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राजस्थान की रजत बूँदें Chapter-2 Class 11 Book-Vitan Chapter Summary


राजस्थान की रजत बूँदें Chapter-2 Class 11 Book-Vitan Chapter Summary


राजस्थान की रजत बूँदें


लेखक: अनुपम मिश्र

यह अध्याय राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्र में जल संरक्षण की पारंपरिक व्यवस्था और कुंई (छोटी कुओं) की विशिष्ट संरचना और उपयोगिता का वर्णन करता है। इसमें मरुभूमि के समाज द्वारा जल संकट का सामना करने की सूझबूझ और परंपरागत ज्ञान का उल्लेख किया गया है।

सारांश

1. कुंई का परिचय और निर्माण प्रक्रिया

कुंई एक छोटी और गहरी संरचना है, जिसे खड़िया पत्थर की पट्टी पर बनाया जाता है। इसका व्यास छोटा और गहराई अधिक होती है। कुंई का निर्माण कुशल कारीगरों, जिन्हें चेलवांजी या चेजारो कहा जाता है, द्वारा किया जाता है। खुदाई के दौरान संकरी जगह में काम करने के लिए विशेष उपकरण, जैसे बसौली, और सुरक्षा उपायों का उपयोग किया जाता है। कुंई को गिरने से रोकने के लिए ईंट, खींप से बनी रस्सियों या लकड़ी की चिनाई का सहारा लिया जाता है।

2. जल संरक्षण की अनोखी व्यवस्था

खड़िया पत्थर की पट्टी एक ऐसी संरचना है जो वर्षा के जल को खारे भूजल में मिलने से रोकती है। रेजाणीपानी, जो धरती के भीतर सतह के नीचे मौजूद होता है और भूजल से अलग रहता है, कुंई के माध्यम से इकट्ठा किया जाता है। इस प्रक्रिया से खारे पानी के बीच मीठे पानी का स्रोत उपलब्ध हो पाता है।

3. कुंई की विशेषताएँ

कुंई का मुँह छोटा रखा जाता है ताकि पानी की मात्रा कम फैलकर अधिक गहराई में सुरक्षित रह सके। पानी को दूषित होने से बचाने के लिए कुंई को ढक्कन से ढक दिया जाता है। पानी निकालने के लिए चरखी, ओड़ाक और चड़स जैसे उपकरणों का उपयोग किया जाता है, जिससे पानी आसानी से और सुरक्षित रूप से निकाला जा सके।

4. समाज और कुंई का संबंध

कुंई, भले ही निजी संपत्ति होती है, लेकिन इसे सार्वजनिक क्षेत्र में बनाया जाता है। नई कुंई बनाने के लिए ग्राम समाज की स्वीकृति आवश्यक होती है, ताकि पहले से उपलब्ध जल का संतुलन बना रहे। कुंई के निर्माण और देखभाल से संबंधित समाज में विशेष प्रथाएँ और रीति-रिवाज प्रचलित थे, जो इसके सामुदायिक महत्व को दर्शाते हैं।

5. कुंई की उपयोगिता और सामाजिक जीवन

कुंई दिनभर में केवल दो-तीन घड़े पानी ही प्रदान करती है, इसलिए इसका उपयोग अत्यंत संयम और सावधानी से किया जाता है। गोधूलि बेला में पूरे गाँव के लोग कुंई से पानी भरने के लिए इकट्ठा होते हैं, जिससे वहाँ मेले जैसा माहौल बन जाता है। पानी भरने के बाद कुंई को ढँककर आराम दिया जाता है, ताकि उसका जल स्रोत सुरक्षित और संरक्षित रह सके।

6. क्षेत्रीय विशिष्टता

कुंइयाँ राजस्थान के विशेष हिस्सों, जैसे चुरू, बीकानेर, जैसलमेर, और बाड़मेर में पाई जाती हैं, जहाँ खड़िया पत्थर की पट्टी मौजूद है। विभिन्न क्षेत्रों में इस खड़िया पत्थर को अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे चारोली, धाधड़ो, और बिट्ट रो बल्लियो।

7. पारंपरिक ज्ञान और जल प्रबंधन

राजस्थान के समाज ने जल प्रबंधन के लिए विशेष शास्त्र विकसित किए, जिसमें जल को तीन रूपों में विभाजित किया गया: पालरपानी, जो सीधे वर्षा का पानी है; पातालपानी, जो भूजल है; और रेजाणीपानी, जो धरती में समाया हुआ पानी है। कुंई की संरचना विशेष रूप से रेजाणीपानी के उपयोग के लिए डिज़ाइन की जाती है, जिससे यह जल स्रोतों के संरक्षण और प्रभावी उपयोग का उदाहरण प्रस्तुत करती है।

8. कुंई और आधुनिक समय

नई सड़कों और आधुनिक उपकरणों के आगमन से कुंई बनाने की प्रक्रिया और उसकी उपयोगिता में बदलाव आया है। जहाँ पहले कुंइयाँ सामुदायिक उपयोग के लिए खुली रहती थीं, वहीं अब कुछ कुंइयों को ताले लगाकर संरक्षित किया जाने लगा है, जिससे उनका उपयोग नियंत्रित और सीमित हो गया है।

मुख्य विषय:

  • कुंई का अनूठा जल संरक्षण मॉडल: खारे पानी के बीच मीठे पानी की उपलब्धता का आश्चर्यजनक समाधान।
  • समाज और प्रकृति का संतुलन: कुंई समाज की परंपरा और जल प्रबंधन का अद्भुत उदाहरण है।
  • जल प्रबंधन का विज्ञान: खड़िया पत्थर, रेजाणीपानी, और कुंई का निर्माण पारंपरिक ज्ञान और विज्ञान का मेल है।


निष्कर्ष:

कुंई राजस्थान के मरुस्थलीय समाज की अद्भुत जल संरक्षण प्रणाली है। यह समाज और प्रकृति के बीच सामंजस्य का प्रतीक है, जो जल संकट का सामना करने में सफलता की मिसाल पेश करता है। खारे पानी के बीच मीठे पानी का यह प्रबंध न केवल तकनीकी कुशलता का उदाहरण है, बल्कि यह समाज के पारंपरिक ज्ञान और सूझबूझ की भी गवाही देता है।





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