Editor Posts footer ads

मेरे तो गिरधर गोपाल. दूसरो न कोई Class 11 Book-Aroh Poem-2 Chapter wise Summary

मेरे तो गिरधर गोपाल. दूसरो न कोई Class 11 Book-Aroh Poem-2 Chapter wise Summary


मीरा का जीवन:

मीरा का जन्म 1498 में मारवाड़ के कुड़की गाँव में हुआ था। वे कृष्ण भक्ति की प्रमुख कवयित्री थीं और उन्हें सगुण भक्ति धारा से जोड़ा जाता है। संत रैदास उनके गुरु माने जाते हैं। मीरा ने अपने जीवन में समाज की रूढ़ियों का विरोध किया और कृष्ण को ही अपना पति माना। वे चित्तौड़ से वृंदावन और फिर द्वारका चली गईं, जहाँ माना जाता है कि वे कृष्ण की मूर्ति में समाहित हो गईं।


उनकी भक्ति और विचार:

मीरा ने सामाजिक बंधनों को तोड़ा, लोकलाज की परवाह नहीं की, और खुले रूप से कृष्ण की भक्ति में लीन रहीं। उन्होंने सत्संग को ज्ञान प्राप्ति का मार्ग माना और निंदा या विरोध से कभी विचलित नहीं हुईं। वे स्त्री मुक्ति की आवाज बनीं और उनकी कविता में प्रेम, विरह और भक्ति की गहरी भावना झलकती है।


प्रस्तुत पद का अर्थ:

इस पद में मीरा ने कृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति व्यक्त की है। वे कहती हैं कि उनके लिए कृष्ण (गिरधर गोपाल) के अलावा कोई दूसरा नहीं है। समाज ने उन्हें त्याग दिया, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। वे संतों के साथ बैठकर कृष्ण प्रेम में लीन हो गईं और सांसारिक लोक-लाज खो दी। मीरा ने अपने प्रेम को एक बेल (लता) की तरह बताया, जिसे उन्होंने आँसुओं से सींचा और अब यह आनंद का फल दे रही है।


मुख्य संदेश:

  • मीरा के लिए कृष्ण ही सब कुछ हैं।
  • समाज और कुल की मर्यादा का उन्होंने त्याग कर दिया।
  • सच्ची भक्ति आँसुओं और प्रेम से फलती-फूलती है।
  • सांसारिक लोग मीरा की भक्ति को नहीं समझ सके, इसलिए वे रोती हैं।
  • भक्ति में लीन होने से आनंद की प्राप्ति होती है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!