वायुमंडलीय दाब
- वायुमंडलीय दाब हवा के वजन से उत्पन्न दबाव है, जो हमारे चारों ओर हर चीज़ पर प्रभाव डालता है। यह समुद्र तल से वायुमंडल की ऊपरी सीमा तक मौजूद वायु के भार के कारण होता है।
- इसे मिलीबार में मापा जाता है, और समुद्र तल पर इसका औसत मान 1,013.2 मिलीबार होता है।
- पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण वायुमंडल को नीचे की ओर खींचता है, जिससे सतह के पास वायु अधिक सघन हो जाती है और वायुदाब ज्यादा होता है।
- ऊँचाई बढ़ने पर वायु विरल हो जाती है, जिससे वायुदाब कम हो जाता है।
- वायुदाब में बदलाव वायु की गति का मुख्य कारण बनता है। हवा हमेशा उच्च दाब वाले क्षेत्रों से निम्न दाब वाले क्षेत्रों की ओर बहती है, जिसे पवन कहा जाता है।
- वायुदाब मापने के लिए पारद वायुदाबमापी और निर्द्रव बैरोमीटर जैसे उपकरणों का उपयोग किया जाता है।
- पारद वायुदाबमापी में पारे के स्तंभ का उपयोग होता है, जबकि निर्द्रव बैरोमीटर में तरल की आवश्यकता नहीं होती।
- ये उपकरण वायुदाब को सटीक रूप से मापने में मदद करते हैं। इस प्रकार, वायुमंडलीय दाब हवा की गति और मौसम की स्थितियों को प्रभावित करता है।
वायुदाब में ऊर्ध्वाधर भिन्नता
- वायुदाब ऊँचाई के साथ बदलता है। ऊर्ध्वाधर भिन्नता का मतलब है कि जैसे-जैसे आप ऊपर चढ़ते हैं, वायुदाब तेजी से घटता है।
- वायुमंडल के निचले हिस्से में वायुदाब ऊँचाई के साथ बहुत तेज़ी से घटता है। आमतौर पर, हर 10 मीटर की ऊँचाई पर वायुदाब लगभग 1 मिलीबार कम हो जाता है।
- हालांकि, वायुदाब हमेशा एक ही दर से नहीं घटता, क्योंकि यह ऊँचाई और तापमान पर निर्भर करता है।
- ऊर्ध्वाधर दाब भिन्नता, यानी ऊँचाई के साथ दाब में बदलाव, क्षैतिज भिन्नता की तुलना में अधिक होती है।
- हालांकि, गुरुत्वाकर्षण बल इस भिन्नता को संतुलित कर देता है, जिसके कारण ऊर्ध्वाधर पवनें (ऊपर-नीचे चलने वाली हवा) बहुत शक्तिशाली नहीं होतीं।
वायुदाब का क्षैतिज वितरण
- वायुदाब के क्षैतिज वितरण का अध्ययन पवनों की दिशा और गति को समझने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
- यह समान वायुदाब वाले स्थानों को जोड़ने वाली समदाब रेखाओं (Isobars) की मदद से दिखाया जाता है।
- ये रेखाएँ, जो समुद्र तल से समान वायुदाब वाले स्थानों को जोड़ती हैं, मौसम मानचित्रों पर वायुदाब का वितरण दिखाने के लिए उपयोग की जाती हैं।
- वायुदाब को मापने के बाद इसे समुद्र तल पर समायोजित किया जाता है, ताकि विभिन्न ऊँचाई के प्रभाव को हटाया जा सके और सटीक तुलना की जा सके।
- निम्नदाब प्रणाली में केंद्र पर वायुदाब सबसे कम होता है, समदाब रेखाएँ गोल या अंडाकार होती हैं, और यह चक्रवात का संकेत देती है। उच्चदाब प्रणाली में केंद्र पर वायुदाब सबसे अधिक होता है, यह एंटीसाइक्लोन का संकेत देती है।
समुद्रतल पर वायुदाब का विश्व-वितरण
- दुनिया के विभिन्न हिस्सों में वायुदाब अलग-अलग होता है और इसका वितरण मौसम के अनुसार, विशेषकर जनवरी और जुलाई में, बदलता रहता है। वायुदाब पृथ्वी पर पवनों की गति और दिशा को नियंत्रित करता है।
- विषुवतीय निम्न वायुदाब क्षेत्र विषुवत् रेखा के पास होता है। यहां अधिक गर्मी के कारण हवा हल्की होकर ऊपर उठती है, जिससे इस क्षेत्र में वायुदाब सबसे कम होता है।
- उपोष्ण उच्च वायुदाब क्षेत्र 30° उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों के पास स्थित होता है। इसे उपोष्ण उच्च वायुदाब पट्टी कहते हैं, जहां वायुदाब अधिक होता है।
- अधोध्रुवीय निम्न वायुदाब क्षेत्र 60° उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों पर होता है। यहां वायुदाब कम होता है और इसे अधोध्रुवीय निम्न वायुदाब पट्टी के नाम से जाना जाता है।
- ध्रुवीय उच्च वायुदाब क्षेत्र ध्रुवों के पास स्थित होता है। इस क्षेत्र में वायुदाब सबसे अधिक होता है और इसे ध्रुवीय उच्च वायुदाब पट्टी कहा जाता है।
- वायुदाब की ये पट्टियाँ स्थाई नहीं रहतीं। ऋतुओं के अनुसार, इनका स्थान बदलता है। सर्दियों में ये दक्षिण की ओर खिसक जाती हैं और गर्मियों में उत्तर की ओर। इससे वायुमंडल की संरचना और पवन प्रणाली प्रभावित होती है।
पवनों की गति और दिशा को प्रभावित करने वाले बल:
वायुदाब का अंतर वायु को उच्च दाब से निम्न दाब की ओर प्रवाहित करता है, इसे दाब प्रवणता बल कहते हैं। पृथ्वी के घूर्णन से हवा की दिशा बदलती है, जिसे कोरिऑलिस बल कहा जाता है; उत्तरी गोलार्ध में हवा दाईं ओर और दक्षिणी गोलार्ध में बाईं ओर मुड़ती है। भूतल की ऊँचाई हवा की गति को धीमा करती है, इसे घर्षण बल कहते हैं। गुरुत्वाकर्षण बल हवा को नीचे की ओर खींचता है और उसे स्थिर रखता है।
1. दाब-प्रवणता बल
- दाब-प्रवणता बल (Pressure Gradient Force) वायुदाब के अंतर से उत्पन्न होता है। यह बल हवा को उच्च दाब वाले क्षेत्रों से निम्न दाब वाले क्षेत्रों की ओर चलने के लिए प्रेरित करता है।
- दूरी के संदर्भ में वायुदाब में बदलाव की दर को दाब-प्रवणता कहा जाता है। दाब-प्रवणता बल जितना अधिक होगा, हवा उतनी ही तेज़ गति से चलेगी।
- दूरी के संदर्भ में वायुदाब में बदलाव की दर को दाब-प्रवणता कहा जाता है। दाब-प्रवणता बल जितना अधिक होगा, हवा उतनी ही तेज़ गति से चलेगी।
2. घर्षण बल
- घर्षण बल (Friction Force) पवनों की गति को धीमा करने वाला बल है। यह बल वायु और धरातल के बीच के संपर्क से उत्पन्न होता है।
- धरातल पर घर्षण का प्रभाव सबसे अधिक होता है, और इसका असर धरातल से 1 से 3 किमी की ऊँचाई तक महसूस किया जा सकता है। इसके विपरीत, समुद्र सतह पर घर्षण बहुत कम होता है, जिसके कारण वहाँ पवनें तेज़ गति से चलती हैं।
3. कोरिऑलिस बल
- कोरिऑलिस बल पृथ्वी के घूमने से उत्पन्न ऐसा बल है, जो हवा की दिशा को बदल देता है। इस बल की खोज 1844 में एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने की थी, और उनके नाम पर इसे कोरिऑलिस बल कहा गया।
- पृथ्वी के घूमने के कारण उत्तरी गोलार्ध में हवा दाईं ओर मुड़ती है, जबकि दक्षिणी गोलार्ध में यह बाईं ओर मुड़ती है। हवा जितनी तेज चलती है, कोरिऑलिस बल का प्रभाव उतना अधिक होता है। यह बल अक्षांशों पर निर्भर करता है। ध्रुवों पर इसका प्रभाव सबसे ज्यादा होता है, जबकि विषुवत रेखा पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
- हवा हमेशा उच्च दबाव से निम्न दबाव की ओर बहती है। हालांकि, कोरिऑलिस बल और दाब प्रवणता बल के कारण यह सीधी रेखा में न बहकर निम्न दबाव के चारों ओर घूमने लगती है। यही कारण है कि पृथ्वी पर हवा की दिशा सीधी न होकर घूमती हुई नजर आती है।
- विषुवत रेखा के पास कोरिऑलिस बल नहीं होता, जिससे हवा बिना विक्षेपण के सीधे बहती है। इसी वजह से इस क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय चक्रवात नहीं बनते। कोरिऑलिस बल पृथ्वी की पवन प्रणाली और मौसम को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
4. वायुदाब और पवनें
- पवनों की दिशा और गति मुख्य रूप से दाब और विभिन्न बलों के संतुलन से निर्धारित होती हैं। पृथ्वी की सतह से ऊपर, लगभग 2-3 कि.मी. की ऊँचाई पर, पवनें घर्षण से मुक्त होकर केवल दाब प्रवणता बल और कोरिऑलिस बल के प्रभाव में रहती हैं।
- यदि समदाब रेखाएँ सीधी हों और घर्षण का प्रभाव न हो, तो दाब प्रवणता बल और कोरिऑलिस बल एक संतुलन में आ जाते हैं। इस स्थिति में, पवनें समदाब रेखाओं के समानांतर चलती हैं, जिन्हें भूविक्षेपी पवन कहा जाता है।
- निम्न दाब क्षेत्रों में, पवनें निम्न दाब के चारों ओर घूमती हैं। इसे चक्रवाती परिसंचरण कहते हैं। इसके विपरीत, उच्च दाब क्षेत्रों में, पवनें उच्च दाब के चारों ओर घूमती हैं, जिसे प्रतिचक्रवाती परिसंचरण कहते हैं।
- निम्न दाब क्षेत्र में हवा सतह से खिंचकर ऊपर उठती है, जबकि उच्च दाब क्षेत्र में हवा ऊँचाई से नीचे आकर सतह पर फैल जाती है।
- पवनों का उठाव कई कारणों से हो सकता है। जैसे, पहाड़ों से टकराने पर हवा ऊपर उठती है, संवहन धाराओं के प्रभाव से या वाताग्र (फ्रंट) के सहारे। इन प्रक्रियाओं से वायुमंडल में हवा की गति और परिसंचरण प्रणाली प्रभावित होती है।
वायुमंडल का सामान्य परिसंचरण
वायुमंडल का सामान्य परिसंचरण वह प्रक्रिया है जिसमें हवा और पवनें पृथ्वी पर विभिन्न स्थानों पर वायुदाब और तापमान के अंतर के कारण प्रवाहित होती हैं। यह परिसंचरण महासागरों और पृथ्वी की जलवायु को भी प्रभावित करता है।
1. मुख्य कारक:
- तापमान में अक्षांशीय भिन्नता
- वायुदाब पट्टियों का वितरण
- सौर किरणों के कारण वायुदाब पट्टियों का विस्थापन
- महासागरों और महाद्वीपों का स्थान
- पृथ्वी का घूर्णन
2. वायुमंडलीय परिसंचरण का काम
- ITCZ (इंटर-ट्रॉपिकल कन्वर्जेंस ज़ोन): विषुवत रेखा के पास गर्म हवा ऊपर उठती है, जिससे निम्न दाब क्षेत्र बनता है। यह हवा ऊपर जाकर 30° उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों पर ठंडी होकर नीचे गिरती है और उपोष्ण उच्चदाब क्षेत्र बनाती है।
- हेडले कोष्ठ (Hadley Cell): विषुवत रेखा से 30° अक्षांश तक हवा के प्रवाह को हेडले कोष्ठ कहा जाता है। यह हवा धरातल पर पूर्वी पवनों के रूप में वापस विषुवत रेखा की ओर लौटती है।
- फैरल कोष्ठ (Ferrel Cell): 30° से 60° अक्षांश तक हवा का प्रवाह फैरल कोष्ठ कहलाता है, जहां धरातल पर पछुआ पवनें बहती हैं।
- ध्रुवीय कोष्ठ (Polar Cell): 60° से ध्रुवों तक हवा का प्रवाह ध्रुवीय कोष्ठ कहलाता है। इस क्षेत्र की ध्रुवीय पवनें ठंडी और सघन होती हैं, जो मध्य अक्षांशों की ओर प्रवाहित होती हैं।
3. महासागरों पर प्रभाव:
महासागरों पर चलने वाली हवा धीमी और तेज़ महासागरीय धाराओं का निर्माण करती है। महासागर वायुमंडल को जलवाष्प और ऊर्जा प्रदान करते हैं, जो जलवायु को संतुलित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
1. मौसमी पवनें
मौसमी पवनें (Seasonal Winds) अलग-अलग मौसमों में बदलती हैं। यह बदलाव मुख्य रूप से तापमान में अत्यधिक बदलाव, वायुदाब पट्टियों के विस्थापन, और पवन प्रवाह की दिशा में परिवर्तन के कारण होता है।
मौसमी पवनों के प्रभाव
- दक्षिण पूर्व एशिया मानसून का सबसे स्पष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है, जहां गर्मी और ठंड के मौसम में हवा की दिशा बदलती है, जिससे क्षेत्र की जलवायु और कृषि पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
- मौसमी पवनें सामान्य परिसंचरण प्रणाली से भिन्न होती हैं, क्योंकि ये स्थानीय परिस्थितियों और जलवायु संबंधी विसंगतियों पर आधारित होती हैं।
2. स्थानीय पवनें
- भूतल के गर्म और ठंडे होने में भिन्नता तथा दैनिक और वार्षिक चक्रों के विकास के कारण कई स्थानीय और क्षेत्रीय पवनें प्रवाहित होती हैं, जो विशिष्ट जलवायु परिस्थितियों को जन्म देती हैं।
3. स्थल और समुद्र समीर
- स्थल और समुद्र के तापमान अंतर के कारण पवनों की दिशा बदलती है, जिसे स्थल और समुद्र समीर कहते हैं।
- दिन में: स्थल तेजी से गर्म होकर निम्न दाब बनाता है, जबकि समुद्र ठंडा रहकर उच्च दाब क्षेत्र बनाता है। हवा समुद्र से स्थल की ओर चलती है, इसे समुद्र समीर कहते हैं।
- रात में: स्थल जल्दी ठंडा होकर उच्च दाब क्षेत्र बनाता है, जबकि समुद्र गर्म रहकर निम्न दाब बनाता है। हवा स्थल से समुद्र की ओर चलती है, इसे स्थल समीर कहते हैं।
- यह बदलाव दिन-रात नियमित रूप से होता है।
4. पर्वत और घाटी पवनें
पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान बदलाव से पवनों की दिशा बदलती है, जिसे पर्वत और घाटी पवनें कहते हैं।
- दिन में: सूरज से गर्म होकर पर्वत की ढाल की हवा हल्की होकर ऊपर उठती है। घाटी से पर्वत की ओर हवा बहती है, जिसे घाटी समीर कहते हैं।
- रात में: पर्वत की ढाल ठंडी होकर भारी हवा घाटी की ओर बहती है, इसे पर्वतीय पवनें कहते हैं।
- अवरोही पवनें: ठंडी हवा उच्च क्षेत्रों से घाटियों की ओर बहती है।
- रुद्धोष्म पवनें: आर्द्र हवा पर्वत पार कर शुष्क और गर्म होकर ढलान पर नीचे उतरती है, जिससे वातावरण गर्म हो जाता है।
5. वायुराशियाँ (Air Masses)
- जब वायु किसी विशेष क्षेत्र में लंबे समय तक रुकती है, तो वह उस क्षेत्र के गुण (जैसे तापमान और नमी) को अपना लेती है। ऐसे व्यापक क्षेत्र, जिन पर वायु का असर पड़ता है, समांग क्षेत्र (homogeneous region) कहलाते हैं। यह क्षेत्र महासागर, मैदान, या बर्फीले इलाके हो सकते हैं। इस प्रकार की वायु को वायुराशि कहते हैं।
- वायुराशि एक बड़े वायु भाग को कहते हैं, जिसमें तापमान और नमी जैसे गुण समान होते हैं।
जहां वायुराशियाँ बनती हैं, उन्हें उद्गम क्षेत्र कहते हैं। ये क्षेत्र वायुराशि के गुणों को तय करते हैं। इनके प्रमुख प्रकार इस प्रकार हैं:
- उष्ण व उपोष्ण कटिबंधीय महासागर - गर्म और नम वायु।
- उपोष्ण कटिबंधीय उष्ण मरुस्थल - गर्म और शुष्क वायु।
- उच्च अक्षांशीय ठंडे महासागर - ठंडी और नम वायु।
- अत्यधिक ठंडे, बर्फीले महाद्वीप - ठंडी और शुष्क वायु।
- स्थायी रूप से बर्फीले क्षेत्र (अंटार्कटिक और आर्कटिक) - बेहद ठंडी और शुष्क वायु।
वायुराशियों के प्रकार:
- वायुराशियों को उनके उद्गम क्षेत्र के आधार पर पांच भागों में बाँटा जाता है:
- उष्णकटिबंधीय महासागरीय (mT) - गर्म और नम।
- उष्णकटिबंधीय महाद्वीपीय (CT) - गर्म और शुष्क।
- ध्रुवीय महासागरीय (mP) - ठंडी और नम।
- ध्रुवीय महाद्वीपीय (CP) - ठंडी और शुष्क।
- महाद्वीपीय आर्कटिक (CA) - बेहद ठंडी और शुष्क।
6. वाताग्र (Fronts)
जब दो अलग-अलग प्रकार की वायुराशियाँ आपस में मिलती हैं, तो उनके बीच के संपर्क क्षेत्र को वाताग्र (Front) कहते हैं। वाताग्र बनने की प्रक्रिया को वाताग्र-जनन (Frontogenesis) कहते हैं। यह प्रक्रिया खासतौर पर मध्यम अक्षांशों (Mid-Latitudes) में होती है और मौसम परिवर्तन का मुख्य कारण होती है।
वाताग्र चार प्रकार के होते हैं:
1. शीत वाताग्र (Cold Front): जब ठंडी और भारी वायु गर्म वायु को ऊपर की ओर धकेलती है, तो यह तीव्र वर्षा और तापमान में गिरावट लाती है।
2. उष्ण वाताग्र (Warm Front): जब गर्म वायु ठंडी वायु के ऊपर चढ़ने की कोशिश करती है, तो यह हल्की बारिश और बादल बनने का कारण बनती है।
3. अचर वाताग्र (Stationary Front): जब दोनों वायुराशियाँ स्थिर हो जाती हैं और कोई भी वायु ऊपर नहीं उठती, तो इसमें मौसम में ज्यादा बदलाव नहीं होता।
4. अधिविष्ट वाताग्र (Occluded Front): जब एक वायुराशि पूरी तरह ऊपर उठ जाती है, तो यह बादल, बारिश और तूफान का कारण बन सकती है।
वाताग्र की विशेषताएँ:
- वाताग्र तापमान, दबाव और नमी में अचानक बदलाव लाते हुए मौसम परिवर्तन का कारण बनते हैं। वायुराशियों के मिलने से हवा ऊपर उठती है, जिससे बादल और बारिश होती है।
- ये वाताग्र मुख्यतः मध्यम अक्षांशों में बनते हैं और वहीं सबसे ज्यादा सक्रिय रहते हैं।
7. बहिरूष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Extra-Tropical Cyclones)
बहिरूष्ण कटिबंधीय चक्रवात उष्ण कटिबंध से दूर मध्यम और उच्च अक्षांशों में बनते हैं, जो तेज और अचानक मौसम परिवर्तन का कारण बनते हैं।ये चक्रवात ध्रुवीय वाताग्र (Polar Front) के पास विकसित होते हैं। दबाव कम होने पर गर्म वायु उत्तर और ठंडी वायु दक्षिण की ओर घूमती है, जिससे चक्रवातीय परिसंचरण बनता है।
मुख्य घटक:
1.उष्ण वाताग्र (Warm Front): गर्म वायु ठंडी वायु के ऊपर चढ़ती है, जिससे बादल और बारिश होती है
2.शीत वाताग्र (Cold Front): तेज गति से चलता है और उष्ण वाताग्र को ढक लेता है।
अधिविष्ट वाताग्र (Occluded Front): जब शीत वाताग्र पूरी तरह उष्ण वाताग्र को ढक लेता है, चक्रवात कमजोर होने लगता है।
- ये चक्रवात बारिश, तेज हवाओं और तापमान में गिरावट लाते हैं, बड़े क्षेत्रों के मौसम को प्रभावित करते हैं।
8. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones)
- उउष्ण कटिबंधीय चक्रवात उष्णकटिबंधीय महासागरों पर बनने वाले तेज़ और विनाशकारी तूफान हैं, जो तटीय क्षेत्रों में भारी नुकसान पहुंचाते हैं।
- विभिन्न महासागरों और क्षेत्रों में चक्रवातों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। हिंद महासागर में इन्हें चक्रवात (Cyclone) कहा जाता है, जबकि अटलांटिक महासागर में इन्हें हरीकेन (Hurricane) के नाम से जाना जाता है। प्रशांत महासागर में इनका नाम टाइफून (Typhoon) है, और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के क्षेत्र में इन्हें विली-विलीज़ (Willy-Willies) कहा जाता है।
चक्रवात बनने की स्थितियाँ:
- गर्म महासागर: सतह का तापमान 27°C या अधिक।
- कोरिऑलिस बल: हवा को घूमने में मदद करता है।
- पवन संतुलन: ऊर्ध्वाधर पवनों में अंतर कम।
- निम्न दबाव क्षेत्र: हवा के घूमने के लिए स्थान।
- ऊपरी वायुमंडल में अपसरण: हवा का ऊपरी स्तर पर फैलाव।
चक्रवात की संरचना तीन मुख्य भागों में विभाजित होती है।
1. आँख (Eye): यह चक्रवात का केंद्र होता है, जहाँ शांत और हल्की हवा चलती है, और मौसम अपेक्षाकृत शांत होता है।
2. अक्षुभित्ति (Eyewall): यह चक्रवात का सबसे खतरनाक हिस्सा है, जहाँ सबसे तेज़ हवाएँ (250 किमी/घंटा तक) चलती हैं और भारी बारिश होती है।
3. रेनबैंड (Rainbands): ये बादलों की पट्टियाँ होती हैं, जो भारी बारिश और आंधी लाने में सहायक होती हैं।
- चक्रवात का व्यास 600-1,200 किमी तक होता है और यह रोज़ाना 300-500 किमी की गति से आगे बढ़ता है। लैंडफॉल के समय, महासागरीय गर्मी न मिलने से यह कमजोर हो जाता है, लेकिन भारी बारिश, तेज़ हवाओं और बाढ़ जैसे प्रभाव छोड़ता है।
- चक्रवात कई तरह के विनाशकारी प्रभाव छोड़ते हैं। तेज़ हवाएँ इमारतों और पेड़ों को नुकसान पहुंचाती हैं, जबकि भारी बारिश से बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। तूफानी लहरें तटीय इलाकों में गंभीर क्षति का कारण बनती हैं, जिससे जनजीवन और संपत्ति को बड़ा नुकसान हो सकता है। चक्रवातों के प्रभाव को कम करने के लिए समय पर चेतावनी और प्रभावी आपदा प्रबंधन अत्यंत महत्वपूर्ण है।
9. तड़ितझंझा और टोरनेडो (Thunderstorms and Tornadoes)
तड़ितझंझा और टोरनेडो स्थानीय लेकिन बेहद आक्रामक तूफान हैं। ये अल्प समय के लिए सक्रिय रहते हैं और सीमित क्षेत्र में असर डालते हैं, लेकिन इनकी तीव्रता बहुत अधिक होती है।
1. तड़ितझंझा (Thunderstorm):