कविता के बहाने
कुँवर नारायण
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह-भाग -2’ में संकलित कवि कुँवर नारायण द्वारा रचित कविता ‘कविता के बहाने ’ से ली गई है।
इस कविता में कविता की शक्ति पर प्रकाश डाला गया है। कवि का कहना है की कविता में चिड़िया की उड़ान , फूलों की मुस्कान और बच्चों की क्रीड़ा तीनों का समावेश है। कवि ने कविता के अस्तित्व से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं।
कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने
कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
कविता के पंख लगा उड़ने के माने
चिड़िया क्या जाने?
व्याख्या
- कवि कहता है कि कविता भी चिड़िया की तरह उड़ान भरती है लेकिन कविता की उड़ान चिड़िया की उड़ान से अलग है
- क्योंकि चिड़िया की उड़ान कि एक निश्चित सीमा है जबकि कविता भावों की विचारों की उड़ान किसी भी सीमा यह बंधन से मुक्त है वह अनंत उड़ान है।
- कविता न केवल घर के भीतर होने वाली गतिविधियों पर लिखी जाती है बल्कि बाहर के संसार को भी व्यक्त करती है।
- वह कभी इस घर के बारे में लिखी जाती है तो कभी उस घर के बारे में।
- कविता किस प्रकार कल्पना के पंख लगाकर सब जगह घूम जाती है यह उस बेचारी चिड़ियाँ की समझ से परे है।
- अर्थात प्रकृति कि एक सीमा है किंतु कविता का क्षेत्र अनंत है।
कविता एक खिलना है फूलों के बहाने
कविता का खिलना भला फूल क्या जाने!
बाहर भीतर
इस घर, उस घर
बिना मुरझाए महकने के माने
फूल क्या जाने?
व्याख्या
- इस काव्यांश में कवि ने कविता की तुलना फूलों से की है।
- कभी कहता है कि कविता का खिलना भी फूलों के खिलने के समान ही है।
- लेकिन कविता के खिलने और फूलों के खिलने में एक अंतर है फूल खिलने के बाद उसमें जीवन और तत्पश्चात मुर्झाकर समाप्त हो जाने की एक निश्चित अवधि होती है।
- फूलों की जीवन अवधि सीमित होने के कारण वे निश्चित समय थी अपनी सुगंध फैला सकते हैं ,
- जबकि कविता एक बार विकसित होकर जीवन पाकर अमर हो जाती है।
- फुल तो बेचारा 1 दिन गंध रहित हो ही जाता है किंतु कविता बिना मुरझाई महकती रहती है।
- फूलों की जीवन अवधि सीमित होने के कारण वे निश्चित समय थी अपनी सुगंध फैला सकते हैं ,
- जबकि कविता एक बार विकसित होकर जीवन पाकर अमर हो जाती है।
- फुल तो बेचारा एक दिन गंध रहित हो ही जाता है किंतु कविता बिना मुरझाई महकती रहती है।
कविता एक खिलना है बच्चो के बहाने
बाहर भीतर
यह घर, वह घर
सब घर एक कर देने के माने
बच्चा ही जाने
व्याख्या
- इस काव्यांश में कवि ने कविता की तुलना बच्चों की क्रीड़ा से की है तथा कविता का सुंदर वर्णन किया है।
- जिस प्रकार बच्चे मनोरंजन के लिए क्रीड़ा करते है , खेलों के पीछे उनका कोई गंभीर उद्देश्य नहीं होता।
- उसी प्रकार कविता रचना भी कवि की एक क्रीड़ा है , लीला है।
- जिस प्रकार बच्चे खेल खेलते हुए कभी घर जाते हैं , कभी बाहर भागते हैं।
- उनके मन में अपने पराये का भेद नहीं होता | वे खेल खेल में सभी को अपना बना लेते हैं।
- उन्ही बच्चों के अनुसार कवि कर्म भी एक खेल है – शब्दों का खेल।
- कवि शब्दों के माध्यम से अपने मन के , बाहरी संसार के , अपनों के , परायों के सबकी भावनाओं को सामान मानकर व्यक्त करता है।
बात सीधी थी
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह-भाग -2’ में संकलित कवि कुँवर नारायण द्वारा रचित कविता ‘बात सीधी थी पर’ से ली गई है। कवि कुँवर नारायण की यह कविता उनके ‘कोई दूसरा नहीं’ नामक काव्य संग्रह से ली गई है।
बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
ज़रा टेढ़ी फँस गई।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा पलटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आए-
लेकिन इससे भाषा के साथ साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई।
व्याख्या
- इस पद्यांश में बताया गया है की सहज बात को सरल शब्दों में कह देने से बात अधिक प्रभावी तरीके से संप्रेषित होती है।
- अधिक जटिलता अर्थ की अभिव्यक्ति में बाधा ही डालते हैं।
- कवि कहता है की मेरे मन में एक सीधी सरल सी बात थी जिसे मैं कहना चाहता था ।
- परन्तु मैने सोचा कि इसके लिए बढ़िया सी भाषा का प्रयोग करूँ जैसे ही मैने भाषाई प्रभाव जमाने का सोचा बात की सरलता खो गई।
- अर्थात भाषा के जाल में फंसती गई और पेचीदा हो गई।
- प्रायः ऐसा होता है की हम कुछ कहने के लिए जब घुमावदार भाषा का सहारा लेते हैं , तो बात अधीक उलझ जाती है।
- तात्पर्य यह है की कविता की रचना प्रक्रिया में भावों के अनुसार भाषा का चुनाव करना चाहिए।
- यदि भाषा के साथ तरोड़ मरोड़ करने की कोशिश की गई , तो भावों की अभिव्यक्ति सही तरीके से नहीं हो पाएगी।
सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
मैं पेंच को खोलने के बजाए
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्यों कि इस करतब पर मुझे
साफ़ सुनाई दे रही थी
तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह।
व्याख्या
- इस पद्यांश में कवि ने भाषा की सहजता पर जोर दिया है –
- पेंच खोलने का अर्थ है अभिव्यक्ति के उलझाव को सुलझाने में मदद करना या बात को सरल ढंग से अभिव्यक्त करने का प्रयास करना।
- जिस प्रकार पेंच ठीक से न लगे तो उसे खोलकर फिर से लगाने की बजाए उसे कोई जबरदस्ती कसता चला जाए उसी प्रकार कवि बात को उलझाता चला गया।
- कवि हड़बड़ी में बिना सोचे समझे अभिव्यक्ति की जटिलता को बढ़ाता जा रहा था वह तमाशबीनों की वाहवाही के चक्कर में मूल समस्या को समझने पर ध्यान नहीं दे पा रहा था।
- अभिव्यक्ति को बिना सोचे समझे उलझाने को कवि ने करतब कहा है ।
- इस पद्यांश का मुख्य उद्देश्य यह है की कवि और रचनाकार को धैर्यपूर्वक अभिव्यक्ति की सरलता की ओर बढ़ना चाहिए बिना सोचे समझे किसी बात को उलझाना गलत है।
आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था
ज़ोर ज़बरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी !
हार कर मैंने उसे कील की तरह उसी जगह ठोंक दिया।
व्याख्या
- कवि इस पद्यांश में सटीक अभिव्यक्ति के लिए उचित भाषा के चुनाव पर बल देता है।
- भाषा के साथ जबरदस्ती करने का वही परिणाम हुआ जिसका कवि को डर था।
- भाषा की तोड़ने मरोड़ने से उसका मूलभाव ही नष्ट हो गया। बात की चूड़ी मरने का अर्थ है बात का प्रभावहीन हो जाना।
- बात को कील की तरह ठोकने का आशय है – भाषा के साथ जबरदस्ती करना , सीधी और सरल बात को बड़े बड़े शब्दों में उलझाना।
ऊपर से ठीकठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाव था
न ताकत !
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देख कर पूछा-
“क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?"