High Creativity (सर्जनात्मकता)
High Commitment (प्रतिबद्धता)
प्रतिभा की पहचान के स्रोत:
प्रतिभाशाली बच्चों की पहचान के लिए बुद्धि परीक्षण (IQ टेस्ट), अध्यापक का निर्णय, स्कूल में प्रदर्शन (अकादमिक रिकॉर्ड), माता-पिता का साक्षात्कार तथा सहपाठियों और स्वयं का आत्म-निर्धारण जैसे विभिन्न तरीकों का उपयोग किया जाता है।
शिक्षा की आवश्यकता:
प्रतिभाशाली बच्चों के लिए सामान्य शिक्षा के साथ-साथ विशेष कार्यक्रमों की भी आवश्यकता होती है, जो उनके जीवन-समृद्धि विकास में सहायक हों। ऐसे कार्यक्रम चिंतन, योजना निर्माण, निर्णयन और संप्रेषण कौशल को विशेष रूप से बढ़ावा देते हैं।
बुद्धि परीक्षणों के प्रकार प्रकार
बुद्धि परीक्षणों को उनकी प्रक्रिया और संरचना के आधार पर विभिन्न प्रकारों में बाँटा जाता है। प्रक्रिया के अनुसार, ये वैयक्तिक (एक व्यक्ति पर) और समूह परीक्षण (एक साथ कई व्यक्तियों पर) हो सकते हैं। प्रश्नों के प्रकार के अनुसार, इन्हें शाब्दिक/वाचिक (भाषा-आधारित) और निष्पादन परीक्षण (व्यावहारिक कार्यों पर आधारित) में वर्गीकृत किया जाता है। इसके अलावा, संस्कृति के प्रभाव के आधार पर परीक्षण संस्कृति-निष्पक्ष या संस्कृति-अभिनत हो सकते हैं। परीक्षण का चयन उसके उपयोग के उद्देश्य पर निर्भर करता है।
वैयक्तिक तथा समूह बुद्धि परीक्षण
वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण एक समय में केवल एक व्यक्ति पर किया जाता है, जहाँ परीक्षणकर्ता परीक्षार्थी से सौहार्द स्थापित कर उसकी भावनाओं और व्यवहार पर ध्यान देता है। इसमें उत्तर मौखिक, लिखित या वस्तुओं के प्रयोग से दिए जा सकते हैं। वहीं, समूह बुद्धि परीक्षण कई लोगों पर एक साथ लागू होता है, जिसमें परीक्षार्थी की व्यक्तिगत भावनाओं पर ध्यान नहीं दिया जाता। इसमें उत्तर सामान्यतः लिखित होते हैं और प्रश्न बहुविकल्पी स्वरूप में होते हैं।
शाब्दिक, अशाब्दिक तथा निष्पादन परीक्षण
बुद्धि परीक्षण तीन प्रकार के हो सकते हैं: शाब्दिक, अशाब्दिक (अवाचिक) और निष्पादन परीक्षण। शाब्दिक परीक्षणों में मौखिक या लिखित उत्तर देने होते हैं, इसलिए ये केवल साक्षर व्यक्तियों के लिए उपयुक्त होते हैं। अशाब्दिक परीक्षणों में चित्रों या प्रतीकों का उपयोग होता है, जैसे रैवेंस प्रोग्रेसिव मैट्रिसेस (RPM), जिसमें अपूर्ण प्रतिरूप को उपयुक्त विकल्प से पूरा करना होता है। निष्पादन परीक्षणों में परीक्षार्थी को वस्तुओं से कार्य करना होता है, जैसे कोह का ब्लॉक डिजाइन परीक्षण, जिसमें लकड़ी के गुटकों से एक डिजाइन बनाना होता है। निष्पादन परीक्षणों का लाभ यह है कि ये भाषा और संस्कृति से कम प्रभावित होते हैं और विविध पृष्ठभूमियों के लोगों पर लागू किए जा सकते हैं।
संस्कृति-निष्पक्ष तथा संस्कृति-अभिनत परीक्षण
बुद्धि परीक्षण संस्कृति-निष्पक्ष या संस्कृति-अभिनत हो सकते हैं। अधिकांश परीक्षण उस संस्कृति की पक्षधरता दिखाते हैं, जिसमें वे बनाए जाते हैं, जैसे कि अमेरिका और यूरोप में विकसित परीक्षण वहाँ के शिक्षित, नगरीय और मध्यवर्गीय लोगों के अनुकूल होते हैं। ऐसे परीक्षण एशिया या अफ्रीका की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को ध्यान में नहीं रखते, जिससे वहाँ के परीक्षार्थियों का प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है। सभी संस्कृतियों के लिए समान रूप से उपयुक्त परीक्षण बनाना कठिन है, परंतु मनोवैज्ञानिकों ने संस्कृति-निष्पक्ष परीक्षण विकसित करने का प्रयास किया है, जिनमें भाषा का उपयोग नहीं होता और जो सार्वभौमिक अनुभवों पर आधारित होते हैं। शाब्दिक परीक्षणों की तुलना में अशाब्दिक और निष्पादन परीक्षणों में सांस्कृतिक पक्षपात कम होता है।
भारत में बुद्धि परीक्षण
1930 में एस.एम. मोहसिन ने हिंदी में बुद्धि परीक्षण विकसित कर एक महत्वपूर्ण पहल की। इसके बाद सी.एच. राइस ने बिने के परीक्षण को उर्दू और पंजाबी में, और महलानोबिस ने बंगाली में मानकीकृत करने का प्रयास किया। भारतीय शोधकर्ताओं ने रैवेंस प्रोग्रेसिव मैट्रिसेस (RPM), WAIS, पासएलांग परीक्षण, घन रचना और कोह के ब्लॉक डिजाइन जैसे विदेशी परीक्षणों के भारतीय मानक भी विकसित किए। लांग और मेहता ने 103 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध बुद्धि परीक्षणों की सूची प्रकाशित की। एनसीईआरटी के अंतर्गत एनएलईपीटी ने भारतीय परीक्षणों का प्रलेखन किया और बुद्धि, अभिक्षमता, व्यक्तित्व आदि से संबंधित परीक्षणों की पुस्तिका प्रकाशित की। भारत में विकसित परीक्षणों में भाटिया की निष्पादन परीक्षणमाला विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
संस्कृति तथा बुद्धि
बुद्धि की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह व्यक्ति को पर्यावरण से अनुकूलन में सहायता करती है, और इसका विकास संस्कृति से गहराई से जुड़ा होता है। वाइगॉट्स्की के अनुसार, संस्कृति वह सामाजिक संदर्भ है जिसमें व्यक्ति विकसित होता है और अपने वातावरण को समझता है। तकनीकी रूप से विकसित समाजों में बुद्धि को तर्क, विश्लेषण और उपलब्धि से जोड़ा जाता है, जबकि कम विकसित समाजों में सामाजिक और भावनात्मक कौशलों को अधिक महत्व दिया जाता है। स्टर्नबर्ग की "सांदर्भिक बुद्धि" भी यही बताती है कि बुद्धि संस्कृति का उत्पाद होती है। पश्चिमी देशों के बुद्धि परीक्षण मुख्यतः विश्लेषणात्मक और तकनीकी क्षमताओं पर आधारित होते हैं, जबकि एशियाई और अफ्रीकी संस्कृतियाँ बुद्धि को सामाजिक संबंधों, सहयोग और सामूहिकता से भी जोड़ती हैं। हालांकि, वैश्वीकरण और सांस्कृतिक संपर्क के कारण अब ये भिन्नताएँ धीरे-धीरे कम हो रही हैं।
भारतीय परंपरा में बुद्धि
भारतीय परंपरा में बुद्धि को केवल संज्ञानात्मक क्षमताओं तक सीमित न मानकर एक समाकलित बुद्धि (integral intelligence) के रूप में देखा गया है, जिसमें व्यक्ति के समाज और वैश्विक पर्यावरण से संबंधों को महत्त्व दिया गया है। संस्कृत में ‘बुद्धि’ शब्द का अर्थ अंग्रेज़ी के ‘इंटेलिजेंस’ से कहीं अधिक व्यापक है। जे.पी. दास के अनुसार, बुद्धि में संज्ञानात्मक क्षमताओं (जैसे – समझ, विभेदन, समस्या समाधान) के साथ-साथ अनुभूति, आत्मज्ञान, संकल्प, और भावनात्मक पहलू भी शामिल होते हैं। भारतीय दृष्टिकोण में बुद्धि के चार घटक माने गए हैं: संज्ञानात्मक क्षमता, सामाजिक क्षमता, सांवेगिक क्षमता, और उद्यमी क्षमता। इसके विपरीत, पश्चिमी दृष्टिकोण बुद्धि को मुख्यतः विश्लेषणात्मक और मानसिक कौशलों तक सीमित रखता है।
सांवेगिक बुद्धि
सांवेगिक बुद्धि (Emotional Intelligence) वह क्षमता है जिसके तहत व्यक्ति अपने और दूसरों के भावों को पहचानता, समझता, व्यक्त करता और नियंत्रित करता है। यह संप्रत्यय भारतीय परंपरा की समग्र बुद्धि की अवधारणा से जुड़ा है और बुद्धि के भावनात्मक पक्ष को उजागर करता है। सैलोवी और मेयर ने इसे परिभाषित करते हुए कहा कि यह अपने और दूसरों के संवेगों को समझकर सोच और व्यवहार को निर्देशित करने की योग्यता है। जैसे IQ से बौद्धिक क्षमता मापी जाती है, वैसे ही EQ (Emotional Quotient) से संवेगात्मक बुद्धि का मापन होता है। केवल शैक्षिक योग्यता से जीवन में सफलता नहीं मिलती; जीवन में सफल होने के लिए उच्च EQ भी आवश्यक होता है। अध्ययनों से पता चला है कि EQ को बढ़ाने वाले कार्यक्रमों से विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धियाँ बेहतर होती हैं, सामाजिक व्यवहार सुधरता है और वे जीवन की चुनौतियों का प्रभावी ढंग से सामना कर पाते हैं।
विशिष्ट योग्यताएँ
अभिक्षमता-स्वरूप एवं मापन
अभिक्षमता (Aptitude) किसी विशेष क्षेत्र में प्रशिक्षण के बाद ज्ञान या कौशल अर्जित करने की योग्यता होती है, जो बुद्धि से भिन्न और विशिष्ट होती है। समान बुद्धि वाले लोग भी अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न दक्षता दिखाते हैं, जैसे कोई गणित में अच्छा होता है तो कोई कविता या तकनीकी कार्यों में। यही विशिष्ट योग्यताएँ अभिक्षमताएँ कहलाती हैं, जिन्हें प्रशिक्षण से बढ़ाया जा सकता है। किसी कार्य में सफलता के लिए अभिक्षमता के साथ अभिरुचि (Interest) भी ज़रूरी है। अभिक्षमता = करने की क्षमता, अभिरुचि = करने की चाह। अभिक्षमता परीक्षण दो प्रकार के होते हैं:
(1) स्वतंत्र (विशेषीकृत) – जैसे लिपिकीय, यात्रिक, टंकण आदि।
(2) बहुल (सामान्यीकृत) – जैसे विभेदक अभिक्षमता परीक्षण (DAT) जिसमें 8 उप-परीक्षण होते हैं जैसे शाब्दिक तर्कना, यांत्रिक तर्कना, भाषा उपयोग आदि। J.M. ओझा ने इसका भारतीय अनुकूलन किया है। भारत में विभिन्न क्षेत्रों की अभिक्षमताओं के लिए अन्य परीक्षण भी विकसित किए गए हैं।
सर्जनात्मकता
सर्जनात्मकता (Creativity) में भी अन्य मनोवैज्ञानिक गुणों की तरह व्यक्तियों में भिन्नताएँ पाई जाती हैं। कुछ लोग अत्यधिक सर्जनशील होते हैं, जबकि कुछ में यह क्षमता सीमित होती है। सर्जनात्मकता विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त हो सकती है, जैसे लेखन, विज्ञान, संगीत, चित्रकला, आविष्कार या सामान्य कार्यों जैसे खाना बनाना, बर्तन बनाना आदि। इसका मुख्य गुण होता है – कुछ नया, अनोखा और उपयोगी रचना करना। उदाहरणस्वरूप, आइंस्टीन का सापेक्षता सिद्धांत उच्च स्तरीय सर्जनात्मकता दर्शाता है। कुछ लोग मौजूदा विचारों में बदलाव कर नई उपयोगिता भी प्रस्तुत करते हैं। बच्चों में यह क्षमता प्रारंभिक वर्षों से विकसित होने लगती है और जैसे-जैसे भाषा व सोच विकसित होती है, यह स्पष्ट रूप से सामने आने लगती है। सर्जनात्मकता के विकास में आनुवंशिकता और पर्यावरण दोनों की भूमिका होती है। पर्यावरणीय कारक जैसे प्रेरणा, पारिवारिक समर्थन, प्रशिक्षण के अवसर और सामाजिक प्रभाव, किसी व्यक्ति की सर्जनात्मक संभाव्यता को दिशा और गहराई प्रदान करते हैं। हर व्यक्ति भले ही महान रचनाकार न बने, लेकिन उचित अवसर मिलने पर वह अपनी सर्जनात्मक क्षमता को ऊँचे स्तर तक बढ़ा सकता है।
सर्जनात्मकता तथा बुद्धि
बुद्धि और सर्जनात्मकता में अंतर:
सभी बुद्धिमान व्यक्ति सर्जनात्मक नहीं होते, और सभी सर्जनात्मक व्यक्ति अत्यधिक बुद्धिमान नहीं होते। बुद्धिमत्ता में तेज़ी से सीखना, सही उत्तर देना और पाठ्य सामग्री की पुनरावृत्ति शामिल होती है, जबकि सर्जनात्मकता में नया सोचना, कल्पनाशक्ति और नवीन विधियों का प्रयोग होता है। जैसे, सुनीता बहुत बुद्धिमान है लेकिन रचनात्मक नहीं, जबकि रीता औसत छात्रा होते हुए भी सृजनात्मक समाधान देती है। निष्कर्ष: सुनीता अधिक बुद्धिमान, पर रीता अधिक सर्जनशील है।
बुद्धि और सर्जनात्मकता का संबंध:
सर्जनात्मकता के लिए एक न्यूनतम स्तर की बुद्धि आवश्यक होती है, लेकिन अत्यधिक बुद्धि होने का अर्थ यह नहीं कि व्यक्ति अधिक सर्जनात्मक भी होगा। दोनों के बीच सकारात्मक संबंध होता है, फिर भी ये दोनों समान नहीं होते।
सर्जनात्मक व्यक्ति की विशेषताएँ:
सर्जनात्मकता वह योग्यता है जिसमें व्यक्ति नए और मौलिक विचार उत्पन्न कर सकता है, असंबंधित वस्तुओं के बीच संबंध देख सकता है, विभिन्न दृष्टिकोणों से चीजों को समझता है, समस्याओं के अनेक समाधान खोजता है, और कल्पनाशीलता का प्रयोग करता है।
सर्जनात्मकता परीक्षण (Creativity Tests):
सर्जनात्मकता परीक्षण मुक्त अंत वाले (open-ended) होते हैं, जिनमें कई उत्तर संभव होते हैं और इनमें अपसारी चिंतन (divergent thinking) का उपयोग किया जाता है। जहाँ बुद्धि परीक्षण अभिसारी चिंतन पर केंद्रित होते हैं और सही उत्तर की तलाश करते हैं, वहीं सर्जनात्मकता परीक्षण नए विचारों और मौलिकता पर बल देते हैं।
सर्जनात्मकता परीक्षणों के उदाहरण:
सर्जनात्मकता परीक्षणों में विभिन्न उद्दीपकों जैसे शब्द, चित्र, क्रियाएँ और ध्वनियों का प्रयोग किया जाता है। ये परीक्षण विभिन्न क्षेत्रों के अनुसार बनाए जाते हैं, जैसे – साहित्यिक, वैज्ञानिक और गणितीय सर्जनात्मकता को मापने के लिए अलग-अलग परीक्षण विकसित किए जाते हैं।
प्रमुख सर्जनात्मकता परीक्षण निर्माताओं के नाम:
गिलफोर्ड (Guilford)
टॉरेन्स (Torrance)
खटेना (Khatena)
वालाश और कोगन (Wallach & Kogan)
बाकर मेहदी (Baqer Mehdi)
परमेश (Paramesh)
पासी (Passi)
परीक्षणों की विशेषताएँ:
सर्जनात्मकता परीक्षण मानकीकृत विधियों पर आधारित होते हैं, जिनका संचालन और परिणामों की व्याख्या केवल प्रशिक्षित विशेषज्ञ द्वारा की जाती है। इन परिणामों को सही ढंग से समझने के लिए निर्देश पुस्तिका और संदर्शिका भी दी जाती है।