भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ Notes in Hindi Class 12 Geography Chapter-9 bhaugolik pariprekshy mein chayanit kuchh mudde evan samasyaen
0Team Eklavyaदिसंबर 01, 2024
प्रदूषण का अर्थ है
पर्यावरण में अवांछित और हानिकारक तत्वों का प्रवेश के कारण प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता है और जीव-जंतुओं, पौधों और मनुष्यों के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह हानिकारक तत्व हवा, पानी, मिट्टी में हो सकते हैं। प्रदूषण से स्वास्थ्य समस्याएं, पर्यावरणीय संकट और जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
प्रदूषण के प्रकार
जल प्रदूषण
वायु प्रदूषण
ध्वनि प्रदूषण
भू प्रदूषण
जल प्रदूषण
जनसंख्या के तेजी से बढ़ने और औद्योगीकरण के विकास के कारण तथा जल के अविवेकपूर्ण उपयोग से जल की गुणवत्ता का बहुत अधिक निम्नीकरण हुआ है।
वर्तमान में नदियों, नहरों, झीलों तथा तालाबों आदि में उपलब्ध जल शुद्ध नहीं रह गया है।
इसमें अल्प मात्रा में निलंबित कण, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ समाहित होते हैं।
जब जल में इन पदार्थों के बढ़ने पर जल प्रदूषित हो जाता है और इस तरह वह उपयोग के योग्य नहीं रह जाता।
ऐसी स्थिति में जल में स्वतः शुद्धीकरण की क्षमता जल को शुद्ध नहीं कर पाती।
जल प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोत
1. अपरदन
2. भू-स्खलन
3. पेड़-पौधों तथा मृत पशु के सड़ने-गलने
इनसे प्राप्त प्रदूषकों से भी होता है, मानव क्रियाकलापों से उत्पन्न होने वाले प्रदूषक चिंता के वास्तविक कारण हैं।
मानव, जल को उद्योगों, कृषि एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से प्रदूषित करता है।
इन क्रियाकलापों में उद्योग सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सहायक है।
उद्योग अनेक अवांछित उत्पाद पैदा करते हैं जिनमें औद्योगिक कचरा, प्रदूषित अपशिष्ट जल, जहरीली गैसें, रासायनिक अवशेष, अनेक भारी धातुएँ, धूल, धुआँ आदि शामिल होता है।
अधिकतर औद्योगिक कचरे को बहते जल में अथवा झीलों आदि में विसर्जित कर दिया जाता है।
परिणामस्वरूप विषाक्त रासायनिक तत्व जलाशयों, नदियों तथा अन्य जल भंडारों में पहुँच जाते हैं जो इन जलों में रहने वाली जैव प्रणाली को नष्ट करते हैं। सर्वाधिक जल प्रदूषक उद्योग-चमड़ा, लुगदी व कागज, वस्त्र तथा रसायन हैं।
जल प्रदूषण विभिन्न प्रकार की जल जनित बीमारियों का एक प्रमुख स्रोत होता है।
दस्त (डायरिया), आँतों के कृमि, हेपेटाइटिस विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट दर्शाती है कि भारत में लगभग एक-चौथाई संचारी रोग जल-जनित होते हैं।
नदी प्रदूषण सभी नदियों से संबंधित है, लेकिन गंगा नदी जो भारत के घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से होकर बहती है, का प्रदूषण सभी के लिए चिंता का विषय है।
गंगा नदी की स्थिति में सुधार के लिए, राष्ट्रीय स्तर पर गंगा सफ़ाई राष्ट्रीय अभियान शुरू किया गया था।
वर्तमान 'नमामि गंगे' कार्यक्रम इसी से संबंधित है।
नमामि गंगे कार्यक्रम
एक नदी के रूप में गंगा का राष्ट्रीय महत्व है, लेकिन प्रदूषण को नियंत्रित करके नदी के संपूर्ण मार्ग की सफाई की आवश्यकता है। केंद्र सरकार ने निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ 'नमामि गंगे' कार्यक्रम आरंभ किया है -
शहरों में सीवर ट्रीटमेंट की व्यवस्था कराना।
औद्योगिक प्रवाह की निगरानी।
नदियों का विकास।
नदी के किनारों पर वनीकरण जिससे जैवविविधता में वृद्धि हो।
नदियों के तल की सफ़ाई।
उत्तराखंड, यू.पी., बिहार, झारखंड में 'गंगा ग्राम' का विकास करना।
नदी में किसी भी प्रकार के पदार्थों को न डालना भले ही वे किसी अनुष्ठान से संबंधित हों, इससे प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है। इसके संबंध में लोगों में जागरूकता पैदा करना।
वायु प्रदूषण
जब वायु में धूल, धुआँ, गैसें, कुहासा, दुर्गंध और वाष्प जैसे संदूषकों की अभिवृद्धि हो जाती है ऐसे में वायु प्रदूषण होता है जो मनुष्यों , पशुओं के लिए हानिकारक होती है
पर्यावरण में ईंधन और धुएं से यह प्रदूषण होता है जीवाश्म ईंधन का दहन, खनन और उद्योग वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं।
ये प्रक्रियाएँ वायु में सल्फर एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोक्साइड, सीसा तथा एस्बेस्टास को निर्मुक्त करते हैं।
वायु प्रदूषण के कारण श्वसन तंत्रीय, तंत्रिका तंत्रीय तथा रक्त संचारतंत्र संबंधी विभिन्न बीमारियाँ होती हैं।
ध्वनि
विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न ध्वनि का मानव की सहनीय सीमा से अधिक तथा असहज होना ही ध्वनि प्रदूषण है विभिन्न प्रकार के प्रौद्योगिकीय अन्वेषणों के चलते, हाल ही के वर्षों से यह एक गंभीर समस्या बनकर उभरा है।
ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख स्रोत
उद्योग
मशीनीकृत निर्माण तथा तोड़-फोड़ कार्य
मोटर वाहन वायुयान
सायरन लाउडस्पीकर
नगरीय अपशिष्ट निपटान
नगरीय क्षेत्रों में जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है जिस कारण नगरों में भीड़-भाड़ देखने को मिलती है इस बड़ी हुई जनसंख्या के लिए अपर्याप्त सुविधाएँ है उसके परिणामस्वरूप साफ़-सफ़ाई की खराब स्थिति देखने को मिलती है
ठोस अपशिष्टों (कचरे) के द्वारा होने वाला पर्यावरण प्रदूषण काफ़ी महत्त्वपूर्ण हो चुका है क्योंकि विभिन्न स्रोतों द्वारा जनित अपशिष्ट की मात्रा बहुत अधिक होती जा रही है ठोस कचरे की अंतर्गत विभिन्न प्रकार के पुराने एवं प्रयुक्त सामग्रियाँ शामिल की जाती हैं
जैसे –
जंग लगी पिनें,
टूटे काँच के समान,
प्लास्टिक के डिब्बे,
पोलीथिन की थैलियाँ,
रद्दी कागज़,
राख,
फ्लॉपियाँ,
सी डी आदि
इस त्यागे गए समान को कूड़ा-करकट, रद्दी, गंदगी एवं कबाड़ आदि कहते हैं
जिनका दो स्रोतों से निपटान होता है-
(1) घरेलू प्रतिष्ठानों से
(2) व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से।
घरेलू कचरे को या तो सार्वजनिक भूमि पर या निजी ठेकेदारों के स्थलों पर डाला जाता है जबकि औद्योगिक/व्यावसायिक इकाइयों के कचरा का संग्रहण एवं निपटान जन सुविधाओं (नगरपालिकाओं) के द्वारा निचली सतह की सार्वजनिक ज़मीन (गड्डों) पर निस्तारित किया जाता है।
कारखानों, विद्युत गृहों तथा भवन निर्माण या विध्वंस से भारी मात्रा में निकली राख या मलबे के परिणामस्वरूप गंभीर समस्याएँ पैदा हो गई हैं।
ठोस अपशिष्ट से गंदी बदबू, मक्खियों एवं कृतकों (जैसे चूहे) से स्वास्थ्य संबंधी जोखिम पैदा हो जाते हैं जैसे टाइफाइड , डिप्थीरिया, दस्त तथा हैजा आदि।
नगरीय क्षेत्रों के आसपास औद्योगिक इकाइयों के संकेंद्रण से भी औद्योगिक अपशिष्टों में वृद्धि होती है औद्योगिक कचरे को नदियों में डालने से जल प्रदूषण की समस्या होती है।
नगर आधारित उद्योगों तथा अनुपचारित वाहित मल के कारण नदियों के प्रदूषण से अनुप्रवाह में स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएँ पैदा होती हैं।
भारत में नगरीय अपशिष्ट निपटान एक गंभीर समस्या है मुंबई, कोलकाता, चेन्नई व बेंगलूरु आदि महानगरों में ठोस अपशिष्ट के 90 प्रतिशत को एकत्रित करके उसका निपटान किया जाता है
लेकिन देश के अन्य अधिकांश शहरों में, अपशिष्ट का 30 % से 50 % कचरा बिना एकत्र किए छोड़ दिया जाता। जो गलियों में, घरों के पीछे खुली जगहों पर तथा परती ज़मीनों पर इकट्ठा हो जाता है जिसके कारण स्वास्थ्य संबंधी गंभीर जोखिम पैदा हो जाते हैं।
इन अपशिष्टों को संसाधन के रूप में उपचारित कर इनका ऊर्जा पैदा करने व कंपोस्ट (खाद ) बनाने में इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
अनुपचारित अपशिष्ट धीरे-धीरे सड़ते हैं और वातावरण में विषाक्त गैसें छोड़ते हैं जिनमें मिथेन गैस भी शामिल हैं।
ग्रामीण-शहरी प्रवास
ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर जनसंख्या प्रवाह अनेक कारकों से प्रभावित होता है नगरीय क्षेत्रों में मज़दूरों की अधिक माँग, ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के निम्न अवसर नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों के बीच विकास का असंतुलित प्रारूप आदि हैं।
भारत में, नगरों की जनसंख्या तेज़ी से बढ़ रही है। छोटे एवं मध्यम नगरों में रोज़गार के कम अवसर उपलब्ध होते हैं, गरीब लोग सामान्यतः अपनी आजीविका के लिए इन शहरों को छोड़कर सीधे महानगरों में पहुँचते हैं।
गंदी बस्तियों की समस्याएँ
झुग्गी-बस्तियाँ, गंदी बस्तियाँ, झोपडपट्टी तथा पटरियों के किनारे बने ढाँचे खड़े हैं।
इनमें वे लोग रहते हैं जिन्हें ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों में आजीविका की खोज में प्रवासित होने के लिए विवश होना पड़ा या वे ऊँचे किराए और जमीन की महँगी कीमत के कारण पर अच्छे आवासों में नहीं रह पाते।
वे लोग पर्यावरण की दृष्टि से बेमेल और निम्नीकृत क्षेत्रों पर कब्जा कर रहते हैं।
गंदी बस्तियाँ न्यूनतम वांछित आवासीय क्षेत्र होते हैं
जहाँ जीर्ण-शीर्ण मकान, स्वास्थ्य की निम्न सुविधाएँ, खुली हवा का अभाव तथा पेयजल, प्रकाश तथा शौच सुविधाओं जैसी आधारभूत आवश्यक चीजों का अभाव पाया जाता है।
खुले में शौच, अनियमित जल निकासी व्यवस्था, भीड़-भरी संकरी सड़कें, स्वास्थ्य तथा सामाजिक समस्याएँ हैं।
भू – निम्नीकरण
कृषि योग्य भूमि पर दबाव का कारण केवल सीमित उपलब्धता ही नहीं, इसकी गुणवत्ता में कमी भी इसका कारण है।
मृदा अपरदन, लवणता (जलाक्रांतता) तथा भू-क्षारता से भू-निम्नीकरण होता है।
भू-निम्नीकरण का अभिप्राय स्थायी या अस्थायी तौर पर भूमि की उत्पादकता की कमी है।
भूनिम्नीकरण दो प्रकियाओं द्वारा तीव्रता से होता है।
ये प्रक्रियाएँ प्राकृतिक तथा मानवजनित हैं।
जैसे- प्राकृतिक खड्ड, मरुस्थलीय या तटीय रेतीली भूमि, बंजर चट्टानी क्षेत्र, तीव्र ढाल वाली भूमि तथा हिमानी क्षेत्र। ये मुख्यतः प्राकृतिक कारकों द्वारा घटित हुई हैं।