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राजनीतिक दल Notes in Hindi Class 10 Political Science Chapter-4 Book- Loktantrik raajaneetik dal Rajniti Political parties

राजनीतिक दल Notes in Hindi Class 10 Political Science Chapter-4 Book- Loktantrik raajaneetik dal  Rajniti Political parties
 

परिचय

लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। हमने देखा है कि ये दल संविधान बनाने, चुनाव कराने, सरकार बनाने और चलाने में मदद करते हैं। इस पाठ में हम राजनीतिक दलों के काम और उनकी ज़रूरत के बारे में समझेंगे, खासकर भारत के संदर्भ में। हम जानेंगे कि लोकतंत्र में कितने दल होने चाहिए, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के बारे में जानकारी लेंगे, और यह भी समझेंगे कि दलों की क्या कमियाँ हैं और उन्हें कैसे ठीक किया जा सकता है।


राजनीतिक दल: क्या जरूरी हैं?

  • लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दल अहम भूमिका निभाते हैं। 
  • आम नागरिकों के लिए लोकतंत्र का मतलब अक्सर राजनीतिक दल ही होता है। 
  • यदि आप किसी दूर-दराज के गाँव या कम पढ़े-लिखे लोगों से बात करें, तो हो सकता है उन्हें संविधान या सरकार के ढाँचे के बारे में ज्यादा जानकारी न हो। लेकिन राजनीतिक दलों के बारे में वे ज़रूर कुछ न कुछ जानते होंगे।
  • हालाँकि, राजनीतिक दलों की यह पहचान उनके प्रति लोकप्रियता की गारंटी नहीं है। कई लोग राजनीतिक दलों के बारे में नकारात्मक राय रखते हैं। 
  • लोकतंत्र की खामियों और सामाजिक-राजनीतिक विभाजनों के लिए अक्सर राजनीतिक दलों को ही दोषी ठहराया जाता है।


क्या राजनीतिक दलों की ज़रूरत है?

यह सवाल स्वाभाविक है कि क्या हमें राजनीतिक दलों की आवश्यकता है। करीब 100 साल पहले दुनिया के कुछ ही देशों में राजनीतिक दल मौजूद थे, लेकिन आज स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है। वर्तमान में, लगभग हर लोकतांत्रिक देश में राजनीतिक दलों का व्यापक प्रभाव और बोलबाला है। ये दल लोकतांत्रिक प्रणाली का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं और सत्ता संचालन से लेकर नीतियों के निर्माण तक में अहम भूमिका निभाते हैं। राजनीतिक दलों की उपस्थिति ने न केवल लोकतंत्र को संगठित किया है, बल्कि लोगों को अपने विचार और मांगें प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने का मंच भी प्रदान किया है।

1. राजनीतिक दल क्या हैं और ये क्या करते हैं?

  • राजनीतिक दल ऐसे समूह हैं जो जनता को संगठित करते हैं, चुनाव लड़ते हैं और सरकार बनाने या चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
  • ये दल अपनी विचारधाराओं और नीतियों के माध्यम से जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने का दावा करते हैं। 
  • वे नागरिकों की समस्याओं और अपेक्षाओं को समझते हुए, उन्हें अपनी नीतियों में शामिल करने का प्रयास करते हैं। इस तरह राजनीतिक दल लोकतंत्र में जनता और सरकार के बीच सेतु का काम करते हैं।

2. राजनीतिक दल क्यों जरूरी हैं?

  • राजनीतिक दल जनता की आवाज़ को सरकार तक पहुँचाने का महत्वपूर्ण माध्यम हैं। 
  • वे जनता की समस्याओं और मुद्दों को उठाकर उनके समाधान का प्रयास करते हैं। 
  • साथ ही, राजनीतिक दल चुनाव प्रक्रिया का आधार होते हैं, क्योंकि वे चुनावों में उम्मीदवार खड़े करते हैं, जिससे जनता को चुनने के लिए विकल्प मिलते हैं। 
  • सत्ता में आने वाली पार्टी सरकार चलाती है, जबकि विपक्ष उसकी गतिविधियों पर निगरानी रखता है, जिससे सरकार और विपक्ष के बीच संतुलन बना रहता है। 
  • इसके अलावा, राजनीतिक दल समाज को संगठित करने और विकास के लिए प्रभावी नीतियाँ बनाने में भी मदद करते हैं। इस प्रकार, राजनीतिक दल लोकतंत्र और समाज के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


राजनीतिक दल का अर्थ 

  • राजनीतिक दल एक संगठित समूह है, जो चुनाव लड़कर सत्ता हासिल करने और समाज के सामूहिक हित के लिए काम करने का प्रयास करता है। यह समूह अपनी नीतियों और कार्यक्रमों के जरिए जनता को भरोसा दिलाने की कोशिश करता है कि उनकी योजनाएँ सबसे बेहतर हैं।
  • हालाँकि, "सामूहिक हित" का विचार सभी के लिए अलग हो सकता है, और यही कारण है कि राजनीतिक दल अलग-अलग वर्गों या समुदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं। किसी दल की पहचान उसकी नीतियों और उसके समर्थक वर्ग से होती है।

राजनीतिक दल के तीन हिस्से

  • राजनीतिक दल तीन मुख्य हिस्सों पर आधारित होते हैं। 
  • पहला, नेता जो पार्टी का चेहरा होते हैं और फैसले लेते हैं।
  •  दूसरा, सक्रिय सदस्य जो पार्टी के रोज़मर्रा के काम संभालते हैं। 
  • तीसरा, समर्थक जो पार्टी का समर्थन करते हैं और उसकी सोच को मानते हैं। 
  • इन तीनों के मिलकर काम करने से ही पार्टी सफल होती है।


राजनीतिक दल के कार्य

  • चुनाव में भागीदारी: राजनीतिक दल लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव लड़ने के लिए अपने उम्मीदवार खड़े करते हैं। भारत में उम्मीदवारों का चयन पार्टी के नेता करते हैं, जबकि अमेरिका में यह कार्य पार्टी के सदस्य और समर्थक करते हैं।
  • चुनाव प्रचार और नीतियाँ: चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दल अपनी नीतियाँ और कार्यक्रम जनता के सामने रखते हैं। समान विचारधारा वाले लोगों को एकजुट कर सरकार के लिए नीतियों का ढाँचा तैयार करते हैं।
  • विधायिका में भूमिका: विधायिका में अधिकांश सदस्य किसी न किसी राजनीतिक दल से जुड़े होते हैं। ये सदस्य अपने दल के निर्देशों के अनुसार कानून बनाने में सहयोग करते हैं।
  • सरकार का गठन और संचालन: सत्ता में आने के बाद, राजनीतिक दल अपने नेताओं को मंत्री बनाकर सरकार चलाते हैं और अपनी नीतियों को लागू करते हैं।
  • विपक्ष की भूमिका: चुनाव हारने वाले दल विपक्ष की भूमिका निभाते हैं। ये दल सरकार की गलतियों की आलोचना करते हैं और जनता के मुद्दों को उठाते हैं।
  • जनमत तैयार करना: राजनीतिक दल समाज के मुद्दों पर बहस छेड़ते हैं, जागरूकता फैलाते हैं, और जनमत तैयार करने में योगदान देते हैं।
  • जनता और सरकार के बीच सेतु: राजनीतिक दल नागरिकों की समस्याओं को सरकार तक पहुँचाते हैं और उनकी जरूरतों पर ध्यान दिलाते हैं, जिससे वे जनता और सरकार के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी का काम करते हैं।

राजनीतिक दलों की ज़रूरत: क्यों हैं ये अनिवार्य?

राजनीतिक दल लोकतंत्र के लिए बेहद जरूरी हैं। उनकी भूमिका और योगदान को समझने के लिए यह सोचना ज़रूरी है कि उनके बिना लोकतंत्र कैसे काम करेगा।

अगर राजनीतिक दल न हों:-

1. चुनाव प्रक्रिया की चुनौतियाँ:

  • राजनीतिक दलों के अभाव में सभी उम्मीदवार स्वतंत्र होंगे, जिससे चुनाव प्रक्रिया में कई समस्याएँ उत्पन्न होंगी।
  • ऐसे उम्मीदवार बड़े नीतिगत मुद्दों पर जनता से ठोस वादे नहीं कर पाएंगे। 
  • सरकार बनाना संभव तो होगा, लेकिन उसकी कार्यक्षमता और स्थिरता पर प्रश्नचिह्न लग जाएगा। 
  • निर्वाचित प्रतिनिधि केवल अपने निर्वाचन क्षेत्र तक सीमित रहेंगे, जिससे राष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं होगा।

2. पंचायत चुनावों का उदाहरण:

  • पंचायत चुनावों में राजनीतिक दल औपचारिक रूप से शामिल नहीं होते, लेकिन गाँव खेमों में बँट जाते हैं और अपने-अपने उम्मीदवारों का पैनल खड़ा करते हैं। 
  • यही प्रक्रिया बड़े स्तर पर राजनीतिक दलों के माध्यम से होती है, जो लोकतंत्र को संगठित और स्थिर बनाती है।

राजनीतिक दलों की भूमिका:-

  • विचारों का संगठन: राजनीतिक दल लोकतंत्र में विभिन्न विचारों और मतों को एक मंच पर लाते हैं, जिससे समाज के हर वर्ग की आवाज़ शामिल हो सके। यह बड़े समाजों में जरूरी है, क्योंकि हर व्यक्ति के मत को सीधे शामिल करना व्यावहारिक नहीं है।
  • प्रतिनिधियों को एकजुट करना: राजनीतिक दल विभिन्न स्थानों से चुने गए प्रतिनिधियों को एकजुट करते हैं, जिससे एक जिम्मेदार और संगठित सरकार का निर्माण होता है।
  • नीतियों का निर्माण और निगरानी: ये दल न केवल नीतियाँ बनाते हैं और सरकार को समर्थन देते हैं, बल्कि उस पर निगरानी रखकर संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • लोकतंत्र को सुचारू रूप से चलाना: राजनीतिक दल लोकतांत्रिक शासन को स्थिर, संगठित और प्रभावी बनाने में अहम योगदान देते हैं।


कितने राजनीतिक दल होने चाहिए?

लोकतंत्र में कोई भी समूह राजनीतिक दल बना सकता है। भारत जैसे देश में, चुनाव आयोग के पास 750 से अधिक दल पंजीकृत हैं। लेकिन, चुनावी प्रतिस्पर्धा और सरकार बनाने की दौड़ में कुछ ही दल सक्रिय भूमिका निभाते हैं। सवाल यह है कि लोकतंत्र के लिए कितने दलों का होना सही है?

1. एकदलीय व्यवस्था

  • कुछ देशों में केवल एक ही राजनीतिक दल को सत्ता चलाने की अनुमति होती है, जैसे चीन में। 
  • ऐसी प्रणाली में चुनाव स्वतंत्र प्रतिद्वंद्विता की अनुमति नहीं देते, क्योंकि केवल एक दल ही सत्ता में होता है और अन्य दलों या उम्मीदवारों को भाग लेने का अवसर नहीं मिलता।
  • इस एकदलीय व्यवस्था को लोकतांत्रिक नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसमें जनता के पास अपने प्रतिनिधियों को चुनने के लिए कोई विकल्प नहीं होते। 
  • इससे जनता की इच्छाओं और विचारों का समुचित प्रतिनिधित्व संभव नहीं हो पाता।

2. दो दलीय व्यवस्था

  • ऐसे देशों में सत्ता आमतौर पर दो प्रमुख दलों के बीच बदलती रहती है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में डेमोक्रेट और रिपब्लिकन पार्टियाँ, और ब्रिटेन में लेबर और कंजरवेटिव पार्टियाँ प्रमुख हैं। 
  • इन देशों में अन्य पार्टियाँ भी मौजूद होती हैं, लेकिन सरकार बनाने की होड़ में केवल यही दो दल मुख्य रूप से प्रतिस्पर्धा करते हैं। 
  • यह प्रणाली राजनीतिक स्थिरता प्रदान करती है, लेकिन कभी-कभी अन्य दलों के विचारों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता।

3. बहुदलीय व्यवस्था

  • जहाँ कई दल सत्ता के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, उसे बहुदलीय व्यवस्था कहा जाता है, और भारत इसका एक प्रमुख उदाहरण है। 
  • इस प्रणाली में विभिन्न दल मिलकर गठबंधन बनाते हैं और सरकार का गठन करते हैं। 
  • भारत में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA), संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA), और वाम मोर्चा इसके प्रमुख उदाहरण हैं। 
  • इस व्यवस्था का एक बड़ा फायदा यह है कि विभिन्न विचारों और वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व मिलता है।
  • हालांकि, इसका एक नुकसान यह है कि गठबंधन सरकारों में राजनीतिक अस्थिरता और घालमेल की संभावना बनी रहती है।

4. कौन-सी व्यवस्था बेहतर है?

  • यह तय करना आसान नहीं है कि कौन सी दलीय व्यवस्था सबसे उपयुक्त है, क्योंकि यह किसी देश की सामाजिक संरचना, राजनीतिक इतिहास, और चुनाव प्रणाली पर निर्भर करती है। 
  • भारत में बहुदलीय व्यवस्था आवश्यक है, क्योंकि यहाँ की सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता को केवल 2-3 पार्टियाँ नहीं संभाल सकतीं। 
  • हर देश अपनी परिस्थितियों और जरूरतों के अनुसार अपनी दलीय व्यवस्था विकसित करता है, ताकि उसकी जनता और शासन प्रणाली के बीच संतुलन बना रहे।


भारत के राष्ट्रीय दल

भारत में राष्ट्रीय दल वे राजनीतिक पार्टियाँ हैं जो देशभर में सक्रिय हैं और जिनकी नीतियाँ राष्ट्रीय स्तर पर लागू होती हैं। राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए, किसी दल को चुनाव आयोग द्वारा तय मानदंडों को पूरा करना पड़ता है।

राष्ट्रीय दलों की विशेषता:

राष्ट्रीय दलों की विशेषता होती है कि उनकी संगठनात्मक संरचना पूरे देश में फैली होती है। उन्हें अलग चुनाव चिह्न का विशेषाधिकार प्राप्त होता है, जिससे वे आसानी से पहचान में आते हैं। राष्ट्रीय दल राष्ट्रीय स्तर पर तय नीतियों और कार्यक्रमों का पालन करते हैं, जो पूरे देश में समान रूप से लागू होते हैं। भारत में 2023 के अनुसार छह राष्ट्रीय दल हैं, जो इस भूमिका को निभाते हैं और देश के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करते हैं।

1. आम आदमी पार्टी (AAP)

  • आम आदमी पार्टी (AAP) की स्थापना 2012 में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बाद हुई। 
  • इस पार्टी का मुख्य विचार जवाबदेही, पारदर्शिता, और सुशासन पर आधारित है।
  • अपनी कम समयावधि में, पार्टी ने दिल्ली और पंजाब में सरकार बनाकर महत्वपूर्ण राजनीतिक सफलता हासिल की।
  • 2019 के लोकसभा चुनाव में, पार्टी ने लोकसभा की 1 सीट जीतकर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

2. बहुजन समाज पार्टी (BSP)

  • बहुजन समाज पार्टी (BSP) की स्थापना 1984 में स्वर्गीय कांशीराम द्वारा की गई थी। 
  • इसकी विचारधारा दलितों, आदिवासियों, पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों के हितों पर केंद्रित है। 
  • पार्टी की प्रेरणा साहूजी महाराज, महात्मा फुले, और बाबा साहब आंबेडकर के विचारों से ली गई है। 
  • BSP का मुख्य प्रभाव क्षेत्र उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, और छत्तीसगढ़ है। 
  • पार्टी ने उत्तर प्रदेश में चार बार सरकार बनाकर अपनी राजनीतिक मजबूती दिखाई है। 
  • 2019 के आम चुनावों में BSP को 3.63% वोट मिले और 10 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई।

3. भारतीय जनता पार्टी (BJP)

  • भारतीय जनता पार्टी (BJP) की स्थापना 1980 में पुराने जनसंघ के पुनर्गठन के रूप में हुई। 
  • इसकी विचारधारा हिंदुत्व, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, और समग्र मानवतावाद पर आधारित है। 
  • पार्टी ने अपने राजनीतिक सफर में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं, जिसमें 2019 के लोकसभा चुनाव में 303 सीटें जीतना शामिल है। 
  • इसके अलावा, भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का नेतृत्व करते हुए भारत की प्रमुख राजनीतिक ताकत बनी हुई है।

4. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया-मार्क्ससिस्ट (CPI-M)

  • भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) [CPI(M)] की स्थापना 1964 में हुई। 
  • इसकी विचारधारा मार्क्सवाद-लेनिनवाद, समाजवाद, और धर्मनिरपेक्षता पर आधारित है। 
  • पार्टी का मुख्य प्रभाव पश्चिम बंगाल, केरल, और त्रिपुरा जैसे राज्यों में देखा जाता है। 
  • हालांकि, 2019 के आम चुनावों में पार्टी को 1.75% वोट मिले और 3 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई। 
  • CPI(M) भारत की वामपंथी राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

5. इंडियन नेशनल कांग्रेस (INC)

  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC), भारत का सबसे पुराना राजनीतिक दल, की स्थापना 1885 में हुई थी।
  •  इसकी विचारधारा मध्यमार्गी, धर्मनिरपेक्षता, और कमजोर वर्गों के समर्थन पर आधारित है। 
  • कांग्रेस पार्टी ने स्वतंत्रता के बाद 1947 से दशकों तक भारत पर शासन किया और देश के राजनीतिक परिदृश्य में प्रमुख भूमिका निभाई।
  •  2004 से 2014 तक, पार्टी ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) का नेतृत्व किया।
  •  हालांकि, 2019 के आम चुनावों में कांग्रेस को 19.5% वोट मिले और 52 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई।

6. नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP)

  • नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) की स्थापना 2013 में पी.ए. संगमा द्वारा की गई थी।
  • यह पार्टी मुख्य रूप से पूर्वोत्तर भारत में सक्रिय है। 
  • इसकी विचारधारा शिक्षा, रोजगार, और समाज के सशक्तिकरण पर आधारित है। 
  • NPP ने मेघालय में सरकार बनाकर अपनी प्रमुख राजनीतिक उपस्थिति दर्ज कराई है। 
  • 2019 के आम चुनावों में पार्टी ने 1 लोकसभा सीट जीतकर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई।


क्षेत्रीय दल: भारत की राजनीति में उनकी भूमिका

क्षेत्रीय दल वे राजनीतिक पार्टियाँ हैं, जिन्हें किसी एक या कुछ राज्यों में प्रभावशाली माना जाता है। ये दल निर्वाचन आयोग द्वारा राज्यीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त होते हैं। हालाँकि इन्हें "क्षेत्रीय" कहा जाता है, लेकिन कुछ का राजनीतिक दृष्टिकोण राष्ट्रीय होता है।

1. क्षेत्रीय दलों की विशेषताएँ:

  • कुछ राजनीतिक दल, जैसे समाजवादी पार्टी (SP) और राष्ट्रीय जनता दल (RJD), राष्ट्रीय स्तर पर संगठनात्मक ढाँचा रखते हैं और देशभर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का प्रयास करते हैं। 
  • दूसरी ओर, बीजू जनता दल (BJD), तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS), और मिज़ो नेशनल फ्रंट (MNF) जैसे दल अपनी क्षेत्रीय पहचान पर केंद्रित रहते हैं और अपने संबंधित राज्यों के मुद्दों और हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं। 
  • इस प्रकार, भारतीय राजनीति में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दोनों प्रकार के दल अपनी अलग-अलग भूमिकाएँ निभाते हैं।

2. क्षेत्रीय दलों का महत्व:

  • पिछले तीन दशकों में क्षेत्रीय दलों की संख्या और प्रभाव में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 
  • 2014 तक लोकसभा में किसी भी राष्ट्रीय दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, जिससे राष्ट्रीय दलों को गठबंधन करना पड़ा। 
  • 1996 के बाद से लगभग हर क्षेत्रीय दल को राष्ट्रीय गठबंधन सरकार का हिस्सा बनने का अवसर मिला है, जिसने भारतीय लोकतंत्र में विविधता और संघवाद को मजबूत किया है। 
  • क्षेत्रीय दलों की उपस्थिति ने संसद को अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण और विविध बनाया है। ये दल अपने राज्यों और समुदायों की समस्याओं और मुद्दों को प्रभावी तरीके से उठाकर संसद में उनकी आवाज़ को सुनिश्चित करते हैं।



राजनीतिक दलों के मुद्दे और समाधान:

राजनीतिक दलों के लिए चुनौतियाँ

  • आंतरिक लोकतंत्र की कमी: पार्टियों में नेतृत्व का केंद्रीकरण और पारदर्शिता की कमी आम है। सदस्यता सूची और आंतरिक चुनावों में पारदर्शिता न होने से सामान्य कार्यकर्ता फैसलों में शामिल नहीं हो पाते।
  • वंशवाद: दलों में वंशवाद के कारण सामान्य कार्यकर्ताओं के लिए शीर्ष स्तर तक पहुँचना मुश्किल है। परिवारवाद अनुभवहीन लोगों को नेतृत्व में लाता है, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रियाएँ कमजोर होती हैं।
  • पैसा और अपराध का प्रभाव: धन और अपराधी तत्वों का उपयोग चुनावों में बढ़ रहा है। अमीर लोग चंदा देकर नीतियों को प्रभावित करते हैं, जिससे साफ-सुथरी राजनीति पर असर पड़ता है।
  • विकल्पहीनता: दलों की नीतियों में अंतर कम हो रहा है, जिससे जनता के पास ठोस विकल्प नहीं होते। नेताओं का अलग-अलग दलों में आना-जाना स्थिति को और जटिल बनाता है।


राजनीतिक दलों में सुधार: समाधान और सुझाव

1. समाधान:

  • आंतरिक लोकतंत्र: दलों को पारदर्शी सदस्यता और आंतरिक चुनाव सुनिश्चित करना होगा, ताकि योग्य कार्यकर्ता नेतृत्व तक पहुँच सकें।
  • वंशवाद समाप्त: योग्य और मेहनती कार्यकर्ताओं को समान अवसर देकर परिवारवाद की समस्या कम करनी होगी।
  • धन और अपराध का प्रभाव: चुनाव सुधारों के माध्यम से वित्तीय पारदर्शिता लानी होगी और अपराधियों की भागीदारी रोकनी होगी।
  • विचारधारा की विविधता: दलों को अपनी नीतियों में वैचारिक विविधता लानी चाहिए ताकि जनता को बेहतर विकल्प मिलें।

2. अब तक किए गए प्रयास:

  • दल-बदल कानून: सीट छोड़ने की शर्त ने दल-बदल को रोका।
  • संपत्ति और आपराधिक रिकॉर्ड का खुलासा: सुप्रीम कोर्ट ने उम्मीदवारों से विवरण माँगना अनिवार्य किया।
  • सांगठनिक चुनाव और आयकर रिटर्न: चुनाव आयोग ने इन्हें अनिवार्य किया, पर यह अक्सर औपचारिकता रह जाती है।

3. सुधार के सुझाव:

  • आंतरिक लोकतंत्र लागू करने के लिए स्वतंत्र प्राधिकरण बनाना।
  • महिलाओं को 33% आरक्षण देना और उन्हें अधिक प्रतिनिधित्व देना।
  • चुनावी खर्च में पारदर्शिता लाने के लिए सरकार की आंशिक मदद।

4. चुनौतियाँ:

  • दल सुधारों को लागू करने में रुचि नहीं दिखाते।
  • नए कानूनों को दरकिनार करने के लिए नियमों का दुरुपयोग।
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति और निगरानी तंत्र की कमी।

5. अन्य सुधार:

  • जन दबाव: जनता, मीडिया और आंदोलनों के माध्यम से सुधारों के लिए दबाव बनाया जा सकता है।
  • सक्रिय भागीदारी: ज्यादा लोगों को राजनीति में आकर सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में काम करना होगा।



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