संविधान निर्माण Notes in Hindi Class 9 Loktantrik Rajniti Chapter-2 Book 2 Constitution Making samvidhan nirmaan
0Team Eklavyaजनवरी 12, 2025
परिचय
लोकतंत्र में शासक मनमानी नहीं कर सकते। नागरिकों और सरकार के लिए कुछ नियम होते हैं, जिन्हें मिलाकर संविधान बनता है। संविधान नागरिकों के अधिकार, सरकार की शक्तियाँ और उसके कामकाज का तरीका तय करता है। संविधान की जरूरत क्यों है, यह कैसे बनता है, और इसे बनाने में कौन से मूल्य शामिल होते हैं। साथ ही, दक्षिण अफ्रीका और भारतीय संविधान के निर्माण की प्रक्रिया और उनके मूल विचारों पर चर्चा करेंगे।
2.1 दक्षिण अफ्रीका में लोकतांत्रिक संविधान
नेल्सन मंडेला ने गोरों और अश्वेतों के प्रभुत्व के खिलाफ संघर्ष करते हुए एक लोकतांत्रिक और समान समाज का सपना देखा, जहाँ सभी लोग मिलकर रहें और सभी को समान अवसर मिलें। इस संघर्ष के कारण, 1964 में उन्हें और सात अन्य नेताओं को देशद्रोह के आरोप में आजीवन कारावास की सजा दी गई। मंडेला ने 27 साल दक्षिण अफ्रीका की कुख्यात रोब्बेन द्वीप जेल में बिताए।
रंगभेद के खिलाफ संघर्ष
रंगभेद क्या था?
रंगभेद, एक ऐसी भेदभावपूर्ण व्यवस्था थी जो दक्षिण अफ्रीका में लागू की गई। इसे यूरोप से आए गोरे शासकों ने स्थानीय अश्वेत आबादी पर थोपा। गोरे लोग खुद को श्रेष्ठ मानते थे और अश्वेतों के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार करते थे।
रंगभेद की शुरुआत
17वीं और 18वीं सदी में यूरोप की कंपनियां व्यापार के बहाने दक्षिण अफ्रीका आईं। उन्होंने स्थानीय लोगों को दबाकर अपना शासन स्थापित किया। धीरे-धीरे बड़ी संख्या में गोरे लोग दक्षिण अफ्रीका में बस गए और शासन अपने हाथ में ले लिया।
रंगभेद की नीतियां
दक्षिण अफ्रीका में लोगों को उनके चमड़ी के रंग के आधार पर अलग किया गया था। अश्वेतों को गोरों के इलाकों में जाने की अनुमति नहीं थी। स्कूल, अस्पताल, बस, रेलगाड़ी, समुद्र तट, और शौचालय जैसे सार्वजनिक स्थान भी अलग कर दिए गए थे। अश्वेतों को संगठन बनाने या विरोध करने का अधिकार भी नहीं था।
संघर्ष की शुरुआत
1950 के दशक से अश्वेत, भारतीय मूल के लोग और रंगीन चमड़ी वाले लोग इस अन्याय के खिलाफ खड़े हुए। उन्होंने प्रदर्शन, हड़ताल और विरोध आंदोलन किए। अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस (ANC) जैसे संगठनों ने इस संघर्ष का नेतृत्व किया। कई गोरे लोग भी इस आंदोलन में शामिल हुए और समानता की मांग की।
अंतरराष्ट्रीय समर्थन
दुनियाभर के देशों ने रंगभेद का विरोध किया। लेकिन गोरी सरकार ने दमन और हत्याओं के जरिए इसे लंबे समय तक जारी रखा।
एक नए संविधान की ओर
रंगभेद का अंत कैसे हुआ?
रंगभेद के खिलाफ बढ़ते विरोध और संघर्ष ने गोरी सरकार को बदलाव के लिए मजबूर कर दिया। भेदभाव वाले कानून और राजनीतिक दलों व मीडिया पर लगी पाबंदियाँ हटा दी गईं। नेल्सन मंडेला को 28 साल की जेल के बाद रिहा किया गया। आखिरकार, 26 अप्रैल 1994 को दक्षिण अफ्रीका एक लोकतांत्रिक देश बन गया।
नेल्सन मंडेला का संदेश
नेल्सन मंडेला ने कहा:
"हमारे लोकतंत्र का आधार अच्छाई और एक-दूसरे पर विश्वास है। दक्षिण अफ्रीकी लोग मानवता पर विश्वास करना कभी नहीं छोड़ें।"
नए दक्षिण अफ्रीका का निर्माण
अश्वेत नेताओं ने गोरों को माफ करने और साथ मिलकर काम करने की अपील की। उन्होंने लोकतंत्र, समानता, और मानवाधिकारों पर आधारित एक नया देश बनाने की कोशिश की। सभी ने मिलकर दुनिया का सबसे अच्छा संविधान तैयार किया।
संविधान की खासियत
यह संविधान नागरिकों को व्यापक अधिकार देता है और सभी के लिए समानता और भागीदारी की गारंटी करता है। यह पुराने कड़वे अनुभवों से सबक लेकर एक नए और समावेशी समाज का वादा करता है।
दक्षिण अफ्रीका: एक नई पहचान
1994 तक जिस देश को अलोकतांत्रिक माना जाता था, वह अब लोकतंत्र का उदाहरण बन चुका है। यह बदलाव नेल्सन मंडेला और दक्षिण अफ्रीकी लोगों की एकजुटता और सहनशीलता का परिणाम है।
मंडेला का विज़न
"यह देश सभी का है—श्वेत और अश्वेत, स्त्री और पुरुष। हम अपने अतीत की गलतियों को दोहराने नहीं देंगे।"
2.2 हमें संविधान की ज़रूरत क्यों है ?
संविधान की जरूरत क्यों?
संविधान एक ऐसा लिखित दस्तावेज है, जो किसी देश के नागरिकों और सरकार के बीच के रिश्तों को तय करता है। यह सभी नागरिकों के अधिकार, सरकार की शक्तियां, और समाज में एकता बनाए रखने के लिए नियम निर्धारित करता है।
दक्षिण अफ्रीका का उदाहरण
दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद खत्म होने के बाद, गोरे और अश्वेतों के बीच भरोसा करना मुश्किल था। अश्वेत बहुमत अपने अधिकारों की रक्षा चाहता था, जबकि गोरे अल्पसंख्यक अपनी संपत्ति और विशेषाधिकारों को लेकर चिंतित थे। लंबे संघर्ष और बातचीत के बाद, दोनों पक्ष सहमत हुए कि उनके समझौतों को एक लिखित दस्तावेज में दर्ज किया जाए, जिसे हर कोई माने। यही दस्तावेज संविधान बना।
संविधान क्या करता है?
संविधान भरोसा और सहयोग बढ़ाता है, अलग-अलग समूहों के बीच विश्वास कायम करता है। यह सरकार की संरचना तय करता है, यह बताता है कि सरकार कैसे बनेगी और कौन फैसले लेगा। यह सरकार की सीमाएं तय करके उसे मनमानी से रोकता है और नागरिकों के अधिकार सुनिश्चित करता है। साथ ही, यह समाज की आकांक्षाओं को व्यक्त करता है और एक बेहतर समाज बनाने के लिए दिशा-निर्देश देता है।
संविधान की सार्वभौमिकता
लोकतांत्रिक देशों में संविधान होना जरूरी है।
यह सर्वोच्च कानून होता है जिसे सभी नागरिक मानते हैं।
संविधान: इतिहास और महत्व
अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम और फ्रांसीसी क्रांति के बाद संविधान का चलन शुरू हुआ। आज यह हर लोकतांत्रिक देश का आधार है।
2.3 भारतीय संविधान का निर्माण
भारत का संविधान कठिन परिस्थितियों में बना, क्योंकि यह एक विशाल और विविधता भरे देश के लिए तैयार किया गया था। लोग गुलामी से आजाद होकर नागरिक बनने जा रहे थे, लेकिन देश ने विभाजन की विभीषिका झेली थी, जिसमें लाखों लोग मारे गए। अंग्रेजों ने रियासतों को भारत, पाकिस्तान में विलय या स्वतंत्र रहने का विकल्प दिया, जिससे उनका विलय चुनौतीपूर्ण और अनिश्चित था। संविधान लिखते समय देश का भविष्य असुरक्षित था, इसलिए संविधान निर्माताओं ने वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों को ध्यान में रखकर इसे बनाया।
संविधान निर्माण का रास्ता
भारतीय संविधान निर्माण की खासियत
भारतीय संविधान निर्माताओं को दक्षिण अफ्रीका जैसे मुश्किल हालात का सामना नहीं करना पड़ा। आजादी की लड़ाई के दौरान भारत में लोकतंत्र और कई बुनियादी सिद्धांतों पर पहले ही सहमति बन चुकी थी। यह केवल विदेशी शासन के खिलाफ संघर्ष नहीं था, बल्कि समाज और राजनीति को बदलने का भी आंदोलन था।
पहले से मौजूद सहमति
1928 में मोतीलाल नेहरू और अन्य नेताओं ने भारत का पहला संविधान तैयार किया। 1931 के कराची अधिवेशन में आजाद भारत के संविधान की रूपरेखा पेश की गई, जिसमें वयस्क मताधिकार, स्वतंत्रता, समानता, और अल्पसंख्यकों के अधिकार शामिल थे। इन प्रयासों ने संविधान निर्माण के लिए बुनियादी विचार पहले ही तैयार कर दिए थे।
अंग्रेजी शासन से मिले अनुभव
औपनिवेशिक शासन के दौरान भारतीय नेताओं को चुनावी और विधायी प्रक्रियाओं का अनुभव हुआ। 1935 का भारत सरकार अधिनियम संविधान का आधार बना, जिसे भारतीय जरूरतों के अनुसार ढाला गया।
वैश्विक प्रेरणा और भारतीय अनुकूलन
फ्रांसीसी क्रांति के आदर्श, ब्रिटेन का संसदीय लोकतंत्र, और अमेरिका की अधिकार सूची से प्रेरणा ली गई।
रूस की समाजवादी क्रांति ने सामाजिक और आर्थिक समानता की कल्पना को प्रेरित किया।
भारतीय नेताओं ने हर विचार को भारत के लिए उपयुक्त बनाने पर जोर दिया।
संविधान सभा
संविधान बनाने की प्रक्रिया
भारतीय संविधान को लिखने का काम संविधान सभा ने किया।
चुनाव: संविधान सभा के लिए चुनाव जुलाई 1946 में हुए।
पहली बैठक: दिसंबर 1946 में हुई।
देश विभाजन: भारत और पाकिस्तान बनने के बाद संविधान सभा भी बँट गई।
सदस्य: भारतीय संविधान सभा में 299 सदस्य थे।
समापन: संविधान का मसौदा 26 नवंबर 1949 को तैयार हुआ और 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। यही दिन हमारा गणतंत्र दिवस बन गया।
संविधान क्यों खास है?
भारत का संविधान उस समय की राष्ट्रीय सहमति का प्रतिनिधित्व करता है, और पिछले 70 सालों में इसकी वैधता पर किसी बड़े समूह ने सवाल नहीं उठाया। संविधान सभा में सभी वर्गों, जातियों, धर्मों और क्षेत्रों का उचित प्रतिनिधित्व था, जिसका चुनाव प्रांतीय विधानसभाओं के सदस्यों ने किया। हर प्रावधान पर गहराई से चर्चा हुई, 2,000 से अधिक संशोधनों पर विचार हुआ, और तीन साल में 114 दिनों तक गंभीर बहसें हुईं।
संविधान निर्माण में डॉ. अंबेडकर की भूमिका
डॉ. बी.आर. अंबेडकर प्रारूप समिति के प्रमुख थे और उन्होंने संविधान का प्रारूप तैयार किया। उन्होंने हर धारा पर चर्चा कर सभी की सहमति बनाने का प्रयास किया। उनकी सूझबूझ से संविधान समृद्ध और संतुलित बना।
संविधान सभा की बहसें
इन बहसों को "कांस्टीट्यूएंट असेम्बली डिबेट्स" के रूप में प्रकाशित किया गया।
ये 12 खंडों में हैं और संविधान की व्याख्या के लिए उपयोगी हैं।
2.4 भारतीय संविधान के बुनियादी मूल्य
इस किताब में हम संविधान के विभिन्न प्रावधानों और उसके पीछे के दर्शन को समझने का प्रयास करेंगे। इसे समझने के दो तरीके हैं: नेताओं के संविधान संबंधी विचार पढ़ना और संविधान की प्रस्तावना को समझना। प्रस्तावना संविधान के दर्शन को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करती है, इसलिए इसे पढ़ना जरूरी है।
सपने और वायदे
महात्मा गांधी संविधान सभा के सदस्य नहीं थे, लेकिन उनके विचारों का प्रभाव कई सदस्यों पर था। 1931 में उन्होंने 'यंग इंडिया' में संविधान से अपनी अपेक्षाएं लिखी थीं। डॉ. अंबेडकर भी समानता के पक्षधर थे, लेकिन उनकी सोच गांधी से अलग थी। उन्होंने गांधी की आलोचना करते हुए संविधान सभा में अपनी चिंताएं स्पष्ट रूप से रखीं।
संविधान का दर्शन
भारतीय संविधान की प्रस्तावना स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों को समेटे हुए है, जो भारतीय लोकतंत्र का आधार हैं। संविधान की शुरुआत इन मूल्यों को संक्षेप में प्रस्तुत करने वाली प्रस्तावना से होती है, जिसे उद्देशिका भी कहते हैं। अमेरिकी संविधान से प्रेरित यह प्रस्तावना लोकतंत्र का वह दर्शन पेश करती है, जिस पर पूरे संविधान का निर्माण हुआ है। यह सरकार के कानूनों और फैसलों के मूल्यांकन का मानक तय करती है और इसे भारतीय संविधान की आत्मा माना जाता है।
संस्थाओं का स्वरूप
संविधान केवल मूल्यों और दर्शन का बयान नहीं है, बल्कि इन मूल्यों को संस्थागत रूप देने का प्रयास है। यह एक लंबा और विस्तृत दस्तावेज़ है, जिसे समय-समय पर बदलावों की जरूरत होती है। संविधान निर्माताओं ने इसे लोगों की भावनाओं और समाज में हो रहे परिवर्तनों के अनुरूप बनाने के लिए संशोधन की व्यवस्था दी, जिसे संविधान संशोधन कहा जाता है। संविधान में शासकों के चुनाव, शक्तियों के वितरण और नागरिकों के अधिकारों के नियम दर्ज हैं। यह सरकार के लिए सीमाएं तय करता है। इस किताब के अगले अध्यायों में भारतीय संविधान की प्रमुख प्रावधानों और लोकतांत्रिक राजनीति में उनकी भूमिका पर चर्चा होगी, जबकि अन्य पहलुओं पर अगले वर्ष की किताब में विचार किया जाएगा।