फ़्रांसीसी क्रांति Notes in Hindi Notes in Hindi Class 9 Bharat Aur Samkalin Vishwa-I Chapter-1 Book 4 French Revolution francisi kranti
0Team Eklavyaजनवरी 14, 2025
14 जुलाई 1789 की सुबह, पेरिस में दहशत का माहौल था। अफवाह थी कि सम्राट सेना से नागरिकों पर हमला करवाएगा। इस डर से 7000 लोग टाउन हॉल के सामने इकट्ठा हुए और अपनी सुरक्षा के लिए जन-सेना बनाने का फैसला किया। हथियारों की तलाश में लोगों ने सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया।
अंत में, एक बड़ा समूह बास्तील किले की ओर बढ़ा, जो सम्राट की ताकत का प्रतीक था। किले पर हमला किया गया, कमांडर को मारा गया, और सात कैदियों को रिहा किया गया। बाद में किला तोड़ दिया गया, और उसके अवशेष स्मृति के तौर पर बेच दिए गए।
इस घटना ने फ्रांस में बड़े बदलाव की शुरुआत की, जो अंततः सम्राट की फांसी पर खत्म हुआ। उस समय किसी को नहीं पता था कि यह क्रांति का पहला कदम होगा।
1 अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध में फ़्रांसीसी समाज
सन् 1774 में, लुई XVI फ्रांस की गद्दी पर बैठा। उस समय उसकी उम्र सिर्फ 20 साल थी और उसका विवाह ऑस्ट्रिया की राजकुमारी मेरी एन्तोएनेत से हुआ था। गद्दी संभालते ही उसने राजकोष खाली पाया। लंबे युद्धों और वर्साय के शाही महल की शानो-शौकत ने देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर कर दिया था।
लुई XVI के शासन में फ्रांस ने अमेरिका के 13 उपनिवेशों को ब्रिटेन से आजादी दिलाने में मदद की, जिससे फ्रांस पर 10 अरब लिव्रे का कर्ज और चढ़ गया। पहले से ही 2 अरब लिव्रे के कर्ज में डूबे फ्रांस को अब कर्जदाताओं को 10% ब्याज देना पड़ रहा था। इसके चलते सरकार को सेना, राजदरबार और अन्य खर्चों के लिए कर बढ़ाने पड़े, लेकिन यह भी पर्याप्त नहीं था।
फ्रांसीसी समाज की वर्ग-व्यवस्था
18वीं सदी का फ्रांसीसी समाज तीन वर्गों या एस्टेट्स में विभाजित था। पहला एस्टेट पादरी वर्ग था, जिन्हें करों से छूट प्राप्त थी। दूसरा एस्टेट कुलीन वर्ग था, जिन्हें सामंती अधिकार प्राप्त थे और वे किसानों से कर वसूलते थे। तीसरा एस्टेट सामान्य लोगों का था, जो आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा थे और करों का पूरा बोझ इन्हीं पर था। किसानों की स्थिति अत्यंत कठिन थी। उन्हें न केवल कुलीनों और चर्च को कर देना पड़ता था, बल्कि सरकार को भी विभिन्न प्रकार के कर चुकाने पड़ते थे।
करों का बोझ
टाइद (Tithe) चर्च को दिया जाने वाला धार्मिक कर था, जबकि टाइल (Taille) सरकार को दिया जाने वाला प्रत्यक्ष कर था। इसके अलावा, नमक और तंबाकू जैसी रोजमर्रा की चीजों पर अप्रत्यक्ष कर लगाया जाता था, जिससे आम लोगों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ता था।
1.1 जीने का संघर्ष
सन् 1715 में फ्रांस की जनसंख्या 2.3 करोड़ से बढ़कर 1789 में 2.8 करोड़ हो गई, जिससे अनाज की माँग तेजी से बढ़ी। पावरोटी महँगी हो गई, लेकिन मजदूरों की मजदूरी महँगाई के अनुसार नहीं बढ़ी। अमीर-गरीब की खाई बढ़ी, और सूखे या ओलों से फसल खराब होने पर जीविका संकट आम हो गया।
1.3 उभरते मध्य वर्ग ने विशेषाधिकारों के अंत की कल्पना की
अकाल और कर वृद्धि के समय किसानों व कामगारों ने विद्रोह किया, पर व्यवस्था बदलने की योजना नहीं थी। यह जिम्मेदारी तीसरे एस्टेट के शिक्षित और समृद्ध वर्ग ने उठाई।
अठारहवीं सदी में मध्य वर्ग उभरा, जिसने व्यापार और वस्त्र उत्पादन से संपत्ति अर्जित की। इनमें व्यापारी, पेशेवर, वकील, और प्रशासक शामिल थे, जो समानता और योग्यता आधारित समाज के पक्षधर थे। जॉन लॉक, रूसो, और मॉन्तेस्क्यू जैसे दार्शनिकों ने जन्मजात विशेषाधिकार और निरंकुश शासन के खिलाफ विचार दिए।
अमेरिकी संविधान और व्यक्तिगत अधिकारों की गारंटी फ्रांसीसी चिंतकों के लिए प्रेरणा बनी। इन विचारों पर बहस कॉफी हाउसों और सैलॉन में होती और इन्हें पुस्तकों व अखबारों से फैलाया गया। इसी बीच लुई XVI द्वारा नए कर लगाए जाने से विशेषाधिकार व्यवस्था के खिलाफ गुस्सा बढ़ा।
2 क्रांति की शुरुआत
1789 में, फ्रांसीसी सम्राट लुई XVI ने नए कर लगाने के लिए एस्टेट्स जनरल की बैठक बुलाई। यह एक प्रतिनिधि सभा थी, जिसमें तीन वर्ग (एस्टेट्स) – पादरी, कुलीन और जनसाधारण – अपने प्रतिनिधि भेजते थे।
प्रतिनिधियों की व्यवस्था:
प्रतिनिधियों की व्यवस्था में पहले और दूसरे एस्टेट के 300-300 प्रतिनिधि आरामदायक स्थानों पर बैठे, जबकि तीसरे एस्टेट के 600 प्रतिनिधि पीछे खड़े रहने को मजबूर थे। आम किसान, महिलाएं और कारीगर इस व्यवस्था में शामिल नहीं थे, लेकिन उनकी समस्याओं और मांगों को 40,000 पत्रों के माध्यम से दर्ज किया गया था।
वोटिंग का विवाद
पुरानी व्यवस्था के तहत प्रत्येक एस्टेट को केवल एक वोट मिलता था, जिससे पादरी और कुलीन वर्ग मिलकर अपने हितों को सुरक्षित रखते थे। तीसरे एस्टेट ने इस प्रणाली का विरोध करते हुए हर प्रतिनिधि को एक वोट देने की मांग की, ताकि सभी की समान भागीदारी सुनिश्चित हो सके। जब राजा ने उनकी यह मांग ठुकरा दी, तो तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि विरोध स्वरूप सभा से बाहर चले गए।
नैशनल असेंबली और संविधान निर्माण
20 जून 1789 को, तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधियों ने वर्साय के टेनिस कोर्ट में इकट्ठा होकर खुद को नैशनल असेंबली घोषित किया। उन्होंने शपथ ली कि जब तक संविधान तैयार नहीं होगा, वे असेंबली भंग नहीं करेंगे।
नेतृत्व:
नेतृत्व में मिराब्यो और आबे सिए ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मिराब्यो कुलीन परिवार से होने के बावजूद समानता के समर्थक थे। वहीं, आबे सिए एक पादरी थे, जिन्होंने "तीसरा एस्टेट क्या है?" नामक एक प्रभावशाली पैम्फलेट लिखकर तीसरे एस्टेट के अधिकारों और महत्व को उजागर किया।
जनता का गुस्सा और बास्तील पर हमला
1789 में ठंड और खराब फसल के कारण पाव रोटी की कीमतें बहुत बढ़ गईं, जिससे लोग भूख से परेशान होकर बेकरी लूटने लगे। 14 जुलाई 1789 को गुस्साई भीड़ ने बास्तील जेल पर हमला किया, जो फ्रांसीसी क्रांति का प्रतीक बन गया।
देहातों में विद्रोह
गाँवों में अफवाह फैली कि जागीरदार लुटेरों से फसलें नष्ट करवा रहे हैं, जिससे किसान आक्रोशित हो गए। उन्होंने जागीरों (चेटो) पर हमला किया, अनाज लूटा और दस्तावेज़ जला दिए। इस डर से कई कुलीन अपनी जागीरें छोड़कर भाग गए।
सामंती व्यवस्था का अंत
जनता के बढ़ते दबाव के कारण, लुई XVI ने नैशनल असेंबली को मान्यता दी और 4 अगस्त 1789 को सामंती व्यवस्था समाप्त कर दी। सरकार ने चर्च की भूमि जब्त कर ली, जिससे 20 अरब लिव्रे की संपत्ति प्राप्त हुई। साथ ही, धार्मिक कर (टाइद) और विशेषाधिकार भी समाप्त कर दिए गए।
2.1 फ़ांस संवैधानिक राजतंत्र बन गया
सन् 1791 में नैशनल असेंबली ने संविधान तैयार किया, जिससे सम्राट की शक्तियाँ सीमित कर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में बाँटी गईं। इसने संवैधानिक राजतंत्र की नींव रखी।
कानून बनाने का अधिकार नैशनल असेंबली को दिया गया, जो अप्रत्यक्ष चुनाव से चुनी जाती थी। 25 वर्ष से अधिक उम्र के, तीन दिन की मजदूरी के बराबर कर देने वाले पुरुषों को ही "सक्रिय नागरिक" का दर्जा मिला। महिलाएँ और गरीब "निष्क्रिय नागरिक" माने गए।
संविधान में 'पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र' शामिल था, जिसमें जीवन, स्वतंत्रता और कानूनी समानता को नैसर्गिक अधिकार माना गया। राज्य पर इन अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई।
3 फ़्रांस में राजतंत्र का उन्मूलन और गणतंत्र की स्थापना
फ्रांस में 1791 के संविधान पर हस्ताक्षर करने के बावजूद लुई XVI गुप्त रूप से प्रशा के राजा से बातचीत कर रहा था। इस बीच, फ्रांस की घटनाओं से पड़ोसी देशों के राजा चिंतित थे। उन्होंने क्रांति को रोकने के लिए सेना भेजने की योजना बनाई। लेकिन इससे पहले, अप्रैल 1792 में नैशनल असेंबली ने प्रशा और ऑस्ट्रिया के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी।
युद्ध और राष्ट्रगान की शुरुआत
युद्ध का प्रभाव: हजारों लोग स्वयंसेवक बनकर सेना में शामिल हुए। उन्होंने इसे राजाओं और कुलीनों के खिलाफ जनता की जंग के रूप में देखा।
मार्सिले: देशभक्ति गीत "मार्सिले" पहली बार गाया गया, जो अब फ्रांस का राष्ट्रगान है।
जैकोबिन क्लब और क्रांति का नेतृत्व
जैकोबिन क्लब क्रांति के दौरान सबसे प्रभावशाली राजनीतिक क्लब था। इसके सदस्य छोटे दुकानदार, कारीगर और मजदूर जैसे समाज के कम समृद्ध वर्गों से आते थे। इसका नेतृत्व मैक्समिलियन रोबेस्प्येर ने किया। जैकोबिन खुद को कुलीन वर्ग से अलग दिखाने के लिए धारीदार पतलून पहनते थे और "सौं कुलॉत" (बिना घुटन्ने वाले) कहलाते थे।
1792 का विद्रोह और गणतंत्र की स्थापना
10 अगस्त 1792 को जैकोबिनों ने पेरिसवासियों के साथ मिलकर ट्यूलेर्री महल पर हमला किया। राजा और उसके परिवार को बंधक बनाकर जेल भेज दिया गया। इसके बाद नए चुनाव हुए, जिसमें 21 साल से ऊपर के सभी पुरुषों को, चाहे उनके पास संपत्ति हो या नहीं, मतदान का अधिकार मिला। 21 सितंबर 1792 को राजतंत्र समाप्त कर फ्रांस को गणराज्य घोषित किया गया।
लुई XVI और रानी का अंत
लुई XVI पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया और 21 जनवरी 1793 को उसे फांसी दे दी गई। इसके कुछ समय बाद रानी मेरी एन्तोएनेत को भी मौत की सजा दी गई।
3.1 आतंक राज
सन् 1793-1794 का समय आतंक का युग कहलाता है। रोबेस्प्येर ने गणतंत्र के शत्रुओं, जैसे कुलीन, पादरी, और असहमत पार्टी सदस्यों को गिरफ्तार कर क्रांतिकारी न्यायालय में मुकदमा चलाया। दोषी पाए जाने पर गिलोटिन से उनका सिर कलम कर दिया जाता।
उसने मजदूरी और कीमतों की अधिकतम सीमा तय की, राशनिंग लागू की, और सफेद आटे पर रोक लगाकर 'समता रोटी' अनिवार्य की। नागरिकों को "सितोयेन" और "सितोयीन" कहकर संबोधित किया गया। चर्चों को बंद कर दफ्तर और बैरक बना दिया गया।
सख्त नीतियों से जनता और समर्थक दोनों परेशान हो गए। जुलाई 1794 में रोबेस्प्येर को दोषी ठहराकर गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया।
3.2 डिरेक्ट्री शासित फ़ांस
जैकोबिन सरकार के पतन के बाद सत्ता संपन्न मध्य वर्ग के हाथ में आई। नए संविधान ने संपत्तिहीन तबके को मताधिकार से वंचित कर दिया और दो विधान परिषदों तथा पाँच सदस्यों वाली कार्यपालिका (डिरेक्ट्री) का गठन किया।
डिरेक्ट्री और परिषदों के बीच झगड़े से राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी, जिससे नेपोलियन बोनापार्ट के उदय का रास्ता साफ हुआ। स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व के आदर्श इन बदलावों के दौरान प्रेरणा बने, जो फ्रांस और यूरोप के राजनीतिक आंदोलनों को प्रभावित करते रहे।
4 क्या महिलाओं के लिए भी क्रांति हुई?
फ्रांसीसी क्रांति में महिलाएँ सक्रिय रहीं। वे सिलाई, कपड़ों की धुलाई, और घरेलू काम करती थीं, लेकिन मजदूरी पुरुषों से कम थी।
महिलाओं ने 60 से अधिक राजनीतिक क्लब बनाए, जिनमें 'सोसाइटी ऑफ रिवॉल्यूशनरी एंड रिपब्लिकन विमेन' प्रमुख था। उन्होंने समान अधिकार, मताधिकार, और असेंबली में प्रतिनिधित्व की माँग की।
क्रांति के दौरान किए गए सुधार
लड़कियों की शिक्षा अनिवार्य की गई।
शादी को स्वैच्छिक बनाया गया और तलाक को कानूनी मान्यता दी गई।
महिलाएं व्यावसायिक प्रशिक्षण लेकर छोटे व्यवसाय चला सकती थीं।
संघर्ष और प्रतिबंध
महिलाओं का संघर्ष जारी रहा, लेकिन आतंक राज के दौरान महिला क्लबों पर प्रतिबंध लग गया। कई महिलाओं को गिरफ्तार किया गया और कुछ को फांसी दे दी गई।
मताधिकार की लड़ाई
महिलाओं का मताधिकार और समानता का आंदोलन 19वीं और 20वीं सदी में भी जारी रहा। अंततः 1946 में फ्रांस की महिलाओं को मताधिकार मिला। यह संघर्ष महिलाओं के अधिकारों की प्रेरणादायक कहानी है।
5 दास प्रथा का उन्मूलन
फ्रांसीसी उपनिवेशों में दास प्रथा का उन्मूलन जैकोबिन शासन के सामाजिक सुधारों में शामिल था। कैरिबियाई उपनिवेशों में श्रम की कमी को पूरा करने के लिए सत्रहवीं शताब्दी में त्रिकोणीय दास-व्यापार शुरू हुआ। फ्रांसीसी सौदागर अफ्रीका से दास खरीदकर उन्हें कैरिबियाई बागानों में बेचते थे। दास श्रम से यूरोपीय बाजारों में चीनी, कॉफी, और नील की माँग पूरी हुई, और बोर्दे व नान्ते जैसे बंदरगाह समृद्ध हुए।
हालाँकि, नैशनल असेंबली ने दास प्रथा पर निर्णय से परहेज किया। सन् 1794 में सभी दासों की मुक्ति का कानून पारित हुआ, लेकिन नेपोलियन ने 10 वर्षों बाद इसे पुनः शुरू कर दिया। दास प्रथा का पूर्ण उन्मूलन 1848 में हुआ।
6 क्रांति और रोज़ाना की जिंदगी
सन् 1789 के बाद फ्रांस में स्वतंत्रता और समानता के आदर्शों ने जीवन के कई पहलुओं को बदला। सेंसरशिप खत्म होने से भाषण और अभिव्यक्ति स्वतंत्रता नैसर्गिक अधिकार बनी।
अखबार, पर्चे, और किताबों की बाढ़ से शहरों से गाँवों तक बदलावों की जानकारी फैली। प्रेस की स्वतंत्रता ने परस्पर विरोधी विचारों को जगह दी। नाटक, संगीत, और जुलूस स्वतंत्रता और न्याय के विचारों को समझने के लोकप्रिय माध्यम बने, जिससे क्रांतिकारी विचार आम जनता तक पहुँचे।