संसाधन के रूप में लोग Notes in Hindi Class 9 Arthashastra Chapter-2 Book 1 People as a resource
0Team Eklavyaजनवरी 10, 2025
परिचय
संसाधन के रूप में लोग किसी देश के कार्यरत लोगों की क्षमताओं और कौशल का वर्णन करते हैं। जब हम जनसंख्या को उत्पादन के संदर्भ में देखते हैं, तो यह उनकी सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) में योगदान की क्षमता पर ध्यान देता है। जनसंख्या को "मानव संसाधन" माना जाता है, जो शिक्षा और स्वास्थ्य के जरिए और विकसित हो सकता है। यह विकास मानव पूंजी निर्माण कहलाता है, जो देश की उत्पादकता और आर्थिक शक्ति को बढ़ाता है।
मानव संसाधन पर निवेश, जैसे शिक्षा, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सेवाएं, भौतिक पूंजी की तरह प्रतिफल देता है। शिक्षित और स्वस्थ लोग अधिक उत्पादक होते हैं, जिससे न केवल उनकी आय बढ़ती है, बल्कि समाज को भी अप्रत्यक्ष लाभ मिलता है। मानव संसाधन भूमि और पूंजी से श्रेष्ठ है, क्योंकि यह अन्य संसाधनों का कुशल उपयोग कर सकता है।
भारत में जनसंख्या को लंबे समय तक दायित्व समझा गया, लेकिन मानव पूंजी में निवेश से इसे परिसंपत्ति में बदला जा सकता है। जापान जैसे देशों ने शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश करके विकास और समृद्धि हासिल की, जो सभी देशों के लिए प्रेरणादायक है।
पुरुषों और महिलाओं के आर्थिक क्रियाकलाप
क्षेत्रक और आर्थिक क्रियाएँ: महिलाओं और पुरुषों की भूमिका
अलग-अलग क्रियाकलापों को तीन प्रमुख क्षेत्रकों में बाँटा गया है।
प्राथमिक क्षेत्रक में कृषि, वानिकी, पशुपालन, मत्स्यपालन और खनन जैसे कार्य शामिल हैं। द्वितीयक क्षेत्रक निर्माण और फैक्ट्री से जुड़े कामों पर आधारित होता है। वहीं, तृतीयक क्षेत्रक में व्यापार, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग आदि सेवाएँ आती हैं। इन क्षेत्रकों के माध्यम से वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया जाता है, जो राष्ट्रीय आय में वृद्धि करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आर्थिक क्रियाएँ
बाज़ार क्रियाएँ: वेतन या लाभ के लिए किए गए कार्य, जैसे नौकरी या व्यापार।
गैर-बाज़ार क्रियाएँ: स्व-उपभोग के लिए किए गए काम, जैसे घर के लिए खाना बनाना।
परिवार में श्रम विभाजन
इतिहास और परंपरा के कारण महिलाओं और पुरुषों के काम अलग-अलग होते हैं। महिलाएँ मुख्य रूप से घर का काम करती हैं, जैसे खाना बनाना, सफाई करना और बच्चों की देखभाल करना, जबकि पुरुष खेतों में काम करते हैं और परिवार के लिए धन कमाने की जिम्मेदारी निभाते हैं।
महिलाओं का योगदान और चुनौतियाँ
घर में महिलाएँ मुफ्त सेवाएँ प्रदान करती हैं, जिन्हें राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता। जब महिलाएँ श्रम बाजार में काम करती हैं, तो उनकी आय उनके शिक्षा स्तर और कौशल पर निर्भर करती है। अधिकतर महिलाएँ कम शिक्षा और कौशल के कारण कम वेतन पर काम करने के लिए मजबूर होती हैं।
सुधार और संभावनाएँ
शिक्षित और कुशल महिलाएँ पुरुषों के बराबर वेतन पा सकती हैं।
संगठित क्षेत्र, जैसे शिक्षण और चिकित्सा, महिलाओं को आकर्षित करते हैं।
उच्च शिक्षा वाली महिलाएँ वैज्ञानिक, प्रशासनिक और तकनीकी सेवाओं में भी सफल हो रही हैं।
जनसंख्या की गुणवत्ता
जनसंख्या की गुणवत्ता इस बात पर निर्भर करती है कि लोग कितने शिक्षित (साक्षर), स्वस्थ और कुशल हैं। यह गुणवत्ता देश के विकास और प्रगति की दर तय करती है। पढ़े-लिखे और स्वस्थ लोग किसी देश की सबसे बड़ी संपत्ति होते हैं।
शिक्षा
सकल की शुरुआती शिक्षा ने उसे अच्छी नौकरी और बेहतर जीवन जीने का मौका दिया। यह केवल सकल के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए शिक्षा की महत्ता को दर्शाता है। शिक्षा न केवल व्यक्ति के जीवन को सँवारती है, बल्कि समाज की आर्थिक और सांस्कृतिक प्रगति में भी योगदान देती है।
भारत में शिक्षा की स्थिति
भारत में साक्षरता दर में काफी सुधार हुआ है। 1951 में साक्षरता दर केवल 18% थी, जो 2018 में बढ़कर 85% हो गई। पुरुषों की साक्षरता दर महिलाओं से 16% अधिक है, और ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में 14% का अंतर है। केरल में साक्षरता दर 94% है, जबकि बिहार में यह 62% है। शिक्षा पर खर्च भी बढ़ा है, जहाँ पहली पंचवर्षीय योजना में 151 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे, वहीं 2020-21 में यह बढ़कर 99,300 करोड़ रुपये हो गया। प्राथमिक शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए सर्वशिक्षा अभियान, मिड-डे मील योजना और स्कूल लौटो शिविर जैसे प्रयास किए गए, जो बच्चों को स्कूल लाने, उनकी उपस्थिति बढ़ाने और पढ़ाई में वापस लाने पर केंद्रित हैं।
उच्च शिक्षा की प्रगति
भारत में 2018 में 18-23 आयु वर्ग के छात्रों का नामांकन 27% था, जो वैश्विक औसत 26% के करीब है, जिससे विश्व स्तर पर नामांकन में समानता दिखाई देती है। तकनीकी और दूरस्थ शिक्षा में सूचना प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग के साथ औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा में भी सुधार हुआ है। पिछले 60 वर्षों में कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है, जिससे उच्च शिक्षा के लिए बेहतर अवसर उपलब्ध हुए हैं।
चुनौतियाँ और समाधान
स्कूल छोड़ने की दर और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता है।
लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
स्वास्थ्य
फर्म का मुख्य उद्देश्य मुनाफा कमाना होता है, इसलिए वे कम स्वस्थ लोगों को काम पर रखना पसंद नहीं करतीं, क्योंकि वे स्वस्थ लोगों की तुलना में कम काम कर पाते हैं। स्वास्थ्य व्यक्ति की काम करने की क्षमता और बीमारियों से लड़ने की ताकत को बढ़ाता है, जो किसी संगठन और देश के विकास के लिए जरूरी है। इसी कारण, हर देश अपने नागरिकों के स्वास्थ्य को सुधारने को प्राथमिकता देता है। भारत की राष्ट्रीय नीति का लक्ष्य कमजोर वर्गों तक स्वास्थ्य सेवाएं, परिवार कल्याण, और पौष्टिक भोजन पहुंचाना है। पिछले 50 सालों में भारत ने सरकारी और निजी क्षेत्रों में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं और जनशक्ति विकसित की है। फिर भी, कई इलाकों में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है। भारत में 542 मेडिकल और 313 डेंटल कॉलेज हैं, जिनमें से ज्यादातर आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में हैं।
बेरोज़गारी
बेरोजगारी तब होती है, जब कोई व्यक्ति काम करने के लिए तैयार हो, लेकिन उसे काम नहीं मिले। इसे समझने के लिए सकल के परिवार का उदाहरण लिया जा सकता है:
शीला (सकल की माँ): घर के काम और खेती में पति की मदद करती हैं। वह बाहर काम करने की इच्छुक नहीं हैं। इसलिए उन्हें बेरोजगार नहीं कहा जा सकता।
जीतू और सीतू (सकल के भाई-बहन): वे छोटे हैं और श्रम बल की जनसंख्या में नहीं आते। इसलिए वे भी बेरोजगार नहीं कहे जा सकते।
ग्रामीण और शहरी बेरोजगारी
ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी मुख्यतः मौसमी और प्रच्छन्न रूप में देखी जाती है। मौसमी बेरोजगारी तब होती है जब खेती के कुछ महीनों में काम उपलब्ध नहीं होता। प्रच्छन्न बेरोजगारी में अधिक लोग काम में लगे होते हैं, लेकिन अतिरिक्त लोगों का योगदान उत्पादन में वृद्धि नहीं करता। वहीं, शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी शिक्षित और तकनीकी बेरोजगारी के रूप में प्रकट होती है। शिक्षित बेरोजगारी मैट्रिक और स्नातक युवाओं के बीच नौकरी की कमी को दर्शाती है, जबकि तकनीकी बेरोजगारी तब होती है जब तकनीकी कौशल की कमी के कारण रोजगार नहीं मिल पाता।
बेरोजगारी के दुष्प्रभाव
बेरोजगारी के कारण कार्यरत लोगों पर निर्भरता बढ़ जाती है, जिससे आर्थिक बोझ में वृद्धि होती है। यह जीवन स्तर में गिरावट का कारण बनती है, जिससे स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी आवश्यकताओं पर बुरा असर पड़ता है। युवाओं में बेरोजगारी मानसिक तनाव, निराशा और हताशा को जन्म देती है। इसके अलावा, श्रम बल का सही उपयोग न होने से संसाधनों की बर्बादी होती है, जो अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
भारत में रोजगार की स्थिति
प्राथमिक क्षेत्रक (कृषि): अधिकतर लोग कृषि में आत्मनिर्भर होते हैं, लेकिन इसमें प्रच्छन्न बेरोजगारी की समस्या है।
द्वितीयक क्षेत्रक (निर्माण): छोटे उद्योग रोजगार का बड़ा हिस्सा प्रदान करते हैं।
तृतीयक क्षेत्रक (सेवाएँ): सूचना प्रौद्योगिकी और जैव-प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर मिल रहे हैं।