अपवाह
- एक निश्चित दिशा में जल का प्रवाह अपवाह कहलाता है
अपवाह तन्त्र
- एक निश्चित दिशा में जल को प्रवाहित करने वाली नदियों के जाल को अपवाह तन्त्र के नाम से जाना जाता है
अपवाह द्रोणी/नदी द्रोणी
- नदियों एवं सहायक नदियों द्वारा प्रवाहित क्षेत्र को नदी द्रोणी या अपवाह द्रोणी कहा जाता है
जल ग्रहण क्षेत्र
नदी जिस विशिष्ट क्षेत्र से अपना जल बहा कर लाती है उसे उस नदी का जल ग्रहण क्षेत्र कहा जाता है
जल ग्रहण क्षेत्र
बड़ी नदियाँ
- नदी द्रोणी
- गंगा नदी द्रोणी
छोटी नदियाँ
- जल सम्भर
- पेरियार जल सम्भर
- दो नदी द्रोणीयों को पृथक करने वाली उच्च भूमि को जल विभाजक कहते है
अपवाह प्रतिरूप
- नदियों की आकृति तथा अवस्था को अपवाह प्रतिरूप कहा जाता है
1. अपवाह तन्त्र के विभाजन का आधार
1. समुद्र में जल विसर्जन के आधार पर
- बंगाल की खाड़ी में जल विसर्जित करने वाली नदियाँ
- अरब सागर में जल विसर्जित करने वाली नदियाँ
2. जल सम्भार के आधार पर
- प्रमुख नदी द्रोणी
- मध्यम नदी द्रोणी
- लघु नदी द्रोणी
3. उद्गम के प्रकार के आधार पर
- हिमालयी अपवाह तन्त्र
- प्रायद्वीपीय अपवाह तन्त्र
2. समुद्र में जल विसर्जन के आधार पर
1. बंगाल की खाड़ी में जल विसर्जित करने वाली नदियाँ
- 77% जल बंगाल की खाड़ी में जल विसर्जित करती है
1. गंगा
2. ब्रह्मपुत्र
3. महानदी
4. कृष्णा आदि
2. अरब सागर में जल विसर्जित करने वाली नदियाँ
- 23% जल अरब सागर में जल विसर्जित करती है
1. सिन्धु
2. नर्मदा
3. तापी
4. माहि
5. पेरियार आदि
3. जल जलसंभर के आधार पर
1. प्रमुख नदी द्रोणी
- जिनका अपवाह क्षेत्र 20,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक है।
- गंगा, बह्मपुत्र, कृष्णा, तापी, नर्मदा, माही, पेन्नार, साबरमती, बराक
2. मध्यम नदी द्रोणी
- जिनका अपवाह क्षेत्र 2,000 से 20,000 वर्ग किलोमीटर है।
- कालिंदी, पेरियार, मेघना आदि
3. लघु नदी द्रोणी
- जिनका अपवाह क्षेत्र 2,000 वर्ग किलोमीटर से कम है।
- इसमें न्यून वर्षा के क्षेत्रों में बहने वाली बहुत-सी नदियाँ शामिल हैं।
भारतीय अपवाह तन्त्र उद्गम के प्रकार के आधार पर
1. हिमालयी अपवाह तन्त्र
2. प्रायद्वीपीय अपवाह तन्त्र
1. हिमालयी अपवाह तन्त्र
- यहाँ की नदियाँ बारहमासी हैं, क्योंकि ये बर्फ पिघलने व वर्षण दोनों पर निर्भर हैं। जब ये मैदान में प्रवेश करती हैं, तो कुछ स्थलाकृतियाँ का निर्माण करती हैं। जैसे- समतल घाटियों, झीलें, बाढ़कृत मैदान, नदी के मुहाने पर डेल्टा आदि
- इन नदियों का रास्ता टेढ़ा-मेढ़ा है, परंतु मैदानी क्षेत्र में इनमें सर्पाकार मार्ग में बहने की प्रवृत्ति पाई जाती है और अपना रास्ता बदलती रहती हैं।
- कोसी नदी, जिसे बिहार का शोक (Sorrow of Bihar) कहते हैं, अपना मार्ग बदलने के लिए कुख्यात रही है।
हिमालयी अपवाह तन्त्र का विकास
- कालांतर में इंडो-ब्रह्म नदी तीन मुख्य अपवाह तंत्रों में बँट गई
- पश्चिम में सिंध और इसकी पाँच सहायक नदियाँ, मध्य में गंगा और हिमालय से निकलने वाली इसकी सहायक नदियाँ पूर्व में बह्मपुत्र का भाग व हिमालय से निकलने वाली इसकी सहायक नदियाँ।
- विभाजन संभवतः प्लीस्टोसीन काल में हिमालय के पश्चिमी भाग में व पोटवार पठार (दिल्ली रिज) के उत्थान के कारण हुआ।
- यह क्षेत्र सिंधु व गंगा अपवाह तंत्रों के बीच जल विभाजक बन गया।
1. हिमालयी अपवाह तन्त्र की नदियाँ
1. सिन्धु नदी तन्त्र
- भारत में सिंधु, जम्मू और कश्मीर राज्य में बहती है।
- क्षेत्रफल 11 लाख 65 हजार वर्ग किलोमीटर
- भारत में इसका क्षेत्रफल 3,21,289 वर्ग कि.मी. है।
- कुल लंबाई 2,880 कि.मी
- भारत में इसकी लंबाई 1.114 किलोमीटर
- उद्गम कैलाश पर्वत श्रेणी में बोखर चू हिमनद से निकलती है
- लद्दाख व जास्कर श्रेणियों के बीच गुजरती है।
- सिंधु नदी की बहुत-सी सहायक नदियाँ हिमालय पर्वत से निकलती हैं, जैसे शयोक, गिलगित. जास्कर, हुजा, नुबरा, शिगार, गास्टिंग व द्रास।
- यह नदी दक्षिण की ओर बहती हुई मीथनकोट के निकट पंचनद का जल प्राप्त करती है।
पंचनद
झेलम
- उद्गम स्थल: पीर पंजाल गिरिपद में स्थित वेरीनाग झरने से निकलती है।
- श्रीनगर और वूलर झील से बहते हुए एक तंग व गहरे महाखड्ड से गुजरती हुई पाकिस्तान में प्रवेश करती है, पाकिस्तान में झंग के निकट यह चेनाब नदी से मिलती है।
चेनाब
- यह चंद्रा तथा भागा दो सरिताओं के मिलने से बनती है।
- ये सरिताएँ हिमाचल प्रदेश में केलाँग के समीप तांडी में आपस में मिलती हैं।
- सिंधु की सबसे बड़ी सहायक नदी है।
- पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले यह नदी 1,180 कि. मी. बहती है।
रावी
- हिमाचल प्रदेश की कुल्लू पहाड़ियों में रोहतांग दर्रे के पश्चिम से निकलती है
- पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले सराय सिंधु के समीप चेनाब नदी में मिलती है
व्यास
- रोहतांग दर्रे के समीप व्यास कुंड से निकलती है।
- यह नदी कुल्लू घाटी से गुजरती है
- यह पंजाब के मैदान में प्रवेश करती है जहाँ हरिके के निकट सतलुज नदी में जा मिलती है।
सतलुज
- मानसरोवर के समीप राक्षस ताल से निकलती है
- यह हिमालय पर्वत श्रेणी में शिपकीला से बहती हुई पंजाब के मैदान में प्रवेश करती है।
- यह भाखड़ा नांगल परियोजना के नहर तंत्र का पोषण करती है।
गंगा नदी तन्त्र
- गंगा अपनी द्रोणी और सांस्कृतिक महत्त्व दोनों के दृष्टिकोणों से महत्त्वपूर्ण नदी है।
- उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में गोमुख के समीप गंगोत्री हिमनद से निकलती है।
- कुल लंबाई 2,525 किलोमीटर है
- उत्तराखण्ड में 110 किमी
- उत्तरप्रदेश में 1,450 किमी
- बिहार में 445 किमी
- पश्चिम बंगाल में 520 किमी
- भारत का सबसे बड़ा अपवाह तंत्र है
- सोन इसके दाहिने किनारे पर मिलने वाली मुख्य सहायक नदी है।
- बाँये तट पर मिलने वाली अन्य महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ रामगंगा, गंडक, घाघरा, महानंदा व कोसी हैं।
सहायक नदियाँ
• यमुना नदी
• गंडक नदी
• घाघरा नदी
• कोसी नदी
• रामगंगा नदी
• दामोदर नदी
• शारदा तथा सरयू नदी
• महानंदा नदी
• सोन नदी
यमुना नदी
- स्रोत यमुनोत्री हिमनद
- सबसे लंबी सहायक नदी
- प्रयाग में इसका गंगा से संगम
- दाहिने तट से चंबल, सिंध, केन तथा बेतवा इससे मिलती है
- बाँये तट से हिंडन, रिंद, वरूणा, सेंगर आदि मिलती हैं।
गंडक नदी
- स्रोत धौलागिरी तथा माऊंट एवरेस्ट के बीच
- कालीगंडक व त्रिशूलगंगा के मिलने से बनती है
- बिहार के चंपारन में गंगा के मैदान में प्रवेश करती है और सोनपुर में गंगा नदी में जा मिलती है।
घाघरा नदी
- स्रोत मापचाचुँगों हिमनद
- शारदा नदी इससे मैदान में मिलती है
- छपरा में यह गंगा नदी में विलीन हो जाती है।
कोसी नदी
- स्रोत तिब्बत में माऊंट एवरेस्ट के उत्तर में
- इसकी मुख्य धारा अरुण
- अरुण नदी से मिलकर यह सप्तकोसी बनाती है।
रामगंगा नदी
- स्रोत गैरसेन के निकट गढ़वाल की पहाड़ियों से
- कन्नौज के पास यह गंगा नदी में मिल जाती है।
दामोदर नदी
- स्रोत छोटानागपुर पठार से
- हुगली नदी में गिरती है।
- बंगाल का शोक कहा जाता है
- दामोदर घाटी कार्पोरेशन बहुद्देशीय परियोजना इसी नदी पर अवस्थित है
रामगंगा नदी
- स्रोत गैरसेन के निकट गढ़वाल की पहाड़ियों से
- कन्नौज के पास यह गंगा नदी में मिल जाती है।
दामोदर नदी
- स्रोत छोटानागपुर पठार से
- हुगली नदी में गिरती है।
- बंगाल का शोक कहा जाता है
- दामोदर घाटी कार्पोरेशन बहुद्देशीय परियोजना इसी नदी पर अवस्थित है
महानंदा नदी
- स्रोत दार्जिलिंग पहाड़ियों से निकलती है।
- पश्चिमी बंगाल में गंगा के बाएँ तट पर मिलने वाली आखिरी सहायक नदी है।
- स्रोत अमरकंटक पठार से
- पठार के उत्तरी किनारे पर जलप्रपातों की श्रृंखला बनाती हुई यह नदी पटना से पश्चिम में आरा के पास गंगा नदी में मिल जाती है।
ब्रह्मपुत्र नदी तन्त्र
- उद्गम कैलाश पर्वत श्रेणी में मानसरोवर झील के समीप चेमायुंगडुंग हिमनद
- तिब्बत में इसे सांग्पो के नाम से जाना जाता है जिसका मतलब है 'शोधक’।
- यह नदी भारत में अरुणाचल प्रदेश में सादिया कस्बे के पश्चिम में प्रवेश करती है।
- इसकी मुख्य सहायक नदियाँ दिबांग तथा लोहित मिलती हैं इसके बाद यह नदी ब्रह्मपुत्र के नाम से जानी जाती है।
- असम घाटी में अपने 750 किलोमीटर के सफर में ब्रह्मपुत्र में अनेक सहायक नदियाँ आकर मिलती हैं।
- ब्रह्मपुत्र नदी बांग्लादेश में प्रवेश करती है और फिर दक्षिण दिशा में बहती है।
- तिस्ता नदी बांग्लादेश में इससे मिलती है और इसके बाद यह जमुना कहलाती है।
- यह नदी पद्मा के साथ मिलकर बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है।
2. प्रायद्वीपीय अपवाह तन्त्र
- प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र हिमालयी अपवाह तंत्र से पुराना है।
- नदियाँ पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हैं। (नर्मदा और तापी को छोड़कर)
- उत्तरी भाग में निकलने वाली चंबल, सिंध, बेतवा, केन व सोन नदियाँ गंगा नदी तंत्र का अंग हैं।
- प्रमुख नदी-तंत्र महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी हैं।
- एक सुनिश्चित मार्ग पर चलती हैं. विसर्प नहीं बनातीं
- ये बारहमासी नहीं हैं
प्रायद्वीपीय अपवाह तन्त्र का विकास
- कालांतर में इंडो-ब्रह्म नदी तीन मुख्य अपवाह तंत्रों में बँट गई:
1. पश्चिम में सिंध और इसकी पाँच सहायक नदियाँ,
2. मध्य में गंगा और हिमालय से निकलने वाली इसकी सहायक नदिया
3. पूर्व में बह्मपुत्र का भाग व हिमालय से निकलने वाली इसकी सहायक नदियाँ।
- विभाजन संभवतः प्लीस्टोसीन काल में हिमालय के पश्चिमी भाग में व पोटवार पठार (दिल्ली रिज) के उत्थान के कारण हुआ।
- यह क्षेत्र सिंधु व गंगा अपवाह तंत्रों के बीच जल विभाजक बन गया।
• महानदी
• गोदावरी नदी
• कृष्णा नदी
• कावेरी नदी
• नर्मदा नदी
• तापी नदी
• लूनी नदी
महानदी
- छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में सिहावा के पास से
- अपना जल बंगाल की खाड़ी में विसर्जित करती है।
- जलग्रहण क्षेत्र लगभग 1.42 लाख वर्ग किलोमीटर है।
गोदावरी नदी
- दक्षिण गंगा के नाम से जानी जाती है
- सबसे बड़ा प्रायद्वीपीय नदी तंत्र है।
- महाराष्ट्र में नासिक जिले से निकलती है
- बंगाल की खाड़ी में जल विसर्जित करती है।
- यह 1,465 किलोमीटर लंबी नदी है
- जलग्रहण क्षेत्र 3.13 लाख वर्ग किलोमीटर है।
- सहायक नदियों में पेनगंगा, इंद्रावती, मंजरी और प्राणहिता हैं।
कृष्णा नदी
- दूसरी बड़ी प्रायद्वीपीय नदी है
- सह्याद्रि में महाबलेश्वर के पास निकलती है।
- कुल लंबाई 1,401 किलोमीटर है।
- कोयना, तुंगभद्रा और भीमा इसकी मुख्य सहायक नदियाँ हैं।
कावेरी नदी
- कर्नाटक की ब्रह्मगिरी पहाड़ियों से निकलती है।
- इसकी लंबाई 800 किलोमीटर है
- यह 81,155 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अपवाहित करती है।
- यह नदी लगभग पूरा वर्ष बहती है
- इसकी मुख्य सहायक नदियाँ काबीनी, भवानी तथा अमरावती हैं।
नर्मदा नदी
- अमरकंटक पठार से निकलती है।
- दक्षिण में सतपुड़ा और उत्तर में विध्यांचल श्रेणियों के बीच यह भ्रंश घाटी से बहती है
- 1,312 किलोमीटर दूरी तक बहने के बाद यह भड़ौच के दक्षिण में अरब सागर में मिलती है
- 27 किलोमीटर लंबा ज्वारनदमुख बनाती है।
- सरदार सरोवर परियोजना इसी नदी पर निर्मित है।
नर्मदा नदी
- अमरकंटक पठार से निकलती है।
- दक्षिण में सतपुड़ा और उत्तर में विध्यांचल श्रेणियों के बीच यह भ्रंश घाटी से बहती है
- जबलपुर के निकट धुआँधार जल प्रपात बनाती है।
- 1,312 किलोमीटर दूरी तक बहने के बाद यह भड़ौच के दक्षिण में अरब सागर में मिलती है
- 27 किलोमीटर लंबा ज्वारनदमुख बनाती है
- सरदार सरोवर परियोजना इसी नदी पर निर्मित है।
तापी नदी
- मध्य प्रदेश में बेतूल जिले में मुलताई से निकलती है।
- यह 724 किलोमीटर लंबी नदी है
- लगभग 65,145 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अपवाहित करती है।
लूनी नदी
- अरावली की पहाड़ियों से
- राजस्थान का सबसे बड़ा नदी-तंत्र है।
- यह पुष्कर के निकट दो धाराओं (सरस्वती एवं सागरमती) के रूप में पैदा होती है
- जो गोबिंदगढ़ के समीप आपस में मिल जाती है।
- दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती हुई कच्छ के रन में जा मिलती है।
नदी जल उपयोग से सम्बन्धित समस्याएं
- पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध न होना
- नदी जल प्रदूषण
- नदी जल में गाद
- ऋतुवन जल का असमान प्रवा
- राज्यों के बीच नदी जल विवाद
- मध्य धारा की ओर बस्तियों के विस्तार के कारण नदी वाहिकाओं का सिकुड़ना