Chapter - 5
यात्रियों के नजरिए
लगभग दसवी से सत्रहवी सदी में यात्रियों के नजरिए से भारतीय इतिहास को जानने के बहुत से वृतांत मिले है, इससे भारतीय समाज को समझने में मदद मिलती है। हलाकि इन यात्रियों के अपने नजरिये थे जिससे इन्होने भारतीय समाज की व्याख्य की जिसे पूरी तरह साही नहीं माना जा सकता। फिर भी ये उस समय की परिस्थितयो को जरुर उजागर करते है।
लोग यात्राएं क्यों करते थे ?
- अच्छे अवसर और कार्य की तलाश में पुरुषो और
महिलाओ ने दूर दराज तक यात्राये की।
- किसी स्थान से प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए
दुसरे स्थान पर ।
- व्यापारीक लाभ के लिए व्यापारी लोग काफी लम्बी-लम्बी यात्राये
करते थे।
- सैनिक, पुरोहित और तीर्थ यात्रियों के रूप में लोगो ने यात्राये की ।
- कुछ लोग नए चीजो की तलाश में साहस की भावना से
प्रेरित होकर यात्राये करते थे।
भारत में आने वाले यात्री
यात्री |
कालक्रम |
अल बिरूनी |
11वी शताब्दी में आया |
इब्न बतूता |
14वी शताब्दी में आया |
फ्रांस्वा
बर्नियर |
17वी शताब्दी में आया |
मार्कोपोलो |
13वी शताब्दी में आया |
अब्दुर रज्जाक |
1440 ईस्वी में आया |
दुआर्ते बरबोसा |
1518 ईस्वी में आया |
तैवेनियर |
17वी सदी में आया |
अल - बिरूनी
1. जन्म स्थान- अल बिरूनी का जन्म 973 उज्बेकिस्तान में ख्वारिज्म नामक जगह पर हुआ था।
2. शिक्षा
- ख्वारिज्म वह जगह शिक्षा के लिए बहुत प्रसिद्ध थी , अल बिरूनी ने अपने समय की सबसे बेहतर शिक्षा प्राप्त की थी।
3. भाषाएँ
- अल बिरूनी को बहुत सी भाषाओ का ज्ञान था वह सीरियाई , फारसी, हिब्रू , संस्कृत अच्छे से जनता था।
4. यूनानी दार्शनिको का पभाव
- अल बिरूनी को यूनानी भाषा नहीं आती थी, लेकिन फिर भी वो प्लेटो और अन्य यूनानी दार्शनिको के विचारों से प्रभावित था जिसे उसने अरबी अनुवाद के जरिये पढ़ा।
1. अल बिरूनी भारत कैसे आया ?
- सन 1017 में ख्वारिज्म पर आक्रमण हुआ, यह आक्रमण सुलतान महमूद ने किया था।
- सुलतान महमूद ख्वारिज्म पर आक्रमण करके यहाँ के
सभी कवियों और विद्वानों को अपने साथ अपनी राजधानी
गजनी ले आया , उनमे से अल बिरूनी भी एक था।
- जब पंजाब का हिस्सा भी महमूद के नियंत्रण में आ
गया तब अल बिरूनी की भारत आने की रुचि बढ़ी और वो भारत आया।
- अल बिरूनी ने यहाँ ब्राह्मण, पुरोहितों तथा विद्वानों के साथ कई वर्ष बिताए और संस्कृत, धर्म तथा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया।
2. अल बिरूनी और उसका लेखन
1. किताब- उल- हिन्द
- अल बिरूनी ने भारत में रहकर जो भी देखा और महसूस
किया वो सब अपनी कृति किताब-उल-हिन्द में लिखा, यह किताब अरबी भाषा में लिखी गयी थी इस किताब की भाषा बहुत सरल स्पष्ट थी।
- इस विस्तृत ग्रन्थ में धर्म, दर्शन, त्यौहार,खगोल विज्ञान, रीति रिवाज, प्रथाओं, भार- तौल, मूर्तिकला, कानून के बारे में लिखा गया था जो 80 अध्यायों में विभाजित है।
2. लेखन की विशेषताएं
- यह किताब एक विशेष तरीके से लिखी गयी थी इसमें शुरू में एक प्रश्न पूछा जाता था फिर उसका वर्णन लिखा गया था ,अंत में उसकी अन्य संस्कृतियों से तुलना की जाती थी |
- आज के कुछ विद्वानों ने इस किताब की रचना को ज्यामितीय संरचना माना है क्योकि अल-बिरूनी का गणित की ओर झुकाव था।
- अल बिरूनी अरबी भाषा का प्रयोग करता था और उसने
यह कृतियाँ उपमहाद्वीप के सीमांत क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए लिखी थीं।
- अल बिरूनी ने दंतकथाओं से लेकर खगोल विज्ञान और चिकित्सा संबंधी कृतियाँ जो पाली तथा प्राकृत ग्रंथों में थी सभी को अरबी भाषा के अनुवादों में समझा।
- अल बिरूनी का ग्रंथों की लेखन सामग्री शैली के विषय में दृष्टिकोण आलोचनात्मक था जिसमे वो सुधर करना चाहता था।
3. अल बिरूनी की समझ और बाधाएँ
1. अवरोध
- पहला अवरोध अल बिरूनी ,संस्कृत भाषा को अरबी और फ़ारसी से इतनी भिन्न मानता था की विचारों और सिद्धांतों को एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवादित करना आसान नहीं था।
- दूसरा अवरोध धार्मिक अवस्था और प्रथा थी।
- तीसरा अवरोध अभिमान था।
2. अवरोधो पर विजय
- ब्राह्मणों द्वारा रचित कृतियों का प्रयोग किया
- भारतीय समाज को समझने के लिए वेदों, पुराणों, भगवद्गीता, पतंजलि की कृतियों तथा मनुस्मृति के अंशो का सहारा लिया।
4. अल बिरूनी का जाति व्यवस्था विवरण
- अल बिरूनी ने यह बताने की कोशिश की थी, कि जाति व्यवस्था केवल भारत में ही नहीं ,बल्कि फारस में भी थी और अन्य देशों में भी है , अल बिरूनी ने बताया की प्राचीन फारस में चार वर्ग
हुआ करते थे :-
पहला |
घुड़सवार तथा
शासक वर्ग |
दूसरा |
भिक्षु तथा
पुरोहित वर्ग |
तीसरा |
वैज्ञानिक, चिकित्सक
तथा खगोलशास्त्री वर्ग |
चौथा |
किसान और अन्य
शिल्पकार वर्ग |
- अलबरूनी ने जाति व्यवस्था के संबंध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को माना लेकिन उसने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार किया।
- अलबरूनी ने लिखा कि “ हर वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है। “ सूर्य हवा को स्वच्छ करता है और समुद्र में नमक पानी को गंदा होने से बचाता है।
- अलबरूनी ने जोर देकर कहा कि यदि ऐसा नहीं होता तो पृथ्वी पर जीवन असंभव होता।
- अलबरूनी के अनुसार जाति व्यवस्था में अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के खिलाफ थी।
- जाति व्यवस्था के विषय में अलबरूनी का विवरण संस्कृत ग्रंथों के अध्ययन पर आधारित था अलबरूनी का मानना था कि ब्राह्मणवादी नियमों का प्रतिपादन किया गया था लेकिन वास्तव में इतनी कड़ी नहीं थी।
- हालांकि उच्च वर्ग और निम्न वर्ग का अंतर था लेकिन फिर भी यह लोग समाज में आर्थिक तंत्र से जुड़े हुए थे।
इब्न बतूता
1. जन्म स्थान
- मोरक्को के तैन्जियर में इब्न बतूता का जन्म एक सम्मानित और शिक्षित परिवार में हुआ था।
- इब्न बतूता का परिवार इस्लामी कानूनों का जानकार था ,इब्न बतूता ने बहुत कम उम्र में ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर ली थी।
3. यात्राये
- मक्का , सीरिया, इराक, फारस, ओमान, भारत, अफ्रीका , पश्चिम एशिया , मध्य एशिया ,चीन तक।
1. इब्न बतूता एक जिद्दी यात्री, भारत कैसे आया ?
1. किताब - रिहला
- इब्न बतूता एक हठीला और जिद्दी
यात्री था , इब्न बतूता ने जो किताब लिखी थी उसे रिहला कहा जाता है ।
- यह यात्रा वृतांत अरबी में लिखा गया था ,इब्न बतूता के वृतांतों से हमें बहुत ही रोचक जानकारियाँ मिलती हैं।
2. यात्राये
- इब्न बतूता को यात्राओं का बहुत शौक था इब्न बतूता मानता था की किताबी ज्ञान से ज्यादा ज्ञान हमें यात्राओं से मिलता है ।
- भारत आने से पहले इब्न बतूता मक्का , सीरिया, इराक, फारस, ओमान की यात्रा करके आया था , मध्य एशिया के रास्ते होकर इब्न बतूता सन 1333 में स्थलमार्ग से सिंध पहुंचा।
- उसने दिल्ली के सुलतान मो. बिन तुगलक के बारे में सुना था , इब्न बतूता सुलतान से एक बार मिलना चाहता था इसलिए दिल्ली की ओर प्रस्थान किया।
- इब्न बतूता का हुनर देख कर सुल्तान तुगलक ने उसे दिल्ली का न्यायधीश नियुक्त किया, इब्न बतूता न्यायधीश के पद पर कई सालों तक रहा।
- इब्न बतूता ने सुलतान का विश्वास खो दिया और फिर उसे जेल में डाल दिया गया, कुछ समय बाद सुलतान और उसके बीच की ग़लतफहमी दूर हो गयी और उसे राजकीय सेवा करने का मौका मिला और दूत के रूप में चीन भी गया।
- इब्न बतूता को बहुत बार उसकी यात्राओं के दौरान लूटा गया था ,परन्तु फिर भी वह यात्रा करता रहा वह एक जिद्दी यात्री था।
2. इब्न बतूता द्वारा शहरों का वर्णन
- इब्न बतूता जब भारत आया तो वो भारत के बाजारों में घूमा ,इब्न बतूता ने भारतीय शहरों को अवसरों से भरा पाया।
- इब्न बतूता ने बताया की अगर किसी के पास कौशल है और इच्छा है तो इस शहर में अवसरों की कमी नही है।
- शहर घनी आबादी वाले और भीड़ - भाड़ वाले थे , सड़कें बहुत ही चमक - धमक वाली थी।
- बाजार बहुत ही रंग - बिरंगे एवं सुंदर थे , यहाँ के बाजार अलग - अलग प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे।
- इब्न बतूता ने दिल्ली को एक बड़ा शहर बताया और बताया की यह भारत में सबसे बड़ा है।
- इब्न बतूता बताता है की दौलताबाद भी दिल्ली से कम नहीं था और आकार में दिल्ली को चुनौती देता था।
- बहुत सारे बाजारों में मंदिर और मस्जिद दोनों होते थे।
- इब्न बतूता ने बताया की भारत में मलमल का कपडा महंगा था और केवल धनी आदमी ही उन्हें पहन सकते थे।
3. नारियल
तथा पान
- नारियल को इब्न बतूता एक अद्भुत वृक्ष मानता है और उसके फल और रेशो से बहुत प्रभावित हुआ, उसने ऐसा वृक्ष कही नहीं देखा था
पहली बार भारत में ही देखा ,इब्न बतूता बताता है की नारियल के रेशो का प्रयोग लोग रस्सी बनाने और जहाज सिलने के लिए करते थे।
- दूसरा वृक्ष इब्न बतूता ने पान का देखा जो अंगूर की
लता की तरह था जिसमे फल नहीं लगते थे लोग उसे केवल उसके पत्तो के लिए उगाते थे जिसे मुह में रखकर चबाया जाता था।
4. इब्न बतूता द्वारा संचार प्रणाली का वर्णन
1. अश्व डाक व्यवस्था
- इसे उलुक भी कहा जाता था।
- इस व्यवस्था में हर 4 मील पर राजकीय घोड़े खड़े रहते थे और घोड़े सन्देश लेकर जाते थे।
2. पैदल डाक व्यवस्था
- इस व्यवस्था में प्रत्येक मील पर तीन अवस्थान होते थे जिन्हें दावा कहा जाता है ।
- इसमें संदेशवाहक के हाथ में छड़ लिए दौड़ लगाता है और उसकी छड़ में घंटियां बंधी होती थी हर मील पर एक संदेशवाहक छड़ लेने के लिए तैयार रहता था।
- व्यापारियों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य ने विशेष उपाय किए थे ,लगभग सभी व्यापारिक मार्गों पर सराय और विश्रामगृह स्थापित किए थे ,यहां व्यापारियों को विभिन्न सुविधाएं मिल जाती थी।
5. इब्न बतूता द्वारा दासों का वर्णन
- इब्न बतूता बताता है दास बाजारों में सामान्य वस्तुओं की तरह खरीदे और बेचे जाते थे, दासों को भेंट में भी दिया जाता था।
- जब इब्न बतूता सिंध पंहुचा तो उसने सुलतान मो. बिन तुगलक के लिए घोड़े और दास खरीदे और उन्हें भेंट किये।
- दासों को सामान्य घर का काम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था ,दास पालकियां भी उठाया करते थे।
- इब्न बतूता बताता है की दासियों को अमीरों पर नजरे रखने के लिए नियुक्त किया जाता था ,दासियाँ संगीत और गाने का भी काम करती थी।
फ्रांस्वा बर्नियर
1. फ्रांस्वा
बर्नियर भारत कैसे आया ?
- वह मुगल साम्राज्य में अवसरों की तलाश में आया था ,वह 1656 से 1668 तक भारत में 12 वर्ष तक रहा ।
- फ्रांस्वा बर्नियर मुगल दरबार से नजदीकी रूप से जुड़ा रहा वह सम्राट शाहजहां के जेष्ठ पुत्र दारा शिकोह के चिकित्सक के रूप में और बाद में मुगल दरबार के 1 आर्मीनियाई अमीर दानिशमंद खान के साथ एक बुद्धिजीवी तथा वैज्ञानिक के रूप में रहा।
2. पूर्व और पश्चिम की तुलना
- फ्रांस्वा बर्नियर ने देश के कई भागों की यात्रा की और विवरण लिखें ,वह भारत में जो भी देखता था उसकी तुलना यूरोपीय स्थिति से करता था
- बर्नियर ने मुगलकालीन भारत की तुलना तत्कालीन यूरोप से की और यूरोप को श्रेष्ठ बताया उसने भारत में जो भिन्नताएं महसूस कि उन्हें पदानुक्रम के अनुसार क्रमबद्ध किया जिससे भारत पश्चिमी दुनिया को निम्न कोटि का प्रतीत हो।
3. बर्नियर
के लेखन
- बर्नियर ने अपनी प्रमुख कृति फ्रांस के शासक लुइ 14वे को समर्पित की।
- बर्नियर के कार्य फ्रांस में 1670 - 71 में प्रकाशित हुए थे ,अगले 5 वर्षों के भीतर ही अंग्रेजी, डच, जर्मन और इतावली भाषाओं में इनका अनुवाद हो गया ।
- 1670 और 1725 के बीच उसका वृतांत फ्रांसीसी में 8 बार पुनर्मुद्रित हो चुका था ,1684 तक यह तीन बार अंग्रेजी में पुनर्मुद्रित हुआ था।
- बर्नियर का ग्रंथ ट्रैवल इन द मुग़ल एंपायर ( Travels In The Mughal Empire ) एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो, मुगलों के इतिहास को एक प्रकार के वैश्विक ढांचे में स्थापित करने का प्रयास करता है।
4. फ्रांस्वा बर्नियर का भूमि स्वमित पर प्रश्न
- बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच मूल भिन्नताओं में से एक भारत में निजी भूस्वामित्व का अभाव था।
- बर्नियर भूमि पर निजी स्वामित्व को बेहतर मानता था ,उसने भूमि पर राज्य के स्वामित्व को राज्य तथा उसके निवासियों दोनों के लिए हानिकारक माना।
- उसे यह लगा कि मुगल साम्राज्य में सम्राट सारी भूमि का स्वामी था ,जो इसे अपने अमीरों के बीच में बांटता था और इसके अर्थव्यवस्था और समाज के लिए बुरे परिणाम होते थे।
- बर्नियर का मानना था की राजकीय भूस्वामित्व के कारण भूधारक अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते थे इसलिए वे उत्पादन के स्तर को बनाए रखने और उसमें बढ़ोतरी के लिए अधिक निवेश के प्रति उदासीन थे।
- निजी भूस्वामित्व के अभाव ने बेहतर भूधारकों के वर्ग के उदय को रोका ,जो भूमि के रखरखाव और बेहतरी के प्रति सजग सचेत हों इसी के चलते कृषि का समान रूप से विनाश ,किसानों का उत्पीड़न और समाज के सभी वर्गों के जीवन पतन की स्थिति उत्पन्न हुई सिवाय शासक वर्ग के।
- बर्नियर ने भारतीय समाज को दरिद्र लोगो का जनसमूह बताया यह जनसमूह एक ऐसे समूह का अधीन थे जो अल्पसंख्यक था।
- बर्नियर ने बताया की भारत में 2 समूह थे एक बहुत अमीर और एक बहुत गरीब भारत में मध्य की स्थिति के लोग नहीं थे।
5. बर्नियर
का मुगल साम्राज्य के प्रति दृष्टिकोण
- बर्नियर ने मुगल साम्राज्य को इस रूप में देखा जिसका राजा भिखारियों और क्रूर लोगों का राजा था।
- इसके शहर और नगर विनष्ट तथा खराब हवा से दूषित थे ,इसके खेत झाड़ीदार तथा घातक दलदल से भरे हुए थे ,इसका मात्र एक ही कारण था ,राजकीय भू- स्वामित्व।
- आश्चर्य की बात यह है कि एक भी सरकारी मुगल दस्तावेज में यह बात नहीं मिलती कि राज्य ही भूमि का एकमात्र स्वामी था।
6. बर्नियर
का मुगल साम्राज्य के नगरो के प्रति नजरिया
- बर्नियर मुगल कालीन शहरों को शिविर नगर कहता है उसका आशय उन नगरों से जो अपने अस्तित्व और बने
रहने के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे।
- उसका विश्वास था कि यह राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और इसके कहीं और चले जाने के बाद तेजी से पतन हो जाता था।
- बर्नियर कहता है कि सभी प्रकार के नगर अस्तित्व
में थे :-
1. उत्पादन केंद्र
2. व्यापारिक नगर
3. बंदरगाह नगर
4. धार्मिक केंद्र
5. तीर्थ स्थान
- व्यापारी अक्सर मजबूत सामुदायिक अथवा बंधुत्व के संबंधों से जुड़े होते थे और अपनी जाति तथा व्यवसायिक संस्थाओं के
माध्यम से संगठित रहते थे।
- पश्चिमी भारत में ऐसे समूहों
को महाजन कहा जाता था और उनके मुखिया को सेठ कहा जाता था।
- अन्य शहरी समूहों में
व्यवसायिक वर्ग था जैसे कि - चिकित्सक, अध्यापक, अधिवक्ता, चित्रकार, संगीतकार, सुलेखक आदि।
7. बर्नियर
का सती प्रथा पर मार्मिक विवरण
- लाहौर में मैंने एक बहुत ही सुंदर अल्पवयस्क विधवा जिसकी आयु मेरे विचार में 12 वर्ष से अधिक नहीं थी कि बलि होते हुए देखा उस भयानक नर्क की ओर जाते हुए वह असहाय छोटी बच्ची जीवित से अधिक मृत्यु
प्रतीत हो रही थी,उसके मस्तिष्क की व्यथा का वर्णन नहीं किया जा सकता, वह कांपते हुए बुरी तरह से रो रही थी। लेकिन तीन या चार ब्राह्मण, एक बूढ़ी औरत जिसने उसे अपनी आस्तीन के नीचे
दबाया हुआ था की सहायता से उसे अनिच्छुक पीड़िता को जबरन घातक
स्थल की ओर ले गए, उसे लकड़ियों पर बैठाया, उसके हाथ और पैर बांध दिए, ताकि वह भाग ना जाए और इस स्थिति में उस मासूम प्राणी को जिंदा जला दिया गया मैं अपनी भावनाओं को दबाने में और उनके कोलाहलपूर्ण तथा व्यर्थ के क्रोध
को बाहर आने से रोकने में असमर्थ था।
कुछ अन्य यात्री
जिन्होंने भारत की यात्राये की
- लगभग 1500 ईसवी में भारत में पुर्तगालियों के आगमन के बाद उनमें से कई लोगों ने भारतीय सामाजिक रीति रिवाज और धार्मिक प्रथाओं के विषय में विस्तृत वृतांत लिखे थे।
- कुछ ऐसे विदेशी लेखक थे जिन्होंने भारतीय ग्रंथों का यूरोपीय भाषा में अनुवाद किया।
- जैसे जेसुईट रॉबर्टो नोबिली, दुआर्ते बरबोसा ने दक्षिण भारत में व्यापार और समाज का एक विस्तृत विवरण लिखा।
- 1600 ई. के बाद भारत में डच, अंग्रेज और फ्रांसीसी यात्री आने लगे थे ,इनमें से एक प्रसिद्ध नाम फ्रांसीसी जौहरी ज्यों बैप्टीटस तैवर्नियर का था इसने कम से कम 6 बार भारत की यात्रा की और यह भारत की व्यापारी की स्थितियों से बहुत प्रभावित हुए , उन्होंने भारत की तुलना ईरान और ऑटोमन साम्राज्य से की।
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