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पालमपुर गाँव की कहानी Notes in Hindi Class 9 Arthashastra Chapter-1 Book 1 The Story of Palampur Village

पालमपुर गाँव की कहानी Notes in Hindi Class 9 Arthashastra Chapter-1 Book 1 The Story of Palampur Village


परिचय

पालमपुर एक काल्पनिक गाँव है, जो अपने आसपास के गाँवों और कस्बों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यह गाँव खेती और अन्य उत्पादन गतिविधियों के बारे में जानने के लिए एक उदाहरण है। खेती यहाँ की मुख्य गतिविधि है, लेकिन इसके अलावा लोग लघु उद्योग, परिवहन, और दुकानदारी जैसे गैर-कृषि कार्यों में भी जुड़े हुए हैं। गाँव में करीब 450 परिवार रहते हैं, जिनमें से ज्यादातर ऊँची जाति के हैं। गाँव में बिजली, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र और सड़कों जैसी सुविधाएँ भी हैं। यह कहानी हमें गाँवों की जीवनशैली और उनके उत्पादन कार्यों को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगी।


उत्पावन का संगठन

उत्पादन का उद्देश्य ऐसी वस्तुएँ और सेवाएँ बनाना है, जिनकी हमें ज़रूरत होती है। इसके लिए चार चीजें जरूरी हैं।

1. भूमि और प्राकृतिक संसाधन

  • उत्पादन के लिए सबसे पहले ज़मीन और प्राकृतिक संसाधन चाहिए, जैसे पानी, जंगल, और खनिज।

2. श्रम (काम करने वाले लोग)

  • काम करने के लिए लोग जरूरी हैं।
  • कुछ कामों में पढ़े-लिखे और कुशल लोग चाहिए।
  • कुछ में शारीरिक श्रमिकों की जरूरत होती है।
  • हर व्यक्ति अपने श्रम से उत्पादन में योगदान करता है।

3. भौतिक पूँजी (संसाधन और सामान)

उत्पादन में मदद के लिए चीजें चाहिए, जो भौतिक पूँजी कहलाती हैं।

  • स्थायी पूँजी: औजार, मशीनें, और भवन। ये लंबे समय तक इस्तेमाल होते हैं। उदाहरण: हल, जेनरेटर, कंप्यूटर।
  • कार्यशील पूँजी: कच्चा माल और नकद पैसे। ये उत्पादन के दौरान खत्म हो जाते हैं। उदाहरण: सूत, मिट्टी।

4. मानव पूँजी (ज्ञान और उद्यम)

उत्पादन के लिए ज्ञान और समझदारी भी जरूरी है। इसे मानव पूँजी कहा जाता है।


पालमपुर में खेती

1. भूमि स्थिर है।

पालमपुर में खेती मुख्य काम है। यहाँ 75% लोग अपनी रोज़ी-रोटी के लिए खेती पर निर्भर हैं। वे किसान या खेतों में काम करने वाले मजदूर हो सकते हैं। इनका जीवन खेतों में होने वाले उत्पादन पर टिका है। 

लेकिन खेती में एक समस्या है। खेती के लिए जमीन की मात्रा तय है और बढ़ नहीं सकती। पालमपुर में 1960 से अब तक खेती की जमीन नहीं बढ़ी है। उस समय गाँव की बंजर जमीन को खेती लायक बना दिया गया था। अब और जमीन खेती के लिए तैयार करना संभव नहीं है।


2. क्या उसी भूमि से अधिक पैदावार करने का कोई तरीका है?

भूमि से अधिक पैदावार के तरीके

पालमपुर में किसान अपनी खेती से अधिक पैदावार कैसे करते हैं, इसे सरल भाषा में समझते हैं:

1. तीन फसलों की खेती (बहुविध फसल प्रणाली)

  • खरीफ (बरसात): ज्वार और बाजरा (पशुओं का चारा)।
  • रबी (सर्दी): गेहूँ। घर के लिए कुछ गेहूँ रखते हैं, बाकी बाज़ार में बेचते हैं।
  • अक्टूबर-दिसंबर: आलू।
  • गन्ना: साल में एक बार कटाई, जिसे कच्चे रूप में या गुड़ बनाकर बेचा जाता है।
  • सिंचाई के लिए बिजली से चलने वाले नलकूप होने के कारण किसान तीन फसलें उगा पाते हैं।

2. आधुनिक कृषि विधियाँ

हरित क्रांति (1960 के दशक के अंत):

  • नए बीज (एच.वाई.वी. बीज) का उपयोग शुरू हुआ।
  • इन बीजों से ज्यादा अनाज (उपज) मिलता है।
  • उदाहरण: पहले परंपरागत बीज से गेहूँ की उपज 1,300 किलोग्राम/हेक्टेयर थी, अब एच.वाई.वी. बीज से 3,200 किलोग्राम/हेक्टेयर।

आवश्यक चीजें:

  • ज्यादा पानी (सिंचाई)।
  • रासायनिक खाद और कीटनाशक।
  • खेती के लिए ट्रैक्टर और मशीनों का इस्तेमाल।

3. परिणाम

  • ज्यादा अनाज उगाकर किसान बाजार में बेचने के लिए गेहूँ की बड़ी मात्रा प्राप्त करते हैं।
  • उत्पादन बढ़ने से किसानों की आय भी बढ़ती है।


3. क्या भूमि यह धारण कर पाएगी?

भूमि एक प्राकृतिक संसाधन है, इसलिए इसे सावधानी से इस्तेमाल करना जरूरी है। वैज्ञानिक रिपोर्टों से पता चलता है कि आधुनिक कृषि विधियों से प्राकृतिक संसाधनों का ज्यादा उपयोग हुआ है।

मिट्टी की समस्या:

  • हरित क्रांति में उर्वरकों के ज्यादा इस्तेमाल से कई जगहों पर मिट्टी की उर्वरता कम हो गई है।

पानी की समस्या:

  • नलकूपों से सिंचाई के कारण भूजल का अधिक इस्तेमाल हुआ, जिससे पानी का स्तर नीचे चला गया।

पर्यावरण का महत्व:

  • मिट्टी और भूजल जैसे संसाधनों को बनने में कई साल लगते हैं। अगर ये नष्ट हो जाएं, तो इन्हें वापस लाना बहुत मुश्किल है।

क्या करना चाहिए?

कृषि का विकास जारी रखने के लिए हमें पर्यावरण का ख्याल रखना चाहिए। इससे प्राकृतिक संसाधन लंबे समय तक सुरक्षित रहेंगे।


4. पालमपुर के किसानों में भूमि किस प्रकार वितरित है?

खेती के लिए भूमि बहुत जरूरी है, लेकिन सभी किसानों के पास पर्याप्त जमीन नहीं है।

जमीन के बिना लोग:

  • पालमपुर के 450 परिवारों में से 150 परिवारों के पास खेती के लिए जमीन नहीं है। इनमें से ज्यादातर दलित हैं।

छोटे किसान:

  • 240 परिवारों के पास 2 हेक्टेयर से कम जमीन है। इतनी कम जमीन पर खेती करने से उनकी आमदनी पर्याप्त नहीं होती।

बड़े किसान:

  • 60 परिवारों के पास 2 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन है। इनमें से कुछ के पास 10 हेक्टेयर या उससे भी ज्यादा जमीन है।


5. श्रम की व्यवस्था कौन करेगा?

खेती में श्रम दूसरा महत्वपूर्ण कारक है और इसमें बहुत मेहनत की जरूरत होती है। छोटे किसान अपने खेतों में परिवार के साथ काम करते हैं और खुद श्रम की व्यवस्था करते हैं। मझोले और बड़े किसान दूसरों को मजदूरी पर काम पर रखते हैं। मजदूरों को फसल पर अधिकार नहीं होता, बल्कि उन्हें नकद, अनाज, या कभी-कभी भोजन के रूप में मेहनताना मिलता है। मजदूरी और काम की अवधि फसल, कार्य (जैसे बुआई और कटाई), और क्षेत्रों के अनुसार बदलती रहती है।

डाला पालमपुर का भूमिहीन मजदूर है, जो दैनिक मजदूरी पर काम करता है और हर दिन काम ढूँढ़ने को मजबूर है। सरकार ने न्यूनतम वेतन 300 रु./दिन तय किया है (मार्च 2019), लेकिन डाला को केवल 160 रु. मिलते हैं। पालमपुर में मजदूरों की अधिक संख्या और कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण लोग कम वेतन पर भी काम करने को तैयार हो जाते हैं। डाला और रामकली जैसे मजदूर गाँव के सबसे गरीब लोगों में गिने जाते हैं।


6. खेतों के लिए आवश्यक पूँजी

खेती के आधुनिक तरीकों में ज्यादा पैसे की जरूरत होती है।

छोटे किसान:

  • छोटे किसानों को पैसे के लिए कर्ज लेना पड़ता है।
  • वे बड़े किसानों, साहूकारों, या व्यापारियों से उधार लेते हैं।
  • कर्ज पर ब्याज बहुत ज्यादा होता है, जिससे उनका कर्ज चुकाना मुश्किल हो जाता है।

मझोले और बड़े किसान:

  • बड़े और मझोले किसानों को खेती से बचत होती है।
  • वे अपनी बचत से खेती के लिए पैसे का इंतजाम कर लेते हैं।


7. अधिशेष कृषि उत्पादों की बिक्री

किसान गेहूँ उगाने के बाद कुछ हिस्सा अपने परिवार के खाने के लिए रखते हैं और बचा हुआ गेहूँ (अधिशेष) बाजार में बेच देते हैं। छोटे किसानों के पास अधिशेष गेहूँ बहुत कम होता है, क्योंकि उनका उत्पादन कम होता है और उसका बड़ा हिस्सा परिवार के लिए रख लिया जाता है। मझोले और बड़े किसान ही बाजार में गेहूँ बेचते हैं। बड़े किसान, जैसे तेजपाल सिंह, अपने गेहूँ का अधिशेष बेचकर अच्छी कमाई करते हैं। तेजपाल ने अपनी कमाई का कुछ हिस्सा बैंक में जमा किया और जरूरतमंद किसानों को कर्ज दिया। उसने अपने पैसे का उपयोग अगले सीजन की खेती और एक नया ट्रैक्टर खरीदने के लिए भी किया, जिससे उसकी स्थिर पूँजी बढ़ी। इस तरह मझोले और बड़े किसान अपनी बचत से खेती और अन्य गैर-कृषि कार्यों के लिए पूँजी का प्रबंध करते हैं।


पालमपुर में गैर-कृषि क्रियाएँ

पालमपुर में खेती मुख्य काम है, लेकिन 25% लोग अन्य गैर-कृषि कार्यों में भी लगे हैं।

1. डेयरी: कई परिवार भैंस पालते हैं और उन्हें घास, ज्वार, और बाजरा खिलाते हैं। दूध रायगंज गाँव में बेचा जाता है, जहाँ से शाहपुर के व्यापारियों द्वारा इसे अन्य शहरों में भेजा जाता है।

2. लघु विनिर्माण: लगभग 50 लोग छोटे स्तर के विनिर्माण कार्य करते हैं। ये काम घरों या खेतों में पारिवारिक श्रम के साथ किए जाते हैं और साधारण विधियों का उपयोग होता है।

3. दुकानदार: गाँव के दुकानदार शहरों से सामान खरीदकर गाँव में बेचते हैं। उनके जनरल स्टोर्स में रोजमर्रा की चीजें जैसे चावल, बिस्कुट, साबुन, और कपड़े मिलते हैं। बस स्टैंड के पास कुछ लोगों ने खाने-पीने की दुकानें भी खोली हैं।

4. परिवहन: गाँव और रायगंज के बीच कई वाहन चलते हैं जैसे रिक्शा, ताँगा, जीप, ट्रक, और बैलगाड़ियाँ। ये लोग सामान और यात्रियों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हैं। हाल के वर्षों में परिवहन का काम तेज़ी से बढ़ा है।

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