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CWSN के लिए शारीरिक शिक्षा और खेल notes chapter 4 class 12 Physical Education and Sports for CWSN ke lie shaaririk shiksha aur khel

CWSN के लिए शारीरिक शिक्षा और खेल



 विशेष आवश्यकता वाले बच्चे ( दिव्यांग बच्चे )

  • ऐसे बच्चे जिन्हें शारीरिक रूप से किसी प्रकार की विकलांगता है 
  • जो सामान्य बच्चों की तरह रोजमर्रा के सभी कार्य आसानी से नहीं कर सकते हैं 
  • इन्हें विशेष आवश्यकता वाले या CWSN कहा जाता है 



पैरालिंपिक्स (PARALYMPICS)

  • यह खेल शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिये आयोजित ओलम्पिक खेल है। 
  • सबसे पहले पैरालिंपिक्स 1960 में रोम में शुरू हुए। 
  • इसमें 23 देशों के 400 विकलांग खिलाडियों ने भाग लिया था 
  • इन खेलों को ओलंपिक खेलों के समरूप ही माना जाता  है 
  • इन खेलों का मुख्यालय वोन - जर्मनी में स्थित है।



स्पेशल ओलंपिक(SPECIAL OLYMPICS)

  • स्पेशल ओलंपिक खेलों की शुरुआत सन 1968 में शिकागो में हुई थी। 
  • विशेष ओलंपिक अंतरराष्ट्रीय संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति केनेडी की बहन यूनिस कैनेडी श्राइवर द्वारा प्रारंभ किया गया था। 
  • यूनिस यह विश्वास करती थी कि यदि बौद्विक रूप से असमर्थ या अशक्त लोगों को यदि बराबर अवसर प्रदान किए जाएं तो वह भी बहुत अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। उसे यह विश्वास था कि बौद्धिक रूप से असमर्थ या अशक्त बच्चे विशेष खिलाडी बन सकते हैं तथा खेलों के द्वारा वे अपनी संभावित वृद्धि व विकास को प्राप्त कर सकते


स्पेशल ओलंपिक के लक्ष्य 

  • बौद्विक रूप से असमर्थ या अशक्त लोगों के लिए खेल प्रतियोगता का आयोजन करना 
  • इनको प्रशिक्षण देना 
  • इनकी प्रतिभा को सही दिशा देना
  • इनकी शारीरिक पुष्टि में वृद्धि करना  




स्पेशल ओलंपिक भारत 
( SPECIAL OLYMPICS BHARAT )

  • विशेष ओलंपिक भारत में चलाया जा रहा एक कार्यक्रम है 
  • जो बौद्विक रूप से असमर्थ बच्चों और खिलाडियों के लिए खेलों को एक उत्प्रेरक के रूप में प्रयोग करता है।
  • इसको सन 1987 में विशेष ओलंपिक इंडिया के रूप में स्थापित किया गया तथा 2001 में इसका नाम बदलकर विशेष ओलंपिक भारत रखा गया। 
  • भारत सरकार द्वारा इसे मानसिक रूप से अशक्त या असमर्थ या बौद्विक योग्यता वाले व्यक्तियों के लिए खेलों के विकास के लिए राष्ट्रीय खेल फेडरेशन के रूप में मान्यता दी है। 



स्पेशल ओलंपिक भारत  के लक्ष्य 

  • इससे मानसिक रूप से अविकसित व्यक्तियों के बौद्धिक रूप से अयोग्य असमर्थ व्यक्तियों को उपयोगी तथा उत्पादक नागरिक बनाने का अवसर प्रदान करना है जिन्हें उनके समाज द्वारा स्वीकारा जाता है तथा आदर व सम्मान दिया जाता है।



Deaflympics

  • डैफलिम्पिक बधिर खिलाड़ियों के लिए आयोजित किए जाने वाले विश्व में सबसे बड़ाआयोजन है। 
  • इनका आयोजन बधिर खिलाड़ियों  के लिए किया जाता है 
  • खेलों की अन्तर्राष्ट्रीय कमेटी (The International Committee of Sports for the Deaf) द्वारा किया जाता है।
  • डैफलिम्पिक (Deaflympics) अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक संघ द्वारा स्वीकृत है। 
  • ओलम्पिक खेलों की तरह डैफलिम्पिक खेल प्रत्येक चार वर्ष में आयोजित किए जाते है। 
  • Deaflympics का प्रारम्भ 1924 में पेरिस में हुआ था। 



Winter Deaflympics

  • Winter Deaflympics की शुरूआत 1949 को हुई। 
  • इन खेलों की शुरूआत मात्र 148 खिलाड़ियों के प्रदर्शन से हुई किन्तु थी 
  • अब लगभग 4000 खिलाड़ी इन खेलों में भाग लेते है।



Deaflympics के लिए खिलाड़ी की योग्यता 

  • डैफलिम्पिक (Deaflympics) में प्रतिस्पर्धा करने के लिए खिलाडी की बधिरता कम से कम 55 डेसिबल होनी चाहिए 
  • प्रतिस्पर्धा करते समय खिलाड़ी किसी सुनने के यन्त्र का प्रयोग नहीं कर सकते। 
  • डैफलिम्पिक में प्रतिस्पर्धा का आरम्भ करने के लिए ध्वनि यन्त्रों का प्रयोग नहीं किया जा सकता है। 
  • उदाहरण के लिए, बन्दूक की आवाज, सीटी की आवाज इत्यादि। 
  • अतः खेल की शुरूआत करने एवं खेल को आगे बढ़ाने के लिए फुटवॉल रेफरी झंडे का प्रयोग करता है 
  • दौड़ शुरू करने के लिए रौशनी की चमकार का प्रयोग किया जाता है। 
  • दर्शक भी ताली बजाने की अपेक्षा दोनों हाथों को लहरा लहराकर प्रतियोगियों का अभिनंदन करते हैं।



Deaflympics के लक्ष्य और उद्देश्य -

  • बधिर लोगों के लिए खेल प्रतियोगता का आयोजन करना 
  • बधिर खिलाडियों को खेल के अवसर देना 
  • बधिर खिलाडियों को  प्रशिक्षण देना
  • इनकी ऊर्जा का सही जगह इस्तेमाल करना
  • बिना किसी भेदभाव के बधिर खिलाडियों का खेलों में बढ़ावा देना 



खेलों में वर्गीकरण और विभाजन 

  • इसके अनुसार शारीरिक रूप से अक्षमता वाले खिलाडियों को उनकी अक्षमता के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है 
  • इन्हें इनकी अक्षमता के अनुरूप अलग – अलग वर्गों में विभाजित किया जाता है जिससे उन्हें सामान प्रतिस्पर्धा मिले 
  • इसमें आयु , लिंग , भार के आधार पर भी वर्गीकरण किया जाता है  


खेलों में समावेश की अवधारणा

  • समावेशन का अर्थ है विशेष आवश्यकता वाले छात्रों को बिना किसी विशेष आवश्यकता वाले छात्रों के साथ अध्ययन करने और सीखनें में सक्षम बनाना।
  • विकलांग छात्र समान गतिविधियों में, उसी स्थान पर, अन्य सभी छात्रों के समान मूल्यांकन के साथ भाग लेते हैं। जरूरत पड़ने पर संशोधन लागू होते हैं।
  • जब कक्षा का एक जैसा ही वातावरण रखा जाता है, तो ये छात्र उन छात्रों की तुलना में उच्च स्तर के आत्म-सम्मान के प्रदर्शन करते हैं, जो केवल अपनी विशेष जरूरतों के कारण अलग-अलग कक्षाओं में अलग-थलग पड़ जाते हैं।
  • समावेश के समर्थकों का मानना है कि छात्र एक ऐसे समुदाय में बेहतर सीखते हैं जो विविध, देखभल करने वाला और सहयोगी है।



समावेशन की आवश्यकता क्यों है

  • आत्मसम्मान का बढ़ना
  • सामाजीकरण के गुण विकसित होना 
  •  संचार कौशल में सुधार 
  • संवेदनशीलता बढाता है 
  • आत्मविश्वाश बढाता है 
  • अपनेपन की भावना का विकास
  • शैक्षणिक प्रदर्शन का विकास  



विशेष आवश्यकता वाले  बच्चों  के लिए शारीरिक गतिविधियों के लाभ -

  • स्वास्थ्य में सुधार 
  • आत्मसम्मान में वृद्धि
  • चिंता , तनाव के स्तर में कमी
  • सामाजिक कौशलों का विकास 
  • नियमित दिनचर्या 
  • एकाग्रता में सुधार 



विशेष आवश्यकता वाले  बच्चो के लिए शारीरिक गतिविधियों को सुगम बनाने के लिए रणनीतियां  -

  • पूर्व डाक्टरी जांच 
  • पूर्व अनुभव 
  • रुचि 
  • क्षमता 
  • रूपांतरित उपकरण 
  • उपयुक्त वातावरण 
  • रूपांतरित नियम 
  • अतिरिक्त देखभाल 


डाक्टरी जाँचः – Medical Check up

  • शारीरिक क्रियाओं में भाग लेने से पहले दिव्यांग की शारीरिक जांच करवा कर उसकी शारीरिक अक्षमता के स्तर की जाँच कर लेनी चाहिए ताकि उसके स्तर के अनुरूप ही शरिरिक क्रियाए उन्हें करवायी जा सके।

पूर्व अनुभव

  • शरिरिक क्रियाओं के निर्धारण से पहले  दिव्यांग के पूर्व अनुभव की जानकारी ले लेनी चाहिए ताकि शारिरिक क्रियाओं का चयन उनके लिये उत्तम हो सके।

रूचि ( interest )

  • जब शरिरिक क्रियाओं का निर्धारण किया जाये तो दिव्यांग की रूचि का विशेष ध्यान रखना चाहिए ताकि वह इन शरिरिक क्रियाओं में पूर्ण रूप से भाग ले सके।


क्षमता ( capability )

  • जब भी शरिरिक क्रियाओं का निर्धारण किया जाये तो दिव्यांग की शारीरिक तथा मानसिक योग्यता को समझ लेनी चाहिए ताकि उसकी क्षमता के अनुरूप शरीरिक क्रियाओं का चयन किया जा सके।


रूपांतरित उपकरण (modified equipment)

  • उपकरणों का रूपांतरण हमेशा दिव्यांग की अक्षमता के स्तर के अनुरूप हो ताकि वह शारीरिक क्रियाओं में भाग ले सके।


उपयुक्त वातावरण (Suitable Environment)

  • शारीरिक क्रियाओं का निर्धारण करते समय इसबात पर जरूर ध्यान देता चाहिए कि वातावरण उन क्रियाओं के अनुरूप है अथवा नही वातावरण में क्रियाओं से संम्बन्धित सभी सुविधाए होनी चिाहए ।


रूपांतरित नियम (modified rules)

  • शारीरिक क्रियाओं का निर्धारण करने से पहले उनके नियमों को दिव्यांग की योग्यता के अनुसार रूपांतरित कर लेना चहिए


सभी अंगो का उपयोग 

  • शारीरिक क्रियाओं को निधारित करते समय अधिकतर सभी अंगों का उनमें भागीदारी होने की पुष्टि कर लेनी चाहिए


अतिरिक्त देख भाल

  • शरीरिक क्रियाओं का निर्धारण करने से पहले दुर्घटना से बचाने वाले सभी तत्वों की समीक्षा जरूर कर लेनी चाहिए।






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