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अधिकार Notes in Hindi Class 11 Political Science Chapter-5 Book 2 Right

अधिकार Notes in Hindi Class 11 Political Science Chapter-5 Book 2 Right



अधिकार क्या हैं ?

अधिकार ऐसा दावा है जिसका औचित्य सिद्ध हो। 

अधिकार यह बताता है कि नागरिक, व्यक्ति और मनुष्य होने के नाते हम किसके हकदार हैं। 

यह ऐसी चीज है जिसको हम अपना प्राप्य समझते हैं; ऐसी चीज़ जिसे शेष समाज वैध दावे के रूप में स्वीकार करें इसका यह मतलब नहीं है कि हर वह चीज, जिसे ज़रूरी और वांछनीय समझें, अधिकार है। 

मेरी इच्छा हो सकती है कि स्कूल के लिए निर्धारित पोशाक की बजाय अपनी पसंद के कपड़े पहनूँ। 

इसका यह मतलब नहीं है कि मुझे स्कूल के लिए अपनी इच्छानुसार जो चाहूँ वह पहनने अथवा जब चाहूँ तब घर लौटने का अधिकार है।  

अधिकार उन बातों का द्योतक है, जिन्हें मैं और अन्य लोग सम्मान और गरिमा का जीवन बसर करने के लिए महत्त्वपूर्ण और आवश्यक समझते हैं। 

उदाहरण - आजीविका का अधिकार 

सम्मानजनक जीवन जीने के लिए जरूरी है। 

रोजगार में नियोजित होना व्यक्ति को आर्थिक स्वतंत्रता देता है, इसीलिए यह उसकी गरिमा के लिए प्रमुख है। 

उदाहरण - स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकार

यह अधिकार हमें सृजनात्मक और मौलिक होने का मौका देता है चाहे यह लेखन के क्षेत्र में हो अथवा नृत्य, संगीत या किसी अन्य रचनात्मक क्रियाकलाप में। 

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समाज में रहने वाले तमाम लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

अधिकारों की दावेदारी का दूसरा आधार यह है कि वे हमारी बेहतरी के लिए आवश्यक हैं। 

  • ये लोगों को उनकी दक्षता और प्रतिभा विकसित करने में सहयोग देते हैं। 
  • उदाहरण - शिक्षा का अधिकार हमारी तर्क-शक्ति विकसित करने में मदद करता है, हमें उपयोगी कौशल प्रदान करता है और जीवन में सूझ-बूझ के साथ चयन करने में सक्षम बनाता है। 
  • व्यक्ति के कल्याण के लिए इस हद तक शिक्षा को अनिवार्य समझा जाता है कि उसे सार्वभौम अधिकार माना गया है। 
  • अगर कोई कार्यकलाप हमारे स्वास्थ्य और कल्याण के लिए नुकसानदेह है, तो उसे अधिकार नहीं माना जा सकता।
  • उदाहरण के लिए, डॉक्टरी शोध ने यह प्रमाणित किया है कि नशीली दवाएँ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं
  • इसलिए हम यह दावा नहीं कर सकते कि हमें नशीले पदार्थों के सेवन करने या सुई लगाने या धूम्रपान का अधिकार होना चाहिए। 
  • धूम्रपान के मामले में तो यह उन लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी नुकसानदेह है, जो धूम्रपान करने वालों के आस-पास होते हैं।
  • नशीले पदार्थ न केवल हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाते हैं, बल्कि वे कभी-कभी हमारे आचरण के रंग-ढंग को बदल देते हैं और हमें अन्य लोगों के लिए खतरा करार देते हैं।
  • अधिकारों की हमारी परिभाषा के अंतर्गत धूम्रपान अथवा प्रतिबंधित दवाओं के सेवन को अधिकार के रूप में मान्य नहीं किया जा सकता।



अधिकार कहाँ से आते हैं ?

सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी के राजनीतिक सिद्धांतकारों द्वारा अधिकारों की प्रकृति पर दिए गए विचारों को स्पष्ट करता है। इसमें प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा और उनके महत्व को बताया गया है।

अधिकारों की अवधारणा:

  • अधिकार ईश्वर या प्रकृति द्वारा प्रदान किए गए हैं।
  • ये अधिकार जन्मजात हैं और किसी व्यक्ति या शासक द्वारा छीने नहीं जा सकते।

तीन मुख्य प्राकृतिक अधिकार:

  • जीवन का अधिकार
  • स्वतंत्रता का अधिकार
  • संपत्ति का अधिकार

प्राकृतिक अधिकारों का महत्व:

  • ये अधिकार सभी मनुष्यों को व्यक्ति होने के नाते स्वतः प्राप्त हैं।
  • अन्य अधिकार इन्हीं बुनियादी अधिकारों से उत्पन्न होते हैं।
  • इन अधिकारों का दावा किए बिना भी व्यक्ति के पास इनका अस्तित्व है।

हाल के वर्षों में प्राकृतिक अधिकारों के स्थान पर मानवाधिकारों का उपयोग अधिक प्रचलित हो गया है। इसके पीछे कारण यह है कि आधुनिक दृष्टिकोण में अधिकारों के प्राकृतिक या ईश्वर प्रदत्त होने का विचार अस्वीकार्य होता जा रहा है।

प्राकृतिक अधिकारों का स्थान मानवाधिकारों ने लिया:

  • पहले अधिकारों को प्रकृति या ईश्वर द्वारा प्रदत्त माना जाता था।
  • अब यह विचार कम मान्य है, और मानवाधिकारों का महत्व बढ़ गया है।

अधिकारों का आधुनिक दृष्टिकोण:

  • अधिकार अब उन गारंटियों के रूप में देखे जाते हैं, जो मनुष्यों ने स्वयं विकसित की हैं।
  • ये गारंटी एक बेहतर और गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए आवश्यक मानी जाती हैं।

मानवाधिकार सभी मनुष्यों के समानता, स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा के लिए हैं और ये किसी भी प्रकार की असमानताओं को चुनौती देते हैं।

मानवाधिकारों की मूल अवधारणा:

  • समानता और विशिष्टता: सभी मनुष्य, केवल मनुष्य होने के नाते, समान और विशिष्ट महत्व रखते हैं।
  • समान अवसर: हर व्यक्ति को स्वतंत्रता और अपनी संभावनाओं को साकार करने का समान अधिकार है।
  • असमानता का विरोध: यह विचार नस्ल, जाति, धर्म और लिंग पर आधारित असमानताओं को खारिज करता है।

मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता:

  • मानवाधिकारों का उद्देश्य हर व्यक्ति के आंतरिक मूल्य और गरिमा को मान्यता देना है।
  • कोई भी व्यक्ति "दूसरों का नौकर" बनने के लिए पैदा नहीं हुआ है; सभी स्वतंत्रता के अधिकारी हैं।

संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार:

  • सार्वभौम घोषणा- पत्र: यह मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता को मान्यता देने का प्रयास है।
  • यह दावों को विश्व समुदाय द्वारा स्वीकृत करता है और उन्हें वैश्विक स्तर पर लागू करने का प्रयास करता है।

अलग- अलग  समाजों में जैसे- जैसे  नए खतरे और चुनौतियाँ उभरती आयी हैं, वैसे ही   मानवाधिकारों की सूची लगातार बढ़ती गई है, जिनका लोगों ने दावा किया है। 

हम आज प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा की ज़रूरत के प्रति काफी सचेत हैं और इसने स्वच्छ हवा, शुद्ध जल, टिकाऊ विकास जैसे अधिकारों की माँगें पैदा की हैं।

युद्ध या प्राकृतिक संकट के दौरान अनेक लोग, खास कर महिलाएँ, बच्चे या बीमार जिन बदलावों को झेलते हैं, उनके बारे में नई जागरूकता ने आजीविका के अधिकार, बच्चों के अधिकार और ऐसे अन्य अधिकारों की माँग भी पैदा की है।



कानूनी अधिकार और राज्यसत्ता

मानवाधिकारों के दावों की नैतिक अपील चाहे जितनी हो, उनकी सफलता कुछ कारकों पर निर्भर है। इनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है-सरकारों और कानून का समर्थन। यही कारण है कि अधिकारों की कानूनी मान्यता को इतनी अहमियत दी जाती है।

अनेक देशों में अधिकारों के विधेयक वहाँ के संविधान में प्रतिष्ठित रहते हैं। संविधान देशों के सर्वोच्च कानून के द्योतक होते हैं. इसलिए कुछ खास अधिकारों की संवैधानिक मान्यता उन्हें बुनियादी महत्त्व प्रदान करती है। अपने देश में इन्हें हम मौलिक अधिकार कहते हैं। संविधान में उन अधिकारों का उल्लेख रहता है, जो बुनियादी महत्त्व के माने जाते हैं। कुछ अन्य ऐसे अधिकारों का भी उल्लेख संभव है, जो किसी देश के विशिष्ट इतिहास और रीति-रिवाजों के चलते महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, भारत में अस्पृश्यता पर प्रतिबंध का प्रावधान है. जो देश की परंपरागत सामाजिक कुप्रथा का ध्यान दिलाता है।

हमारे दावों को मिलने वाली कानूनी और संवैधानिक मान्यता इतनी महत्त्वपूर्ण होती है कि बहुत से सिद्धांतकार अधिकार को ऐसे दावों के रूप में परिभाषित करते हैं. जिन्हें राज्य ने मान्य किया हो। कानूनी मान्यता से हमारे अधिकारों को समाज में एक खास दर्जा मिलता है ज्यादातर  मामलों में अधिकार राज्य से किए जाने वाले दावे हैं। अधिकारों के माध्यम से हम राज्यसत्ता से कुछ माँग करते हैं। जब हम शिक्षा के अधिकार पर जोर देते हैं, तो हम राज्य से बुनियादी शिक्षा के लिए प्रावधान करने की माँग करते होते हैं। समाज भी शिक्षा के महत्त्व को स्वीकार कर सकता है और अपनी तरफ से इसमें सहयोग कर सकता है।

विभिन्न समूह विद्यालय खोल सकते हैं और छात्रवृत्तियों के लिए निधि जमा कर सकते हैं ताकि तमाम वर्गों के बच्चे शिक्षा का लाभ प्राप्त कर सकें। लेकिन मुख्यतः यह जिम्मेवारी राज्य की बनती है। राज्य को ही आवश्यक उपायों का प्रवर्तन करना होता है, जिससे हमारे शिक्षा के अधिकार की पूर्ति सुनिश्चित हो।

इस प्रकार, अधिकार राज्य को कुछ खास तरीकों से कार्य करने के लिए वैधानिक दायित्व सौंपते हैं। प्रत्येक अधिकार निर्देशित करता है कि राज्य के लिए क्या करने योग्य है और क्या नहीं। उदाहरण - मेरा जीवन जीने का अधिकार राज्य को ऐसे कानून बनाने के लिए बाध्य करता है, जो दूसरों के द्वारा क्षति पहुँचाने से मुझे बचा सके। यह अधिकार राज्य से माँग करता है कि वह मुझे चोट या नुकसान पहुँचाने वालों को दंडित करे।

अधिकार सिर्फ यह ही नहीं बताते कि राज्य को क्या करना है, वे यह भी बताते है कि राज्य को क्या कुछ नहीं करना है। किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार कहता है कि राजसत्ता महज अपनी मर्जी से उसे गिरफ्तार नहीं कर सकती। अगर वह किसी को सलाखों के पीछे करना चाहती है, तो उसे इस कार्रवाई को जायज ठहराना पड़ेगा, उसे किसी न्यायालय के समक्ष इस व्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती करने का कारण बताना होगा। इसीलिए, मुझे पकड़ने के पहले गिरफ्तारी का वारंट दिखाना पुलिस के लिए आवश्यक होता है। इस प्रकार मेरे अधिकार राजसत्ता पर कुछ अंकुश भी लगाते हैं।

दूसरे तरीके से कहा जाए, तो हमारे अधिकार यह सुनिश्चित करते हैं कि राज्य की सत्ता वैयक्तिक जीवन और स्वतंत्रता की मर्यादा का उल्लंघन किये बगैर काम करे। राज्य संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न सत्ता हो सकता है, उसके द्वारा निर्मित कानून बलपूर्वक लागू किए जा सकते हैं लेकिन संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न राज्य का अस्तित्व अपने लिए नहीं, बल्कि व्यक्ति के हित के लिए होता है। इसमें जनता का ही अधिक महत्त्व है और सत्तारूढ़ सरकार को उसके ही कल्याण के लिए काम करना होता है। 



अधिकारों के प्रकार

अधिकतर लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ राजनीतिक अधिकारों का घोषणापत्र बनाने से अपनी शुरुआत करती हैं। 

राजनीतिक अधिकार नागरिकों को कानून के समक्ष बराबरी तथा राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का हक देते हैं। 

इनमें वोट देने और प्रतिनिधि चुनने, चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टियाँ बनाने या उनमें शामिल होने जैसे अधिकार शामिल हैं।

राजनीतिक अधिकार नागरिक स्वतंत्रताओं से जुड़े होते हैं। नागरिक स्वतंत्रता का अर्थ हैं-

1. स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायिक जाँच का अधिकार, 

2. विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार, 

3. प्रतिवाद करने तथा असहमति प्रकट करने का अधिकार।

लोकतंत्र और नागरिकों की बुनियादी जरूरतों के बीच के संबंध

बुनियादी जरूरतें और राजनीतिक अधिकार:

  • भोजन, वस्त्र, आवास, और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतें पूरी होने पर ही नागरिक अपने राजनीतिक अधिकारों का प्रभावी ढंग से उपयोग कर सकते हैं।
  • जिनके पास इन जरूरतों की पूर्ति नहीं है, उनके लिए राजनीतिक अधिकार अप्रासंगिक हो जाते हैं।

आर्थिक अधिकारों की आवश्यकता:

  • बुनियादी जरूरतों की पूर्ति के लिए पर्याप्त मजदूरी, उचित कार्य परिस्थितियाँ और अन्य आर्थिक सुविधाएँ आवश्यक हैं।
  • लोकतांत्रिक समाज ने इन दायित्वों को स्वीकार किया है और नागरिकों को आर्थिक अधिकार प्रदान करने की दिशा में कदम उठाए हैं।

अन्य देशों में प्रथाएँ:

  • कुछ देशों में निम्न आय वर्ग के नागरिकों को राज्य द्वारा आवास और चिकित्सा जैसी सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।
  • बेरोजगार व्यक्तियों को न्यूनतम भत्ता दिया जाता है, जिससे वे अपनी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।

भारत में प्रयास:

  • भारत में गरीबों की मदद के लिए सरकार ने योजनाएँ शुरू की हैं, जिनमें प्रमुख है ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना।
  • यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार देकर उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में मदद करती है।

लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में अधिकारों के विस्तार और महत्व 

सांस्कृतिक अधिकारों की मान्यता:

  • आज की लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ नागरिकों के सांस्कृतिक दावों को स्वीकार कर रही हैं।
  • इनमें अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा का अधिकार और भाषा व संस्कृति के शिक्षण के लिए संस्थाएँ बनाने का अधिकार शामिल है।
  • इन अधिकारों को बेहतर जीवन जीने के लिए आवश्यक माना गया है।

अधिकारों की सूची का विस्तार:

  • लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में अधिकारों की सूची समय के साथ बढ़ी है।
  • यह नागरिकों की जरूरतों और समाज की बदलती प्राथमिकताओं को दर्शाता है।

बुनियादी अधिकार:

  • कुछ अधिकार जैसे जीने का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, समान व्यवहार का अधिकार, और राजनीतिक भागीदारी का अधिकार, प्राथमिकता के साथ बुनियादी अधिकारों के रूप में मान्य हैं।
  • ये अधिकार लोकतंत्र की आधारशिला हैं।



अधिकार और जिम्मेदारियाँ

अधिकार केवल हमारी स्वतंत्रता की घोषणा नहीं करते, बल्कि हमारे ऊपर कुछ जिम्मेदारियाँ भी डालते हैं।

अधिकार और जिम्मेदारियाँ:

  • अधिकार केवल राज्य पर ही नहीं, बल्कि हम सभी नागरिकों पर भी जिम्मेदारी डालते हैं।

उदाहरण: - टिकाऊ विकास के लिए राज्य को कदम उठाने के साथ-साथ नागरिकों को भी योगदान देना चाहिए, जैसे:

  • ओजोन परत की रक्षा करना।
  • जल और वायु प्रदूषण कम करना।
  • वृक्षारोपण और जंगलों की कटाई रोकना।
  • हमारी जिम्मेदारी है कि भावी पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्वच्छ पर्यावरण छोड़ें।

अन्य लोगों के अधिकारों का सम्मान:-

  • अधिकारों का उपयोग करते समय हमें दूसरों के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार हमें दूसरों को उकसाने या नुकसान पहुंचाने की अनुमति नहीं देता।
  • हमें दूसरों की व्यक्तिगत पसंद, जैसे कपड़े पहनने या संगीत सुनने की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
  • हर व्यक्ति का अधिकार समान और सीमित होता है।

टकराव और संतुलन:

  • टकराव की स्थिति में अधिकारों को संतुलित करना जरूरी है।

उदाहरण:-

  • अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार गोपनीयता के अधिकार के साथ संतुलित होना चाहिए।
  • बिना अनुमति किसी की तस्वीर लेना और उसे सार्वजनिक करना गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन है।

नागरिक स्वतंत्रता और सुरक्षा:-

  • नागरिकों को अपने अधिकारों पर लगाए जाने वाले नियंत्रणों के प्रति सतर्क रहना चाहिए।

उदाहरण:-

  • राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर नागरिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
  • लेकिन इन प्रतिबंधों का दुरुपयोग हो सकता है, जिससे नागरिक स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है।

चेतावनी:-

  • सरकारें निरंकुश हो सकती हैं और लोगों के कल्याण के बजाय उनके अधिकारों का हनन कर सकती हैं।
  • नागरिकों को कानूनी सलाह और न्यायालय में अपना पक्ष रखने का अवसर मिलना चाहिए।

अधिकारों का महत्व और सीमा:-

  • अधिकार संपूर्ण या सर्वोच्च नहीं होते, लेकिन लोकतांत्रिक समाज की नींव होते हैं।
  • हमें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना चाहिए और दूसरों के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए।


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