Editor Posts footer ads

आवारा मसीहा दिशाहारा Chapter-2 Class 11 Book-Antral Chapter Summary

आवारा मसीहा दिशाहारा Chapter-2 Class 11 Book-Antral Chapter Summary


 आवारा मसीहा  

 दिशाहारा 

यह अध्याय महान कथाशिल्पी शरत्चंद्र चट्टोपाध्याय के बचपन, उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, शरारतों, कठिनाइयों और उनके भीतर विकसित होती लेखक की प्रवृत्ति का चित्रण करता है। यह उनके व्यक्तित्व और साहित्यिक यात्रा का प्रारंभिक परिचय प्रस्तुत करता है।

प्रमुख बिंदु

बाल्यकाल और पारिवारिक पृष्ठभूमि

शरत्चंद्र का जन्म 15 सितंबर 1876 को हुआ। उनके पिता, मोतीलाल स्वप्नदर्शी, यायावर स्वभाव के थे और जीवनयापन के लिए कोई स्थायी साधन नहीं अपना सके। उनकी माँ, भुवनमोहिनी, सरल और सेवाभावना से परिपूर्ण महिला थीं, जिन्होंने परिवार की तमाम कठिनाइयों को सहन किया। मोतीलाल की अकर्मण्यता और परिवार की गरीबी ने शरत के बचपन को अत्यंत कठिन बना दिया। इस स्थिति में उनकी माँ ने अपने मायके से मदद ली, लेकिन यह केवल एक अस्थायी समाधान था।

शरारती और जिज्ञासु बालक

शरत का बचपन शरारतों से भरा था। पाठशाला और घर में वे तरह-तरह की शरारतें करते, जैसे चिलम में ईंट के टुकड़े रखना और पंडित जी से बचकर भागना। उनकी मित्रता धीरू नामक एक बालिका से थी, जिसने बाद में उनके साहित्य में कई पात्रों, जैसे "पारो" और "राजलक्ष्मी," को प्रेरित किया। बचपन से ही विद्रोही और साहसी स्वभाव के शरत गाँव के बच्चों के दल के नेता बन गए। गरीबों और जरूरतमंदों की मदद के लिए वे मछली पकड़ने और बागों से फल चुराने जैसे दुस्साहसिक कार्य करते, जिससे उनकी छवि "रॉबिनहुड" जैसी बन गई।

साहित्यिक रुझान का विकास

शरत को बचपन से ही पढ़ने और कहानियाँ गढ़ने का शौक था। उनके पिता की अधूरी कहानियाँ और चोरी से पढ़ी गई किताबें, जैसे "भवानी पाठ" और "हरिदास की गुप्त बातें," ने उनमें कहानियाँ रचने की प्रेरणा जगाई। उन्होंने अपने अनुभवों और देखे-सुने घटनाओं को कहानियों में बदलना शुरू किया। उनके जीवन की कई घटनाएँ, जैसे नीरू दीदी की त्रासदी, गाँव के अन्य चरित्र, और समाज में व्याप्त अन्याय, उनकी कहानियों का आधार बनीं। उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ "विलासी" और "चरित्रहीन" इन्हीं अनुभवों का परिणाम थीं।

कठिनाइयों के बीच संघर्ष और आत्मनिर्भरता

शरत्चंद्र की शिक्षा बार-बार स्थान बदलने और आर्थिक कठिनाइयों के कारण अनिश्चित रही। इसके बावजूद, उन्होंने अपने परिश्रम और जिज्ञासा के बल पर साहित्य और जीवन के बारे में गहरी समझ विकसित की। यात्राओं के दौरान उन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों और परिस्थितियों को करीब से देखा, और यही अनुभव उनकी कहानियों में झलकते हैं। उनकी रचनाएँ समाज की वास्तविकता का प्रतिबिंब बन गईं।

पारिवारिक और सामाजिक संघर्ष

शरत्चंद्र के पिता मोतीलाल की स्वप्नदर्शी प्रवृत्ति और अस्थिरता ने परिवार को बार-बार संकट में डाला, जिससे उनका जीवन गरीबी और संघर्षों से घिरा रहा। भागलपुर में नाना के यहाँ और देवानंदपुर में गरीबी से भरे जीवन ने शरत के बचपन को प्रभावित किया। इसके साथ ही, उन्होंने समाज की कठोरता और उपेक्षा को भी गहराई से महसूस किया, जैसे नीरू दीदी के साथ हुआ अमानवीय व्यवहार। इन अनुभवों ने उन्हें मनुष्य की संवेदनाओं और त्रासदियों का गहराई से अवलोकन करने और इन्हें अपनी रचनाओं में उकेरने की प्रेरणा दी।

मुख्य विषय:

  • संघर्ष और साहस: शरत का बचपन कठिनाइयों से भरा था, लेकिन उन्होंने साहस और जिज्ञासा के साथ उनका सामना किया।
  • साहित्यिक आधार: उनके अनुभव, पारिवारिक पृष्ठभूमि और समाज के प्रति संवेदनशीलता ने उनके साहित्यिक व्यक्तित्व की नींव रखी।
  • विद्रोह और सेवा: समाज और पारिवारिक अनुशासन के विरुद्ध विद्रोह करने के बावजूद वे हमेशा दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहे।
  • कल्पना और यथार्थ का मेल: उनके लेखन में यथार्थ अनुभव और कल्पना का अद्भुत संयोजन मिलता है।

निष्कर्ष:

अध्याय "दिशाहारा" शरत्चंद्र चट्टोपाध्याय के जीवन के उस पहलू को उजागर करता है, जहाँ कठिनाइयों और अनुभवों ने उनके साहित्यिक व्यक्तित्व को गढ़ा। उनका बचपन उनके जीवन के उन प्रमुख संघर्षों और संवेदनाओं का प्रतिबिंब था, जिन्होंने उन्हें भारतीय साहित्य का महान कथाशिल्पी बनाया।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!