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राजा, किसान और नगर Notes in Hindi Chapter 2 History Class 12 Book 1 KINGS, FARMERS AND TOWNS





Chapter - 2
राजा, किसान और नगर


हड़प्पा सभ्यता के पतन के बाद ,भारतीय प्राचीन इतिहास में सिंधु नदी और इसकी उपनदियों के किनारे नई सभ्यता उभरी जिसे वैदिक सभ्यता कहा गया। इस समय भारतीय उपमहाद्वीप में बहुत से बदलाव हुए और इसके बहुत से परिणाम हमें  600 ई .पूर्व से 600 ईसवी के मध्य देखने को मिलते है।

 

 कुछ महत्वपूर्ण कालक्रम

हड़प्पा सभ्यता

2600 - 1900 BC

वैदिक सभ्यता

1500 - 600 BC

ऋग्वेदिक काल 

1500 - 1000 BC

उत्तर वैदिक काल 

1000 - 600 BC

नन्द वंश 

344 – 321 BC

नाग वंश 

412 – 344 BC

हर्यक वंश 

544 – 412 BC

नन्द वंश का संस्थापक 

महापदमनन्द


नन्द वंश का अंतिम शासक

 धनानंद


1.   वैदिक सभ्यता

1. हड़प्पा सभ्यता के बाद वैदिक सभ्यता अस्तित्व में आई।

2. वैदिक सभ्यता आर्यों द्वारा बसाई सभ्यता थी।

3. यह एक ग्रामीण सभ्यता थी।

4. इसका काल 1500 – 600 ईसा पूर्व निर्धारित किया गया है।

5. आर्यों की भाषा संस्कृत थी।

6. इस समय ऋग्वेद का लिखा गया।

 

2.  नए राजनितिक इतिहास की शुरुआत 

  • ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी जेम्स प्रिंसेप ने 1830 के दशक में ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों का अर्थ निकाल लिया   आरंभिक अभिलेख तथा सिक्को  में इन्हीं लिपियों का उपयोग किया गया था।

  • जेम्स प्रिन्सेप ने पता लगा लिया कि अधिकतर अभिलेखों और सिक्कों पर पियदस्सी लिखा हैपियदस्सी- अर्थात मनोहर मुखाकृति वाला राजाकुछ अभिलेखों में राजा का नाम   असोक    भी लिखा मिला है।

  • बौद्ध ग्रंथों के अनुसार असोक सबसे अधिक प्रसिद्ध शासक था।

 

3.   अभिलेख :-

  • पत्थर ,धातु तथा मिट्टी के बर्तन पर खुदे हुए लेख को अभिलेख कहा जाता है, अभिलेखों के अध्ययन को अभिलेख शास्त्र कहा जाता है।

  • जो भी व्यक्ति अभिलेखों को बनवाते थे उनमें उन लोगों की उपलब्धियां उनके द्वारा किए जाने वाले कार्य तथा उनके विचारों को लिखा जाता था।

  • अधिकतर अभिलेख राजाओं के क्रियाकलापविजय अभियान तथा धार्मिक संस्थाओं को दिए गए दान का ब्यौरा देते हैं।

  • कुछ अभिलेखों में इनके निर्माण की तारीख भी मिली है प्राचीनतम अभिलेख प्राकृत भाषाओं में लिखे जाते थेप्राकृत भाषा आम जनता की भाषा थी।

  • इसके अलावा तमिलपालीसंस्कृत जैसी भाषा के शब्द भी अभिलेखों में मिले हैं।

 


प्रारंभिक राज्य और राज्यव्यवस्था 

1.   जनपद 

  • जनपद -  जन + पद = अर्थात जंहा लोग आकर बस जाए  ऐसा क्षेत्र है जहां लोग निवास करते हैं।

2.   महाजनपद

  • लगभग 2500 वर्ष पूर्व कई जनपद अधिक महत्वपूर्ण हो गए थे इन्हें महाजनपद कहा जाने लगा था।

  • अधिकतर महाजनपदों की एक राजधानी होती थी इन राजधानियों की किलेबंदी की गई थी, किलेबंद राजधानी का रखरखाव सेना तथा नौकरशाहों द्वारा किया जाता था।

  • अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन होता था लेकिन गण (कई सदस्य वाले समूह) और संघ (संगठन या सभा) के नाम से प्रसिद्ध राज्य में कई लोगों का समूह शासन करता था।

3.   सोलह महाजनपद

  • सोलह महाजनपदों का उल्लेख बौद्ध और जैन धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है मगध, गांधार, वज्जि, कौशल, कुरु,  पांचाल, अवंती।

  • इन महाजनपदों का नाम कई बार मिलता है भगवान महावीर तथा भगवान बुद्ध इन्हीं गण से संबंधित थे।

4.   छठी शताब्दी ईसा पूर्व में परिवर्तन

  • आरंभिक राज्यों का उदय।

  • नगरों का उदय।

  • लोहे का बढ़ता प्रयोग।

  • सिक्कों का विकास।

  • बौद्ध और जैन दार्शनिक विचारधाराओं का विकास।

  • ब्राह्मणों द्वारा धर्मशास्त्र नामक ग्रंथों की रचना।

  • धर्म शास्त्रों के अनुसार क्षत्रिय ही राजा बन सकते थे राजा का काम किसानों व्यापारियों तथा शिल्पकार से कर तथा भेंट वसूलना था।

  • धीरे-धीरे कुछ राज्य अपनी स्थाई सेना और नौकरशाही तंत्र बनाने लगे थे।

 

5. सोलह महाजनपदों में प्रथम : मगध

मगध बिहार राज्य में स्थित है मगध छठी से चौथी शताब्दी ई. पूर्व में सबसे शक्तिशाली महाजनपद बन गया था। 

इसके शक्तिशाली होने के पीछे कई कारण थे। :- 

  • उपजाऊ भूमि थी जिससे अच्छी फसल होती थी।

  • लोहे की खदान उपलब्ध थींलोहे से औजार तथा हथियार बनाना आसान था।

  • जंगलों में हाथी उपलब्ध थेसेना में हाथियों को शामिल किया जाता था।

  • गंगा और इसकी उपनदियों से आने जाने का रास्ता आसान और सस्ता थामगध प्राकृतिक रूप से सुरक्षित था।

  • मगध में योग्य  तथा शक्तिशाली शासक थे जैसे - बिंबिसारअजातसत्तु ,महापद्मनंद ,इन शासकों की बेहतर नीतियों के कारण मगध इतना समृद्ध था।

  • प्रारंभ में राजगाह का मगध की राजधानी होती थी परंतु चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में इसकी राजधानी पाटलिपुत्र को बनाया गया।

 


मौर्य साम्राज्य 321-185 BC

  • धनानंद को चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा हराकर मौर्य  साम्राज्य की स्थापना की गई।

  • चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य की सहायता की थी चाणक्य को विष्णुगुप्त तथा कौटिल्य भी कहा जाता है इन्होंने अर्थशास्त्र नामक पुस्तक लिखी है।

  • मौर्य शासन पश्चिमोत्तर में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान तक फैला था।

 

1.    मौर्य साम्राज्य के जानकारी के स्रोत

साहित्यिक स्रोत


पुरातात्विक स्रोत


बौद्ध और जैन साहित्य ,अर्थशास्त्रइंडिका 

 पुराणमुद्राराक्षस ,ब्राह्मण ग्रंथ

प्राचीन भवनस्तूप इमारतेंगुफाएंमृदभांड 

 अभिलेखअसोक के अभिलेखमूर्तिकला

 

2.   मौर्य साम्राज्य में प्रशासन 

मौर्य साम्राज्य के पांच प्रमुख राजनीतिक केंद्र थे एक राजधानी और चार प्रांतीय केंद्र।

  • राजधानी – पाटलिपुत्र (पटना)

चार प्रांतीय केंद्र –

1.     तक्षशिला

2.     उज्जयिनी

3.     तोसली

4.     सुवर्ण गिरी

 

  • असोक के अभिलेखों के अनुसार पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर से लेकर आंध्र प्रदेशउड़ीसाउत्तरांचल तक हर स्थान पर एक जैसे संदेश उत्कीर्ण मिले हैं।

  • तक्षशिला और उज्जैन दोनों लंबी दूरी वाले महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग पर स्थित थे,स्वर्णगरी कर्नाटक में।

  • साम्राज्य के उचित संचालन के लिए जमीन और नदी दोनों मार्गो से आना-जाना बना रहता था।

  • राजधानी से प्रांत तक जाने में कई सप्ताह या महीने का समय लगता होगा ऐसे में यात्रियों के विश्राम तथा खान-पान की व्यवस्था की गई होगी सुरक्षा का कार्य सेना को सौंपा गया था।

 

3.    सेना

  • मेगास्थनीज के अनुसार - सैनिक गतिविधियों के लिए एक समिति और छ: उपसमितियां थी मौर्य साम्राज्य के पास विशाल सेना थी।

 

पहली समिति

नौसेना का संचालन

दूसरी समिति

यातायात खान पान की देखरेख

तीसरी समिति

पैदल सैनिकों का संचालन

चौथी समिति

अश्वरोही

पांचवी समिति

रथारोही

छठी समिति

 हाथियों का संचालन


अन्य उपसमितियां

  • उपकरण को ढोने के लिए बैलगाड़ी का प्रबंध करना।

  • सैनिकों के लिए भोजन की व्यवस्था करना।

  • जानवरों के लिए चारे की व्यवस्था करना।

  • सैनिक की देखभाल के लिए सेवकों को नियुक्त करना।

 

4.    असोक का धम्म

  • असोक ने प्रसाशन में कुछ नियम स्थापित किया जिसे असोक का धम्म कहा गया इसके अनुसार धम्म के माध्यम से लोगों का जीवन इस संसार में तथा इसके बाद के संसार में अच्छा रहेगा।

  • धम्म के प्रचार के लिए धम्म महामात नाम के अधिकारी क्यों नियुक्त किया जाता था।

 

असोक का धम्म की विशेषता :- 

1.बड़ो का सम्मान करना सत्य बोलना।

2.अपने से छोटों के साथ उचित व्यवहार करना।

3.विद्वानों ब्राह्मणों के प्रति सहानुभूति की नीति।

4. अहिंसा का संदेश सभी धर्मों का सम्मान।

5. दासों और सेवकों के प्रति दयावान होना।

 

5. मौर्य साम्राज्य का महत्व

  • 19 वी शदी में जब इतिहासकारों ने भारत के आरंभिक इतिहास को लिखना शुरु किया तो मौर्य साम्राज्य को इतिहास का प्रमुख काल माना गया क्योंकि पहली बार चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा   एक   अखंड भारत बनाया गया

  • मौर्य काल की मूर्तिकला सराहनीय थी।

  • मौर्य काल के शासको ने अपने नाम के आगे बड़ी बड़ी उपाधियां नहीं जोड़ी।

  • इतिहासकारों ने असोक को एक महान सम्राट मानाराष्ट्रवादी इतिहासकार के लिए अशोक एक प्रेरणा का स्रोत माना गया।

  • मौर्य साम्राज्य मात्र 150 वर्ष तक ही चल पाया लेकिन भारतीय इतिहास में  इसे महत्वपूर्ण माना जाता है ।

 

राजधर्म और नवीन सिधांत 

1.   दक्षिण के राजा तथा सरदार

  • भारत के दक्षिण में कुछ सरदरियो का उदय हुआ तमिलकम - तमिलनाडु आंध्र प्रदेश केरल तमिलकम क्षेत्र में चोल चेर और पांडय जैसी सरदारी अतित्व में आई यह राज्य काफी समृद्ध थे।
  • सरदार एक शक्तिशाली व्यक्ति होता है सरदार का पद वंशानुगत भी हो सकता है और नहीं भी सरदार के समर्थक उसके परिवार के लोग होते थे ।

सरदार के कार्य :- 

  • अनुष्ठान का संचालन।

  • युद्ध का नेतृत्व करना।

  • लड़ाई झगड़ेविवाद को सुलझाना।

  • सरदार अपने अधीन लोगों से भेंट लेता है,अपने समर्थकों में उस भेंट को बांट देता है।

  • सरदारी में कोई स्थाई सेना या अधिकारी नहीं होते।

  • इन राज्यों के बारे में जानकारी प्राचीन तमिल संगम ग्रंथों से मिलती है ,इन ग्रंथों में सरदारों के बारे में विवरण है।

  • कई सरदार तथा राजा लंबी दूरी के व्यापार से भी राजस्व इकट्ठा करते थे ,इनमें सातवाहन तथा शक राजा प्रमुख हैं।

 

2. दैविक राजा

  • राजाओं के द्वारा उच्च स्थिति प्राप्त करने का एक माध्यम देवताओं से जुड़ना था।

  • कुषाण राजा जिन्होंने मध्य एशिया से लेकर पश्चिम उत्तर भारत तक शासन किया।

  • इन शासकों ने मंदिरों में अपनी विशाल मूर्तियां लगवाई।

  • शायद वह स्वयं को देवतुल्य दिखाना चाहते थे।

  • कुषाण राजा ने अपने नाम के आगे देवपुत्र की उपाधि भी लगाई थी।

  • कुषाण काल के सिक्कों में भी एक तरफ राजा और दूसरी तरफ देवता का चित्र होता था।

  • उत्तर प्रदेश में मथुरा के पास माट के एक देवस्थान पर कुषाण राजा की विशाल मूर्ति मिली है।

  • अफगानिस्तान के एक देवस्थान पर भी ऐसी ही मूर्ति मिली है।

 

3. गुप्त साम्राज्य

  • मौर्य काल के बाद गुप्तकाल को भारत का स्वर्णिम युग कहा जाता है।

  • गुप्त साम्राज्य की स्थापना श्रीगुप्त द्वारा लगभग 275 ईसवी में की गई थी।

  • गुप्त काल की राजकीय भाषा संस्कृत थी।

  • गुप्त काल में अधिकतर सिक्के सोने से बनाए जाते थे गुप्त साम्राज्य का इतिहास साहित्यिक स्रोतोंसिक्कों तथा अभिलेखों की सहायता से जानकारी लेकर लिखा गया है।

  • गुप्त साम्राज्य में कवियों द्वारा अपने राजा की प्रशंसा में लिखी गई प्रशस्ति भी एक ऐतिहासिक स्रोत है उदाहरण - प्रयाग प्रशस्ति की रचना समुंद्र गुप्त के राजकवि हरिषेण द्वारा की गई इसे संस्कृत भाषा में लिखा गया था।

 

ग्रामीण समाज में बदलाव 

1. जनता में राजा की छवि

  • जनता राजा के बारे में क्या सोचती थी इसके प्रमाण नहीं मिलते ऐसे में इतिहासकारों ने जातक तथा पंचतंत्र जैसे ग्रंथों में दी गई कहानियों की समीक्षा करके पता लगाने का प्रयास किया जातक कथाएं पहली सहशताब्दी ईस्वी के मध्य पाली भाषा में लिखी गई थी।

  • उदाहरण – गंद्तिंदु जातक नामक कहानी  इसमें बताया गया कि एक कुटिल राजा से उसकी प्रजा किस प्रकार से दुखी रहती है बूढ़े महिला पुरुष ,किसानपशुपालकग्रामीण बालकयहां तक कि जानवर भी इसमें शामिल है।

  • जब राजा अपनी पहचान बदल कर प्रजा के बीच में पता लगाने गया कि लोग उसके बारे में कैसा सोचते हैं तो सब ने उसकी बुराई करनी शुरू कर दी लोगों ने शिकायत की कि रात में डकैत लोगों पर हमला करते हैं तथा दिन में राजा के अधिकारी टैक्स इकट्ठा करके लुटते है इसीलिए लोग गांव छोड़कर जंगल में बस जाते  थे।

 

2. उपज बढ़ाने के तरीके

  • लोहे के फाल वाले हल का प्रयोग करना।

  • कुएंतालाब और नहरों के द्वारा से सिंचाई करना।

  • पर्वतीय क्षेत्रों में खेती के लिए कुदाल का उपयोग करना।

  • गंगा की घाटी में धान की रोपाई के कारण उपज बढ़ गई।

 

3. ग्रामीण समाज में विभिन्नताएं

  • कृषि की नई तकनीक अपनाने के बाद उपज जरूर बढी लेकिन इसका लाभ सबको नहीं हुआखेती से जुड़े लोगों में भेद बढ़ता गया।

  • बौद्ध कथाओं में भूमिहीन किसान तथा श्रमिक ,जमींदार का उल्लेख मिला है।

  • पाली भाषा में गहपति शब्द का प्रयोग छोटे किसान और जमीदारों के लिए किया जाता था।

  • बड़े-बड़े जमीदार और गांव के प्रधान शक्तिशाली थे जो कि किसानों पर अपना नियंत्रण रखते थे ,गांव के प्रधान का पद वंशानुगत होता था।

  • गहपति घर का मुखिया होता था और घर में रहने वाली महिलाओंबच्चोंनौकरौ और दासों पर नियंत्रण करता था घर से जुड़े भूमिजानवर या अन्य सभी वस्तुओं का वह मालिक होता था।

  • कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग नगरों में रहने वाले संभ्रांत व्यक्तियों और व्यापारियों के लिए भी होता है

  • आरंभिक तमिल संगम साहित्य में भी गांव में रहने वाले विभिन्न वर्गों के लोगों का उल्लेख है जैसे – वेल्लार या बड़े जमींदार   ( वेल्लार – कृषि व्यवसाय )  हलवाहा या उलवर और दास अणिमई

 

4. भूमिदान और नए संभ्रांत ग्रामीण

  • इसवी  की आरंभिक शताब्दियों से ही भूमि दान के प्रमाण मिले है कई अभिलेखों में भूमि दान का उल्लेख मिलता है कुछ अभिलेख पत्थरों पर लिखवाए गए थे ,अधिकतर भूमिदान का उल्लेख ताम्र पत्रों पर उत्कीर्ण मिला है।

  • आरंभिक अभिलेख संस्कृत भाषा में थे , लेकिन वीं शताब्दी के बाद के अभिलेख संस्कृततमिल ,तेलुगू भाषाओं में भी मिले हैं।

  • गुप्त शासक चंद्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त का विवाद दक्कन के वाकाटक परिवार में हुआ था संस्कृत धर्मशास्त्र के अनुसार महिलाओं का भूमि का अधिकार नहीं होता था लेकिन अभिलेख से जानकारी मिली है। कि प्रभावती भूमि की मालकिन थी और प्रभावती ने भूमिदान भी किया थी शायद इसलिए कि वह एक रानी थी और ऐसा इसलिए भी संभव हो सकता है कि धर्मशास्त्रों को हर स्थान पर समान रूप से लागू नहीं किया जाता हो।

  • भूमिदान के अभिलेख देश के कई हिस्सों से मिले हैं अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरह की भूमि दान में दी गई है कुछ स्थानों पर बहुत छोटी भूमि दान में दी है तो कुछ स्थानों में बहुत बड़ी-बड़ी भूमि दान में दी गई है दान प्राप्त करने वाले लोगों के अधिकारों में भी अलग-अलग क्षेत्रों में परिवर्तन देखने को मिला है।

 

इतिहासकारों में भूमिदान के प्रभाव को लेकर विवाद है :- 

  • भूमिदान अधिकतर ब्राह्मणों को या धार्मिक संस्थाओं को दिए जाते थे।

  • कुछ इतिहासकार मानते हैं कि शासक भूमिदान के द्वारा कृषि को प्रोत्साहित करना चाहते थे।

  • कुछ इतिहासकार कहते हैं कि भूमिदान एक संकेत है राजनीतिक प्रभुत्व का दुर्बल होने पर राजा समर्थन जुटाने के लिए भूमिदान करते थे।

 

छठी शताब्दी में नगर एवं व्यापार

1. नए नगर

  • अधिकांश नगर महाजनपदों की राजधानियां थे ,ज्यादातर नगर संचार मार्ग के किनारे बसे थे जैसे :-

1. पाटलिपुत्र ( पटना ) -  नदी के किनारे।

2. उज्जयिनी -  भूतल मार्ग के किनारे।

3. पुहार -  समुद्र तट के किनारे।

4. मथुरा  -  व्यवसायिक सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधि का केंद्र।

 

2. नगरीय जनसंख्या

  • नगरों में विभिन्न प्रकार के लोग रहते थे ,शासक किलेबंद नगरों में रहते थे इन क्षेत्रों से कई पुरा अवशेष प्राप्त हुए हैं जैसे - मिट्टी के कटोरे और थालियां जिन पर चमकदार कलई चढ़ी है तथा सोने-चांदीकांस्य,तांबे ,हाथी दांतशीशे जैसे अलग-अलग पदार्थों के गहने,उपकरण ,हथियारबर्तन आदि।

  • दूसरी शताब्दी ई. तक आते-आते कई नगरों से दानात्मक अभिलेख प्राप्त हुए इन अभिलेखों में दान देने वाले का नाम तथा उसका व्यवसाय भी लिखा था।

  • इनमें नगरों में रहने वाले धोबीबुनकरबढ़ाईलिपिककुम्हारस्वर्णकार अधिकारीधर्मगुरुव्यापारी और राजाओं के विवरण लिखे होते हैं।

  • श्रेणी का भी उल्लेख मिला है श्रेणी व्यापारियों के संघ को कहा जाता था यह व्यापारी लोग कच्चे माल को खरीद कर उनसे सामान बनाकर बाजार में बेच देते थे।

 

3. उपमहाद्वीप और उसके बाहर का व्यापार 

  • भारत का व्यापार प्राचीन काल से ही उपमहाद्वीप के बाहर से होता था हमें हड़प्पा सभ्यता में भी ऐसे प्रमाण मिले हैं।

  • छठी शताब्दी ईसा पूर्व से ही उपमहाद्वीप में जलमार्ग और भू मार्ग का जाल बिछ गया था।

  • भू मार्ग के जरिए मध्य एशिया तथा उससे आगे भी व्यापार होता था समुद्र तट पर बने बंदरगाहों से अरब सागर होते हुए उत्तरी अफ्रीकापश्चिमी एशिया तक ,बंगाल की खाड़ी से चीन और दक्षिण पूर्व एशिया की तरफ व्यापार होता था।

  • शासक इन व्यपारिक  मार्गों पर नियंत्रण करके व्यापारियों से सुरक्षा के बदले धन लेते थे इन मार्गों पर जाने वाले व्यापारियों में पैदल फेरी लगाने वाले व्यापारी बैलगाड़ी और घोड़े पर जाने वाले व्यापारी समुद्री मार्ग से भी लोग यात्रा करते थे जो खतरनाक लेकिन लाभदायक भी था।

  • कुछ  प्रसिद्ध सफल व्यापारी बहुत धनी होते थे ,यह व्यापारी नमककपड़ाअनाजधातु से बनी चीज ,पत्थरलकड़ी ,जड़ी बूटी जैसे अनेक सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचाते थे।

  • रोमन साम्राज्य में काली मिर्च जैसे मसाले तथा कपड़े और जड़ी बूटियों की बहुत भारी मांग थी इन वस्तुओं को अरब सागर के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों तक पहुंचाया जाता था।

 

4. सिक्के और राजा

  • व्यापार के लिए सिक्कों का प्रयोग किया जाता था सिक्कों के प्रयोग से व्यापार काफी हद तक आसान हो गया चांदी तथा तांबे के सिक्के सबसे पहले ढाले गए ( छठी शताब्दी ईसा पूर्व ) इन सिक्कों को आहत सिक्के कहा जाता था।

  • ऐसे बहुत सारे सिक्के विभिन्न स्थलों पर खुदाई के दौरान मिले हैंमुद्रासस्त्रियो ने इन सिक्कों का अध्ययन करके इनके वाणिज्यिक प्रयोग के क्षेत्रों का पता लगाया है आहत सिक्के पर बने प्रतीकों से पता लगता है कि इन्हें विभिन्न राजाओं द्वारा जारी किया गया था लेकिन ऐसा भी संभव है कि धनी लोगो व्यापारियों नागरिकों ने भी इस प्रकार के कुछ सिक्के जारी किए हो ।

  • शासकों की प्रतिमा और उनके नाम के साथ सबसे पहले सिक्कों को हिंद- यूनानी शासकों ने जारी किया थाभारत में बड़ी संख्या में रोमन सिक्के मिले हैं।

  • सोने के सिक्के सबसे पहले पहली शताब्दी ईस्वी में कुषाण शासकों के द्वारा जारी किए गए उत्तर और मध्य भारत में ऐसे सिक्के मिले हैं सोने के सिक्कों का प्रयोग संभवत बहुमूल्य वस्तुओं के व्यापार में किया जाता होगा 

  • पंजाब और हरियाणा जैसे क्षेत्रों के यौधेय शासकों द्वारा तांबे के सिक्के भी जारी किए गए थे

  • गुप्त काल में कुछ शासकों द्वारा सोने के भव्य सिक्के जारी किए गए इन सिक्कों में सोना उच्च गुणवत्ता का था।

 

5. छठी शताब्दी ई. में सोने के सिक्के मिलने कम क्यों हो गए ?

  • कुछ इतिहासकार का मानना है कि रोमन साम्राज्य का पतन होने के कारण व्यापार में कमी आई।

  • कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस काल में नए नगरों और व्यापार के नए तंत्रों का उदय हुआ था।

  • कुछ इतिहासकार का मानना है कि आर्थिक संकट के कारण ।

 

अभिलेखों की समझ 

1. अभिलेखों का अर्थ कैसे निकाला जाता है ?

  • अभिलेख का अर्थ निकालने के लिए विद्वान विभिन्न लिपियों का अध्ययन करते हैं प्राचीन लिपियों का आधुनिक लिपियों से मिलान करते हैं।

2. ब्राह्मी लिपि का अध्ययन

  • भारत की जितनी भी आधुनिक भाषाएं हैं इन में प्रयुक्त लगभग सभी लिपियों का मूल ब्राह्मी लिपि है।

  • असोक के जो अभिलेख मिले हैं वह अधिकतर ब्राह्मी लिपि में थे।

  • 18 वीं सदी में यूरोप के विद्वानों ने भारतीय पंडितों की सहायता लेकर आज के समय की बंगाली और देवनागरी लिपि में कई पांडुलिपियों का अध्ययन शुरू किया।

  • इनके अक्षर का प्राचीन अक्षरों से तुलना कीअभिलेखों का अध्ययन करने वाले कुछ विद्वानों ने कई बार अनुमान लगाया कि यह संस्कृत में लिखें लेकिन यह प्राकृत में लिखे गए थे फिर कई दशकों की मेहनत के बाद जेम्स प्रिंसेप ने अशोक के काल की ब्राह्मी लिपि में लिखे अभिलेखों का अर्थ 1838 में निकाल लिया।

3. खरोष्ठी  लिपि का अध्ययन

  • पश्चिमोत्तर के अभिलेखों में प्रयुक्त खरोष्ठी लिपि की तरह ही हिंद-यूनानी राजाओं द्वारा बनवाए गए सिक्कों पर नाम  यूनानी और खरोष्ठी में लिखे गए थे।

  • यूनानी भाषा पढ़ने वाले यूरोपीय विद्वानों ने अक्षरों का मेल करके इसे पढ़ा।

  • प्रिंसेप ने खरोष्ठी में लिखे अभिलेखों की भाषा की पहचान प्राकृत के रूप में की जिससे इसे पढना आसान हो गया।

4. अभिलेखों से प्राप्त ऐतिहासिक साक्ष्य

  • अभिलेखों का परीक्षण करने के बाद अभिलेखशास्त्रियों ने पाया की असोक की उपाधि देवंप्रिया - देवताओ का प्रिय,  प्रियाद्सी -देखने में सुन्दर ,मनोहर मुखाकृति वाला राजा की विषयशैलीभाषा और पुरालिपिविज्ञान सबमें समानता है जो एक ही  शासक असोक के बारे में बताती है। 

  • अभिलेखों में लिखे कथनों का परीक्षण करना पड़ता है ताकि यह पता चल सके उनमें लिखा हैवह सत्य है या फिर अतिशयोक्तिपूर्ण।


5. अभिलेख साक्ष्य सीमा

  • अक्षरों का हल्के ढंग से उत्कीर्ण होना।

  • अभिलेखों का नष्ट हो जाना , अभिलेखों पर अक्षर लुप्त होना।

  • कुछ अभिलेख सुरक्षित नहीं बचे।

  • अभिलेख के शब्दों का वास्तविक अर्थ की पूरी जानकारी न होना।

  • अभिलेखों में रोजमर्रा की जिंदगी के बारे में जानकारी ना होना जानकारी ना होना।

 

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