Editor Posts footer ads

किसान जमींदार और राज्य Important Short and Long Question History Class 12 Chapter - 8 kisaan jamindaar aur raajy

किसान जमींदार और राज्य  Important Short and Long Question History Class 12 Chapter - 8 kisaan jamindaar aur raajy


प्रश्न - जजमानी व्यवस्था से क्या अभिप्राय है ? 

उत्तर -

बंगाल में जमींदार , लुहार , बढ़ई , सुनारों आदि को उनकी सेवा के बदले रोज का भत्ता और खाने के लिए नकदी देते थे इस व्यवस्था को जजमानी कहते थे 


प्रश्न - ग्रामीण समाज में किसानों और दस्तकारों के बीच फर्क करना मुश्किल क्यों होता था ?

उत्तर -

  • क्योंकि कई ऐसे समूह थे , जो दोनों किस्म का काम करते थे
  • बुआई और सुहाई के बीच किसान दस्तकारी का काम भी करते थे इसीलिये ग्रामीण समाज में किसानों और दस्तकारों के बीच फर्क करना मुश्किल क्यों होता था


प्रश्न - मुग़ल शासन में भू राजस्व का निर्धारण कैसे होता था ?

उत्तर -

इसमें दो चरण शामिल थे- 

  • जमा और हासिल ।
  • जमा में राशि का मूल्यांकन किया जाता था और हासिल वास्तविक एकत्र की गई राशि थी।
  • प्रत्येक प्रांत में खेती और खेती योग्य भूमि दोनों को मापा जाता था।
  • प्रत्येक गांव में काश्तकारों की संख्या का वार्षिक रिकॉर्ड तैयार किया जाता था
  • भू-राजस्व मापने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी।
  • दीवान, जो साम्राज्य की वित्तीय व्यवस्था की निगरानी के लिए जिम्मेदार था, को नियुक्त किया गया ।


प्रश्न - मुग़ल वित्तीय व्यवस्था के लिए भू राजस्व को  महत्त्वपूर्ण  बताने वाले साक्ष्यों का परीक्षण कीजिये ?

उत्तर -

मुगल राजकोषीय व्यवस्था के लिए भू-राजस्व का महत्व : 

  • कृषि उत्पादन पर नियंत्रण रखने के लिए और तेजी से फैलते साम्राज्य के तमाम इलाकों में राजस्व आकलन में वसूली के लिए यह जरूरी था कि राज्य एक प्रशासनिक तंत्र खड़ा करें
  • मुगल राज्य सर्वप्रथम कृषि क्षेत्र की सीमा और कृषि संबंधों के बारे में विशिष्ट जानकारी इकठा करने का प्रयास कर एक निर्णायक ताकत के रूप में उभरा।
  • लोगों पर कर का बोझ निर्धारित करने से पहले मुगल राज्य ने जमीन और उस पर होने वाले उत्पादन के बारे में खास सूचनाएं इकठ्ठा करने की कोशिश करी
  • भू राजस्व के इंतजामात के दो चरण थे पहला कर निर्धारण और दूसरा वास्तविक वसूली जमा निर्धारित रकम थी और हासिल वास्तविक वसूल की गई रकम ।
  • अकबर ने यह हुक्म दिया कि खेतिहर नगद भुगतान करें वही फसलों में भुगतान का विकल्प भी खुला रहे राजस्व निर्धारित करते समय राज्य अपना हिस्सा ज्यादा से ज्यादा रखने की कोशिश करता था मगर स्थानीय हालात की वजह से कभी-कभी सचमुच में इतनी वसूली कर पाना संभव नहीं हो पाता था
  • हर प्रांत में जुती हुई जमीन और जोतने लायक जमीन दोनों की नपाई की गई अकबर के शासन काल में अबुल फजल ने इनमें ऐसी जमीनों के सभी आंकड़ों को संकलित किया उसके बाद के बादशाहों के शासनकाल में भी जमीन की नपाई के प्रयास जारी रहे मसलन 1665 ईस्वी में औरंगजेब ने अपने राजस्व कर्मचारियों को स्पष्ट निर्देश दिया कि हर गांव में खेतीहरों की संख्या का सालाना हिसाब रखा जाए इसके बावजूद सभी इलाकों की नपाई सफलतापूर्वक नहीं हुई उपमहा‌द्वीप के कई बड़े हिस्से जंगलों से घिरे हुए थे और इनकी नपाई नहीं की गई


प्रश्न -कृषि प्रधान समाज में महिलाओं की क्या भूमिका थी ?

उत्तर -

  • महिलाएँ और पुरुष कंधे से कंधा मिलाकर खेतों में काम करते थे ।
  • पुरुष खेत जोतते थे , हल चलाते थे महिलाएँ बुआई , निराई और कटाई , पकी हुई फ़सल का दाना निकालने का काम करती थीं ।
  • पश्चिमी भारत में राजस्वला महिलाओं को हल या कुम्हार का चाक छूने की इजाजत नहीं थी , बंगाल में अपने मासिक धर्म के समय महिलाएँ पान के बगान में नहीं घुस सकती थीं ।
  • सूत कातने , बरतन बनाने के लिए मिट्टी को साफ़ करने और गूँधने , और कपड़ों पर कढ़ाई जैसे दस्तकारी के काम महिला करती थी उत्पादन के ऐसे पहलू थे जो महिलाओं के श्रम पर निर्भर थे ।
  • किसी वस्तु का जितना वाणिज्यीकरण होता था , उसके उत्पादन के लिए महिलाओं के श्रम की उतनी ही माँग होती थी ।
  • किसान और दस्तकार महिलाएँ ज़रूरत पड़ने पर न सिर्फ़ खेतों में काम करती थीं बल्कि नियोक्ताओं के घरों पर भी जाती थीं और बाज़ारों में भी ।


प्रश्न -जमींदार कौन थे ? उनके कार्य बताइए ?

उत्तर -

  • जमींदार ऐसा वर्ग था जिनकी कमाई तो खेती से आती थी
  • लेकिन जो कृषि उत्पादन सीधे हिस्सेदारी नहीं करते थे
  • जमींदार अपनी ज़मीन के मालिक होते थे
  • ग्रामीण समाज में इनकी ऊँची हैसियत होती थी
  • ऊँची हैसियत होने के कारण इन्हें कुछ खास सामाजिक और आर्थिक सुविधाएँ मिली हुई थीं ।

जमींदार के कार्य -

  • राज्य की ओर से कर वसूलना 
  • राजा और किसान के बीच मध्यस्थता स्थापित करना ।
  • सेना की व्यवस्था करना । 
  • कृषि भूमि को विकसित करना । 
  • किसानों को खेती के लिए वितीय सहायता देना। 
  • निजी कृषि उपज को बेचना । 
  • गांवों में साप्ताहिक या पाक्षिक बाजार की व्यवस्था करना । 
  • सड़कों और जल स्रोतों की मरम्मत की व्यवस्था करना



प्रश्न -ग्राम पंचायत के बारे में विस्तार से चर्चा कीजिये ?

                          और 

पंचायत और गाँव का मुखिया किस तरह से ग्रामीण समाज का नियमन करते थे ?  व्याख्या कीजिये ?

उत्तर -

  • गाँव की पंचायत में बुजुर्गों का जमावड़ा होता था आमतौर पर वे गाँव के महत्त्वपूर्ण लोग हुआ करते थे  जिनके पास अपनी संपत्ति के पुश्तैनी अधिकार होते थे । 
  • जिन गाँवों में कई जातियों के लोग रहते थे , वहाँ अकसर पंचायत में भी विविधता पाई जाती थी । यह एक ऐसा अल्पतंत्र था जिसमें गाँव के अलग - अलग संप्रदायों और जातियों की नुमाइंदगी होती थी । पंचायत का फ़ैसला गाँव में सबको मानना पड़ता था
  • पंचायत का सरदार एक मुखिया होता था जिसे मुक़द्दम या मंडल कहते थे । 
  • कुछ स्रोतों से ऐसा लगता है कि मुखिया का चुनाव गाँव के बुजुर्गों की आम सहमति से होता था और इस चुनाव के बाद उन्हें इसकी मंजूरी ज़मींदार से लेनी पड़ती थी ।
  • मुखिया अपने ओहदे पर तभी तक बना रहता था जब तक गाँव के बुजुर्गों को उस पर भरोसा था ऐसा नहीं होने पर बुजुर्ग उसे बर्खास्त कर सकते थे ।
  • गाँव के आमदनी व खर्चे का हिसाब - किताब अपनी निगरानी में बनवाना मुखिया का मुख्य काम था और इसमें पंचायत का पटवारी उसकी मदद करता था ।
  • पंचायत का खर्चा गाँव के उस आम ख़जाने से चलता था जिसमें हर व्यक्ति अपना योगदान देता था ।
  • इस ख़जाने से उन कर अधिकारियों की ख़ातिरदारी का ख़र्चा भी किया जाता था जो समय - समय पर गाँव का दौरा किया करते थे 
  • इस कोष का इस्तेमाल बाढ़ जैसी प्राकृतिक विपदाओं से निपटने के लिए भी होता था और ऐसे सामुदायिक कार्यों के लिए भी जो किसान खुद नहीं कर सकते थे , जैसे कि मिट्टी के छोटे - मोटे बाँध बनाना या नहर खोदना । 
  • पंचायत का एक बड़ा काम यह तसल्ली करना था कि गाँव में रहने वाले अलग - अलग समुदायों के लोग अपनी जाति की हदों के अंदर रहें । 
  • पूर्वी भारत में सभी शादियाँ मंडल की मौजूदगी में होती थीं ।
  • “ जाति की अवहेलना रोकने के लिए ” लोगों के आचरण पर नज़र रखना गाँव के मुखिया की ज़िम्मेदारियों में से एक था । 
  • पंचायतों को जुर्माना लगाने और समुदाय से निष्कासित करने जैसे ज़्यादा गंभीर दंड देने के अधिकार थे समुदाय से बाहर निकालना एक कड़ा कदम था जो एक सीमित समय के लिए लागू किया जाता था । 
  • इसके तहत दंडित व्यक्ति को ( दिए हुए समय के लिए ) गाँव छोड़ना पड़ता था । इस दौरान वह अपनी जाति और पेशे से हाथ धो बैठता था ऐसी नीतियों का मकसद जातिगत रिवाजों की अवहेलना रोकना था । 
  • ग्राम पंचायत के अलावा गाँव में हर जाति की अपनी पंचायत होती थी । समाज में ये पंचायतें काफ़ी ताकतवर होती थीं । 
  • राजस्थान में जाति पंचायतें अलग - अलग जातियों के लोगों के बीच के झगड़ों का निपटारा करती थीं । वे ज़मीन से जुड़े दावेदारियों के झगड़े सुलझाती थीं यह तय करती थीं कि शादियाँ जातिगत मानदंडों के मुताबिक हो रही हैं या नहीं , और यह भी कि गाँव के आयोजन में किसको किसके ऊपर तरजीह दी जाएगी।
  • पश्चिम भारत ख़ासकर राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे प्रांतों के संकलित दस्तावेजों में ऐसी कई अर्जियाँ हैं जिनमें पंचायत से “ ऊँची " जातियों या राज्य के अधिकारियों के ख़िलाफ़ ज़बरन कर उगाही या बेगार वसूली की शिकायत की गई है । 
  • आमतौर पर यह अर्जियाँ ग्रामीण समुदाय के सबसे निचले तबके के लोग लगाते थे । अकसर सामूहिक तौर पर भी ऐसी अर्जियाँ दी जाती थीं । 
  • इनमें किसी जाति या संप्रदाय विशेष के लोग संभ्रांत समूहों की उन माँगों के ख़िलाफ़ अपना विरोध जताते थे  जिन्हें वे नैतिक दृष्टि से अवैध मानते थे 



प्रश्न - आइन-ए-अकबरी के बारे में विस्तार से चर्चा कीजिये ?

                               और 

प्रश्न -अबुल फज्ल का आइन-ए-अकबरी एक बहुत बड़े ऐतिहासिक और प्रशासनिक परियोजना का नतीजा था ? विवरण दीजिये ?

                                और 

प्रश्न - आइन से पता चलता है वह सत्ता के ऊँचे गलियारों का नज़रिया है । चर्चा कीजिये ?

                                 और 

प्रश्न - आइन – ए – अकबरी का वर्णन  कीजिये ?

उत्तर -

  • आइन - ए - अकबरी  अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फज्ल ने लिखा था । 
  • इसमें अकबर के काल की जानकारी विस्तार से मिलती है 
  • आइन - ए - अकबरी एक बड़ी परियोजना थी 
  • इसका जिम्मा बादशाह अकबर ने अबुल फ़ज़्ल को दिया था । 
  • अकबर के शासन के बयालीसवें वर्ष , 1598 ई. में , पाँच संशोधनों के बाद , इसे पूरा किया गया । 
  • आइन इतिहास लिखने के एक ऐसे बृहत्तर परियोजना का हिस्सा थी जिसकी पहल अकबर ने की थी । 
  • इस परियोजना का परिणाम था अकबरनामा जिसे तीन जिल्दों में रचा गया ।

पहली दो जिल्दों ने ऐतिहासिक दास्तान पेश की । 

तीसरी जिल्द - आइन - ए - अकबरी थी  


1. आइन - ए – अकबरी  

  • दरबार , 
  • प्रशासन 
  • सेना का संगठन  
  • राजस्व के स्रोत 
  • अकबरी साम्राज्य के प्रांतों का भूगोल 
  • लोगों के साहित्यिक , सांस्कृतिक व धार्मिक रिवाज 
  • अकबर की सरकार के तमाम विभागों 
  • अकबर के काल के विभिन्न प्रांत ( सूबों ) के बारे में


आइन – ए – अकबरी 

  • मंजिल आबादी 
  • सिपह  आबादी 
  • मुल्क   आबादी 
  • मजहबी सांस्कृतिक रीति रिवाज 
  • मजहबी सांस्कृतिक रीति रिवाज 

मंजिल आबादी 

  • शाही घर - परिवार और उसके रख - रखाव से के बारे में जानकारी मिलती है । 

सिपाह  आबादी 

  • सैनिक व नागरिक प्रशासन और नौकरों की व्यवस्था के बारे में है । 
  • इस भाग में शाही अफ़सरों ( मनसबदार ) , विद्वानों , कवियों और कलाकारों की संक्षिप्त जीवनियाँ शामिल हैं

मुल्कआबादी 

  • साम्राज्य व प्रांतों के वित्तीय पहलुओं राजस्व की दरों के आँकड़ों की विस्तृत जानकारी इसमें सांख्यिकी सूचनाएँ तफ़सील से दी गई हैं , जिसमें सूबों और उनकी तमाम प्रशासनिक व वित्तीय इकाइयों ( सरकार , परगना और महल ) के भौगोलिक , स्थलाकृतिक और आर्थिक रेखाचित्र भी शामिल हैं । 
  • हर प्रांत और उसकी अलग - अलग इकाइयों की कुल मापी गई ज़मीन और निर्धारित राजस्व ( जमा ) भी दी गई हैं । 

मजहबी सांस्कृतिक रीति रिवाज 

  • लोगों के मजहबी , साहित्यिक और सांस्कृतिक रीति - रिवाजों से ताल्लुक रखती हैं ; 

मजहबी सांस्कृतिक रीति रिवाज 

  • आखिर में अकबर के “ शुभ वचनों " का एक संग्रह भी है


आइन - ए – अकबरी  की  कमियां -  

  • 5 बार संशोधन ( प्रामाणिकता में कमी ) 
  • यह ग्रंथ पूरी तरह समस्याओं से परे नहीं है ।
  • जोड़ करने में कई ग़लतियाँ पाई गई हैं । 
  • संख्यात्मक आँकड़ों में विषमताएँ हैं ।
  • बंगाल और उड़ीसा की अधिक सूचना नहीं हैं ।
  • आँकड़ों की प्रासंगिकता सीमित है ।


प्रश्न - 16वीं एवं 17वीं शताब्दियों के दौरान मुगल साम्राज्य में वनवासियों के जीवन जीने के ढंग की व्याख्या कीजिए ? 

उत्तर -

  • वनवासी (वनों में रहने वाले) लोगों की जनसंख्या 40 प्रतिशत थी।
  • ये झारखण्ड, पूर्वी भारत, मध्य भारत तथा उत्तरी क्षेत्र दक्षिण भारत का पश्चिमी घाट में रहते थे।
  • इनके लिए जंगली शब्द अर्थात् जिनका गुजारा जंगल के उत्पादों पर होता है, प्रयोग किया जाता था।
  • झूम खेती करते थे अर्थात् स्थानात्तरीय कृषि।
  • एक जगह से दूसरी जगह पर घूमते रहना, (काम तथा खाने की तलाश में)।
  • भीलों द्वारा बसन्त के मौसम में जंगल के उत्पाद इक‌ट्ठे करना, गर्मियों में मछली पकड़ना, मानसून के महीने में खेती करना, शरद तथा जाड़ों में शिकार करना आदि काम किये जाते थे।
  • राज्य के लिए जंग उलट-फेर वाला तथा बदमाशों को शरण देने वाला इलाका था।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!