परिचय
- भू-पर्पटी का निर्माण करने वाले पृथ्वी के भीतर सक्रिय आंतरिक बलों में पाया जाने वाला अंतर ही पृथ्वी के बाह्य सतह में अंतर के लिए उत्तरदायी है।
- धरातल सूर्य से प्राप्त ऊर्जा द्वारा प्रेरित बाह्य बलों से अनवरत प्रभावित होता रहता है।
- धरातल पृथ्वी मंडल के अंतर्गत उत्पन्न हुए बाह्य बलों एवं पृथ्वी के अंदर उद्भूत आंतरिक बलों से अनवरत प्रभावित होता है
- बाह्य बलों को बहिर्जनिक (Exogenic) तथा आंतरिक बलों को अंतर्जनित (Endogenic) बल कहते हैं।
- बहिर्जनिक बलों की क्रियाओं का परिणाम होता है- उभरी हुई भू-आकृतियों का विघर्षण (Wearing down) तथा बेसिन/निम्न क्षेत्रों का भराव
- अंतर्जनित शक्तियाँ निरंतर धरातल के भागों को ऊपर उठाती हैं या उनका निर्माण करती हैं तथा इस प्रकार बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ उच्चावच में भिन्नता को सम (बराबर) करने में असफल रहती हैं।
तल संतुलन
- धरातल पर अपरदन के माध्यम से उच्चावच के मध्य अंतर के कम होने को तल संतुलन (Gradation) कहते हैं।
- मानव अपने निर्वाह के लिए धरातल पर निर्भर है तथा इसका व्यापक उपयोग करता है।
- धरातल के अधिकांश भाग को बहुत लंबी अवधि में आकार प्राप्त हुआ है तथा मानव द्वारा इसके उपयोग, दुरुपयोग एवं कुप्रयोग के कारण इसकी संभाव्यता में बहुत तीव्र गति से ह्रास हो रहा है।
- मानव उपयोग जनित हानिकारक प्रभाव कों कम करने एवं भविष्य के लिए इसके संरक्षण हेतु आवश्यक उपाय किए जा सकते हैं।
भू-आकृति प्रक्रियाएं
1. अंतर्जनित (Endogenic) बल
2. बहिर्जनिक (Exogenic) बल
1. अंतर्जनित बल
i. पटल विरूपण प्रक्रिया
- एपिरोजेनिक बल
- तीक्ष्ण वलयन/पर्वतनी
ii. आकस्मिक प्रक्रिया
- भूकम्प
- ज्वालामुखी
i. पटल विरूपण प्रक्रिया
- पटल विरूपण से आशय उस प्रक्रिया से है जिसमे पृथ्वी की पर्पटी में झुकाव, वलन भ्रंश या विभंग पैदा होता है तथा धरातल पर असमानता उत्पन्न होती हैं ।
- यह प्रक्रिया पृथ्वी के अन्दर बहुत ही धीमी गति से कार्य करती है तथा इसका प्रभाव बहुत लम्बे समय बाद दिखाई दैता है ।
एपिरोजेनिक बल
- एपिरोजेनिक बल
- ऊपर की ओर उभार
- नीचे की ओर धंसना
- ये बल लंबवत रूप से कार्य करते हैं और महाद्वीपों के ताना-बाना और नीचे की ओर बढ़ते हैं अर्थात एक बड़े महाद्वीपीय द्रव्यमान को ऊपर और नीचे की ओर धकेला जाता है।
पर्वतनी
- तनावात्मक बल
- टूटना
- भ्रंश
- संपीड़नात्मक बल
- लपेटन
- वलन
ii. आकस्मिक प्रक्रिया