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जलवायु Notes in Hindi Class 11 Geography Chapter-4 Book-2 Bhart Bhautik Paryabaran

जलवायु Notes in Hindi Class 11 Geography Chapter-4 Book-2 Bhart Bhautik Paryabaran


मानसून जलवायु में एकरूपता एवं विविधता

भारत की जलवायु मुख्य रूप से मानसूनी है, जो पूरे देश में मौसम की एकता का आधार बनाती है। हालांकि, इसमें क्षेत्रीय भिन्नताएँ स्पष्ट हैं, जो तापमान, वर्षा और पवनों में अंतर के रूप में उभरती हैं।

  • तापमान में विविधता: राजस्थान में गर्मियों में तापमान 50°C तक पहुँच सकता है, जबकि लद्दाख की सर्दियों में यह -45°C तक गिर सकता है। तटीय क्षेत्रों में तापमान का अंतर मामूली रहता है, लेकिन मरुस्थलीय क्षेत्रों में यह दिन-रात में काफी भिन्न होता है।
  • वर्षा में विविधता: कहीं चेरापूंजी में 1100 सेमी तक बारिश होती है, तो कहीं राजस्थान के कुछ हिस्सों में 10 सेमी से भी कम।
  • मानसून का प्रभाव: मानसून भारत की जलवायु का मुख्य आधार है, लेकिन इसकी क्षेत्रीय विविधताएँ इसे जटिल और अद्वितीय बनाती हैं।


भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

  • अक्षांश: कर्क रेखा के भारत से गुजरने के कारण देश के उत्तरी और दक्षिणी भागों की जलवायु में अंतर है। दक्षिण भारत उष्ण कटिबंध में स्थित होने के कारण स्थिर और गर्म जलवायु बनाए रखता है, जबकि उत्तर भारत में ठंडी सर्दियाँ और गर्म ग्रीष्मकाल होते हैं।
  • हिमालय पर्वत: हिमालय पर्वत उत्तरी भारत में जलवायु विभाजक की भूमिका निभाता है। यह ऊँचे पर्वत ठंडी उत्तरी हवाओं को रोककर उपमहाद्वीप को सुरक्षा प्रदान करता है। हिमालय मानसूनी पवनों को रोककर वर्षा का कारण बनता है और आर-पार बहने वाली नदियाँ बनाता है।
  • जल और स्थल का वितरण: समुद्र से घिरे होने के कारण तटीय क्षेत्रों में तापमान स्थिर रहता है। भूमि और समुद्र की तापन दर का अंतर मानसून की व्यवस्था का आधार है, जो कृषि और जल आपूर्ति के लिए महत्वपूर्ण है।
  • समुद्र तट से दूरी: तटीय क्षेत्रों का मौसम स्थिर और सम होता है, जैसे मुंबई, जबकि आंतरिक क्षेत्रों में तापमान में तीव्र बदलाव होता है, जैसे दिल्ली और कानपुर।
  • समुद्र तल से ऊँचाई: ऊँचाई के साथ तापमान में गिरावट होती है। उदाहरण के लिए, दार्जिलिंग में ठंडा मौसम होता है, जबकि समान अक्षांश पर स्थित आगरा का मौसम गर्म रहता है।
  • उच्चावच (पर्वत और ढाल): पवनाभिमुखी ढाल, जैसे पश्चिमी घाट, भारी वर्षा प्राप्त करते हैं, जबकि पवनविमुखी ढाल, जैसे दक्षिणी पठार, कम वर्षा पाते हैं। यह जलवायु पर भौगोलिक संरचना के प्रभाव को दर्शाता है।

भारतीय मानसून की प्रकृति

भारतीय मानसून हमारी जलवायु का मुख्य हिस्सा है, लेकिन इसे पूरी तरह से समझना अब भी एक चुनौती है। वैज्ञानिकों ने इसे समझने के लिए कई प्रयास किए हैं, लेकिन सटीक सिद्धांत अब तक नहीं बन पाया है। हाल के वर्षों में इसे वैश्विक दृष्टिकोण से देखने पर नई जानकारियाँ मिली हैं।

मानसून का आरंभ और प्रगति:

  • मानसून भारत के दक्षिणी तट (केरल) पर जून के आसपास प्रवेश करता है।
  • यह धीरे-धीरे उत्तर और पश्चिम की ओर बढ़ता है, पूरे देश में वर्षा लाता है।


मानसून का आरंभ

1. मानसून का मुख्य कारण

  • भारतीय मानसून स्थल और समुद्र के विभेदी तापन के कारण उत्पन्न होता है। गर्मी के महीनों में यह प्रक्रिया मानसूनी पवनों को भारत की ओर आकर्षित करती है।

2. मानसून बनने की प्रक्रिया

  • अप्रैल और मई में, कर्क रेखा पर सूर्य की सीधी किरणों के कारण उत्तर-पश्चिम भारत में तेज गर्मी से निम्न दबाव क्षेत्र बनता है।
  • हिंद महासागर ठंडा रहता है, जिससे विषुवत रेखा के पास से पवनें उत्तर की ओर खिंचती हैं।
  • ये दक्षिण-पूर्वी सन्मार्गी पवनें भूमध्य रेखा को पार कर दक्षिण-पश्चिम मानसून में बदल जाती हैं।
  • ये आर्द्र और गर्म पवनें भारत में भारी वर्षा लाती हैं।
  • मानसून के "प्रस्फोट" में पश्चिमी जेट प्रवाह का हिमालय से खिसकना और दक्षिण भारत में पूर्वी जेट प्रवाह का विकास महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

3. भारत में मानसून का प्रवेश

  • दक्षिण-पश्चिम मानसून जून के पहले हफ्ते में केरल के तट पर प्रवेश करता है।
  • यह तेजी से आगे बढ़ते हुए 10-13 जून तक मुंबई और कोलकाता तक पहुँचता है।
  • मध्य जुलाई तक मानसून पूरे भारत को कवर कर लेता है, जिससे देशभर में व्यापक वर्षा होती है।


मानसून विच्छेद (Break in Monsoon)

जब दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान कुछ दिनों तक बारिश के बाद अचानक एक या दो सप्ताह या उससे अधिक समय तक बारिश रुक जाती है, इसे मानसून विच्छेद कहते हैं। यह अलग-अलग जगहों पर अलग कारणों से होता है:

  • उत्तर भारत: बारिश में रुकावट तब होती है जब उष्णकटिबंधीय चक्रवात (Cyclones) कम हो जाते हैं या अंत उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) अपनी स्थिति बदल लेता है।
  • पश्चिमी तट: यहाँ मानसून विच्छेद तब होता है जब समुद्र से आने वाली नमी वाली हवाएँ तट के समानांतर बहने लगती हैं।
  • राजस्थान: यहाँ मानसून रुकता है जब गर्म हवा के कारण निचले स्तर पर तापमान उल्टा हो जाता है, जिससे नमी वाली हवाएँ ऊपर नहीं उठ पातीं और बारिश नहीं होती।


मानसून का निवर्तन (Retreat of Monsoon)

जब मानसून की हवाएँ पीछे हटने लगती हैं, इसे मानसून का निवर्तन कहते हैं।

  • कब शुरू होता है? : सितंबर की शुरुआत में उत्तर-पश्चिम भारत से मानसून लौटने लगता है।
  • कब खत्म होता है? : मध्य अक्टूबर तक यह दक्षिण भारत को छोड़कर पूरे भारत से हट जाता है।
  • तमिलनाडु में बारिश: लौटती हुई हवाएँ बंगाल की खाड़ी से नमी लेकर उत्तर-पूर्वी मानसून बन जाती हैं, जो तमिलनाडु में बारिश करती हैं।


ऋतुओं की लय (Seasonal Cycle)

भारत की जलवायु को चार मुख्य ऋतुओं में बांटा जाता है:

शीत ऋतु: विशेषताएँ और प्रभाव

1. तापमान

  • शीत ऋतु भारत में नवंबर के मध्य से फरवरी तक रहती है।
  • उत्तर भारत में जनवरी और फरवरी सबसे ठंडे महीने होते हैं, जहाँ औसत तापमान 21°C से कम रहता है।
  • पंजाब और राजस्थान में तापमान कभी-कभी 0°C तक गिर सकता है, जबकि हिमालय क्षेत्र में बर्फबारी ठंडी हवाओं का प्रमुख कारण है।
  • दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों में समुद्र के प्रभाव से तापमान स्थिर रहता है, जैसे तिरुवनंतपुरम में औसत तापमान 31°C रहता है।

2. पवन और वायुदाब

  • उत्तरी मैदानों में उच्च वायुदाब क्षेत्र बनता है, जिससे पवनें उत्तर-पश्चिम से हिंद महासागर की ओर बहती हैं।
  • गंगा घाटी में ये पवनें पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी दिशा में चलती हैं, जबकि बंगाल की खाड़ी में उत्तर-पूर्वी दिशा में मुड़ जाती हैं।

3. वर्षा

शीत ऋतु में अधिकांश भारत में वर्षा नहीं होती, लेकिन कुछ क्षेत्रों में अपवाद हैं:

  • उत्तर-पश्चिम भारत: भूमध्य सागर से आने वाले चक्रवात हल्की बारिश और हिमालय में हिमपात लाते हैं, जो रबी की फसलों के लिए लाभकारी है।
  • उत्तर-पूर्व भारत: अरुणाचल प्रदेश और असम में हल्की बारिश होती है।
  • दक्षिण भारत: उत्तर-पूर्वी मानसून के कारण तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में बारिश होती है।


ग्रीष्म ऋतु: विशेषताएँ और प्रभाव

1. तापमान

  • ग्रीष्म ऋतु भारत में मार्च से जून तक रहती है।
  • उत्तर भारत में मार्च से तापमान बढ़ने लगता है और अप्रैल-मई में यह 38°C से 48°C तक पहुँच सकता है। राजस्थान और पंजाब जैसे क्षेत्र सबसे अधिक गर्म रहते हैं।
  • दक्षिण भारत में समुद्र के प्रभाव के कारण तापमान अपेक्षाकृत हल्का (26°C से 32°C) रहता है, जबकि पश्चिमी घाट की पहाड़ियों में यह 25°C से कम हो सकता है।
  • तटीय क्षेत्रों में तापमान स्थिर रहता है, क्योंकि समताप रेखाएँ तट के समानांतर होती हैं।

2. वायुदाब और पवनें

  • ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी भारत में वायुदाब घटने से थार मरुस्थल से लेकर बिहार और छत्तीसगढ़ तक निम्न वायुदाब क्षेत्र बनता है।
  • इस दबाव में कमी दक्षिण-पश्चिमी पवनों को आकर्षित करती है, जो मानसून के आगमन का संकेत देती हैं। जून तक ये पवनें बारिश का मौसम शुरू कर देती हैं।

3. स्थानीय घटनाएँ

  • लू: मई-जून में उत्तर भारत में गर्म और शुष्क हवाएँ चलती हैं।
  • धूल भरी आँधियाँ: पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में शाम को चलने वाली धूल भरी आँधियाँ हल्की बारिश और ठंडी हवाएँ लाती हैं।
  • काल बैसाखी: बंगाल और बिहार में तेज हवाओं, बारिश और कभी-कभी ओलों के साथ स्थानीय तूफान आते हैं।


दक्षिण-पश्चिमी मानसून: वर्षा ऋतु की विशेषताएँ

  • मानसून का महत्व: दक्षिण-पश्चिमी मानसून भारत की सबसे महत्वपूर्ण ऋतु है, जो जून से जुलाई तक देशभर में बारिश लाकर कृषि और जल आपूर्ति के लिए अहम भूमिका निभाती है।
  • मानसून की प्रक्रिया: मई में उत्तर-पश्चिम भारत में उच्च तापमान से निम्न वायुदाब क्षेत्र बनता है, जो हिंद महासागर से पवनों को आकर्षित करता है।
  • दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनें भूमध्य रेखा पार कर अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करती हैं।
  • गर्म समुद्र से गुजरने पर ये पवनें नमी से भर जाती हैं और दक्षिण-पश्चिमी दिशा में मुड़ जाती हैं।
  • मानसून का आगमन "प्रस्फोट" के रूप में होता है, जिसमें गर्जन और बिजली के साथ बारिश होती है।


मानसून की शाखाएँ

  • अरब सागर की शाखा: केरल, कर्नाटक, गोवा, और महाराष्ट्र जैसे तटीय क्षेत्रों में भारी बारिश करती है।
  • बंगाल की खाड़ी की शाखा: बंगाल, उत्तर-पूर्व भारत और हिमालय की तलहटी में व्यापक वर्षा लाती है।

मानसून का फैलाव

  • मानसून जून के पहले सप्ताह में केरल से शुरू होकर जुलाई तक पूरे भारत में फैल जाता है।
  • इसके साथ दिन के तापमान में 5°C से 8°C तक की गिरावट आती है, जो गर्मी से राहत प्रदान करता है।


अरब सागर की मानसून पवनें 

अरब सागर से आने वाली मानसूनी पवनें भारत में तीन शाखाओं में बारिश करती हैं:

  • पश्चिमी घाट की शाखा: पश्चिमी घाट की ढलानों पर 250-400 सेमी तक भारी बारिश करती है। घाट पार करने के बाद वृष्टि-छाया क्षेत्र में कम बारिश होती है, जैसे पुणे और बंगलोर।
  • नर्मदा-तापी घाटी की शाखा: नर्मदा और तापी घाटियों में 15 सेमी तक बारिश करती है। गंगा मैदान में बंगाल की खाड़ी की शाखा से मिलकर बारिश को बढ़ाती है।
  • सौराष्ट्र-कच्छ शाखा: सौराष्ट्र और कच्छ में कम बारिश होती है। अरावली के साथ पंजाब-हरियाणा में बढ़ती है और हिमालय के क्षेत्रों, विशेषकर धर्मशाला, में भारी बारिश लाती है।


बंगाल की खाड़ी की मानसून पवनें

बंगाल की खाड़ी की मानसून पवनें भारत के पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भागों में मुख्य वर्षा लाती हैं।

दिशा और यात्रा:

  • म्यांमार और बांग्लादेश के तटों से भारत में प्रवेश करती हैं।
  • पहली शाखा गंगा के मैदान से पंजाब तक जाती है।
  • दूसरी शाखा ब्रह्मपुत्र घाटी व उत्तर-पूर्व में वर्षा करती है।
  • मेघालय की खासी-गारो पहाड़ियों से टकराकर मॉसिनराम में भारी बारिश होती है।

तमिलनाडु में कम बारिश के कारण:

  • पवनें तट के समानांतर चलती हैं।
  • यह क्षेत्र दक्षिण-पश्चिम मानसून की वृष्टि-छाया में आता है।


मानसून के निवर्तन की ऋतु

अक्तूबर और नवंबर को मानसून के लौटने (निवर्तन) की ऋतु कहा जाता है। इस समय दक्षिण-पश्चिमी मानसून धीरे-धीरे कमजोर पड़ता है, और भारत के विभिन्न हिस्सों में मौसमी बदलाव आते हैं।

1. मानसून का लौटना

  • सितंबर में सूर्य के दक्षिणायन होने के साथ गंगा के मैदान का निम्न वायुदाब क्षेत्र दक्षिण की ओर खिसकने लगता है, जिससे मानसून राजस्थान से लौटना शुरू करता है। 
  • अक्तूबर तक मानसून पश्चिमी गंगा मैदान, गुजरात और मध्य भारत से वापस लौटते हुए बंगाल की खाड़ी के उत्तरी हिस्सों में पहुँच जाता है। 
  • नवंबर-दिसंबर के दौरान यह तमिलनाडु और कर्नाटक की ओर बढ़ता है और दिसंबर के मध्य तक प्रायद्वीप से पूरी तरह हट जाता है।

2. मौसम के लक्षण

  • अक्तूबर में मानसून की वापसी के दौरान आकाश साफ रहता है, लेकिन तापमान बढ़ने से गर्म और आर्द्र मौसम का अनुभव होता है, जिसे 'कार्तिक मास की ऊष्मा' कहा जाता है। 
  • अक्तूबर के अंत तक उत्तरी भारत में तापमान तेजी से गिरने लगता है, जबकि प्रायद्वीप के पूर्वी भागों, जैसे तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश, में उत्तर-पूर्वी मानसून के कारण बारिश होती है।

3. चक्रवातीय वर्षा

  • अक्तूबर-नवंबर के दौरान बंगाल की खाड़ी में चक्रवातीय अवदाब बनते हैं, जो दक्षिणी प्रायद्वीप के पूर्वी तट, विशेष रूप से कोरोमंडल तट, पर भारी बारिश और विनाशकारी प्रभाव लाते हैं। 
  • ये तूफान गोदावरी, कृष्णा और अन्य नदियों के डेल्टा क्षेत्रों के साथ-साथ पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश और म्यांमार के तटीय क्षेत्रों को भी प्रभावित करते हैं। 
  • वहीं, अरब सागर में चक्रवात अपेक्षाकृत कम बनते हैं और इनका प्रभाव सीमित रहता है।


भारत की परंपरागत ऋतुएँ

भारत में छः ऋतुएँ (Six Seasons in Indian Tradition)

भारत में प्राचीन परंपरा के अनुसार, वर्ष को दो-दो महीनों के आधार पर छः ऋतुओं में बाँटा गया है।

  • उत्तर और मध्य भारत: यहाँ लोग अपने अनुभव और पुराने ज्ञान के आधार पर इन ऋतुओं का पालन करते हैं।
  • दक्षिण भारत: यहाँ की ऋतुएँ उत्तर और मध्य भारत से थोड़ी अलग होती हैं।


वर्षा का वितरण 

भारत में औसत वार्षिक वर्षा लगभग 125 सेंटीमीटर होती है, लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर इसमें काफी भिन्नताएँ हैं। आइए इसे सरलता से समझें:

1. अधिक वर्षा वाले क्षेत्र (200 सेमी से अधिक)

  • भारत में भारी वर्षा वाले प्रमुख स्थानों में पश्चिमी तट और पश्चिमी घाट, उत्तर-पूर्व का उप-हिमालयी क्षेत्र (ब्रह्मपुत्र घाटी), और मेघालय की खासी व जयंतिया पहाड़ियाँ शामिल हैं। 
  • विशेष रूप से, मेघालय में स्थित मॉसिनराम और चेरापूंजी दुनिया के सबसे अधिक वर्षा वाले स्थानों के रूप में प्रसिद्ध हैं, जहाँ वार्षिक वर्षा की मात्रा विश्व में सबसे ज्यादा दर्ज की जाती है।

2. मध्यम वर्षा वाले क्षेत्र (100-200 सेमी)

  • भारत में मध्यम वर्षा वाले क्षेत्रों में गुजरात का दक्षिणी भाग और पूर्वी तमिलनाडु शामिल हैं। इसके अलावा, झारखंड, ओडिशा, बिहार और पूर्वी मध्य प्रदेश भी मध्यम मात्रा में वर्षा का अनुभव करते हैं। 
  • उप-हिमालयी गंगा के उत्तरी मैदान, कछार घाटी और मणिपुर भी इस श्रेणी में आते हैं, जहाँ वर्षा की मात्रा इन क्षेत्रों की कृषि और पारिस्थितिकी को बनाए रखने के लिए पर्याप्त होती है।

3. कम वर्षा वाले क्षेत्र (50-100 सेमी)

  • भारत में कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा जैसे स्थान शामिल हैं। इसके अलावा, पूर्वी राजस्थान, गुजरात और पंजाब के सूखे इलाके भी इस श्रेणी में आते हैं। 
  • दक्कन का पठार भी कम वर्षा वाले क्षेत्रों में शामिल है, जहाँ वर्षा की कमी के कारण सूखा और जल संकट की समस्या अधिक देखने को मिलती है।

4. बहुत कम वर्षा वाले क्षेत्र (50 सेमी से कम)

  • भारत में अत्यधिक कम वर्षा वाले क्षेत्रों में लद्दाख और पश्चिमी राजस्थान शामिल हैं, जो शुष्क जलवायु के लिए जाने जाते हैं। इसके अलावा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र के कुछ हिस्से भी ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ वर्षा बेहद कम होती है। 
  • ये क्षेत्र अक्सर सूखा प्रभावित होते हैं, जिससे यहाँ की कृषि और जल संसाधनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

6. हिमपात

  • हिमपात केवल हिमालयी क्षेत्रों तक सीमित रहता है।


मानसून और भारत का आर्थिक जीवन

  • कृषि पर निर्भरता: भारत की 64% जनसंख्या खेती पर निर्भर है, जो मुख्यतः दक्षिण-पश्चिम मानसून पर आधारित है।
  • सालभर खेती: हिमालय को छोड़कर पूरे भारत में गर्मी रहती है, जिससे सालभर खेती संभव है।
  • फसल विविधता: मानसून की अलग-अलग विशेषताएँ विभिन्न प्रकार की फसलों को उगाने में मदद करती हैं।
  • सूखा और बाढ़: बारिश की अनियमितता से कुछ क्षेत्रों में सूखा या बाढ़ की समस्या होती है।
  • वर्षा का महत्व: समय पर और पर्याप्त बारिश से खेती अच्छी होती है, लेकिन जहाँ सिंचाई के साधन नहीं हैं, वहाँ कम बारिश से नुकसान होता है।
  • मृदा क्षरण: मानसून की तेज बारिश से मिट्टी कटने की समस्या बढ़ जाती है।
  • रबी फसलों के लिए लाभकारी: उत्तर भारत में सर्दियों की बारिश रबी फसलों के लिए फायदेमंद है।
  • जीवनशैली पर प्रभाव: भारत की जलवायु विविधता भोजन, कपड़े और घरों में भी भिन्नता लाती है।


भूमंडलीय तापन

जलवायु में परिवर्तन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन आजकल यह तेजी से हो रहा है, और इसके कई कारण हैं। वैज्ञानिक साक्ष्य बताते हैं कि पहले पृथ्वी के बड़े हिस्से बर्फ से ढके हुए थे, और अब जो बदलाव हो रहे हैं, वे मनुष्य की गतिविधियों से जुड़े हैं।

भूमंडलीय तापन क्या है?

भूमंडलीय तापन का मतलब है पृथ्वी का तापमान बढ़ना। यह मुख्य रूप से हरित गृह प्रभाव के कारण हो रहा है। कुछ गैसें जैसे कार्बन डाईऑक्साइड (CO₂), मीथेन, CFCs, और नाइट्रस ऑक्साइड वायुमंडल में मौजूद होती हैं और सौर ऊर्जा को पकड़कर पृथ्वी को गर्म कर देती हैं।

मानव गतिविधियाँ और भूमंडलीय तापन

औद्योगिकीकरण और प्रदूषण के कारण इन गैसों की मात्रा बढ़ी है, खासकर जब हम कोयला और पेट्रोल जलाते हैं। इससे पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। पिछले 150 सालों में तापमान बढ़ चुका है, और अनुमान है कि 2100 तक यह 2° सेल्सियस और बढ़ सकता है।

तापमान में वृद्धि से क्या असर होगा?

  • समुद्र स्तर का बढ़ना: गर्मी के कारण बर्फ पिघलने से समुद्र का स्तर ऊँचा होगा, और 21वीं सदी के अंत तक यह 48 सेंटीमीटर बढ़ सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन: कुछ इलाके अधिक गर्म और कुछ शुष्क हो सकते हैं, जिससे कृषि और पारितंत्र में बदलाव होगा।
  • स्वास्थ्य पर असर: गर्मी के कारण मलेरिया जैसी बीमारियाँ फैल सकती हैं।
  • भारत पर असर : अगर समुद्र स्तर 50 सेंटीमीटर बढ़ता है, तो इससे भारत के तटवर्ती क्षेत्रों में बाढ़, जलवायु परिवर्तन और कृषि पर असर पड़ेगा। यह पर्यावरणीय संकट का कारण बन सकता है, जिसका प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ेगा।

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