आवारा मसीहा Chapter-2 Class 11 Book-Antral Chapter wise Summary
0Team Eklavyaमार्च 08, 2025
आवारा मसीहा
शरत्चंद्र का बचपन और प्रारंभिक जीवन
शरत्चंद्र का बचपन शरारतों, जिज्ञासा और स्वतंत्र सोच से भरा था।
स्कूल की छुट्टियों में वे अपने मामा सुरेंद्र के साथ बागों में घूमने जाते, जहाँ उन्हें प्रकृति के बीच समय बिताना पसंद था।
वे पेड़ों से बातें करते और विदाई के समय अपने मन में लौटने का वादा करते।
उनका स्वभाव स्वतंत्र और साहसी था, और वे अपने दुख को छिपाने में माहिर थे।
उनके पिता, मोतीलाल, स्वप्नदर्शी और स्वतंत्र विचारों वाले थे।
वे कोई भी काम लंबे समय तक नहीं कर पाते थे और बार-बार नौकरियाँ बदलते रहते थे।
उनकी कला और साहित्य में रुचि थी, लेकिन आर्थिक अस्थिरता के कारण परिवार को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
माँ भुवनमोहिनी ने परिवार को बचाने के लिए अपने पिता के पास मदद मांगी और भागलपुर आ गईं, जिससे मोतीलाल को घर-जमाई बनकर रहना पड़ा।
शरत्चंद्र की शिक्षा और शरारतें
शरत्चंद्र को भागलपुर के दुर्गाचरण एम.ई. स्कूल में दाखिला मिला।
प्रारंभ में कठिनाई हुई, लेकिन उन्होंने मेहनत कर अच्छे छात्रों में स्थान प्राप्त किया।
उनका ननिहाल संयुक्त परिवार था, जहाँ उन्होंने अपने मामा-मौसियों के साथ समय बिताया।
शरारतें उनके स्वभाव का हिस्सा थीं।
स्कूल में वे घड़ी को आगे कर देते ताकि छुट्टी जल्दी हो जाए, और जब पकड़े जाते तो मासूम बनने का नाटक करते।
उन्होंने जीव-जंतुओं और प्रकृति से गहरा लगाव रखा।
वे तितलियों के बक्से बनाते, गुप्त उपवन लगाते, और खेलों में रुचि रखते थे।
पतंगबाजी और लट्टू घुमाने में वे माहिर थे।
वे चोरी से फल तोड़ते, लेकिन वीरता से दंड स्वीकारते।
कठोर अनुशासन और विद्रोही प्रवृत्ति
शरत्चंद्र का विद्रोही स्वभाव अनुशासन के विरुद्ध था। वे खेल-कूद में निपुण थे, लेकिन साथ ही पढ़ाई में भी रुचि रखते थे। परिवार में अनुशासन सख्त था, लेकिन वे नियम तोड़ने में निपुण थे। उन्होंने गंगा किनारे कुश्ती का अखाड़ा बनाया और अपने साथियों को अनुशासन में रखा। वे साहसी थे और नियमों को चुनौती देना पसंद करते थे।
यात्रा का जुनून और समाज का अवलोकन
शरत्चंद्र को बचपन से ही यात्रा करने का शौक था।
वे सरस्वती नदी के घाट पर अकेले नाव में बैठकर तीन-चार मील दूर कृष्णपुर पहुँच गए।
उन्होंने जंगलों और बागों में घूमने की आदत विकसित की।
उन्होंने एक बार अपने मित्र नयन के साथ बसंतपुर की यात्रा की, जहाँ वे लुटेरों से भी भिड़े।
यह अनुभव उनके भीतर का साहस बढ़ाने के साथ-साथ समाज की वास्तविकताओं को समझने का माध्यम बना।
साहित्य और लेखन की प्रेरणा
उनका साहित्य से पहला परिचय कुसुमकामिनी की गोष्ठी में हुआ, जहाँ बंकिमचंद्र और रवींद्रनाथ की रचनाएँ पढ़ी जाती थीं।
रवींद्रनाथ की कविता प्रकृतिर प्रतिशोध सुनकर वे भावुक हो गए और यह उनके साहित्यिक जीवन की नींव बनी।
वे गहराई से सोचने और समाज के विभिन्न पहलुओं को समझने लगे।
उन्होंने अपने पहले उपन्यास काशीनाथ के साथ साहित्य की दुनिया में कदम रखा।
बाद में विलासी जैसी कहानियों ने उनके समाज के प्रति दृष्टिकोण को प्रकट किया।
वे समाज के बहिष्कृतों के प्रति संवेदना रखते थे और उनके जीवन को अपने लेखन में स्थान देते थे।
गरीबी और संघर्ष का प्रभाव
उनका जीवन गरीबी और संघर्ष से भरा था।
वे पढ़ने की ललक के कारण चोरी-छिपे किताबें पढ़ते और खुद कहानियाँ गढ़ते।
उन्होंने देखा कि समाज में कमजोरों के साथ अन्याय होता है, और यही भावना उनके लेखन में झलकती थी।
उन्होंने गरीबी और सामाजिक अपमान को अपनी कहानियों में उकेरा।
सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज
शरत्चंद्र ने अपने उपन्यास चरित्रहीन में समाज की निर्दयता को दिखाया।
उन्होंने उन लोगों के लिए लिखा जिन्हें समाज ने तिरस्कृत कर दिया था।
उन्होंने अपने पात्रों के माध्यम से यह बताया कि समाज सच्चे प्रेम और त्याग को तिरस्कार की दृष्टि से देखता है।
निष्कर्ष
शरत्चंद्र का जीवन एक संघर्षमय यात्रा थी, जिसने उन्हें महान कथाकार बनाया। उनका साहित्य समाज की कठोर वास्तविकताओं को उजागर करता है और अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाता है। उन्होंने जीवन के उन पहलुओं को अपनी कहानियों में स्थान दिया, जिन्हें समाज अनदेखा कर देता है। उनकी कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं और समाज की सच्चाइयों को सामने लाने का काम करती हैं।