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भारतीय कलाएँ Chapter-4 Class 11 Book-Vitan Chapter Summary

भारतीय कलाएँ Chapter-4 Class 11 Book-Vitan Chapter Summary


भारतीय कलाएँ


1. कला की परिभाषा और महत्त्व

कलाएँ भावों, विचारों और परिवेश को अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम हैं। चित्रकारी, संगीत, नृत्य जैसी विभिन्न कलाएँ प्रकृति और मानव जीवन के पहलुओं को अपने अनोखे रूपों में प्रस्तुत करती हैं। भारत जैसे विविधतापूर्ण और उत्सवधर्मी देश में कला का गहरा संबंध त्योहारों, उत्सवों और जीवन के हर पहलू से है, जो इसे सांस्कृतिक समृद्धि और अभिव्यक्ति का अद्भुत स्रोत बनाता है।

2. कला का ऐतिहासिक विकास

प्रारंभ में सभी कलाएँ लोक समूह से जुड़ी हुई थीं, जो समय के साथ विकसित होकर शास्त्रीय रूप में परिवर्तित हो गईं। गुप्तकाल को कला का स्वर्ण युग माना जाता है, जहाँ भरतमुनि का नाट्यशास्त्र शास्त्रीय कला का आधार बना। इस काल में कला का विकास मुख्य रूप से मंदिरों और राजसी संरक्षण के अंतर्गत हुआ, जिससे यह सांस्कृतिक और धार्मिक अभिव्यक्ति का महत्वपूर्ण माध्यम बनी।

3. चित्रकला

  • शैलचित्र: सबसे प्राचीन चित्रकारी, जो भीमबेटका की गुफाओं में पाई जाती है।
  • अजंता-एलोरा की गुफाएँ: इनकी दीवारों पर बनी चित्रकृतियाँ बौद्ध भिक्षुओं द्वारा बनाई गईं और कलात्मक उत्कृष्टता का उदाहरण हैं।
  • लघुचित्र: कपड़ों, लकड़ी, कागज पर बने चित्र, जैसे महाराष्ट्र की वरली, ओडिशा के पटचित्र, और मधुबनी चित्रकला।
  • अस्थायी कला: जैसे ऐपण, अल्पना, और रंगोली, जो त्योहारों और विवाह से जुड़ी हैं।

4. संगीत कला

वैदिक काल में संगीत को दो प्रकारों में विभाजित किया गया था: मार्गी, जो धार्मिक संगीत था, और देशी, जो लोक संगीत के रूप में प्रचलित था। संगीत का शास्त्रीय रूप भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में वर्णित है, जिसमें राग-ताल और समय विशेष के अनुसार संगीत का स्वरूप निर्धारित होता है, जैसे भैरव राग सुबह के लिए और दीपक राग दोपहर के लिए उपयुक्त माना जाता है। लोक संगीत में संस्कारगीत, ऋतुगीत, और उत्सव गीतों की समृद्ध परंपरा मिलती है, जो भारतीय सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं।

5. नृत्य कला

नृत्य कला अभिनय और भंगिमा का अद्वितीय संगम है, जिसका आधार भरतमुनि का नाट्यशास्त्र है। लोक नृत्य जीवन और ऋतु चक्र से जुड़े होते हैं, जैसे गिद्दा (पंजाब), गरबा (गुजरात), लावणी (महाराष्ट्र), और बिहु (असम)। शास्त्रीय नृत्यों में कथकली, भरतनाट्यम, ओडिशी, कुचिपुड़ी, और मोहिनीअट्टम प्रमुख हैं। शास्त्रीय और लोक नृत्य के बीच परस्पर संवाद ही भारतीय नृत्य कला की सबसे बड़ी ताकत है, जो इसकी विविधता और गहराई को दर्शाता है।

6. भारतीय कलाओं का वैश्विक प्रभाव

भारतीय कला का प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह मध्य एशिया, तिब्बत, चीन, जापान, और कंबोडिया जैसे देशों तक भी पहुँचा। भारतीय कला के विस्तार का प्रमाण क्षेत्रीय विशेषताओं में देखा जा सकता है, जैसे गांधार और तिब्बती शैली, जो भारतीय कला और संस्कृति के व्यापक प्रभाव को दर्शाती हैं।

7. कला का लोक और शास्त्रीय संवाद

भारतीय कला लोक और शास्त्रीय रूपों के बीच संवाद का अद्भुत परिणाम है। लोक कलाएँ समूह और समुदाय से जुड़ी होती हैं, जबकि शास्त्रीय कला अधिक नियमबद्ध और व्यक्ति केंद्रित हो गई है। ये दोनों रूप मिलकर मंचों और फ़िल्मों में एक साथ नज़र आते हैं, जो भारतीय कला की विविधता और समृद्धि को दर्शाते हैं।

निष्कर्ष

भारतीय कला विविधता और प्रेमभावना की प्रतीक है। इसका हर रूप जीवन, प्रकृति, और मानवता से गहराई से जुड़ा है।"वसुधैव कुटुंबकम" की भावना और सांस्कृतिक धरोहर के कारण भारतीय कला विश्वभर में सराही जाती है।




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