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महासागरीय जल संचलन Notes in Hindi Class 11 Geography Chapter-13 MOVEMENTS OF OCEAN WATER Book hutiq Bhugol ke Mul Sidhant

महासागरीय जल संचलन Notes in Hindi Class 11 Geography Chapter-13  MOVEMENTS OF OCEAN WATER Book hutiq Bhugol ke Mul Sidhant

महासागरीय जल

  • जल स्थिर नहीं रहता, यह हमेशा गति करता है। 
  • इसकी गति का कारण इसकी भौतिक विशेषताएँ (जैसे तापमान, खारापन, घनत्व) और बाहरी ताकतें (जैसे सूर्य, चंद्रमा और वायु) हैं। 
  • जल में दो प्रकार की गतियाँ होती हैं - क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर। धाराएँ और लहरें क्षैतिज गति से जुड़ी हैं, जबकि ज्वारभाटा ऊर्ध्वाधर गति का उदाहरण है। 
  • धाराएँ बड़ी मात्रा में जल को एक दिशा में बहाती हैं, जबकि लहरें केवल जल की सतह पर हलचल करती हैं। ऊर्ध्वाधर गति में जल ऊपर-नीचे होता है, जो सूर्य और चंद्रमा के आकर्षण से प्रभावित होता है।


तरंगें

समुद्र में तरंगें पानी नहीं, बल्कि ऊर्जा होती हैं, जो सतह पर इधर-उधर चलती हैं। ये ऊर्जा हवा के कारण बनती है और तट पर पहुंचकर खत्म होती है।

तरंगें कैसे बनती हैं?

  • हवा का प्रभाव: हवा पानी को ऊर्जा प्रदान करती है, जिससे महासागरीय तरंगें बनती हैं। हवा की गति जितनी तेज होती है, तरंगें उतनी ही बड़ी और शक्तिशाली हो जाती हैं।
  • पानी की गति: पानी के कण तरंगों के साथ गोल-गोल घूमते हैं, लेकिन गहरे पानी में इस प्रभाव की तीव्रता काफी कम हो जाती है।
  • तट पर तरंगें: जब तरंगें तट पर पहुंचती हैं, तो उनकी गति धीमी हो जाती है। गहराई कम होने पर तरंगें अपना संतुलन खो देती हैं और टूटकर सफेद झाग में बदल जाती हैं।

तरंगों की खासियत

  • तरंगों का आकार: तरंगों का आकार उनकी उत्पत्ति का संकेत देता है। तेज हवा से बनी तरंगें ऊंची और तेज होती हैं, जबकि दूरस्थ स्थानों से आने वाली तरंगें कम ऊंची और अधिक नियमित होती हैं।
  • तरंगों की गति: हवा पानी को आगे बढ़ाती है, जबकि गुरुत्वाकर्षण बल उसे वापस खींचता है। इस प्रक्रिया में पानी की गति गोलाकार होती है, जिसमें वह ऊपर-नीचे और आगे-पीछे चलता है।
  • छोटी और बड़ी तरंगें: छोटी तरंगें हवा के कम दबाव से बनती हैं। और बड़ी तरंगें दूर महासागर में बनती हैं और हजारों किलोमीटर की यात्रा करती हैं।
  • सफेद झाग और टूटती तरंगें: तट के पास पहुंचने पर तरंगें धीमी हो जाती हैं और संतुलन खोकर टूट जाती हैं, जिससे सफेद झाग या सर्फ बनता है।


ज्वार-भाटा

ज्वार-भाटा समुद्र के पानी का समय-समय पर उठना और गिरना है, जो चंद्रमा और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल से होता है। यह दिन में एक या दो बार होता है और समुद्र तल पर बड़ा असर डालता है।

ज्वार-भाटा कैसे बनते हैं?

1. मुख्य कारण

  • चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण: चंद्रमा पृथ्वी के पानी को अपनी ओर खींचता है, जिससे उसकी ओर ज्वार (उभार) बनता है।
  • अपकेंद्रीय बल: पृथ्वी के दूसरी तरफ यह बल पानी को चंद्रमा से दूर धकेलता है, जिससे वहां भी ज्वार बनता है।

2. गुरुत्वाकर्षण और अपकेंद्रीय बल का संतुलन

  • चंद्रमा के निकट वाले हिस्से पर उसका गुरुत्वाकर्षण बल अधिक प्रभावी होता है, जबकि पृथ्वी के चंद्रमा से दूर वाले हिस्से पर अपकेंद्रीय बल अधिक प्रभावी होता है। इन दोनों बलों के परिणामस्वरूप पृथ्वी पर दो ज्वारीय उभार बनते हैं।

ज्वार-भाटा को प्रभावित करने वाले कारक

  • महाद्वीपीय तट: चौड़े तटों पर ज्वार की ऊंचाई अधिक होती है।
  • खाड़ियां और ज्वारनद: शंक्वाकार खाड़ियां ज्वार की तीव्रता को बढ़ा देती हैं।
  • मध्य महासागर के द्वीप: इनसे टकराने पर ज्वार की ऊंचाई में बदलाव होता है।

महोर्मि (Surge) और ज्वारीय धारा

  • महोर्मि: जलवायु (हवा और दाब) के प्रभाव से समुद्र में होने वाली अस्थिर जल गति।
  • ज्वारीय धारा: जब ज्वार खाड़ियों, नदियों या द्वीपों के बीच से गुजरते हैं।

तटीय क्षेत्रों में प्रभाव

  • ज्वारभाटे तटों की गतिविधियों और समुद्री परिवहन पर गहरा प्रभाव डालते हैं, विशेष रूप से शंक्वाकार खाड़ी या नदी के मुहाने पर, जहां इनका प्रभाव अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।



ज्वारभाटा के प्रकार

ज्वारभाटा को उनकी आवृत्ति (कितनी बार आते हैं), दिशा और गति में बदलाव के आधार पर अलग-अलग प्रकारों में बाँटा जाता है। इन्हें मुख्य रूप से दो आधारों पर वर्गीकृत किया जाता है:

  • 24 घंटे में ज्वार कितनी बार होता है।
  • ज्वार कितना ऊँचा उठता है।


आवृत्ति पर आधारित ज्वार-भाटा (Tides based on frequency)

ज्वार-भाटा समुद्र में पानी के उठने-गिरने का चक्र है, जो सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल से बनता है। इसे आवृत्ति (frequency) के आधार पर अलग-अलग प्रकारों में बांटा गया है।
  • अर्ध-दैनिक ज्वार (Semi-diurnal Tide): यह सबसे सामान्य प्रकार का ज्वार है, जिसमें हर दिन दो उच्च ज्वार और दो निम्न ज्वार आते हैं। इन दोनों उच्च और निम्न ज्वारों की ऊंचाई लगभग समान होती है।
  • दैनिक ज्वार (Diurnal Tide): इस प्रकार के ज्वार में एक दिन में केवल एक उच्च ज्वार और एक निम्न ज्वार होता है, और दोनों ज्वारों की ऊंचाई समान होती है।
  • मिश्रित ज्वार (Mixed Tide): इस प्रकार के ज्वारों में ऊंचाई में भिन्नता होती है। ये ज्वार आमतौर पर उत्तर अमेरिका के पश्चिमी तट और प्रशांत महासागर के द्वीप समूहों में देखे जाते हैं।

सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी की स्थिति पर आधारित ज्वार

  • वृहत् ज्वार (Spring Tide): जब सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक सीध में होते हैं, तो सबसे ऊंचे ज्वार उत्पन्न होते हैं, जिन्हें वृहत् ज्वार कहा जाता है। यह घटना अमावस्या और पूर्णिमा के समय, महीने में दो बार होती है।
  • निम्न ज्वार (Neap Tide): जब सूर्य और चंद्रमा एक-दूसरे के समकोण पर होते हैं, तो ज्वार की ऊंचाई कम हो जाती है, जिसे निम्न ज्वार कहा जाता है। यह घटना वृहत् ज्वार के 7 दिन बाद होती है।

चंद्रमा और सूर्य की दूरी का प्रभाव

  • चंद्रमा के नजदीक होने पर (उपभू): असामान्य रूप से ऊंचे और गहरे ज्वार बनते हैं।
  • चंद्रमा की अधिक दूरी पर होने पर (अपभू): ज्वार की ऊंचाई सामान्य से कम हो जाती है।
  • सूर्य के नजदीक होने पर (उपसौर): जनवरी में सूर्य के नजदीक होने से ज्वार का असर बढ़ जाता है।
  • सूर्य से दूर होने पर (अपसीर): जुलाई में सूर्य से दूरी के कारण ज्वार का असर कम हो जाता है।

ज्वार के बीच की स्थिति

  • भाटा (Ebb) उस स्थिति को कहते हैं जब पानी का स्तर गिरता है, जबकि बहाव या बाढ़ (Flood Tide) वह स्थिति है जब पानी का स्तर बढ़ता है।


ज्वार-भाटा का महत्व

ज्वार-भाटा समुद्र में पानी के उठने-गिरने का चक्र है, जो कई महत्वपूर्ण कार्यों में मदद करता है।

  • नौसंचालन में मदद: ज्वारों का पूर्वानुमान जहाज चालकों और मछुआरों को अपनी योजनाएं बनाने में मदद करता है। ज्वार की ऊंचाई नदियों के किनारे और तटीय इलाकों में जहाजों के प्रवेश के लिए महत्वपूर्ण होती है। इसके अलावा, ज्वारीय प्रवाह छिछले क्षेत्रों में नौकाओं के लिए मार्ग उपलब्ध कराता है।
  • तलछट सफाई (Desiltation): ज्वार-भाटा नदियों और ज्वारनदमुख में जमा तलछट को साफ करने में सहायक होता है। यह प्रदूषित पानी को समुद्र में बाहर निकालने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • विद्युत उत्पादन: ज्वारों का उपयोग बिजली उत्पादन के लिए किया जाता है। कनाडा, फ्रांस, रूस और चीन जैसे देशों में ज्वारीय ऊर्जा संयंत्र सफलतापूर्वक काम कर रहे हैं। भारत में भी पश्चिम बंगाल के सुंदरवन क्षेत्र में दुर्गादुवानी में 3 मेगावाट का ज्वारीय ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया जा रहा है।


महासागरीय धाराएँ

महासागरीय धाराएँ समुद्र में पानी के नियमित प्रवाह को कहते हैं, जो नदियों की तरह महासागरों में एक निश्चित दिशा में बहती हैं। ये धाराएँ प्राकृतिक बलों से संचालित होती हैं।

धाराओं को प्रभावित करने वाले बल

महासागरीय धाराएँ मुख्य रूप से प्राथमिक और द्वितीयक बलों द्वारा संचालित होती हैं। 

  • प्राथमिक बल:  प्राथमिक बलों में सूरज की गर्मी, हवा, और गुरुत्वाकर्षण शामिल हैं। सौर ऊर्जा से पानी गर्म होकर फैलता है, जिससे जल प्रवाह शुरू होता है। सतह पर चलने वाली हवा पानी को आगे बढ़ाती है, और गुरुत्वाकर्षण पानी को नीचे खींचकर दबाव में अंतर उत्पन्न करता है। कोरियोलिस बल धाराओं को उत्तरी गोलार्ध में दाईं ओर और दक्षिणी गोलार्ध में बाईं ओर मोड़ता है, जिससे महासागरों में गोलाकार प्रवाह (जैसे वलय या Gyres) बनते हैं। 
  • द्वितीयक बल: द्वितीयक बल पानी के घनत्व में अंतर पर निर्भर करता है। ठंडा और खारा पानी भारी होने के कारण नीचे बैठता है, जबकि गर्म और हल्का पानी ऊपर उठता है, जो धाराओं के प्रवाह को नियंत्रित करता है।

गर्म और ठंडी धाराओं का चक्र

  • गर्म धाराएँ विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर सतह के साथ-साथ बहती हैं और ठंडे पानी का स्थान लेती हैं। वहीं, ठंडी धाराएँ ध्रुवीय क्षेत्रों से नीचे बैठकर विषुवत रेखा की ओर प्रवाहित होती हैं।

महासागरीय धाराओं का महत्व

  • महासागरीय धाराएँ गर्म और ठंडे पानी को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये न केवल महासागरीय तापमान को नियंत्रित करती हैं, बल्कि समुद्री जीवन और वैश्विक जलवायु को भी गहराई से प्रभावित करती हैं।


महासागरीय धाराओं के प्रकार

महासागरीय धाराओं को उनकी गहराई और तापमान के आधार पर अलग-अलग वर्गों में बांटा जाता है।

गहराई के आधार पर

  • ऊपरी या सतही जलधाराएँ (Surface Currents): महासागरीय जल का लगभग 10% भाग सतही धाराओं के रूप में होता है, जो महासागर की सतह से 400 मीटर तक की गहराई में बहती हैं। इन धाराओं को मुख्य रूप से हवा और सौर ऊर्जा से गति मिलती है।
  • गहरी जलधाराएँ (Deep Water Currents): महासागरीय जल का लगभग 90% भाग गहरी धाराओं के रूप में होता है, जो मुख्य रूप से घनत्व और गुरुत्वाकर्षण के कारण बनती हैं। ठंडे और घने पानी वाले क्षेत्रों, जैसे ध्रुवीय क्षेत्रों में, पानी भारी होकर नीचे बैठता है और गहरी धाराओं को जन्म देता है।

तापमान के आधार पर

  • ठंडी जलधाराएँ (Cold Currents): ठंडी धाराएँ ठंडा पानी गर्म क्षेत्रों में लाकर महासागरीय तापमान को संतुलित करती हैं। ये धाराएँ आमतौर पर महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर बहती हैं। उदाहरण के तौर पर, उत्तरी गोलार्ध में ठंडी धाराएँ उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों के पूर्वी तटों पर पाई जाती हैं।
  • गर्म जलधाराएँ (Warm Currents): गर्म धाराएँ गर्म पानी ठंडे क्षेत्रों में लाकर तापमान को संतुलित करती हैं। ये अधिकतर महाद्वीपों के पूर्वी तटों पर बहती हैं। उदाहरण के लिए, उत्तरी गोलार्ध में ये धाराएँ उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों के पश्चिमी तटों पर पाई जाती हैं।

प्रमुख महासागरीय धाराएँ

महासागरीय धाराएँ महासागरों में पानी का नियमित प्रवाह हैं, जो मुख्य रूप से प्रचलित पवनों और कोरियोलिस प्रभाव से प्रभावित होती हैं। ये धाराएँ वायुमंडलीय प्रवाह की तरह ही काम करती हैं।

  • महासागरीय धाराओं का प्रवाह: महासागरीय धाराओं का प्रवाह वायुमंडलीय स्थितियों और कोरियोलिस प्रभाव पर निर्भर करता है। मध्य अक्षांशों में वायु प्रतिचक्रवात और उच्च अक्षांशों में चक्रवात के प्रवाह को जलधाराएँ अपनाती हैं। मानसूनी पवनें धाराओं की दिशा बदलती हैं। कोरियोलिस प्रभाव से धाराएँ उत्तरी गोलार्ध में दाईं और दक्षिणी गोलार्ध में बाईं ओर मुड़ती हैं।

  • गर्म और ठंडी जलधाराओं का योगदान: गर्म जलधाराएँ गर्म क्षेत्रों से ध्रुवों की ओर ऊष्मा का परिवहन करती हैं, जबकि ठंडी जलधाराएँ ध्रुवीय क्षेत्रों से ठंडा पानी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की ओर ले जाकर तापमान संतुलन बनाए रखती हैं।

  • महासागरीय धाराओं के प्रभाव: महासागरीय धाराएँ पृथ्वी के जलवायु, पर्यावरण और मानवीय गतिविधियों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं। ये धाराएँ समुद्र के पानी को गर्म और ठंडे क्षेत्रों में ले जाकर प्राकृतिक संतुलन बनाती हैं।

  • महासागरीय धाराओं का जलवायु पर प्रभाव: ठंडी जलधाराएँ महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में बहती हैं, जो तापमान और तापांतर को कम करती हैं। यहाँ कोहरा बनता है, लेकिन वातावरण शुष्क रहता है। गर्म जलधाराएँ मध्य और उच्च अक्षांशों में महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर बहती हैं, जो सर्दियों में मौसम को नरम और गर्मियों में कम गर्म बनाती हैं। महाद्वीपों के पूर्वी तटों पर गर्म जलधाराएँ उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में मिलती हैं, जो जलवायु को गर्म, आर्द्र बनाकर वर्षा बढ़ाती हैं।

  • मछली पालन में योगदान: जहाँ गर्म और ठंडी जलधाराएँ मिलती हैं, वहाँ पानी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है, जो प्लैंकटन (मछलियों का प्रमुख भोजन) की वृद्धि के लिए अनुकूल वातावरण बनाती है। यही कारण है कि दुनिया के प्रमुख मत्स्य क्षेत्र इन धाराओं के संगम पर स्थित होते हैं।




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