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प्राकृतिक वनस्पति Notes in Hindi Class 11 Geography Chapter-5 Book-2 Bhart Bhautik Paryabaran

प्राकृतिक वनस्पति Notes in Hindi Class 11 Geography Chapter-5 Book-2 Bhart Bhautik Paryabaran


वनों के प्रकार

(i) उष्ण कटिबंधीय सदाबहार एवं अर्थ-सदाबहार वन

(ii) उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन

(iii) उष्ण कटिबंधीय काँटेदार वन

(iv) पर्वतीय वन

(v) वेलांचली व अनूप वन


1. उष्ण कटिबंधीय सदाबहार और अर्ध-सदाबहार वन

उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन भारत में मुख्य रूप से पश्चिमी घाट, उत्तर-पूर्वी पहाड़ियाँ, और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में पाए जाते हैं। ये वन उन क्षेत्रों में होते हैं जहाँ वार्षिक वर्षा 200 सेंटीमीटर से अधिक और औसत तापमान 22°C से ऊपर होता है।

इन वनों की खासियत है

  • उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन हमेशा हरे-भरे रहते हैं और इनके वृक्षों की ऊंचाई 60 मीटर या उससे अधिक हो सकती है। 
  • इन वनों में पेड़ों की कई परतें होती हैं, जिनमें नीचे झाड़ियाँ और बेलें, उनके ऊपर छोटे पेड़ और सबसे ऊपर ऊंचे वृक्ष शामिल होते हैं। 
  • इन वनों की मुख्य वृक्ष प्रजातियाँ रोजवुड, महोगनी, ऐनी और एबनी हैं।
  • अर्ध-सदाबहार वन इन्हीं क्षेत्रों में कम वर्षा वाले हिस्सों में पाए जाते हैं। ये सदाबहार और पर्णपाती वनों का मिश्रण होते हैं। इनमें मुख्य पेड़ साइडर, होलक, और कैल होते हैं।

अंग्रेजों द्वारा वनों का दोहन

  • अंग्रेजों ने भारत में वनों की आर्थिक उपयोगिता समझी और इनका बड़े पैमाने पर दोहन किया।
  • अंग्रेजों ने रेल की पटरियों के निर्माण के लिए ओक के स्थान पर चीड़ के पेड़ लगाए इसके अलावा, चाय, कॉफी और रबड़ के बागानों के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों को साफ किया गया। 
  • साथ ही, इमारतों के निर्माण में लकड़ी के बढ़ते उपयोग के कारण वनों का तेजी से दोहन हुआ।
  • वनों की संरचना और क्षेत्र इस शोषण के कारण बदलते गए, और संरक्षण की बजाय व्यावसायिक उपयोग पर ध्यान दिया गया।


2. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन

उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन, जिन्हें मानसून वन भी कहा जाता है, भारत में सबसे अधिक पाए जाते हैं। ये वन 70 से 200 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में स्थित होते हैं।

वनों के प्रकार

उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों को जल उपलब्धता के आधार पर दो प्रकारों में बांटा गया है:

1. आर्द्र पर्णपाती वन

  • स्थान: ये वन उन इलाकों में होते हैं जहां वर्षा 100-200 सेंटीमीटर होती है। मुख्य स्थानों में उत्तर-पूर्वी राज्य, हिमालय के निचले इलाके, पश्चिमी घाट के पूर्वी ढाल और ओडिशा शामिल हैं।
  • मुख्य पेड़: सागवान, साल, शीशम, महुआ, आँवला, चंदन, और कुसुम।

2. शुष्क पर्णपाती वन

  • स्थान: ये वन 70-100 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों, जैसे प्रायद्वीप, उत्तर प्रदेश, और बिहार में पाए जाते हैं।
  • मुख्य पेड़: तेंदु, पलास, अमलतास, बेल, खैर, और अक्सलवुड।

विशेषताएँ

  • शुष्क मौसम में पेड़ों के पत्ते झड़ जाते हैं, और केवल घास व नग्न पेड़ दिखते हैं।
  • राजस्थान के पश्चिमी और दक्षिणी भागों में कम वर्षा और अधिक पशु चारण के कारण वनस्पति बहुत कम हो गई है।


3. उष्ण कटिबंधीय कांटेदार बन

  • उष्ण कटिबंधीय काँटेदार वन उन इलाकों में पाए जाते हैं, जहां वर्षा 50 सेंटीमीटर से कम होती है। इनमें घास और झाड़ियाँ मुख्य रूप से होती हैं। 
  • ये वन दक्षिण-पश्चिमी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, और उत्तर प्रदेश के शुष्क क्षेत्रों में पाए जाते हैं। 
  • इन वनों के पौधे ज्यादातर समय पत्तों से रहित रहते हैं और झाड़ियों जैसे दिखते हैं। 
  • मुख्य पेड़ प्रजातियों में बबूल, बेर, खजूर, खैर, नीम, खेजड़ी और पलास शामिल हैं। इन पेड़ों के नीचे लगभग 2 मीटर लंबी घास उगती है।


4. पर्वतीय वन

पर्वतीय क्षेत्रों में ऊँचाई बढ़ने के साथ तापमान और वनस्पति में बदलाव होता है। इन वनों को दो भागों में बाँटा जा सकता है:

1. उत्तरी पर्वतीय वन

हिमालय में वनस्पति ऊँचाई के अनुसार बदलती है:

  • 1,000-2,000 मीटर: शीतोष्ण कटिबंधीय वन, जहाँ ओक और चेस्टनट जैसे चौड़े पत्तों वाले पेड़ पाए जाते हैं।
  • 1,500-1,750 मीटर: व्यापारिक उपयोग वाले चौड़ के वन।
  • 2,225-3,048 मीटर: बल्यूपाइन और स्प्रूस के पेड़।
  • 3,000-4,000 मीटर: एल्पाइन वन, जिसमें सिल्वर फर, जूनिपर, पाइन और रोडोडेन्ड्रॉन पाए जाते हैं।
  • इस ऊँचाई पर चरागाह भी मिलते हैं, जिनका उपयोग गुज्जर, बकरवाल, गड्डी और भुटिया समुदाय पशुओं के लिए करते हैं।
  • शुष्क उत्तरी ढाल की तुलना में दक्षिणी ढाल पर अधिक वनस्पति होती है।
  • अधिक ऊँचाई पर मॉस और लाइकन जैसे दुण्डा वनस्पति पाई जाती है।

2. दक्षिणी पर्वतीय वन

ये वन मुख्यतः प्रायद्वीप के तीन क्षेत्रों में मिलते हैं:

1. पश्चिमी घाट

2. विंध्याचल पर्वत

3. नीलगिरी पर्वत श्रृंखलाएँ

विशेषताएँ:

  • ऊँचाई 1,500 मीटर तक: यहाँ शीतोष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय वनस्पति होती है।
  • शोलास: नीलगिरी, अन्नामलाई, और पालनी पहाड़ियों में पाए जाने वाले शीतोष्ण वनों को 'शोलास' कहा जाता है।

महत्त्वपूर्ण पेड़:

  • मगनोलिया, लैरेल, सिनकोना और वैटल।
  • ये वन सतपुड़ा और मैकाल श्रेणियों में भी पाए जाते हैं।


5. वेलांचली और अनूप वन 

भारत में आर्द्रभूमि के विभिन्न प्रकार के आवासों को शामिल करते हैं, जिनमें चावल की खेती और जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र शामिल हैं। भारत में लगभग 39 लाख हेक्टेयर आर्द्रभूमि है, जिसमें चिल्का झील (ओडिशा) और केउलादेव राष्ट्रीय उद्यान (भरतपुर, राजस्थान) जैसे क्षेत्र रामसर अधिवेशन के तहत संरक्षित हैं।

भारत की आर्द्रभूमियों को आठ वर्गों में बांटा गया है:

1. दक्षिण भारत के जलाशय और दक्षिण-पश्चिम तट के लैगून।

2. राजस्थान, गुजरात, और कच्छ की खारे पानी की आर्द्रभूमि।

3. मध्य प्रदेश और राजस्थान में ताजे पानी की झीलें और जलाशय।

4. पूर्वी तट के डेल्टाई क्षेत्रों और लैगून (जैसे चिल्का झील)।

5. गंगा के मैदान में ताजे पानी के क्षेत्र।

6. ब्रह्मपुत्र घाटी और हिमालय के आर्द्र क्षेत्र।

7. कश्मीर और लद्दाख की झीलें और नदियाँ।

8. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के मैंग्रोव वन।

मैंग्रोव वन

  • मैंग्रोव वन खारे पानी, ज्वारनदमुख, और पंक क्षेत्रों में पाए जाते हैं। 
  • ये वन पक्षियों और अन्य जीवों को आश्रय प्रदान करते हैं। 
  • भारत में 6,740 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र मैंग्रोव वनों से घिरा है, जो वैश्विक मैंग्रोव क्षेत्र का 7% है। 
  • ये अंडमान और निकोबार द्वीप, सुंदरवन (पश्चिम बंगाल), और महानदी, गोदावरी व कृष्णा नदियों के डेल्टा में सबसे ज्यादा विकसित हैं। 
  • बढ़ते अतिक्रमण और मानव गतिविधियों के कारण इनका संरक्षण अत्यंत जरूरी है।


वन संरक्षण 

वन संरक्षण पर्यावरण और मानव जीवन के लिए बेहद जरूरी है, क्योंकि वन हमें कई आर्थिक और सामाजिक लाभ प्रदान करते हैं। इसलिए, भारत सरकार ने 1952 में वन संरक्षण नीति लागू की, जिसे 1988 में संशोधित किया गया। इस नई नीति का उद्देश्य सतत्‌पोषणीय वन प्रबंधन है, जो वनों के संरक्षण और विकास के साथ स्थानीय लोगों की जरूरतों को पूरा करने पर जोर देता है।

वन संरक्षण नीति के मुख्य उद्देश्य:

  • देश के 33% क्षेत्र में वन लगाना (जो वर्तमान से 6% अधिक है)।
  • पर्यावरण संतुलन बनाए रखना और असंतुलित क्षेत्रों में वृक्षारोपण करना।
  • प्राकृतिक धरोहर, जैव विविधता और आनुवांशिक पूल का संरक्षण।
  • मृदा कटाव, मरुस्थलीकरण, बाढ़, और सूखे को रोकना।
  • निम्नीकृत भूमि पर सामाजिक वानिकी और वनरोपण करना।
  • वनों की उत्पादकता बढ़ाना और ग्रामीण व जनजातीय लोगों को ईंधन, चारा, लकड़ी और भोजन उपलब्ध कराना।
  • लकड़ी के विकल्पों को बढ़ावा देना और पेड़ काटने को रोकने के लिए जन-आंदोलन चलाना, जिसमें महिलाओं की भागीदारी शामिल हो।

वन संरक्षण के तहत उठाए गए कदम:

  • वृक्षारोपण और सामाजिक वानिकी को बढ़ावा देना।
  • वनों की कटाई पर रोक और जन-जागरूकता अभियान।
  • वनों पर दबाव कम करने के लिए वैकल्पिक संसाधनों का उपयोग।
  • पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए योजनाबद्ध तरीके से वन प्रबंधन।


सामाजिक वानिकी

सामाजिक वानिकी का मतलब है वनों का प्रबंधन और बंजर भूमि पर पेड़ लगाकर पर्यावरण, समाज, और ग्रामीण विकास में मदद करना। राष्ट्रीय कृषि आयोग (1976-79) ने इसे तीन भागों में बांटा है:

1. शहरी वानिकी

  • शहरों और उनके आसपास पेड़ लगाना, जैसे हरित पट्टी, पार्क, सड़कों के किनारे, और औद्योगिक क्षेत्रों में।

2. ग्रामीण वानिकी: इसमें दो हिस्से होते हैं:

  • कृषि वानिकी: खेतों और बंजर भूमि पर पेड़ और फसलें एक साथ उगाना, जिससे लकड़ी, चारा, ईंधन, फल, और अनाज का उत्पादन हो सके।
  • समुदाय वानिकी: सार्वजनिक जगहों जैसे गाँव के चरागाह, मंदिर की भूमि, सड़कों, नहरों और स्कूलों में पेड़ लगाना। इसका उद्देश्य पूरे समुदाय को फायदा पहुंचाना है।
  • इस योजना का एक खास उद्देश्य भूमिहीन लोगों को वृक्षारोपण में शामिल करना और उन्हें भी वे लाभ देना है, जो आमतौर पर जमीन मालिकों को मिलते हैं।


फार्म वानिकी

  • फार्म वानिकी का मतलब है कि किसान अपने खेतों में लाभकारी और उपयोगी पेड़ लगाते हैं। 
  • इसके लिए वन विभाग किसानों, खासकर छोटे और मध्यम किसानों, को मुफ्त में पौधे देता है। 
  • इस योजना के तहत खेतों की मेड़ों, चरागाहों, घास के मैदानों, घर के आसपास की खाली जमीन और पशुओं के बाड़ों में पेड़ लगाए जाते हैं।


वन्य प्राणी

भारत वन्य प्राणियों और जैव विविधता की एक अनमोल धरोहर है। विश्व के 4-5% पौधों और प्राणियों की प्रजातियाँ भारत में पाई जाती हैं। यह विविधता यहाँ के विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्रों के कारण संभव है।

जैव विविधता पर खतरे

  • समय के साथ मानव गतिविधियों ने पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित किया है, जिससे कई प्रजातियाँ लुप्त होने के कगार पर पहुँच गई हैं।

वन्य प्राणियों की संख्या कम होने के कारण:

  • विकास: वनों का बड़े पैमाने पर दोहन।
  • जमीन की सफाई: खेती, बस्तियाँ, सड़कों और खदानों के लिए जंगलों को साफ करना।
  • स्थानीय उपयोग: चारे, ईंधन और लकड़ी के लिए पेड़ों की कटाई।
  • चरागाहों की खोज: पालतू पशुओं के लिए जंगलों का विनाश।
  • शिकार: राजाओं और संपन्न वर्ग ने शिकार को खेल बना दिया।
  • जंगलों में आग: आग से वन और वन्य प्राणियों का नाश।

वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए सरकार के कदम

  • राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य: वन्यजीवों के लिए संरक्षित क्षेत्र।
  • पारिस्थितिक पर्यटन (Eco-tourism): पर्यटन को बढ़ावा देकर संरक्षण।
  • कानूनी उपाय: वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम (1972) लागू किया गया।
  • वन्यजीव परियोजनाएँ: बाघ परियोजना, गैंडा संरक्षण परियोजना आदि।
  • जागरूकता अभियान: संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना।


भारत में वन्य प्राणी संरक्षण

भारत में वन्य प्राणियों के संरक्षण की परंपरा बहुत पुरानी है। पंचतंत्र और जंगल बुक जैसी कहानियाँ इस प्रेम का उदाहरण हैं, जो युवाओं को प्रेरित करती हैं।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972

1972 में पास हुआ यह अधिनियम वन्य प्राणियों और उनके आवास की सुरक्षा के लिए कानूनी ढाँचा प्रदान करता है। इसके मुख्य उद्देश्य हैं:

1. संकटग्रस्त प्रजातियों को संरक्षण देना।

2. नेशनल पार्क और अभयारण्यों जैसे संरक्षित क्षेत्रों को कानूनी सहायता प्रदान करना।

1991 में इस अधिनियम को संशोधित कर कठोर सजा का प्रावधान जोड़ा गया। इसमें कुछ पौधों और प्रजातियों के संरक्षण का भी प्रावधान है।

संरक्षित क्षेत्र

  • भारत में 103 नेशनल पार्क और 563 वन्यजीव अभयारण्य हैं, जो जैव विविधता की सुरक्षा के लिए समर्पित हैं।

महत्त्वपूर्ण परियोजनाएँ

  • प्रोजेक्ट टाइगर (1973): प्रोजेक्ट टाइगर बाघों की संख्या बढ़ाने और उनके आवास की रक्षा के लिए शुरू हुआ, जो पहले 9 क्षेत्रों में लागू हुआ और अब 50 बाघ अभयारण्यों तक फैल चुका है। 2006 में 1,411 बाघ थे, जो 2020 में बढ़कर 2,967 हो गए, जो वैश्विक बाघ जनसंख्या का 70% है। यह योजना न केवल बाघों बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता पर केंद्रित है।
  • प्रोजेक्ट एलीफेंट (1992): प्रोजेक्ट एलीफेंटहाथियों और उनके आवास की सुरक्षा के लिए शुरू की गई। इसके अलावा, मगरमच्छ प्रजनन, हगुल, और हिमालय कस्तूरी मृग जैसी परियोजनाएँ विभिन्न प्रजातियों और उनके आवासों के संरक्षण पर जोर देती हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: अंतरराष्ट्रीय सहयोग में,भारत ने यूनेस्को की मानव और जीवमंडल योजना के तहत वन्यजीव संरक्षण के बड़े कदम उठाए हैं।

जीव मंडल निचय (आरक्षित क्षेत्र)

  • जीव मंडल निचय वे विशेष क्षेत्र हैं जो भौमिक और तटीय पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए बनाए गए हैं। इन्हें यूनेस्को के "मानव और जीव मंडल कार्यक्रम" (MAB) के तहत मान्यता प्राप्त है।
  • इनका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण, जीव-जंतु, और मनुष्यों के बीच संतुलन बनाए रखना है।
  • भारत में 18 जीव मंडल निचय हैं, जिनमें से 12 को यूनेस्को द्वारा "जीव मंडल निचय विश्व नेटवर्क" में मान्यता मिली है।

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