महासागरीय जल
- जल स्थिर नहीं रहता, यह हमेशा गति करता है।
- इसकी गति का कारण इसकी भौतिक विशेषताएँ (जैसे तापमान, खारापन, घनत्व) और बाहरी ताकतें (जैसे सूर्य, चंद्रमा और वायु) हैं।
- जल में दो प्रकार की गतियाँ होती हैं - क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर। धाराएँ और लहरें क्षैतिज गति से जुड़ी हैं, जबकि ज्वारभाटा ऊर्ध्वाधर गति का उदाहरण है।
- धाराएँ बड़ी मात्रा में जल को एक दिशा में बहाती हैं, जबकि लहरें केवल जल की सतह पर हलचल करती हैं। ऊर्ध्वाधर गति में जल ऊपर-नीचे होता है, जो सूर्य और चंद्रमा के आकर्षण से प्रभावित होता है।
तरंगें
समुद्र में तरंगें पानी नहीं, बल्कि ऊर्जा होती हैं, जो सतह पर इधर-उधर चलती हैं। ये ऊर्जा हवा के कारण बनती है और तट पर पहुंचकर खत्म होती है।
तरंगें कैसे बनती हैं?
- हवा का प्रभाव: हवा पानी को ऊर्जा प्रदान करती है, जिससे महासागरीय तरंगें बनती हैं। हवा की गति जितनी तेज होती है, तरंगें उतनी ही बड़ी और शक्तिशाली हो जाती हैं।
- पानी की गति: पानी के कण तरंगों के साथ गोल-गोल घूमते हैं, लेकिन गहरे पानी में इस प्रभाव की तीव्रता काफी कम हो जाती है।
- तट पर तरंगें: जब तरंगें तट पर पहुंचती हैं, तो उनकी गति धीमी हो जाती है। गहराई कम होने पर तरंगें अपना संतुलन खो देती हैं और टूटकर सफेद झाग में बदल जाती हैं।
तरंगों की खासियत
- तरंगों का आकार: तरंगों का आकार उनकी उत्पत्ति का संकेत देता है। तेज हवा से बनी तरंगें ऊंची और तेज होती हैं, जबकि दूरस्थ स्थानों से आने वाली तरंगें कम ऊंची और अधिक नियमित होती हैं।
- तरंगों की गति: हवा पानी को आगे बढ़ाती है, जबकि गुरुत्वाकर्षण बल उसे वापस खींचता है। इस प्रक्रिया में पानी की गति गोलाकार होती है, जिसमें वह ऊपर-नीचे और आगे-पीछे चलता है।
- छोटी और बड़ी तरंगें: छोटी तरंगें हवा के कम दबाव से बनती हैं। और बड़ी तरंगें दूर महासागर में बनती हैं और हजारों किलोमीटर की यात्रा करती हैं।
- सफेद झाग और टूटती तरंगें: तट के पास पहुंचने पर तरंगें धीमी हो जाती हैं और संतुलन खोकर टूट जाती हैं, जिससे सफेद झाग या सर्फ बनता है।
ज्वार-भाटा
ज्वार-भाटा समुद्र के पानी का समय-समय पर उठना और गिरना है, जो चंद्रमा और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल से होता है। यह दिन में एक या दो बार होता है और समुद्र तल पर बड़ा असर डालता है।
ज्वार-भाटा कैसे बनते हैं?
1. मुख्य कारण
- चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण: चंद्रमा पृथ्वी के पानी को अपनी ओर खींचता है, जिससे उसकी ओर ज्वार (उभार) बनता है।
- अपकेंद्रीय बल: पृथ्वी के दूसरी तरफ यह बल पानी को चंद्रमा से दूर धकेलता है, जिससे वहां भी ज्वार बनता है।
2. गुरुत्वाकर्षण और अपकेंद्रीय बल का संतुलन
- चंद्रमा के निकट वाले हिस्से पर उसका गुरुत्वाकर्षण बल अधिक प्रभावी होता है, जबकि पृथ्वी के चंद्रमा से दूर वाले हिस्से पर अपकेंद्रीय बल अधिक प्रभावी होता है। इन दोनों बलों के परिणामस्वरूप पृथ्वी पर दो ज्वारीय उभार बनते हैं।
ज्वार-भाटा को प्रभावित करने वाले कारक
- महाद्वीपीय तट: चौड़े तटों पर ज्वार की ऊंचाई अधिक होती है।
- खाड़ियां और ज्वारनद: शंक्वाकार खाड़ियां ज्वार की तीव्रता को बढ़ा देती हैं।
- मध्य महासागर के द्वीप: इनसे टकराने पर ज्वार की ऊंचाई में बदलाव होता है।
महोर्मि (Surge) और ज्वारीय धारा
- महोर्मि: जलवायु (हवा और दाब) के प्रभाव से समुद्र में होने वाली अस्थिर जल गति।
- ज्वारीय धारा: जब ज्वार खाड़ियों, नदियों या द्वीपों के बीच से गुजरते हैं।
तटीय क्षेत्रों में प्रभाव
- ज्वारभाटे तटों की गतिविधियों और समुद्री परिवहन पर गहरा प्रभाव डालते हैं, विशेष रूप से शंक्वाकार खाड़ी या नदी के मुहाने पर, जहां इनका प्रभाव अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
ज्वारभाटा के प्रकार
ज्वारभाटा को उनकी आवृत्ति (कितनी बार आते हैं), दिशा और गति में बदलाव के आधार पर अलग-अलग प्रकारों में बाँटा जाता है। इन्हें मुख्य रूप से दो आधारों पर वर्गीकृत किया जाता है:
- 24 घंटे में ज्वार कितनी बार होता है।
- ज्वार कितना ऊँचा उठता है।
आवृत्ति पर आधारित ज्वार-भाटा (Tides based on frequency)
ज्वार-भाटा समुद्र में पानी के उठने-गिरने का चक्र है, जो सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल से बनता है। इसे आवृत्ति (frequency) के आधार पर अलग-अलग प्रकारों में बांटा गया है।
- अर्ध-दैनिक ज्वार (Semi-diurnal Tide): यह सबसे सामान्य प्रकार का ज्वार है, जिसमें हर दिन दो उच्च ज्वार और दो निम्न ज्वार आते हैं। इन दोनों उच्च और निम्न ज्वारों की ऊंचाई लगभग समान होती है।
- दैनिक ज्वार (Diurnal Tide): इस प्रकार के ज्वार में एक दिन में केवल एक उच्च ज्वार और एक निम्न ज्वार होता है, और दोनों ज्वारों की ऊंचाई समान होती है।
- मिश्रित ज्वार (Mixed Tide): इस प्रकार के ज्वारों में ऊंचाई में भिन्नता होती है। ये ज्वार आमतौर पर उत्तर अमेरिका के पश्चिमी तट और प्रशांत महासागर के द्वीप समूहों में देखे जाते हैं।
सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी की स्थिति पर आधारित ज्वार
- वृहत् ज्वार (Spring Tide): जब सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक सीध में होते हैं, तो सबसे ऊंचे ज्वार उत्पन्न होते हैं, जिन्हें वृहत् ज्वार कहा जाता है। यह घटना अमावस्या और पूर्णिमा के समय, महीने में दो बार होती है।
- निम्न ज्वार (Neap Tide): जब सूर्य और चंद्रमा एक-दूसरे के समकोण पर होते हैं, तो ज्वार की ऊंचाई कम हो जाती है, जिसे निम्न ज्वार कहा जाता है। यह घटना वृहत् ज्वार के 7 दिन बाद होती है।
चंद्रमा और सूर्य की दूरी का प्रभाव
- चंद्रमा के नजदीक होने पर (उपभू): असामान्य रूप से ऊंचे और गहरे ज्वार बनते हैं।
- चंद्रमा की अधिक दूरी पर होने पर (अपभू): ज्वार की ऊंचाई सामान्य से कम हो जाती है।
- सूर्य के नजदीक होने पर (उपसौर): जनवरी में सूर्य के नजदीक होने से ज्वार का असर बढ़ जाता है।
- सूर्य से दूर होने पर (अपसीर): जुलाई में सूर्य से दूरी के कारण ज्वार का असर कम हो जाता है।
ज्वार के बीच की स्थिति
- भाटा (Ebb) उस स्थिति को कहते हैं जब पानी का स्तर गिरता है, जबकि बहाव या बाढ़ (Flood Tide) वह स्थिति है जब पानी का स्तर बढ़ता है।
ज्वार-भाटा का महत्व
ज्वार-भाटा समुद्र में पानी के उठने-गिरने का चक्र है, जो कई महत्वपूर्ण कार्यों में मदद करता है।
- नौसंचालन में मदद: ज्वारों का पूर्वानुमान जहाज चालकों और मछुआरों को अपनी योजनाएं बनाने में मदद करता है। ज्वार की ऊंचाई नदियों के किनारे और तटीय इलाकों में जहाजों के प्रवेश के लिए महत्वपूर्ण होती है। इसके अलावा, ज्वारीय प्रवाह छिछले क्षेत्रों में नौकाओं के लिए मार्ग उपलब्ध कराता है।
- तलछट सफाई (Desiltation): ज्वार-भाटा नदियों और ज्वारनदमुख में जमा तलछट को साफ करने में सहायक होता है। यह प्रदूषित पानी को समुद्र में बाहर निकालने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- विद्युत उत्पादन: ज्वारों का उपयोग बिजली उत्पादन के लिए किया जाता है। कनाडा, फ्रांस, रूस और चीन जैसे देशों में ज्वारीय ऊर्जा संयंत्र सफलतापूर्वक काम कर रहे हैं। भारत में भी पश्चिम बंगाल के सुंदरवन क्षेत्र में दुर्गादुवानी में 3 मेगावाट का ज्वारीय ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया जा रहा है।
महासागरीय धाराएँ
महासागरीय धाराएँ समुद्र में पानी के नियमित प्रवाह को कहते हैं, जो नदियों की तरह महासागरों में एक निश्चित दिशा में बहती हैं। ये धाराएँ प्राकृतिक बलों से संचालित होती हैं।
धाराओं को प्रभावित करने वाले बल
महासागरीय धाराएँ मुख्य रूप से प्राथमिक और द्वितीयक बलों द्वारा संचालित होती हैं।