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1. हे भूख। मत मचल 2. हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर Important Short and Long Question class 11 Book-Aroh Poem-6

1. हे भूख। मत मचल 2. हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर Important Short and Long Question class 11 Book-Aroh Poem-6


लघु प्रश्न-उत्तर (Short Questions & Answers)


1. अक्कमहादेवी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

उत्तर: 

अक्कमहादेवी का जन्म 12वीं सदी में कर्नाटक के उडुतरी गाँव, जिला शिवमोगा में हुआ था।


2. अक्कमहादेवी किस भक्ति आंदोलन से जुड़ी थीं?

उत्तर: 

वे वीर शैव आंदोलन से जुड़ी हुई थीं।


3. अक्कमहादेवी के आराध्य देव कौन थे?

उत्तर: 

वे चन्नमल्लिकार्जुन (शिव) की अनन्य भक्त थीं।


4. अक्कमहादेवी का विवाह किससे हुआ था?

उत्तर: 

उनका विवाह एक स्थानीय राजा से हुआ था, लेकिन जब उसने उनकी शर्तों का पालन नहीं किया, तो उन्होंने राजमहल, वस्त्र और सांसारिक चीजें त्याग दीं।


5. अक्कमहादेवी की प्रमुख रचनाओं का अनुवाद किन नामों से हुआ है?

उत्तर: 

उनकी कविताओं का हिंदी में "वचन सौरभ" और अंग्रेजी में "स्पीकिंग ऑफ़ शिवा" नाम से अनुवाद किया गया है।


6. पहले वचन (कविता) में मुख्य रूप से क्या सिखाया गया है?

उत्तर: 

इस वचन में इंद्रियों पर नियंत्रण, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार से बचने की सीख दी गई है, ताकि मनुष्य शिव की भक्ति में लीन हो सके।


7. दूसरे वचन (कविता) में कवयित्री क्या चाहती हैं?

उत्तर: 

वे चाहती हैं कि संसार की सभी भौतिक वस्तुओं से उनका संबंध खत्म हो जाए और वे पूरी तरह ईश्वर को समर्पित हो सकें।


8. अक्कमहादेवी की भक्ति मीरा से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर: 

मीरा की भक्ति प्रेम और समर्पण से भरी थी, जबकि अक्कमहादेवी की भक्ति में विद्रोह, अधिकार और सामाजिक बेड़ियों को तोड़ने की भावना अधिक थी।


दीर्घ प्रश्न-उत्तर (Long Questions & Answers)


1. अक्कमहादेवी के जीवन और साहित्यिक योगदान पर संक्षिप्त टिप्पणी करें।

उत्तर:

अक्कमहादेवी 12वीं सदी की कर्नाटक की संत कवयित्री थीं। वे वीर शैव आंदोलन से जुड़ी हुई थीं और चन्नमल्लिकार्जुन (शिव) की अनन्य भक्त थीं। उन्होंने समाज की रूढ़ियों और स्त्रियों पर लगाए गए बंधनों का विरोध किया। उनका विवाह एक स्थानीय राजा से हुआ था, लेकिन जब उसने उनकी शर्तों का पालन नहीं किया, तो उन्होंने राजमहल, वस्त्र और सांसारिक चीजें त्याग दीं।

उनकी रचनाएँ स्त्री-मुक्ति, भक्ति और सामाजिक बेड़ियों के विरोध का प्रतीक हैं। उनके वचन संयम, त्याग और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण की सीख देते हैं। उनकी कविताओं का हिंदी में "वचन सौरभ" और अंग्रेजी में "स्पीकिंग ऑफ़ शिवा" नाम से अनुवाद हुआ है। उनकी भक्ति मीरा से मिलती-जुलती है, लेकिन इसमें विद्रोह और अधिकार का स्वर अधिक प्रबल है।


2. पहले वचन (कविता) का मुख्य सारांश लिखिए।

उत्तर:

इस वचन में इंद्रियों पर नियंत्रण और आध्यात्मिक शांति की बात की गई है। कवयित्री प्रेम-भरी मनुहार में कहती हैं कि भूख, प्यास, नींद, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार और ईर्ष्या से बचना चाहिए। यह सांसारिक जीवन के प्रमुख दोष हैं, जो मनुष्य को आध्यात्मिक उन्नति से दूर रखते हैं।

वे कहती हैं कि शिव के संदेश को ग्रहण करने के लिए मन को शुद्ध रखना जरूरी है। यह वचन उपदेशात्मक न होकर आत्मीय और भक्ति से भरा हुआ है। मुख्य रूप से इसमें बताया गया है कि भक्ति और आध्यात्मिक जीवन के लिए इंद्रियों पर संयम रखना जरूरी है।


3. दूसरे वचन (कविता) का मुख्य सारांश लिखिए।

उत्तर:

इस वचन में ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण व्यक्त किया गया है। कवयित्री चाहती हैं कि वे सांसारिक चीज़ों से पूरी तरह मुक्त हो जाएँ। वे ईश्वर से भीख माँगने की इच्छा जताती हैं, ताकि उनका अहंकार पूरी तरह नष्ट हो जाए।

वे कहती हैं कि यदि कोई उन्हें कुछ देना चाहे, तो वह वस्तु गिर जाए और यदि वे उसे उठाने की कोशिश करें, तो कोई कुत्ता उसे छीन ले। इसका अर्थ यह है कि उनका मन भौतिक सुखों से पूरी तरह मुक्त हो जाए।

मुख्य संदेश:

  • अहंकार, संपत्ति और सांसारिक इच्छाओं का पूरी तरह त्याग ही ईश्वर-प्राप्ति का मार्ग है।
  • सच्ची भक्ति वही है, जिसमें आत्मा पूरी तरह से ईश्वर को समर्पित हो जाए।


4. अक्कमहादेवी की भक्ति को स्त्री सशक्तिकरण से कैसे जोड़ा जा सकता है?

उत्तर:

अक्कमहादेवी की भक्ति सिर्फ ईश्वर प्रेम का विषय नहीं थी, बल्कि यह स्त्री-सशक्तिकरण का भी प्रतीक थी। उन्होंने एक स्त्री के रूप में समाज की रूढ़ियों का विरोध किया और स्वतंत्र रूप से भक्ति का मार्ग अपनाया। उनका राजमहल छोड़ना, वस्त्र और सांसारिक सुखों का त्याग करना, यह सब समाज की पुरुष-प्रधान व्यवस्था के खिलाफ एक बड़ा विद्रोह था।

उन्होंने साबित किया कि स्त्री केवल एक वस्तु नहीं है, बल्कि वह स्वयं निर्णय लेने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि सच्ची मुक्ति केवल समाज की स्वीकृति में नहीं, बल्कि आत्मा की स्वतंत्रता में है।

इस दृष्टि से, अक्कमहादेवी का योगदान केवल भक्ति आंदोलन तक सीमित नहीं है, बल्कि वे भारतीय स्त्री-मुक्ति आंदोलन की प्रेरणास्रोत भी हैं।


5. अक्कमहादेवी की भक्ति और त्याग का भारतीय साहित्य में क्या महत्व है?

उत्तर:

अक्कमहादेवी की भक्ति और त्याग भारतीय साहित्य में भक्ति आंदोलन, स्त्री स्वतंत्रता और आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक है।

  • उनकी रचनाएँ कन्नड़ साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं।
  • उन्होंने स्त्री-मुक्ति और भक्ति को एक नया दृष्टिकोण दिया।
  • उनका जीवन और काव्य त्याग, विद्रोह और आत्मसमर्पण का मिश्रण है।
  • वे मीरा और अन्य भक्ति कवयित्रियों से अलग थीं, क्योंकि उनकी भक्ति में समाज के बंधनों के खिलाफ विरोध का स्वर भी था।

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