बाजार दर्शन Important Short and Long Question Class 12 Chapter-11 Book-1
0Team Eklavyaमार्च 01, 2025
प्रश्न 1. ‘बाजार दर्शन’ निबंध का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
इस निबंध का मुख्य उद्देश्य बाजार के आकर्षण, उसके मनोवैज्ञानिक प्रभाव, और आवश्यकताओं व इच्छाओं के बीच संतुलन को समझाना है। लेखक ने बताया है कि बाजार केवल वस्तुओं का स्थान नहीं, बल्कि यह मानव मन को प्रभावित करने वाला माध्यम भी है।
प्रश्न 2. बाजार का व्यक्ति के मनोविज्ञान पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
बाजार व्यक्ति को आकर्षित करता है और उसकी इच्छाओं को बढ़ा देता है।
बाजार की सजावट और प्रस्तुति व्यक्ति को अनावश्यक वस्तुएँ खरीदने के लिए प्रेरित करती हैं।
यदि मन खाली हो और जेब भरी हो, तो बाजार का प्रभाव अधिक पड़ता है, जिससे व्यक्ति अपनी वास्तविक आवश्यकताओं को भूल जाता है।
प्रश्न 3. लेखक ने ‘खाली मन और बाजार’ के संबंध में क्या बताया है?
उत्तर:
यदि व्यक्ति का मन खाली हो और वह बिना योजना के बाजार जाए, तो वह अधिक खरीदारी कर सकता है।
बाजार में जाने से पहले यह तय करना आवश्यक है कि वास्तव में क्या खरीदना है।
खाली मन व्यक्ति को बाजार के आकर्षण में फँसाकर अधिक खर्च करवाता है।
प्रश्न 4. बाजार में ‘जरूरत’ और ‘इच्छा’ के बीच क्या अंतर है?
उत्तर:
1. जरूरत – वे वस्तुएँ जो व्यक्ति के जीवन के लिए अनिवार्य हैं, जैसे भोजन, कपड़े, दवा आदि।
2. इच्छा – वे वस्तुएँ जो व्यक्ति की पसंद और आकर्षण के कारण खरीदी जाती हैं, भले ही उनकी आवश्यकता न हो।
बाजार का आकर्षण व्यक्ति को अपनी इच्छाओं को जरूरत समझने के लिए प्रेरित करता है, जिससे वह अवांछित चीज़ें भी खरीद लेता है।
प्रश्न 5. ‘चूरन वाले भगत जी’ का उदाहरण क्या सिखाता है?
उत्तर:
भगत जी बाजार के जादू से अछूते रहते हैं क्योंकि वे अपनी वास्तविक आवश्यकताओं को भली-भांति समझते हैं।
उनका मन स्पष्ट और उद्देश्यपूर्ण होता है, इसलिए बाजार का आकर्षण उन पर असर नहीं डालता।
यह दृष्टांत सिखाता है कि जब व्यक्ति का मन दृढ़ और आत्मनिर्भर होता है, तो वह बाजार के प्रभाव से बच सकता है।
प्रश्न 6. बाजार के नैतिक पक्ष और समाज पर इसके प्रभाव को लेखक ने कैसे दर्शाया है?
उत्तर:
बाजार को आवश्यकताओं की पूर्ति का माध्यम होना चाहिए, न कि अनावश्यक संचय का।
अत्यधिक संचय से समाज में असंतुलन पैदा होता है, जिससे अमीरी-गरीबी की खाई बढ़ती है।
आधुनिक बाजार लालच, शोषण और छल-कपट को बढ़ावा देता है, जिससे समाज में विश्वास और सद्भाव घटता है।
प्रश्न 7. बाजार में ‘शोषण’ और ‘कपट’ कैसे बढ़ते हैं?
उत्तर:
विज्ञापन और लुभावनी चीज़ों के ज़रिए लोगों को बेवजह वस्तुएँ खरीदने के लिए उकसाया जाता है।
बाजार में कीमतें बढ़ाकर उपभोक्ताओं को अधिक पैसे खर्च करने पर मजबूर किया जाता है।
कई बार व्यापारियों द्वारा मुनाफे के लिए वस्तुओं की गुणवत्ता में हेरफेर की जाती है, जिससे ग्राहक ठगे जाते हैं।
प्रश्न 8. बाजार व्यक्ति की मानसिक शांति को कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर:
बाजार की चकाचौंध और तृष्णा व्यक्ति को भ्रमित कर सकती है।
अनावश्यक खरीदारी से व्यक्ति आर्थिक रूप से कमजोर हो सकता है, जिससे तनाव बढ़ सकता है।
व्यक्ति जब अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं रखता, तो बाजार का प्रभाव उसे असंतोष से भर देता है।
प्रश्न 9. बाजार को एक परीक्षा-स्थल क्यों कहा गया है?
उत्तर:
बाजार में व्यक्ति की आत्मसंयम और इच्छाओं पर नियंत्रण की परीक्षा होती है।
यदि वह अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं में फर्क नहीं कर पाता, तो वह बाजार के जाल में फँस सकता है।
बाजार व्यक्ति के संतुलित सोचने और निर्णय लेने की क्षमता की भी परीक्षा लेता है।
प्रश्न 10. इस निबंध से पाठकों को क्या सीख मिलती है?
उत्तर:
आवश्यकता और इच्छा में भेद करना सीखें।
बाजार के आकर्षण में बहकर अनावश्यक खर्च न करें।
खरीदारी से पहले योजना बनाएं ताकि ठगे न जाएं।
भोगवाद और संचय की प्रवृत्ति से बचें।
संतुलित जीवनशैली अपनाएं, जिससे मन और धन दोनों नियंत्रित रहें।
संक्षेप में ‘बाजार दर्शन’ का सार:
बाजार एक आकर्षण और जादू का स्थान है, जो व्यक्ति को अधिक खर्च करने के लिए प्रेरित करता है।
यदि मन खाली हो और जेब भरी हो, तो बाजार का प्रभाव सबसे अधिक होता है।
व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं में अंतर समझना चाहिए।
अत्यधिक संचय समाज में असंतुलन और लालच को बढ़ावा देता है।
बाजार का नैतिक पक्ष कमजोर होने से कपट और शोषण बढ़ता है।
यदि व्यक्ति अपने लक्ष्य स्पष्ट रखे, तो बाजार उसके लिए लाभकारी सिद्ध हो सकता है।