Chapter 6
भक्ति सूफी परंपराएं
भारतीय इतिहास के लगभग आठवीं से लेकर अठाहरवीं सदी तक बहुत से धार्मिक विचारो और विश्वासों का पुनर्निर्माण हुआ। इस समय बहुत से धार्मिक बदलाव देखने को मिलते है, इस समय साहित्यिक स्रोतों में संत कवियों की रचनाएँ, क्षेत्रीय भाषाओं में मौखिक तोर पर रचनाओ की शुरुआत, संगीतबद्ध रचनाएँ देखने को मिलती है। उन विचारों को, जो भिन्न राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर सही नहीं थे उन्हें समाप्त कर दिया गया। बहुत से संत कवियों ने समाज में बदलाव के साथ नई परम्पराए शुरू की।
भारत में धर्म और भक्ति
1. विभिन्न धर्म
- भारत हमेशा से विभिन्ताओ वाला देश रहा है समय के साथ साथ मे यहाँ विभिन्न धर्मों और सम्प्रदायो को मानने वाले लोग बसते रहे
है।
1. सबसे प्राचीन धर्म :- सनातन वैदिक धर्म
2. नए धर्म :- जैन, बौध, ईसाई, इस्लाम
2. प्राचीन धर्म में कुरीतियां
1. जाति प्रथा।
2. सती प्रथा।
3. भेदभाव।
4. अस्पृश्यता।
5. वर्ण व्यवस्था।
3. नए धार्मिक बदलाव
- प्राचीन धार्मिक विचारो और कुरीतियों ने लोगो को नए धर्मो की ओर आकर्षित किया जैसे- जैन और बौध धर्म।
- जिससे संतों ने धर्म से आडम्बर हटाने का प्रयास किया और भेदभाव को चुनौती दी।
- दक्षिण भारत में इसका विस्तार अलवार और नयनार संतो ने किया।
1. अलवार- विष्णु भक्त
2. नयनार - शिव भक्त
4. नई भक्ति परम्परा – ईश्वर की आराधना।
भक्ति के मार्ग / भक्ति परम्परा
1. सगुण
- मूर्ति पूजा-
शिव, विष्णु, उनके अवतार, देवी की आराधना. (रामानंद, मीराबाई, सूरदास )
2. निर्गुण
- मूर्ति पूजा का विरोध-निराकार ईश्वर की पूजा. ( गुरुनानक देव, रैदास, कबीर )
धार्मिक विश्वासों और आचरणों की गंगा जमुनी बनावट
- इस काल की सबसे प्रमुख विशेषता है साहित्य और मूर्तिकला में अनेक तरह के देवी देवता का आगमन। विभिन्न देवताओं के विभिन्न रूपों की आराधना इस समय बढ़ने लगी थी, खासकर विष्णु , शिव और देवी पूजा।
1. पूजा प्रणालियों का समन्वय
इस समय के दो महत्वपूर्ण बदलाव।
- ब्राहमण
विचारधारा का प्रचार , पौराणिक ग्रंथों की रचना, संकलन और परिरक्षण हुआ, यह ग्रंथ संस्कृत भाषा में थे इन ग्रंथों का ज्ञान शूद्र तथा महिला दोनों द्वारा ग्रहण किया जा सकता था।
- इसी काल में स्त्री, शूद्र तथा अन्य सामाजिक वर्गों की आस्थाओं और आचरणों को ब्राह्मणों ने स्वीकृति दी थी।
- इसी काल में स्त्री, शूद्र तथा अन्य सामाजिक वर्गों की आस्थाओं और आचरणों को ब्राह्मणों ने स्वीकृति दी थी।
- नयी धार्मिक विचारधराये और परम्पराव की शुरुआत, समाजशास्त्री रॉबर्ट रेडफील्ड ने भारत देश में सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया का गहन विश्लेषण किया. इसे उन्होंने महान तथा लघु परंपरा का नाम दिया।
1. महान परम्परा में अभिजात, प्रभुत्वशाली, राजा और पुरोहित।
2. लघु परम्परा में सामान्य कृषक और निरक्षर।
2. देवी पूजा
- देवी की पूजा ज्यादातर सिंदूर से पोते गए पत्थर के रूप में की जाती थी, इन देवीयो को मुख्य देवताओं की पत्नी के रूप में मान्यता मिली थी जैसे :-
1. विष्णु भगवान की पत्नी – लक्ष्मी।
2. शिव भगवान की पत्नी – पार्वती।
3. पूजा प्रणालि में बदलाव
1. तांत्रिक और वैदिक पद्धति
- तांत्रिक पूजा पद्धति देश में
कई हिस्सों में होती थी ,इसे स्त्री एवं पुरुष दोनों ही कर सकते थे, इस पूजा पद्धति से शैव और बौद्ध दर्शन भी प्रभावित हुआ।
- वैदिक काल में अग्नि, इंद्र, सोम जैसे देवता मुख्य देवता थे , लेकिन पौराणिक समय में यह गौण होते गए , साहित्य तथा मूर्तिकला दोनों में इन देवताओं का निरूपण नहीं दिखता, वैदिक मंत्रों में विष्णु, शिव और देवी की झलक मिलती है।
2. वैदिक पद्धति तथा तांत्रिक पद्धति में अंतर
1. वैदिक :- यज्ञ एवं मंत्रो का उच्चारण।
2. तांत्रिक :- वैदिक सत्ता की अवहेलना।
- भक्त अपने इष्ट देव विष्णु या
शिव को भी कई बार सर्वोच्च बताते हैं।
उपासना की कविताएं
- कुछ संत कवि ऐसे नेता बनकर
उभरे जिनके आसपास भक्तजनों का पूरा समुदाय गठित हो गया, कई परंपराओं में ब्राह्मण देवता और भक्तों के बीच
बिचौलिए बने रहे, कुछ संतो ने स्त्रियों और निम्न वर्णों को भी स्वीकृत स्थान दिया।
1. तमिलनाडु के अलवार और नयनार संत
- प्रारंभिक भक्ति आंदोलन लगभग छठी शताब्दी में अलवारों और नयनारो के नेतृत्व में हुआ।
- अपनी यात्रा के दौरान इन संतों ने कुछ पवित्र स्थलों को अपने ईश्वर का निवास स्थल घोषित किया, इन स्थलों को तीर्थ स्थल माना जाने लगा।
- इन स्थलों पर बाद में विशाल मंदिर बनवाए गए, संतो के भजनों को इन मंदिरों में अनुष्ठान के समय गाया जाता, इन संतों की मूर्तियां भी लगवाई जाती थी।
2. जाति के प्रति दृष्टिकोण
- अलवार और नयनार संतो ने जाती प्रथा का विरोध किया, ब्राह्मण व्यवस्था का विरोध किया।
- भक्ति संत अलग-अलग समुदायों से थे. जैसे. ब्राह्मण, किसान शिल्पकार, निम्न जाति ( अस्पृश्य )।
- अलवार और नयनार संतो की रचनाओं को वेदों जितना महत्वपूर्ण बताया नलायिरदिव्यप्रबन्ध तमिल वेद।
3. स्त्री भक्त
- इस परंपरा के अनुसार स्त्रियों को भी महत्वपूर्ण
स्थान मिला था।
1. अंडाल- अलवार स्त्री संत
- अंडाल के भक्ति गीत बड़े स्तर पर गाए जाते थे और आज भी गाए जाते हैं।
- अंडाल अपने आपको विष्णु की प्रेयसी मानकर अपनी प्रेम भावना को छंदों में व्यक्त करती थी।
2. करिक्कल अम्मायर- नयनार स्त्री संत
- ये शिव भक्त थी और घोर तपस्या का रास्ता अपनाया।
- इन स्त्रियों की रचनाओं ने पितृसत्तात्मकता को चुनौती दी।
4. राज्य के साथ संबंध
- विरोधी धार्मिक समुदायों में राजकीय अनुदान प्राप्त करने के लिए प्रतिस्पर्धा होती थीं ,जैन, बौद्ध धर्म के प्रति विरोध तमिल भक्ति रचना में देखने को मिलता है।चोल शासक ( 9-13 शताब्दी ) ने ब्राह्मण और भक्ति परंपरा को समर्थन दिया, इन्होंने भगवान विष्णु और शिव के मंदिरों का निर्माण के लिए भूमि अनुदान दी।
- चोल सम्राट की मदद से बनाए गए विशाल शिव मंदिर, चिदंबरम, तंजावुर , कस्य की शिव की मूर्ति का निर्माण हुआ।
- अलवार और नयनार संत वेल्लाल किसानों द्वारा सम्मानित होते थे, इसलिए शासकों ने इनका समर्थन पाने का प्रयास किया।
- चोल सम्राटों ने दैवीय समर्थन पाने का दावा किया ,अपनी सत्ता के प्रदर्शन के लिए सुंदर विशाल मंदिरों का निर्माण कराया, जिनमें पत्थर और धातु से बनी बड़ी-बड़ी मूर्तियां सुसज्जित की गई।
- चोल सम्राटों के द्वारा तमिल भाषा के शैव भजन का गायन मंदिरों में प्रचलित करवाया, भजनों का संग्रह एक ग्रंथ के रूप में कराने का जिम्मा उठाया।
- 945 AD के एक अभिलेख से पता चलता है की चोल सम्राट परांतक प्रथम ने, संत कवि अप्पार संबंदर और सुंदरार की धातु की प्रतिमा शिव मंदिर में स्थापित करवाई।
वीरशैव परंपरा ( कर्नाटक )
- 12 वीं शताब्दी में कर्नाटक में बासवन्ना नामक ब्राह्मण के नेतृत्व में एक नया आंदोलन
चला, बासवन्ना एक चालुक्य राजा के दरबार मंत्री थे।
- यह प्रारम्भ में जैन मत को
मानने वाले थे।
- इनके अनुयाई वीरशैव या लिंगायत
कहलाते है।
- वीरशैव - शिव के वीर
- लिंगायत - लिंग धारण करने वाले
- लिंगायत शिव की आराधना लिंग के
रूप में करते है, इस समुदाय के पुरुष वाम स्कंध पर चांदी के एक पिटारे में लघु लिंग धारण
करते हैं,जिन्हें श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता था।
लिंगायत का विश्वास
- जाति प्रथा का विरोध।
- अस्पृश्यता को नहीं माना।
- पुनर्जन्म को नहीं माना।
- मूर्ति पूजा नहीं करते।
- अन्तिम संस्कार में दफनाया।
- ब्राह्मण ग्रन्थ, वेद को नहीं
माना।
- जन्म पर आधारित श्रेष्ठता को
अस्वीकार किया।
- वयस्क विवाह, विधवा
पुनर्विवाह को मान्यता दी।
उत्तरी भारत में धार्मिक उफान
- इसी काल में उत्तर भारत में विष्णु और शिव जैसे देवताओं की उपासना मंदिर में की जाती थी,यह मंदिर शासकों की सहायता से निर्मित किए गए थे।
- जिस प्रकार से दक्षिण भारत में अलवार और नयनार संतों की रचनाएं मिली हैं, ऐसी उत्तर भारत में 14 वीं शताब्दी तक कोई रचना नहीं मिली।
- इस काल में उत्तरी भारत में राजपूत राज्यों का शासन था, इन राज्यों में ब्राह्मणों का महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था।
- इसी समय कुछ ऐसे धार्मिक नेता उभरे, जिन्होंने रूढ़िवादी ब्राह्मण परंपरा का विरोध किया।
- ऐसे नेताओं में नाथ, जोगी और सिद्ध शामिल थे, इनमें बहुत से लोग शिल्पी समुदाय से थे ,जिनमें जुलाहे भी शामिल थे।
- अनेक नए नए धार्मिक नेताओं ने वेदों की सत्ता को चुनौती दी, इन्होंने अपने विचार आम लोगों की भाषा में सामने रखें।
- नवीन धार्मिक नेता लोकप्रिय जरूर थे लेकिन शासक वर्ग का प्रशय हासिल नहीं कर सके।
- तेरहवीं शताब्दी में तुर्कों द्वारा दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई, इस प्रकार से भारत में इस्लाम का प्रवेश हुआ, इस्लामी परंपराएं अरब व्यापारी समुद्र के रास्ते पश्चिम भारत के बंदरगाह तक आए।
शासकों एवं शासितों के धार्मिक विश्वास
1. इस्लामिक परम्पराओ की शुरुआत
- 711 AD में मोहम्मद बिन कासिम नामक अरब सेनापति ने सिंध क्षेत्र पर हमला किया. उसे जीतकर खलीफा के क्षेत्र में शामिल किया।
- 13 वीं शताब्दी में तुर्क और अब उन्होंने दिल्ली सल्तनत की नींव रखी है. धीरे-धीरे सीमा का विस्तार दक्कन के क्षेत्र में भी हुआ, बहुत से क्षेत्रों में शासकों का धर्म इस्लाम था।
- यह स्थिति 16वीं शताब्दी में मुगल सल्तनत की स्थापना के साथ बरकरार रही, मुसलमान शासकों को उलमा के मार्गदर्शन पर चलना होता था।
1. उलमा :- इस्लाम धर्म का ज्ञाता उलमा से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे शासन में सरिया का पालन करवाएं।
2. शरिया :- मुसलमान समुदाय को निर्देशित करने वाला कानून।
- उपमहाद्वीप में एक बड़ी जनसंख्या इस्लाम धर्म को
मानने वाली नहीं थी, मुसलमान शासकों के क्षेत्र में रहने वाले अन्य धर्म के लोग, जैसे- ईसाई, यहूदी, हिंदू यह जजिया नामक कर चुकाते थे
- कुछ शासक जनता की तरफ लचीली नीति अपनाते थे. जैसे :-
1. हिंदू, जैन, पारसी, ईसाई, यहूदी, धर्म संस्थाओं को दी को भूमि अनुदान एवं कर में छुट दी।
2. गैर मुस्लिम धार्मिक नेताओं के प्रति श्रद्धा भाव व्यक्त किया।
2. लोक प्रचलन में इस्लाम
- इस्लाम के आने से पूरे उपमहाद्वीप में परिवर्तन देखने को मिले, जिन्होंने इस्लाम धर्म कबूल किया उन्हें
सैद्धांतिक रूप से पांच मुख्य बातें माननी थी।
1. अल्लाह एकमात्र ईश्वर है, पैगंबर मोहम्मद उनके दूत है।
2. दिन में 5 बार नमाज।
3. खैरात बांटना ( दान – जकात )
4. रोजे रखना।
5. हज के लिए मक्का जाना।
- पैगंबर मोहम्मद आखरी पैगंबर थे, इनके बाद खलीफा पद शुरू हुआ खलीफा - धार्मिक गुरु होते थे।
- अरब मुसलमान व्यापारी मालाबार तट ( केरल) के किनारे आकर बसे. इन्होंने
स्थानीय मलयालम भाषा भी सीख ली , स्थानीय नियमों को भी अपनाया, इन्होंने मातृ गृहता को अपनाया।
2. समुदायों के नाम
- आठवीं से चौदहवी शताब्दी के
मध्य इतिहासकारों ने संस्कृत ग्रंथों और अभिलेखों का अध्ययन किया, इनमे मुसलमान
शब्द का प्रयोग नहीं था,
लोगों का वर्गीकरण उनके जन्म के स्थान के आधार पर
होता था।
- जैसे :-
1. तुर्की में जन्मे तुरुष्क कहलाते थे।
2. तजाकिस्तान के लोग ताजिक कहलाते थे।
3. फारस के लोग पारसीक कहलाते थे।
4. तुर्क और अफगानों को शक एवम् यवन भी कहा गया।
5. इन प्रवासी समुदायों के लिए एक अधिक सामान्य शब्द मलेच्छ था।
मलेच्छ का अर्थ :-
- असभ्य भाषा बोलने वाले
- अनार्य - जो आर्य परम्परा के ना
हों
- जो वर्ण व्यवस्था का पालन ना करें
सूफीवाद
1. सूफी विकास
- ऐसी भाषा बोलने वाले जो संस्कृत से नहीं उपजी ऐसे शब्दों में हीन भावना
निहित थी, सूफीवाद के लिए इस्लामी ग्रंथों में तसव्वुफ शब्द
का इस्तेमाल होता है यह सूफ से निकला है जिसका अर्थ होता है ऊन।
- कुछ विद्वानों का मानना है की सूफी की उत्पत्ति सफा से हुई है, जिसका अर्थ
है - साफ / पवित्र।
- इस्लाम में कुछ संतो का रूढ़ीवादी परंपराओं से बाहर निकलकर, रहस्यवाद और वैराग्य की ओर झुकाव बढ़ा यह सूफी
कहलाए।
- इन्होंने रूढ़ीवादी परिभाषा और धार्मिक गुरुओं द्वारा दी गई कुरान की व्याख्या
की आलोचना की।
- इन्होंने मुक्ति की प्राप्ति के लिए, ईश्वर की भक्ति और उनके आदेशों के पालन पर अधिक बल दिया।
- इन्होंने पैगंबर मोहम्मद को इंसान- ए- कामिल बताया, पैगंबर मो. के अनुसरण की बात कही।
- सूफियों ने कुरान की व्याख्या अपने निजी अनुभव के आधार पर की।
2. खानकाह और सिलसिला
1. खानकाह - सूफी संतों, धर्म प्रचारकों के रहने का स्थान।
- खानकाह का नियन्त्रण शेख, पीर, मुर्शीद के हाथ में होता था।
- संतो के अनुयाई मुरीद कहलाते थे।
- शेख अपने मुरीदों की भर्ती करते थे
- आध्यात्मिक व्यवहार के नियम निर्धारित
करते थे।
2. सिलसिला - अल्लाह ,पीर , मुरीद के मध्य एक जंजीर जो आपस में जुड़े है।
- 12 वीं शताब्दी के आसपास इस्लामिक दुनिया में सूफी सिलसिला का गठन होने लगा
जो शेख और मुरीद के बीच एक निरंतर रिश्ते की ओर संकेत करता है ।
- दीक्षा के विशेष अनुष्ठान
विकसित किए गए, दीक्षित को निष्ठा का वचन देना होता था।
- सिर मुंडाकर थेगडी वाले कपड़े
पहनने पड़ते थे।
- पीर की मृत्यु के बाद उसकी
दरगाह उसके मुरीदो के लिए भक्ति का स्थान बन जाती थी।
3. जियारत - दर्शन करना, तीर्थयात्रा
- पीर की दरगाह
पर जियारत के लिए जान जाने की परंपरा चल निकली, जिसे ऊर्स कहा जाता था।
- लोग ऐसा मानते थे कि मृत्यु के
बाद पीर ईश्वर में एकीभूत हो जाते हैं।
- लोग आध्यात्मिक और ऐहिक
कामनाओं की पूर्ति के लिए उनका आशीर्वाद लेने जाते थे।
3. खानकाह के बाहर
- कुछ रहस्यवादियो ने सूफी सिद्धांतों
की व्याख्या के आधार पर नए आंदोलन की नींव रखी,इन्होंने खानकाह का तिरस्कार किया।
- यह रहस्यवादी फकीर की जिंदगी
बिताते थे, निर्धनता और ब्रह्मचर्य को इन्होंने गौरव प्रदान
किया, इन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है कलंदर, मदारी, मलंग, हैदरी।
इनकी विशेषताए
1. यह शरिया की अवहेलना करते थे।
2. इन्हें बे- शरिया कहा जाता था।
3. इन्हें शरिया के पालन करने वाले सूफियों से अलग करके देखा जाता था।
उपमहाद्वीप में चिश्ती सिलसिला
- 12 वीं शताब्दी के अंत में भारत आने वाले सूफी समुदायों में, चिश्ती सबसे अधिक प्रभावशाली थे।
कारण
1. इन्होंने अपने आप को स्थानीय परिवेश में ढाल लिया।
2. भारतीय भक्ति परंपरा की विशेषताओं को भी अपनाया।
1. चिश्ती खानकाह में जीवन
- शेख निजामुद्दीन औलिया कि खानकाह दिल्ली में थी।
- यहां कई छोटे छोटे कमरे और एक बड़ा हॉल था, यहां अतिथि रहते तथा उपासना करते थे।
- यहां रहने वालों में से शेख का परिवार उनके सेवक, उनके अनुयाई थे।
- शेख एक छोटे से कमरे में छत पर रहते थे, जहां वह मेहमानों से सुबह-शाम मिला करते थे।
- आंगन एक गलियारे से घिरा होता था, खानकाह के चारों ओर दीवार का घेरा था।
- यहां एक सामुदायिक रसोई ( लंगर ) चलता था।
- यहां सुबह से दर रात तक सभी तबकों के लोग अनुयाई बनने, ताबीज लेने, मध्यस्ता करवाने आते थे।
- अमीर हसन सिजजी, अमीर खुसरो, जियाउद्दीन बरनी, इन सब ने शेख के बारे में लिखा है ।
- शेख निजामुद्दीन ने कई आध्यात्मिक वारिसों को चुना और उन्हें अलग-अलग, भागों में खानकाह स्थापित करने के लिए भेजा।
- धीरे धीरे , चिश्तियों के उपदेश तथा, शेख का प्रसिद्धी चारों ओर फैल गया, इनकी पूर्वजों की दरगाह पर तीर्थयात्री आने लगे।
2. चिश्ती उपासना : जियारत और कव्वाली
- सूफी संतों की दरगाह पर लोग जियारत के लिए आते थे, पिछले 700 सालों में अलग-अलग संप्रदायों के लोग, पांच महान चिश्ती संतों की दरगाह पर आते रहे हैं।
- इसमें सबसे महत्वपूर्ण दरगाह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की है, जिन्हें गरीब नवाज कहा जाता है।
- यह दरगाह शेख की सदाचारीता और धर्मनिष्ठा तथा उनके वारिश और राजसी , मेहमानों द्वारा दिए गए प्रशय के कारण बहुत लोकप्रिय थी।
- मोहम्मद बिन तुगलक पहला सुल्तान था जो इस दरगाह पर आया था।
- पहली इमारत सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी ने बनवाई।
- अकबर यहां 14 बार आया था वह हर महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त करने के बाद यहाँ आता था।
- प्रत्येक यात्रा पर बादशाह दान भेंट दिया करते थे, इसका ब्यौरा शाही दस्तावेजों में दर्ज है।
- नाच और संगीत भी जियारत का हिस्सा थे जिसमे प्रमुख था कव्वालों का रहस्यवादी गुणगान , सूफी संत जिक्र (ईश्वर का नाम जाप) या फिर समा (श्रवण करना) के माध्यम से ईश्वर उपासना कसरते थे।
3. भाषा और संपर्क
- चिश्तीयो ने स्थानीय भाषा को अपनाया, दिल्ली में चिश्ती सिलसिला के लोग हिंदवी में बातचीत करते थे।
- बाबा फरीद ने क्षेत्रीय भाषा में काव्य की रचना की इसका संकलन गुरु ग्रंथ साहिब में मिलता है।
- कुछ सूफियों ने लंबी कविताएं मसनवी लिखें जैसे मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत जो पद्मिनी और चित्तौड़ के राजा रतन सेन की प्रेम कथा के इर्द-गिर्द घूमती है।
- दक्कन में कर्नाटक के आसपास दक्खनी में लिखी छोटी कविताएं थी,यह 17 18 वी शताब्दी में यहां बसने वाले चिश्ती संतों द्वारा रची गई।
4. सूफी और राज्य
- चिश्ती संप्रदाय के लोग संयम और सादगी भरा जीवन बिताते थे, सत्ता से खुद को दूर रखने पर बल देते थे।
- सत्ताधारी विशिष्ट वर्ग अगर बिना मांगे भेंट देता था, तो सूफी संत उसे स्वीकार करते थे।
- सुल्तानों ने खानकाह को कर मुक्त भूमि अनुदान में दी।
- चिश्ती धन और सामान के रूप में दान स्वीकार करते थे, इस धन को इकट्ठा करके रखा नहीं जाता था,बल्कि इससे खाने कपड़े रहने की व्यवस्था महफिल आदि पर खर्च कर देते थे।
- आम लोगों में चिश्ती बहुत प्रसिद्ध थे ,इसीलिए शासक भी उनका समर्थन हासिल करना चाहते थे।
- जब तुर्को द्वारा दिल्ली सल्तनत की स्थापना की गई, तब उलमा द्वारा शरिया लागू की जाने की मांग को ठुकराया गया, क्योंकि अधिकतर जनता इस्लाम को नहीं मानती थी ऐसे में सुल्तानों ने सूफी संतों का सहारा लिया।
- सूफियों और सुल्तानों के बीच तनाव के उदाहरण भी मौजूद हैं, दोनों अपनी सत्ता का दावा करने के लिए कुछ आचारों पर बल देते थे
जैसे : -
- झुककर प्रणाम करना, कदम चूमना।
- कभी-कभी सूफी शेख को आडंबर पूर्ण पदवी से संबोधित किया
जाता था जैसे शेख निजामुद्दीन औलिया के अनुयाई उनको ,सुल्तान–उल–मशेख ( शेखों में सुल्तान )।
नवीन भक्ति पंथ उत्तरी भारत में संवाद और असहमति
1. मीराबाई
- मीराबाई भक्ति परंपरा की सबसे सुप्रसिद्ध कवियत्री हैं लगभग - 15 वी - 16 वी शताब्दी में मीराबाई का जन्म राजस्थान में हुआ था, पिता - रतन सिंह थे ।
- मीराबाई बचपन से ही कृष्ण भक्ति में लीन हो गई।
- मीराबाई का विवाह इनकी मर्जी के खिलाफ मेवाड़ के सिसोदिया कुल में किया गया।
- विवाह के बाद पति की आज्ञा की अवहेलना करते हुए, मीराबाई ने पत्नी और मां के दायित्वों को निभाने से इनकार किया।
- क्योंकि मीराबाई श्रीकृष्ण को अपना एकमात्र पति स्वीकार किए कर चुकी थी, एक बार उनके ससुराल वालों ने उन्हें जहर देने का प्रयत्न किया, लेकिन मीराबाई राजभवन से निकलकर भागने में सफल हुई।
- वह एक घुमक्कड़ गायिका बन गई, उन्होंने अपने अंतर्मन की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए अनेक गीतों की रचना की।
- मीरा के गुरु रैदास थे जो कि एक चर्मकार थे, इससे यह ज्ञात होता है कि मीरा ने जातिवादी परंपरा का विरोध किया।
- मीराबाई ने राज महल के ऐश्वर्य को त्याग दियाऔर एक विधवा के रूप में सफेद वस्त्र धारण कर सन्यासी की जिंदगी बिताई।
2. गुरुनानक
- गुरु नानक का जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था, इनका जन्म स्थल पंजाब का ननकाना गांव था जो रावी नदी के पास था, मृत्यु – करतारपुर
- इनका विवाह छोटी आयु में हो गया था.
- इन्होंने अपना अधिकतर समय सूफी
और भक्त संतों के बीच गुजारा.
- देश भर की यात्रा की और निर्गुण भक्ति का प्रचार.
- धर्म के सभी बाहरी आडंबर को
अस्वीकार किया
- जैसे - यज्ञ, अनुष्ठानिक स्नान, मूर्ति पूजन, कठोर तपस्या.
- हिंदू और मुसलमानों के धर्म ग्रंथों को भी नकारा.
गुरु नानक शिक्षा
- गुरु नानक परम पूर्ण रब का कोई लिंग का आकार नहीं होता है ,उपासना का सरल नियम स्मरण करना व नाम का जाप ही रब को पाया जा सकता है
- इन्होंने अपने विचार पंजाबी भाषा में शबद के माध्यम से सामने रखें, नानक जी यह यह शबद अलग अलग राग में गाते थे, उनके सेवक मर्दाना रबाब बजाकर उनका साथ देते थे
- गुरु नानक ने अपने अनुयायियों को एक समुदाय में संगठित किया, सामुदायिक उपासना के नियम निर्धारित किए, यहां सामूहिक रूप से पाठ होता था
- गुरु नानक ने अपने अनुयाई अंगद को अपने बाद गुरु पद पर आसीन किया, यह परंपरा लगभग 200 वर्षों तक चलती रही
सिख धर्म की स्थापना
- गुरु नानक जी कोई नया धर्म की स्थापना नहीं करना चाहते, लेकिन इनकी मृत्यु के बाद इनके अनुयायियों ने अपने आचार विचार इस प्रकार से बनाए जिस से ही अपने आप को हिंदू और मुसलमान दोनों से अलग चिन्हित करते थे.
- पाचवे गुरु अर्जन देव जी ने बाबा गुरु नानक तथा उनके चार उत्तराधिकारियों बाबा फरीद, रविदास, कबीर की वाणी, को आदि ग्रंथसाहिब में संकलित किया.इनको गुरबाणी कहा जाता है.
- नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर की रचनाओं को भी इसमें शामिल किया, इस ग्रंथ को गुरु ग्रंथसाहिब कहा गया.
- गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की, खालसा पंथ - पवित्रों की सेना.
उनके पांच प्रतीक
1. बिना कटे केस
2. कृपाण
3. कच्छ
4. कंघा
5. लोहे का कड़ा
3. कबीर
- कबीर एक महान संत एवं समाज सुधारक कवि माने जाते हैं, इनका जन्म वाराणसी में हुआ, इनका जन्म एक विधवा महिला के द्वारा हुआ.
- इनकी माताजी ने इन्हें लहरतारा नदी के पास छोड़ दिया, उसके बाद इन्हें एक जुलाहा दम्पत्ति नीरू और नीमा ने पालन पोषण किया
- उन्होंने परम सत्य को वर्णित करने के लिए कई तरीको का सहारा लिया
- कबीर इस्लामी दर्शन की तरह सत्य को अल्लाह, खुदा, हजरत और पीर कहते हैं
- वेदांत दर्शन से प्रभावित कबीर सत्य को अलख ( अदृश्य ), निराकार कहते है
- कुछ कविताएं इस्लामी दर्शन के एकेश्वरवाद और मूर्तिभंजन का समर्थन करते हुए
- हिंदू धर्म में बहुईश्वरवाद और मूर्ति पूजा का खंडन करती है
- कबीर पहले और आज भी उन लोगों के लिए प्रेरणा का एक स्रोत है, जो सत्य की खोज में रूढ़िवादी धार्मिक सामाजिक परंपराओं विचारों को प्रश्नवाचक के नजरिए से देखते हैं.
- कबीर को भक्ति मार्ग दिखाने वाले गुरु रामानंद थे, ऐसा माना जाता है कि यह हिंदू परिवार में जन्मे थे, लेकिन इनका पालन पोषण मुस्लिम परिवार में हुआ.
- कबीर पढ़े लिखे नहीं थे, कबीर की वाणी को बीजक नामक ग्रंथ में लिखा गया.
- बीजक कबीरपंथियों द्वारा वाराणसी और उत्तर प्रदेश के स्थानों में संरक्षित है.
- कबीर ग्रंथावली का संबंध राजस्थान के दादूपंथीयों से हैं.
- इसके अलावा कबीर के कई पद आदि ग्रंथ साहिब में भी संकलित हैं.
- इन सब का संकलन कबीर की मृत्यु के बहुत बाद किया गया.
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