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वसंत आया , तोड़ो काव्य खंड रघुबीर सहाय Antra Hindi Chapter 5 व्याख्या

 



  वसंत आया  


कविता : वसंत आया

कवि  : रघुवीर सहाय


परिचय

  • वसंत आया कविता मे बताया गया है की आज के वातावरण मे मनुष्य का प्रकृति के साथ रिश्ता टूट गया है
  • अब उसे वसंत ऋतु के आने का अनुभव होने की बजाय उसका पता कैलंडर से चलता है
  • वसंत ऋतु से पहले पत्ते झड़ते हैं और खुशबूदार हवा चलती है , कवि ने आज की आधुनिक जीवन शैली का वर्णन किया है


जैसे बहन 'दा' कहती है ऐसे किसी बँगले के किसी तरु (अशोक?) पर कोई चिड़िया कुऊकी

चलती सड़क के किनारे लाल बजरी पर चुरमुराए पाँव तले

ऊँचे तरुवर से गिरे

बड़े-बड़े पियराए पत्ते

कोई छह बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहाई हो-

खिली हुई हवा आई, फिरकी-सी आई, चली गई।

ऐसे, फुटपाथ पर चलते चलते चलते।

कल मैंने जाना कि वसंत आया।


संदर्भ – कवि  : रघुवीर सहाय

कविता   : वसंत आया

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 मे संकलित हिन्दी के प्रसिध्द कवि रघुवीर सहाय द्वारा रचित कविता वसंत आया से ली गई हैं। इसमे कवि ने बताया है की किस प्रकार मनुष्य का प्रकृति के साथ संबंध टूट चुका है

व्याख्य 

  • वसंत के आने के बारे मे कवि कहता है की सुबह की सैर करते समय किसी बंगले मे लगे अशोक के पेड़ पर बैठी एक चिड़िया के कूकने की आवाज सुनाई देती है
  • कवि कहता है ये चिड़िया की आवाज उतनी ही मधुर थी जितनी मधुर एक बहन की आवाज आती है जब वह अपने भाई को ‘दा’ कहकर पुकारती है 
  • जब कवि सुबह के समय सड़क पर चल रहे थे लाल बजरी के ऊपर तो कवि के पैर के नीचे अचानक से ऊंचे ऊंचे पेड़ों से बड़े बड़े पीले पत्ते आ जाते हैं | जिनमे से चुरमुराने की आवाज आती है
  • सुबह 6 बजे की हवा मे इतनी ताजगी होती है की ऐसा लगता है मानों वह हवा अभी अभी गरम पानी से नहाकर आई हो
  • यह सुबह की ताजा हवा फिरकी की तरह गोल गोल घूमती हुई सी आई और चली गई ,,,,, और इस तरह कवि ने  फुट्पैथ पर चलते चलते जाना की वसंत आ गया है



और यह कैलेंडर से मालूम था

अमुक दिन अमुक बार मदनमहीने की होवेगी पंचमी

दफ्तर में छुट्टी थी-यह था प्रमाण

और कविताएँ पढ़ते रहने से यह पता था

कि दहर-दहर दहकेंगे कहीं ढाक के जंगल

आम बौर आवेंगे

रंग-रस-गंध से लदे-फँदे दूर के विदेश के

वे नंदन-वन होवेंगे यशस्वी मधुमस्त पिक भौर आदि अपना-अपना कृतित्व

अभ्यास करके दिखावेंगे

यही नहीं जाना था कि आज के नगण्य दिन जानूँगा

जैसे मैंने जाना, कि वसंत आया।


संदर्भ – कवि  :  रघुवीर सहाय

कविता    : वसंत आया

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 मे संकलित हिन्दी के प्रसिध्द कवि रघुवीर सहाय द्वारा रचित कविता वसंत आया से ली गई हैं इसमे कवि ने बताया है की किस प्रकार मनुष्य का प्रकृति के साथ संबंध टूट चुका है।

व्याख्य 

  • कवि कहते हैं वसंत के आने का पता उन्हे कैलंडर से चल गया था ,,, और जब दफ्तर मे उस दिन छुट्टी हुई तो यह प्रमाणित हो गया की हाँ वसंत आ गया है(वसंत पंचमी के बारे मे कवि को जानकारी कैलंडर से थी)
  • कवि अपने जीवन मे कविताएं पढ़ते रहता था , और उसने कविताओं मे यह भी पढ़ा था की जब वसंत ऋतु आती है तो प्रकृति मे क्या क्या बदलाव होते हैं
  • जैसे : पलाश के पेड़ पर लाल लाल फूल आना , और आम बोर भी वसंत के मौसम मे ही आते हैं
  • कवि कहते हैं वसंत के आने पर न केवल पृथ्वी के बाग बगीचे बल्कि इन्द्र के नंदवान मे  भी सुगंधित सुंदर सुंदर फूल खिल जाते हैं
  • वसंत के फूलों का रस पीकर भवर और कोयल अपना अपना प्रदर्शन और सुंदर तरीके से करेंगे 
  • कवि कहता है की मुझे नहीं पता था की एक दिन ऐसा भी आएगा जब वसंत के आने का पता कैलंडर देख कर और कार्यालय मे छुट्टी होने से चलेगा 


विशेष

  • इस कविता मे कवि ने वसंत आगमन का सजीव वर्णन किया है
  • कवि की भाषा बहुत सरल और भावअनुरूप है
  • यह कविता छंदमुक्त कविता है
  • इसमे कवि ने अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया है
  • इस कविता मे कवि ने मनुष्य और प्रकृति के बीच की दूरियों का वर्णन किया है



तोड़ो

परिचय


  • इस कविता मे कवि सृजन हेतु भूमि तैयार करने के लिए चट्टानें , ऊसर और बंजर को तोड़ने की बात कही है
  • कवि ने मन के भीतर की ऊब को तोड़ने की बात कही है क्योंकि यह सृजन मे बाधक है
  • इस कविता मे प्रकृति से मन की तुलना की है
  • इसमे कवि ने  मन मे व्याप्त रूढ़ियों को भी समाप्त करने की बात कही है



तोड़ो तोड़ो तोड़ो ये

पत्थर ये चट्टानें

ये झूठे बंधन टूटें

तो धरती को हम जानें

सुनते हैं मिट्टी में रस है जिससे उगती दूब है

अपने मन के मैदानों पर व्यापी कैसी ऊब है

आधे आधे गाने


संदर्भ – कवि : रघुवीर सहाय

कविता : तोड़ो

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 मे संकलित हिन्दी के प्रसिध्द कवि रघुवीर सहाय द्वारा रचित कविता तोड़ो से ली गई हैं कवि ने मन के भीतर की ऊब को तोड़ने की बात कही है

व्याख्य 

  • इसमे कवि मनुष्य से उसके मन के बंजरपन को दूर करके उसे उपजाऊ बनाने की बात कहता है और कवि यह चाहता है की मनुष्य सृजन कार्य करे
  • यहाँ कवि कहते हैं जिस तरह भूमि के बंजरपन को दूर करने के लिए भूमि के ऊपर फैले पत्थर और चट्टानों को तोड़कर उसे समतल बनाना पड़ता है
  • उसी प्रकार मनुष्य को अपने मन मे जो अंधविश्वास है और जो समाज की कुरीतियों के बंधन है उन्हे तोड़ना पड़ेगा
  • जब तक मनुष्य अपने मन मे व्याप्त बाधाओं को उखाड़ नहीं फेंकेगा तब तक वह अपनी क्षमता को समझ नहीं पाएगा

तोड़ो तोड़ो तोड़ो ये

ये ऊसर बंजर तोड़ो

चरती परती तोड़ो

सब खेत बनाकर छोड़ो

मिट्टी में रस होगा ही जब वह पोसेगी बीज को

हम इसको क्या कर डालें इस अपने मन की खीज को?

गोड़ो गोड़ो गोड़ो

संदर्भ – कवि : रघुवीर सहाय

कविता : तोड़ो

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्यपुस्तक अंतरा भाग 2 मे संकलित हिन्दी के प्रसिध्द कवि रघुवीर सहाय द्वारा रचित कविता तोड़ो से ली गई हैं | कवि ने मन के भीतर की ऊब को तोड़ने की बात कही है

  • वे सभी चट्टानें और पत्थर जो बंजर बना रहे है उन्हे तोड़ दो और उपजाऊ बनाओ
  • चरती तथा परती भूमि को उपजाऊ बनाकर उसपर खेती कर रहे हैं , लेकिन  मनुष्य अपने मन की उदासीनता को खत्म नहीं कर पाएगा तब तक वो सृजन कार्य नहीं कर पाएगा
  • इसलिए कवि कहते हैं , की जब मिट्टी मे रस होगा अर्थात उपजाऊपन होगा तभी वह उस बीज को पोसेगी  ,फिर यही बीज आगे चलकर फसल का रूप ले लेता है
  • इसलिए जब तक मनुष्य के मन से यह बाधाएं और रूढ़िया दूर नहीं होंगी तब तक मनुष्य सृजन कार्य नहीं पर पाएगा

विशेष

  • इस कविता मे प्रकृति की तुलना मन से की गई है 
  • इस कविता मे लयात्मकता है
  • इस कविता मे खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है
  • इस कविता मे देशज शब्दों का भी प्रयोग किया गया है
  • यह एक छंद मुक्त कविता है
  • यह एक क्रांतिकारी कविता है



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