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भू-आकृति प्रक्रियाएं notes in hindi class 11 geography chapter 5 Book 1 Geomorphic processes bhoo-aakrti prakriyaen 2024 -25

भू-आकृति प्रक्रियाएं notes in hindi

 परिचय 

  • भू-पर्पटी का निर्माण करने वाले पृथ्वी के भीतर सक्रिय आंतरिक बलों में पाया जाने वाला अंतर ही पृथ्वी के बाह्य सतह में अंतर के लिए उत्तरदायी है। 
  •  धरातल सूर्य से प्राप्त ऊर्जा द्वारा प्रेरित बाह्य बलों से अनवरत प्रभावित होता रहता है।
  • धरातल पृथ्वी मंडल के अंतर्गत उत्पन्न हुए बाह्य बलों एवं पृथ्वी के अंदर उद्भूत आंतरिक बलों से अनवरत प्रभावित होता है
  • बाह्य बलों को बहिर्जनिक (Exogenic) तथा आंतरिक बलों को अंतर्जनित (Endogenic) बल कहते हैं।
  • बहिर्जनिक बलों की क्रियाओं का परिणाम होता है- उभरी हुई भू-आकृतियों का विघर्षण (Wearing down) तथा बेसिन/निम्न क्षेत्रों का भराव
  • अंतर्जनित शक्तियाँ निरंतर धरातल के भागों को ऊपर उठाती हैं या उनका निर्माण करती हैं तथा इस प्रकार बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ उच्चावच में भिन्नता को सम (बराबर) करने में असफल रहती हैं।



तल संतुलन 

  • धरातल पर अपरदन के माध्यम से उच्चावच के मध्य अंतर के कम होने को तल संतुलन (Gradation) कहते हैं।
  • मानव अपने निर्वाह के लिए धरातल पर निर्भर है तथा इसका व्यापक उपयोग करता है।
  • धरातल के अधिकांश भाग को बहुत लंबी अवधि में आकार प्राप्त हुआ है तथा मानव द्वारा इसके उपयोग, दुरुपयोग एवं कुप्रयोग के कारण इसकी संभाव्यता में बहुत तीव्र गति से ह्रास हो रहा है।
  • मानव उपयोग जनित हानिकारक प्रभाव कों कम करने एवं भविष्य के लिए इसके संरक्षण हेतु आवश्यक उपाय किए जा सकते हैं।



भू-आकृति प्रक्रियाएं 

1. अंतर्जनित (Endogenic) बल

2. बहिर्जनिक  (Exogenic) बल


1. अंतर्जनित बल

i. पटल विरूपण प्रक्रिया 

  • एपिरोजेनिक बल 
  • तीक्ष्ण वलयन/पर्वतनी 

ii. आकस्मिक प्रक्रिया 

  • भूकम्प 
  • ज्वालामुखी 


i. पटल विरूपण प्रक्रिया 

  • पटल विरूपण से आशय उस प्रक्रिया से है जिसमे पृथ्वी की पर्पटी में झुकाव, वलन भ्रंश या विभंग पैदा होता है तथा धरातल पर असमानता उत्पन्न होती हैं ।
  • यह प्रक्रिया पृथ्वी के अन्दर बहुत ही धीमी गति से कार्य करती है तथा इसका प्रभाव बहुत लम्बे समय बाद दिखाई दैता है ।

एपिरोजेनिक बल 

  • एपिरोजेनिक बल 
  • ऊपर की ओर उभार 
  • नीचे की ओर धंसना 

  • ये बल लंबवत रूप से कार्य करते हैं और महाद्वीपों के ताना-बाना और नीचे की ओर बढ़ते हैं अर्थात एक बड़े महाद्वीपीय द्रव्यमान को ऊपर और नीचे की ओर धकेला जाता है।

पर्वतनी 

  • तनावात्मक बल
  • टूटना 
  • भ्रंश 
  • संपीड़नात्मक बल
  • लपेटन 
  • वलन 


ii. आकस्मिक प्रक्रिया 

  • आकस्मिक अंतर्जात बलों द्वारा उत्पन्न संचलन को इसमें रखा जाता है । 
  • इससे उत्पन्न घटनाएं आकस्मिक ( अचानक ) होती है तथा अचानक ही इनसे भूतल पर नीचे तथा ऊपर विनाशकारी परिवर्तन होते हैं। 
  • आकस्मिक संचलनों में भूकम्प व ज्वालामुखी प्रमुख हैं।

ज्वालामुखीयता

  • पृथ्वी पर सबसे ऊपरी सतह में बनी दरार या छिद्र से नीचे के पिघले पत्थर यां अन्य सामग्री के लावा और गैसों के रूप में उलगाव को ज्वालामुखीयता कहा जाता है ।
  • लावा का ऊपर आना और वहां जमकर ठोस रूप लेना दोनों ही इस प्रक्रिया में शामिल है ।



2. बहिर्जनिक बल

1. अपक्षय 

2. बृहद संचलन 

3. अपरदन एवं निक्षेपन


1. अपक्षय

  • अपक्षय वह प्रक्रिया है जिसमे चट्टानें बाहरी कारको के द्वारा विघटित और अपघटित होती रहती है
  • जैसे : पवन वर्षा तापमान सूक्ष्म जीवाणु जीव जंतु आदि

अपक्षय के प्रकार 

I. रासायनिक 

II. भौतिक 

III. जैविक 


I. रासायनिक अपक्षय

  • रासायनिक अपक्षय को निम्न उदाहरणों द्वारा समझा जा सकता है
  • नमक की एक डली को आद्र स्थान पर रखने से वह गल जाता है और खत्म हो जाता है इसी तरह लोहे को खुले स्थान में रखने से उसमे जंग लग जाता है और लोहा धीरे धीरे नष्ट होकर मिटटी में मिल जाता है ।
  • नमक का गलना और लोहे का नष्ट होना रासायनिक प्रक्रियाएँ हैं तथा यही प्रक्रिया चट्टानों के साथ भी होती है जिसे रासायनिक अपक्षय कहा जाता है ।

रासायनिक अपक्षय के प्रकार

1. विलयन

  • चट्टानों में मौजूद कई प्रकार के खनिज जल में घुल जाते हैं जैसे नाइट्रेट, सलफेट एवं पोटैशियम और इस तरह अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों तथा आद्र जलवायु में ऐसे खनिजों से युक्त शैलों का अपक्षय हो जाता है ।

2. कार्बोनेशन

  • वर्षा के जल में घुली हुई कार्बनडाइऑक्साइड से कार्बनिक अम्ल का निर्माण होता है यह अम्ल चुना युक्त चट्टानों को घुला देता है जिससे उनका अपक्षय हो जाता है ।

3. जलयोजन

  • कुछ चट्टानें जैसे कैल्शियम सल्फेट जल को सोख लेती हैं और फ़ैल कर कमज़ोर हो जाती हैं तथा बाद में टूट जाती हैं ।

4. आक्सीकरण

  • लोहे पर जंग लगना ऑक्सीकरण का अच्छा उदाहरण है चट्टानों के ऑक्सीजन गैस के संपर्क में आने से यह प्रक्रिया होती है और यह प्रक्रिया वायुमंडल एवं ऑक्सीजन युक्त जल के मिलने से होती है |

II. भौतिक अपक्षय

  • भौतिक अपक्षय के कारण चट्टानें छोटे छोटे टुकड़ों में टूट जाती हैं
  • जिनके लिए :- गुरुत्वाकर्षण बल, तापमान में परिवर्तन शुष्क और आद्र परिस्थितियों का अदल बदल कर आना जैसे कारक जिम्मेदार होते हैं ।

III. जैविक अपक्षय

  • जीवों की वृद्धि यां संचलन से उत्पन्न अपक्षय एवं भौतिक परिवर्तन से खनिजों का स्थानान्तरण होता है और मानवीय क्रियाएँ भी जैविक अपक्षय में सहायक होती हैं ।
  • केंचुओं, दीमकों, चूहों इत्यादि जीवों द्वारा बिल खोदने के द्वारा नई सतहों का निर्माण होता है ।
  • पौधों की जड़ें धरातल के पदार्थों पर जबरदस्त प्रभाव डालती हैं तथ उन्हें यांत्रिक ढंग से तोड़कर अलग अलग कर देती है ।


अपक्षय का महत्व

  • चट्टानें छोटे टुकड़ों में बंटकर मृदा निर्माण में सहायक होती हैं ।
  • अपक्षय चट्टानों में मूल्यवान खनिजों जैसे लौह, मैगनीज, तांबा आदि के संकेन्द्रण में सहायक होता है क्योंकि अपक्षय के कारण अन्य पदार्थों का निक्षालन हो जाता है
  • वे स्थानांतरित हो जाते हैं एवं खनिज एक जगह इकट्ठे हो जाते हैं ।



बृहत् संचलन

  • इसके अंतर्गत वे सभी संचलन आते हैं जिनमे शैलों का वृहत मलवा गुरुत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव के कारण ढाल के अनुरूप स्थानांतरित हो जाता है ।
  • बृहत् संचलन में गुरुत्वाकर्षण शक्ति सहायक होती है ।
  • इसका मतलब है की वायु, जल, हिम ही अपने साथ एक स्थान से दूसरे स्थान तक मलवा नहीं ढोते अपितु मॅलवा भी अपने साथ वायु, जल, हिम ले जाता है ।


1. भूस्खलन

  • सामग्री का तीव्र गति से ढलान पर खिसकना।
  • निर्भर करता है शैल की संरचना, क्षरण, और ढलान की ज्यामिति पर।

2. अवसर्पण

  • शैल या मलवा इकाइयों का ढलान पर फिसलना और पीछे की ओर घूमना।
  • घूर्णीय (रोटेशनल) फिसलन।

3. मलवा स्खलन

  • मलवे का तेजी से लुढ़कना या खिसकना।
  • बिना घूर्णन के, खासकर तीव्र ढलानों पर होता है।

4. शैल स्खलन

  • शैल खंडों का संस्तर जोड़ या भ्रंश के सहारे खिसकना।
  • तीव्र ढलानों पर अत्यधिक विध्वंसक।

5. शैल पतन

  • शैल खंडों का किसी तीव्र ढलान या चट्टान से स्वतंत्र रूप से गिरना।
  • उथली परतों से होता है, शैल स्खलन से अलग।

6. अपरदन

  • प्रवाहितजल, भौमजल, हिमानी, वायु, लहरों एवं धाराओं द्वारा शैलों को काटना, खुरचना और उससे प्राप्त मलवे को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना अपरदन कहलाता है ।

7. निक्षेपण

  • निक्षेपण अपरदन का परिणाम होता है जब ढाल में कमी आ जाती है तो अपरदित पदार्थ का निक्षेपण अर्थात जमाव शुरू हो जाता है ।



मृदा

  • मृदा एक गत्यात्मक माध्यम है जिसमें रासायनिक, भौतिक, और जैविक क्रियाएँ निरंतर चलती रहती हैं।
  • यह अपक्षय और अपकर्ष का परिणाम है, जो मृदा निर्माण में योगदान करते हैं।
  • मृदा विकासोन्मुख और परिवर्तनशील होती है।



मृदा निर्माण की प्रक्रियाएँ

1. मृदाजनन (Pedogenesis):

  • मृदा निर्माण की प्रक्रिया, जो मुख्यतः अपक्षय (Weathering) पर निर्भर करती है।

2. अपक्षयित प्रावार (Weathered Material):

  • मृदा का आधार, जो शैल के अपक्षय से बनता है।
  • अपक्षयित प्रावार में जैविक क्रियाओं द्वारा ह्यूमस एकत्र होता है, जो मृदा की उर्वरता बढ़ाता है।



मृदा निर्माण के कारक

1. मूल पदार्थ

  • मृदा निर्माण का मूल तत्व, शैल या निक्षेप होता है।
  • स्थानीय शैल: उसी स्थान पर अपक्षयित शैल, जिसे अवशिष्ट मृदा कहते हैं।
  • परिवहनकृत निक्षेप: बाहरी स्रोत से आए निक्षेप, जैसे नदी द्वारा लाई गई मिट्टी।
  • समान शैल पर अलग-अलग मृदाएँ बन सकती हैं और अलग शैल पर समान मृदा।
  • जब मृदा नई होती है, तो उसका शैल के साथ गहरा संबंध होता है।

2. स्थलाकृति

  • ढलान और स्थल का आकार मृदा की गहराई और विकास को प्रभावित करता है।
  • तीव्र ढालों पर मृदा पतली होती है।
  • सपाट क्षेत्रों में मृदा गहरी और मोटी हो जाती है।
  • जल का अच्छा परिश्रवण होता है, जिससे मृदा का विकास अनुकूल रहता है।
  • जैव पदार्थ का अच्छा एकत्रीकरण होता है, जिससे मृदा का रंग गहरा हो सकता है।

3. जलवायु

  • गर्म और ठंडी जलवायु में मृदा की रासायनिक और जैविक प्रक्रियाएँ अलग होती हैं।
  • ठंडी जलवायु: ह्यूमस की अधिकता होती है, क्योंकि बैक्टीरिया की वृद्धि धीमी होती है।
  • उष्ण जलवायु: जैविक पदार्थ जल्दी ऑक्सीकृत हो जाते हैं, जिससे ह्यूमस की मात्रा कम होती है।

4. जैविक क्रियाएँ

  • पौधे और जीव : मृदा में जैव पदार्थ, नमी, और नाइट्रोजन जोड़ते हैं।
  • ह्यूमस : पौधों के मृत अवशेष से बनता है, जो मृदा की उर्वरता बढ़ाता है।
  • बैक्टीरिया : नाइट्रोजन निर्धारण करते हैं, जो पौधों के लिए आवश्यक होता है।
  • मृदा के कीट : जैसे चींटी, दीमक, और केंचुए, मृदा को बार-बार ऊपर-नीचे करके उसके गुणों को प्रभावित करते हैं।


5. समय

  • मृदा निर्माण की प्रक्रियाओं के लंबे समय तक चलने से मृदा परिपक्व होती है।
  • हाल ही में जमा हुई जलोढ़ मिट्टी या हिमानी टिल से बनी मृदाएँ युवा (Young) मानी जाती हैं और उनमें संस्तर (Horizon) कम विकसित होते हैं।







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