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जामुन का पेड़ Chapter-7 Class 11 Book-Aroh Chapter Summary

जामुन का पेड़ Chapter-7 Class 11 Book-Aroh Chapter Summary



जामुन का पेड़

यह कहानी नौकरशाही, व्यवस्था की उदासीनता, और इंसानी ज़िंदगी की अनदेखी पर एक तीखा व्यंग्य है। कहानी जामुन के पेड़ के नीचे दबे एक व्यक्ति की त्रासदी के माध्यम से भारतीय प्रशासनिक तंत्र की जटिलताओं और हास्यास्पद स्थिति को उजागर करती है।

कहानी की प्रमुख घटनाएँ:

पेड़ गिरने की घटना: एक झक्कड़ के कारण सेक्रेटेरियट के लॉन में एक जामुन का पेड़ गिर जाता है, जिसके नीचे एक आदमी दबा होता है। माली, चपरासी, और अन्य कर्मचारी घटना की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुँचाते हैं।

प्रारंभिक प्रतिक्रिया: सभी लोग पेड़ की प्रशंसा करते हैं लेकिन आदमी को बचाने की प्राथमिकता देने के बजाय पेड़ के फल और उसकी उपयोगिता पर चर्चा करते हैं।

फ़ाइल का खेल: पेड़ हटाने का काम तय करने के लिए फ़ाइल नौकरशाही के विभिन्न विभागों, जैसे व्यापार, कृषि, हॉर्टीकल्चर, मेडिकल और कल्चरल में घूमती रहती है। हर विभाग अपनी ज़िम्मेदारी से बचने की कोशिश करता है, जिससे कोई ठोस निर्णय नहीं लिया जाता। इस प्रक्रिया में समय बीतता जाता है, और इस दौरान समस्या से जूझ रहे व्यक्ति की स्थिति लगातार बिगड़ती रहती है।

दबा हुआ आदमी: माली उसकी देखभाल करता है और उसे खाने-पीने के लिए खिचड़ी खिलाता है। धीरे-धीरे पता चलता है कि वह एक शायर है। यह सुनकर लोग उसके चारों ओर इकट्ठा होते हैं और कवि सम्मेलन जैसा माहौल बन जाता है।


साहित्य अकादमी का हस्तक्षेप

साहित्य अकादमी उसे अपनी केंद्रीय शाखा का सदस्य बना देती है, लेकिन उसकी जान बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाती। अंततः मामला फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट तक पहुँचता है, लेकिन विदेश मंत्रालय के हस्तक्षेप के कारण पेड़ को काटने पर रोक लगा दी जाती है।

प्रधानमंत्री का निर्णय: प्रधानमंत्री पेड़ को काटने का आदेश देते हैं और अंतर्राष्ट्रीय जिम्मेदारी खुद पर लेने का वादा करते हैं। लेकिन इस निर्णय के आने तक दबा हुआ आदमी दम तोड़ देता है।


मुख्य विषय:

नौकरशाही की उदासीनता: फ़ाइलों के चक्कर और विभागों के बीच जिम्मेदारी टालने की प्रवृत्ति ने मानव जीवन की उपेक्षा को दिखाया है।

प्राथमिकताओं का अभाव: इंसानी जान की तुलना में पेड़ और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को अधिक महत्व दिया गया।

सामाजिक व्यंग्य: कहानी नौकरशाही तंत्र और समाज में फैली संवेदनहीनता पर गहरा व्यंग्य करती है।

व्यवस्था की विफलता: हर विभाग और अधिकारी अपनी सीमाओं का हवाला देकर ज़िम्मेदारी से बचता है, जिससे समस्या का समाधान नहीं हो पाता।


अध्याय का अंत:

प्रधानमंत्री का निर्णय आने तक कवि की मृत्यु हो जाती है। यह दिखाता है कि कैसे व्यवस्था की धीमी गति और प्रक्रियाओं के चक्कर में इंसान की ज़िंदगी की फ़ाइल भी बंद हो जाती है।


निष्कर्ष:

यह कहानी प्रशासनिक जटिलताओं, मानवीय संवेदनाओं की कमी, और नौकरशाही की लालफीताशाही पर एक कटाक्ष है। यह हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारी प्रणाली किसी व्यक्ति के जीवन से अधिक प्रक्रियाओं को महत्व देती है।

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