प्रेम घन के छाया स्मृति
भारतेन्दु हरिश्चंद्र
पाठ का सार (Summary)
परिचय
• यह एक संस्मरणात्मक निबंध
है |
• इस निबंध मे रामचन्द्र शुक्ल जी ने हिन्दी
साहित्य के प्रति अपने शुरुआती दिनों का वर्णन किया है |
• शुक्ल जी ने अपने परिवार और मित्रों के बारे मे
बताया है |
• बद्रीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ जी के बारे मे भी
बताया गया है |
लेखक के पिता
- फारसी भाषा के अच्छे जानकार
- पुरानी हिन्दी कविता काफी पसंद करते थे
- रात मे घर के सब लोगों को इकट्ठा करके रामचरितमानस
और रामचंद्रिका पढ़कर सुनाया करते थे |
- भारतेन्दु जी के नाटक उन्हे बहुत ज्यादा पसंद
थे |
भारतेन्दु हरिश्चंद्र
- बचपन मे लेखक के मन मे एक अजीब सी भावना थी , लेखक सत्य हरिश्चंद्र के नायक राजा हरिश्चंद्र को
तथा लेखक भारतेन्दु हरिश्चंद्र को एक ही इंसान समझते थे |
- इसी कारण लेखक के मन मे भारतेन्दु जी के लिए मन
मे एक अच्छी भावना थी |
पिता जी का Transfer
- जब आचार्य रामचन्द्र शुक्ल 8 साल के थे , तब उनके पिता का तबादला राठ तहसील से मिर्जापुर हो गया
- तब उन्हे यह पता चला की भारतेन्दु मण्डल के
सुप्रसिद्ध उपाध्याय बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन भी वही पास मे ही रहते हैं |
- तब शुक्ल जी को उनके दर्शन करने का मन हुआ |
प्रेमघन की पहली झलक
- जब शुक्ल जी के मन में प्रेमघन जी के दर्शन
करने की इच्छा जागृत हुई उसके बाद वे अपने साथियों और मित्रों की मण्डली के साथ
डेढ़ मील का सफ़र तय करके चौधरी साहब के मार्केन के सामने जा पहुंचे |
- ऊपर का बरामदा सघन लताओं के जाल से ढका हुआ था, बीच बीच में खम्बे और खाली जगह थी|
- काफी देर इंतजार करने के बाद उन्हें चौधरी साहब
की एक झलक दिखाई दी और उनकी झलक कुछ इस प्रकार थी की उनके बाल बिखरे हुए थे तथा एक
हाथ खम्बे पर था | कुछ ही देर बाद यह दृश्य आँखों से ओझल होने लगा
और यही उपाध्याय बद्रीनारायण चौधरी की पहली झलक थी |
शुक्ल जी की साहित्य के प्रति बढ़ती रूचि
- पं. केदारनाथ के पुस्तकालय से पुस्तकें लाकर पढ़ते-पढ़ते शुक्ल जी की रूचि हिन्दी के नवीन एवं आधुनिक साहित्य के प्रति बढ़ गई व उनकी गहरी मित्रता केदारनाथ जी से भी हो गई।
- अपनी युवावस्था तक आते-आते शुक्ल जी को समव्यस्क 'हिन्दी प्रेमी लेखकों' की मंडली भी मिल गई ।
- जहाँ शुक्ल जी रहते थे वह उर्दूभाषी वकीलों, मुख्तारों आदि की बस्ती थी ।
चौधरी प्रेमघन की
व्यक्तिगत विशेषता :
- प्रेमघन जी को खासा हिन्दुस्तानी रईस बताया गया है। उनकी हर बात में तबीयतदारी टपकती थी ।
- बसंत पंचमी, होली आदि त्यौहारों पर उनके घर में खूब नाच - रंग और उत्सव हुआ करते थे। उनकी बातें विलक्षण वक्रता ( व्यंग्यात्मकता) लिए रहती थी ।
- चौधरी साहब प्रायः लोगों को बनाया करते थे। वे प्रसिद्ध कवि होने के साथ-साथ भाषा के विद्वान भी थे।