राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएँ Class 10 Social Science Geography Chapter 7 Lifelines Of National Economy raashtreey arthavyavastha kee jeevan rekhaen
0HIMANSHUसितंबर 27, 2024
वस्तुओं तथा सेवाओं के आपूर्ति स्थानों से माँग स्थानों तक ले जाने हेतु परिवहन की आवश्यकता होती है।
कुछ व्यक्ति इसको उपलब्ध करवाने में संलग्न हैं।
जो व्यक्ति उत्पाद को परिवहन द्वारा उपभोक्ताओं तक पहुँचाते हैं; उन्हें व्यापारी कहा जाता है।
एक देश के विकास की गति वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन के साथ उनके एक स्थान से दूसरे स्थान तक वहन (movement) की सुविधा पर भी निर्भर करना पड़ता है।
इसलिए सक्षम परिवहन के साधन तीव्र विकास हेतु पूर्व अपेक्षित हैं।
परिवहन का वर्गीकरण
1. स्थल परिवहन
सड़क परिवहन
रेल परिवहन
पाइपलाइन
2. जल परिवहन
आंतरिक जलपरिवहन
समुद्री परिवहन
3. वायु परिवहन
घरेलू विमान सेवा
अंतर्राष्ट्रीय विमान सेवा ।
बहुत समय तक व्यापार तथा परिवहन सुविधा एक सीमित क्षेत्र तक ही किया जाता था।
विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के विकास के साथ व्यापार व परिवहन के प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि हुई है।
सक्षम व तीव्र गति वाले परिवहन से आज संसार एक बड़े गाँव में परिवर्तित हो गया है।
परिवहन का यह विकास संचार साधनों के विकास की सहायता से ही संभव हो सका है।
इसीलिए परिवहन, संचार व व्यापार एक दूसरे के पूरक हैं।
स्थल परिवहन
भारत विश्व का दूसरा सर्वाधिक सड़क जाल वाला देश है, यह सड़क जाल लगभग 62.16 लाख किमी. है ।
भारत में सड़क परिवहन, रेल परिवहन से पहले प्रारंभ हुआ।
निर्माण तथा व्यवस्था में सड़क परिवहन, रेल परिवहन की अपेक्षा अधिक सुविधाजनक है।
सड़क परिवहन का महत्व :
रेलवे लाइन की अपेक्षा सड़कों की निर्माण लागत बहुत कम है।
अपेक्षाकृत ऊबड़-खाबड़ व विच्छिन्न भू-भागों पर सड़कें बनाई जा सकती हैं।
अधिक ढाल प्रवणता तथा पहाड़ी क्षेत्रों में भी सड़कें निर्मित की जा सकती हैं।
अपेक्षाकृत कम व्यक्तियों, कम दूरी व कम वस्तुओं के परिवहन में सड़क मितव्ययी है।
यह घर-घर सेवाएँ उपलब्ध करवाता है तथा सामान चढ़ाने व उतारने की लागत भी अपेक्षाकृत कम है।
सड़क परिवहन, अन्य परिवहन साधनों के उपयोग में एक कड़ी के रूप में भी कार्य करता है, जैसे सड़कें, रेलवे स्टेशन, वायु व समुद्री पत्तनों को जोड़ती हैं।
भारत में सड़कों का विभाजन
स्वर्णिम चतुर्भुज महा राजमार्ग
भारत सरकार ने दिल्ली-कोलकत्ता, चेन्नई-मुंबई व दिल्ली को जोड़ने वाली 6 लेन वाली महा राजमार्गों की सड़क परियोजना शुरूकी है।
इस परियोजना के तहत दो गलियारे प्रस्तावित हैं प्रथम उत्तर-दक्षिण गलियारा जो श्रीनगर को कन्याकुमारी से जोड़ता है तथा द्वितीय जो पूर्व-पश्चिम गलियारा जो सिलचर (असम) तथा पोरबंदर (गुजरात) को जोड़ता है। इस महा राजमार्ग का प्रमुख उद्देश्य भारत के मेगासिटी (Mega cities) के मध्य की दूरी व परिवहन समय को न्यूनतम करना है।
यह राजमार्ग परियोजना भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के अधिकार क्षेत्र में है।
राष्ट्रीय राजमार्ग (National Highways) -
राष्ट्रीय राजमार्ग देश के दूरस्थ भागों को जोड़ते हैं।
ये प्राथमिक सड़क तंत्र हैं।
अनेक प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्ग उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम दिशाओं में फैले हैं।
राज्य राजमार्ग (State Highways)
राज्यों की राजधानियों को जिला मुख्यालयों से जोड़ने वाली सड़कें राज्य राजमार्ग कहलाती हैं।
जिला मार्ग
ये सड़कें जिले के विभिन्न प्रशासनिक केंद्रों को जिला मुख्यालय से जोड़ती हैं।
अन्य सड़कें
इस वर्ग के अंतर्गत वे सड़कें आती हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों तथा गाँवों को शहरों से जोड़ती हैं।
'प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क परियोजना' के तहत इन सड़कों के विकास को विशेष प्रोत्साहन मिला है।
इस परियोजना के कुछ विशेष प्रावधान हैं जिसमें देश के प्रत्येक गाँव को प्रमुख शहरों से पक्की सड़कों द्वारा जोड़ना प्रस्तावित है।
सीमांत सड़कें -
भारत सरकार प्राधिकरण के अधीन सीमा सड़क संगठन है जो देश के सीमांत क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण व उनकी देख-रेख करता है।
यह संगठन 1960 में बनाया गया जिसका कार्य उत्तर तथा उतरी-पूर्वी क्षेत्रों में सामरिक महत्त्व की सड़कों का विकास करना था।
इन सड़कों के विकास से दुर्गम क्षेत्रों में अभिगम्यता बढ़ी है तथा ये इन क्षेत्रों के आर्थिक विकास में भी सहायक हुई हैं।
राजमार्ग सुरंग अटल टनल
विश्व की सबसे लंबी राजमार्ग सुरंग अटल टनल (9.02 किलोमीटर) सीमा सड़क संगठन द्वारा बनाई गयी है।
यह सुरंग पूरे साल मनाली को लाहौल-स्पीति घाटी से जोड़ती है।
पहले यह घाटी भारी बर्फबारी के कारण लगभग 6 महीने तक अलग-थलग रहती थी।
यह सुरंग हिमालय की पीरपंजाल पर्वतमाला में औसत समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर अति-आधुनिक सुविधाओं के साथ बनाई गई है।
सड़क निर्माण में प्रयुक्त पदार्थ के आधार पर सड़कों का विभाजन :
पक्की सड़कें, सीमेंट, कंक्रीट व तारकोल द्वारा निर्मित होती है, अतः ये बारहमासी सड़कें हैं।
कच्ची सड़कें वर्षा ऋतु में अनुपयोगी हो जाती है।
रेल परिवहन
भारत में रेल परिवहन, वस्तुओं तथा यात्रियों के परिवहन का प्रमुख साधन है।
रेल परिवहन अनेक कार्यों में सहायक है जैसे व्यापार, भ्रमण, तीर्थ यात्राएँ व लंबी दूरी तक सामान का परिवहन आदि।
एक प्रमुख परिवहन के साधन के अतिरिक्त, पिछले 150 वर्षों से भी अधिक समय से भारतीय रेल एक महत्त्वपूर्ण समंवयक के रूप में भी जानी जाती है।
भारतीय रेलवे देश की अर्थव्यवस्था, उद्योगों व कृषि के तीव्र गति से विकास के लिए उत्तरदायी है।
भारतीय रेल परिवहन देश का सर्वाधिक बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र का प्राधिकरण है।
देश की पहली रेलगाड़ी 1853 में मुंबई और थाणे के मध्य चलाई गई जो 34 किमी. की दूरी तय करती थी।
भारतीय रेल परिवहन को 17 रेल प्रखंडों में पुनः संकलित किया गया है।
देश में रेल परिवहन के वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों में भू-आकृतिक, आर्थिक व प्रशासकीय कारक प्रमुख हैं।
उत्तरी मैदान अपनी विस्तृत समतल भूमि, सघन जनसंख्या घनत्व, संपन्न कृषि व प्रचुर संसाधनों के कारण रेल परिवहन के विकास व वृद्धि में सहायक रहा है,
लेकिन असंख्य नदियों के विस्तृत जल मार्गों पर पुलों के निर्माण में कुछ बाधाएँ आई हैं।
प्रायद्वीप भारत में, रेलमार्ग ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी क्षेत्रों, छोटी पहाड़ियों और सुरंगों आदि से होकर गुजरते हैं।
हिमालय पर्वतीय क्षेत्र भी दुर्लभ उच्चावच, विरल जनसंख्या तथा आर्थिक अवसरों की कमी के कारण रेलवे लाइन के निर्माण में प्रतिकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है।
पश्चिमी राजस्थान, गुजरात के दलदली भाग, मध्यप्रदेश के वन-क्षेत्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा व झारखंड में रेल लाइन निर्माण करना कठिन है।
सह्याद्रि तथा उससे सन्निध क्षेत्र को भी घाट या दरों के द्वारा ही पार कर पाना संभव है।
कुछ वर्ष पहले भारत के महत्त्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्र में पश्चिमी तट के साथ कोंकण रेलवे के विकास ने यात्री व वस्तुओं के आवागमन को सुविधाजनक बनाया है।
यद्यपि यहाँ असंख्य समस्याएँ भी हैं, जैसे भूस्खलन तथा किसी-किसी भाग में रेलवे ट्रैक का धँसना आदि।
आज राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में परिवहन के अन्य सभी साधनों की अपेक्षा रेल परिवहन प्रमुख हो गया है।
रेल परिवहन की समस्याएँ :
बहुत से यात्री बिना टिकट यात्रा करते हैं।
रेल संपत्ति की हानि तथा चोरी जैसी समस्याएँ भी पूर्णतया समाप्त नहीं हुई हैं।
जंजीर खींच कर यात्री कहीं भी अनावश्यक रूप से गाड़ी रोकते हैं, जिससे रेलवे को भारी हानि उठानी पड़ती है।
पाइपलाइन
पाइपलाइन एक नया परिवहन का साधन है।
पहले पाइपलाइन का उपयोग शहरों व उद्योगों में पानी पहुँचाने हेतु होता था।
आज इसका प्रयोग कच्चा तेल, पेट्रोल उत्पाद तथा तेल से प्राप्त प्राकृतिक तथा गैस क्षेत्र से उपलब्ध गैस शोधनशालाओं, उर्वरक कारखानों व बड़े ताप विद्युत गृहों तक पहुँचाने में किया जाता है।
ठोस पदार्थों को तरल अवस्था (Slurry) में परिवर्तित कर पाइपलाइनों द्वारा ले जाया जाता है।
सुदूर आंतरिक भागों में स्थित शोधनशालाएँ जैसे बरौनी, मथुरा, पानीपत्त तथा गैस पर आधारित उर्वरक कारखानों की स्थापना पाइपलाइनों के जाल के कारण ही संभव हो पाई है।
पाइपलाइन बिछाने की प्रारंभिक लागत अधिक है लेकिन इसको चलाने की (Running) लागत न्यूनतम है।
वाहनांतरण देरी तथा हानियाँ इसमें लगभग नहीं के बराबर है।
पाइपलाइन परिवहन के तीन प्रमुख जाल हैं-
पहली 1,700 किलोमीटर लंबी हजीरा विजयपुर-जगदीशपुर क्रॉस कंट्री गैस पाइपलाइन, मुंबई हाई और बसीन गैस क्षेत्रों को पश्चिमी और उत्तरी भारत के विभिन्न उर्वरक, बिजली और औद्योगिक परिसरों से जोड़ती है।
ऊपरी असम के तेल क्षेत्रों से गुवाहाटी, बरौनी व इलाहाबाद के रास्ते कानपुर (उत्तर प्रदेश) तक इसकी एक शाखा बरौनी से राजबंध होकर हल्दिया तक है दूसरी राजबंध से मौरी ग्राम तक तथा गुवाहाटी से सिलिगुड़ी तक है।
गुजरात में सलाया से वीरमगाँव, मथुरा, दिल्ली व सोनीपत के रास्ते पंजाब में जालंधर तक। इसको अन्य शाखा वडोदरा के निकट कोयली को चक्णु व अन्य स्थानों से जोड़ती है।
जल परिवहन
भारत के लोग प्राचीनकाल से समुद्री यात्राएँ करते रहे हैं।
इसके नाविकों ने दूर तथा पास के क्षेत्रों में भारतीय संस्कृति व व्यापार को फैलाया है।
जल परिवहन, परिवहन का सबसे सस्ता साधन है।
यह भारी व स्थूलकाय वस्तुएँ ढोने में अनुकूल है।
यह परिवहन साधनों में ऊर्जा सक्षम तथा पर्यावरण अनुकूल हैं।
भारत में अंतः स्थलीय नौसंचालन जलमार्ग 14,500 किमी. लंबा है।
इसमें केवल 5,685 किमी. मार्ग ही मशीनीकृत नौकाओं द्वारातय किया जाता है।
भारत सरकार द्वारा घोषित राष्ट्रीय जलमार्ग:
नौगम्य जलमार्ग संख्या-1 हल्दिया तथा इलाहाबाद के मध्य गंगा जलमार्ग जो 1620 किमी. लंबा है
नौगम्य जलमार्ग संख्या-2 सदिया व धुबरी के मध्य 891 किमी. लंबा ब्रह्मपुत्र नदी जल मार्ग
नौगम्य जलमार्ग संख्या-3 केरल में पश्चिम-तटीय नहर (कोट्टापुरम से कोल्लम तक, उद्योगमंडल तथा चंपक्कारा नहरें 205 किमी.) -
राष्ट्रीयजलमार्ग-4 काकीनाडा और पुदुच्चेरी नहर स्ट्रेच के साथ-साथ गोदावरी और कृष्णा नदी का विशेष विस्तार (1078 किमी.)-
राष्ट्रीय जलमार्ग-5 मातई नदी, महानदी के डेल्टा चैनल, ब्राह्मणी नदी और पूर्वी तटीय नहर के साथ ब्रह्माणी नदी का विशेष विस्तार- (588 किमी.) .
कुछ अन्य अंतर जलमार्ग भी हैं जिन पर परिवहन होता है इसमें माण्डवी, जुआरी और कम्बरजुआ, सुन्दरवन, बराक, केरल का पश्चजल।
विदेशी व्यापार भारतीय तट पर स्थित पत्तनों द्वारा किया जाता है।
देश का 95 प्रतिशत व्यापार (मुद्रा रूप में 68 प्रतिशत) समुद्रों द्वारा ही होता है।
प्रमुख समुद्री पत्तन
भारत की 7,516.6 किमी. लंबी समुद्री तट रेखा के साथ 12 प्रमुख तथा 200 मध्यम व छोटे पत्तन हैं।
कांडला पत्तन
ये प्रमुख पत्तन देश का 95 प्रतिशत विदेशी व्यापार संचालित करते हैं।
देश विभाजन से कराची पत्तन जो पाकिस्तान में शामिल हो गया था उसकी कमी को पूरा करने तथा मुंबई पत्तन से होने वाले व्यापारिक दबाव को कम करने के लिए किया गया था।
कांडला जिसे दीनदयाल पत्तन के नाम से भी जाना जाता है। यह एक ज्वारीय पत्तन है।
यह जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान व गुजरात के औद्योगिक तथा खाद्यान्नों के आयात-निर्यात को संचालित करता है।
मुंबई पत्तन
मुंबई वृहत्तम पत्तन है जिसके प्राकृतिक खुले, विस्तृत व सुचारु पोताश्रय हैं।
मुंबई पत्तन के अधिक परिवहन को ध्यान में रखकर इसके सामने जवाहरलाल नेहरू पत्तन विकसित किया गया जो इस पूरे क्षेत्र को एक समूह पत्तन की सुविधा भी प्रदान कर सके।
लौह अयस्क के निर्यात के संदर्भ में मारमागाओ पत्तन देश का महत्त्वपूर्ण पत्तन है।
यहाँ से देश के कुल निर्यात का आधा (50 प्रतिशत) लौह अयस्क निर्यात किया जाता है।
न्यू-मैंगलोर पत्तन
कर्नाटक में स्थित न्यू-मैंगलोर पत्तन कुद्रेमुख खानों से निकले लौह अयस्क का निर्यात करता है।
कोची पत्तन
सुदूर दक्षिण-पश्चिम में कोची पत्तन है; यह एक लैगून के मुहाने पर स्थित एक प्राकृतिक पोताश्रय है।
तूतीकोरन पत्तन
पूर्वी तट के साथ तमिलनाडु में दक्षिण-पूर्वी छोर पर तूतीकोरन पत्तन है।
यह एक प्राकृतिक पोताश्रय है तथा इसकी पृष्ठभूमि भी अत्यंत समृद्ध है।
यह पत्तन हमारे पड़ोसी देशों जैसे श्रीलंका, मालदीव आदि तथा भारत के तटीय क्षेत्रों की भिन्न वस्तुओं के व्यापार को संचालित करता है।
चेन्नई पत्तन
चेन्नई हमारे देश का प्राचीनतम कृत्रिम पत्तन है।
व्यापार की मात्रा तथा लदे सामान के संदर्भ में इसका मुंबई के बाद दूसरा स्थान है।
विशाखापट्नम पत्तन
विशाखापट्नम स्थल से घिरा, गहरा व सुरक्षित पत्तन है।
प्रारम्भ में यह पत्तन लौह अयस्क निर्यातक के रूप में विकसित किया गया था।
पारादीप पत्तन
ओडिशा में स्थित पारादीप पत्तन विशेषतः लौह अयस्क का निर्यात करता है।
कोलकाता पत्तन
कोलकाता एक अंतः स्थलीय नदीय पत्तन है।
यह पत्तन गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन के वृहत् व समृद्ध पृष्ठभूमि को सेवाएँ प्रदान करता है।
ज्वारीय (Tidal) पत्तन होने के कारण तथा हुगली के तलछट जमाव से इसे नियमित रूप से साफ करना पड़ता है। कोलकाता पत्तन पर बढ़ते व्यापार को कम करने हेतु हल्दिया सहायक पत्तन के रूप में विकसित किया गया है।
वायु परिवहन
आज वायु परिवहन तीव्रतम, आरामदायक व प्रतिष्ठित परिवहन का साधन है।
इसके द्वारा अति दुर्गम स्थानों जैसे - ऊँचे पर्वत, मरुस्थलों, घने जंगलों व लंबे समुद्री रास्तों को सुगमता से पार किया जा सकता है।
वायु परिवहन के अभाव में, देश के उत्तरी पूर्वी राज्यों के विषय में सोचें, जहाँ बड़ी नदियाँ, विच्छिन्न धरातल, घने जंगल, निरंतर बाढ़ आदि एक सामान्य बात है।
हवाई यात्रा ने इसे अधिक अभिगम्य बना दिया है।
पवन हंस हेलीकाप्टर लिमिटेड, तेल व प्राकृतिक गैस आयोग को इसकी अपतटीय संक्रियाओं में तथा अगम्य व दुर्लभ भू-भागों जैसे उत्तरी-पूर्वी राज्यों तथा जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश व उत्तराखण्ड के आंतरिक क्षेत्रों में हेलीकाप्टर सेवाएँ उपलब्ध करवाता है।
उड़ान परियोजना
उड़ान (उड़े देश का आम नागरिक) विश्व स्तर पर अपनी तरह की पहली योजना है, जिसे क्षेत्रीय विमानन बाजार में तेजी लाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
आम नागरिक के लिए उड़ान को किफायती बनाकर क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए नागर विमानन मंत्रालय, द्वारा क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना (RCS) उड़ान की कल्पना की गई थी।
योजना का मुख्य विचार सक्षम नीतियों और प्रोत्साहनों के माध्यम से एयरलाइनों को क्षेत्रीय और दूरस्थ मागों पर उड़ानें संचालित करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
संचार सेवाएँ
जब से मानव पृथ्वी पर अवतरित हुआ है, उसने विभिन्न संचार माध्यमों का प्रयोग किया है।
आधुनिक समय में बदलाव की गति तीव्र है।
संदेश प्राप्तकर्ता या संदेश भेजने वाले के गतिविहीन रहते हुए भी लंबी दूरी का संचार बहुत आसान है।
निजी दूरसंचार तथा जनसंचार में दूरदर्शन, रेडियो, समाचार-पत्र समूह, प्रेस तथा सिनेमा, आदि देश के प्रमुख संचार साधन हैं।
भारत का डाक-संचार तंत्र विश्व का वृहत्तम है।
यह पार्सल, निजी पत्र व्यवहार तथा तार आदि को संचालित करता है।
कार्ड व लिफाफा बंद चिट्ठी, पहली श्रेणी की डाक समझी जाती है तथा विभिन्न स्थानों पर वायुयान द्वारा पहुँचाए जाते हैं।
द्वितीय श्रेणी की डाक में रजिस्टर्ड पैकेट, किताबें, अखबार तथा मैगजीन शामिल हैं।
ये धरातलीय डाक द्वारा पहुँचाए जाते हैं तथा इनके लिए स्थल व जल परिवहन का प्रयोग किया जाता है।
बड़े शहरों व नगरों में डाक-संचार में शीघ्रता हेतु. हाल ही में छः डाक मार्ग बनाए गए हैं।
इन्हें राजधानी मार्ग, मेट्रो चैनल, ग्रीन चैनल, व्यापार (Business) चैनल, भारी चैनल तथा दस्तावेज चैनल के नाम से जाना जाता है।
जन-संचार, मानव को मनोरंजन के साथ बहुत से राष्ट्रीय कार्यक्रमों व नीतियों के विषय में जागरूक करता है।
इसमें रेडियो, दूरदर्शन, समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, किताबें तथा चलचित्र सम्मिलित हैं।
आकाशवाणी (आल इंडिया रेडियो) राष्ट्रीय, क्षेत्रीय तथा स्थानीय भाषा में देश के विभिन्न भागों में अनेक वर्गों के व्यक्तियों के लिए विविध कार्यक्रम प्रसारित करता है।
दूरदर्शन, देश का राष्ट्रीय समाचार व संदेश माध्यम है तथा विश्व के बृहत्तम संचार-तंत्र में एक है।
यह विभिन्न आयु वर्ग के व्यक्तियों हेतु मनोरंजक, ज्ञानवर्धक, व खेल-जगत संबंधी कार्यक्रम प्रसारित करता है।
भारत में वर्ष भर अनेक समाचार पत्र तथा सामयिक पत्रिकाएँ प्रकाशित की जाती हैं।
समाचार पत्र लगभग 100 भाषाओं तथा बोलियों में प्रकाशित होते हैं।
हमारे देश में सर्वाधिक समाचार पत्र हिंदी भाषा में प्रकाशित होते हैं तथा इसके बाद अंग्रेजी व उर्दू के समाचार पत्र आते हैं।
भारत विश्व में सर्वाधिक चलचित्रों का उत्पादक भी है।
यह कम अवधि वाली फिल्में, वीडियो फीचर फिल्म तथा छोटी वीडियो फिल्में बनाता है।
भारतीय व विदेशी सभी फिल्मों को प्रमाणित करने का अधिकार केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड को है।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार
राज्यों व देशों में व्यक्तियों के बीच वस्तुओं का आदान-प्रदान व्यापार कहलाता है।
बाजार एक ऐसी जगह है जहाँ इसका विनिमय होता है।
दो देशों के मध्य यह व्यापार अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कहलाता है।
यह समुद्री, हवाई व स्थलीय मागों द्वारा हो सकता है।
यद्यपि स्थानीय व्यापार शहरों, कस्बों व गाँवों में होता है.
राज्यस्तरीय व्यापार दो या अधिक राज्यों के मध्य होता है।
एक देश के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की प्रगति उसके आर्थिक वैभव का सूचक है।
इसीलिए इसे राष्ट्र का आर्थिक बैरोमीटर भी कहा जाता है।
सभी देश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर निर्भर हैं क्योंकि संसाधनों की उपलब्धता क्षेत्रीय है ।
आयात तथा निर्यात व्यापार के घटक हैं।
आयात व निर्यात का अंतर ही देश के व्यापार संतुलन को निर्धारित करता है।
अगर निर्यात मूल्य आयात मूल्य से अधिक हो तो उसे अनुकूल व्यापार संतुलन कहते हैं।
इसके विपरीत निर्यात की अपेक्षा अधिक आयात असंतुलित व्यापार कहलाता है।
विश्व के सभी भौगोलिक प्रदेशों तथा सभी व्यापारिक खंडों के साथ भारत के व्यापारिक संबंध हैं।
भारत में निर्यात होने वाली प्रमुख वस्तुएँ रत्न व जवाहरात, रसायन एवं संबंधित उत्पाद तथा कृषि एवं संबंधित उत्पाद हैं।
भारत में आयातित वस्तुओं में कच्चा पेट्रोलियम तथा उत्पाद, रत्न व जवाहरात, आधार धातुएँ, मशीनें, कृषि व अन्य उत्पाद शामिल हैं।
भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक सॉफ्टवेयर महाशक्ति के रूप में उभरा है तथा सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से अत्यधिक विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहा है।
पर्यटन एक व्यापार के रूप में
पिछले तीन दशकों में भारत में पर्यटन उद्योग में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है।
150 लाख से अधिक व्यक्ति पर्यटन उद्योग में प्रत्यक्ष रूप से संलग्न हैं।
पर्यटन राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहित करता है तथा स्थानीय हस्तकला व सांस्कृतिक उद्यमों को प्रश्रय देता है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह हमें संस्कृति तथा विरासत की समझ विकसित करने में सहायक है।
विदेशी पर्यटक भारत में विरासत पर्यटन, पारि-पर्यटन , रोमांचकारी पर्यटन, सांस्कृतिक पर्यटन, चिकित्सा पर्यटन तथा व्यापारिक पर्यटन के लिए आते हैं।
देश के विभिन्न भागों में पर्यटन की अपार संभावनाएँ हैं।
पर्यटन उद्योग के विकास हेतु विभिन्न प्रकार के पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं।
डिजिटल भारत
डिजिटल भारत एक ज्ञान आधारित परिवर्तन के लिए, भारत को तैयार करने के लिए कार्यक्रम है।
डिजिटल भारत कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य IT (Indian Talent) +IT (Information Technology)= IT (India Tommorow) में होने वाले परिवर्तन को समझना है और तकनीक को केन्द्र में रखकर बदलाव लाना है।