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मुद्रा और साख Notes in Hindi Class 10 Economics Chapter-3 Book 4 mudra or sakh currency and credit



मुद्रा विनिमय का एक माध्यम

  • मुद्रा का उपयोग और महत्व: मुद्रा हमारे रोजमर्रा के जीवन का अहम हिस्सा है और इसका उपयोग विभिन्न लेन-देन में किया जाता है। वस्तुएं खरीदने-बेचने, सेवाएं लेने और भुगतान करने के लिए मुद्रा का इस्तेमाल किया जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि मुद्रा किसी भी वस्तु या सेवा के बदले आसानी से उपयोग की जा सकती है।
  • आवश्यकताओं का दोहरा संयोग: एक जूता निर्माता अपने जूते बेचकर पैसे कमाता है और फिर उन पैसों से गेहूँ खरीदता है। अगर मुद्रा का इस्तेमाल न हो, तो उसे ऐसे किसान की तलाश करनी पड़ेगी, जो गेहूँ के बदले जूते भी लेना चाहता हो। इसे "आवश्यकताओं का दोहरा संयोग" कहा जाता है, जो बिना मुद्रा के लेन-देन को जटिल बना देता है।
  • मुद्रा का समाधान और व्यापार की सरलता: मुद्रा इस समस्या को हल करती है और व्यापार को सरल बनाती है। जूता निर्माता अब सिर्फ जूते बेचने के लिए खरीदार ढूँढ़ता है और फिर उस पैसे से किसी भी वस्तु या सेवा को खरीद सकता है। इस प्रकार, मुद्रा विनिमय प्रक्रिया में मध्यस्थ का काम करती है, जिससे लेन-देन आसान और सुविधाजनक हो जाता है। यही कारण है कि आज के आर्थिक जीवन में मुद्रा का बहुत महत्व है।


मुद्रा के आधुनिक रूप

  • मुद्रा का विकास और लेन-देन में भूमिका: मुद्रा वह माध्यम है जो लेन-देन को आसान बनाती है। पुराने समय में विभिन्न चीजों का इस्तेमाल मुद्रा के रूप में होता था। उदाहरण के लिए, भारत में सबसे पहले अनाज और पशु का उपयोग वस्तु विनिमय के रूप में किया जाता था।
  • धातु सिक्कों का परिचय: समय के साथ सोना, चाँदी और ताँबे जैसी धातुओं से बने सिक्के मुद्रा के रूप में चलन में आए। यह परंपरा पिछली सदी तक चलती रही, और इन धातुओं का मूल्य स्थिर था, जिससे व्यापार को एक निश्चित माध्यम मिला।
  • आधुनिक मुद्रा और बदलाव: आज के समय में, मुद्रा के आधुनिक रूप जैसे कागज के नोट, सिक्के, और डिजिटल भुगतान प्रणाली हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुके हैं। यह बदलाव लेन-देन को और तेज़, आसान और सुविधाजनक बना रहा है, जिससे व्यापार और व्यक्तिगत लेन-देन दोनों ही सरल हो गए हैं।

आधुनिक मुद्रा का रूप

1. मुद्रा

  • आधुनिक मुद्रा में कागज के नोट और सिक्के शामिल हैं। 
  • यह पहले की मुद्राओं, जैसे सोना, चाँदी, ताँबे के सिक्कों, अनाज या पशुओं से अलग है। 
  • आधुनिक मुद्रा का कोई वास्तविक उपयोग नहीं है, जैसे कि सोना गहनों में या अनाज खाने में उपयोगी होता था।
  • सरकार इसे वैध मुद्रा के रूप में मान्यता देती है। भारत में भारतीय रिजर्व बैंक सरकार की ओर से नोट जारी करता है। 
  • कानून के मुताबिक, कोई भी व्यक्ति या संस्था अपनी खुद की मुद्रा जारी नहीं कर सकती। 
  • इसके अलावा, भारत में रुपये को कानूनी मान्यता प्राप्त है, और इसे लेन-देन में अस्वीकार नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि रुपया भारत में विनिमय का मुख्य माध्यम है।

2. बैंकों में जमा (निक्षेप)

  • लोग अपनी अतिरिक्त नकदी को बैंकों में जमा करते हैं। रोजमर्रा की जरूरतों के लिए उन्हें सीमित करेंसी की आवश्यकता होती है, और बचा हुआ धन सुरक्षित रखने के लिए बैंक एक बेहतर विकल्प होता है। उदाहरण के तौर पर, महीने के अंत में वेतन पाने वाले मजदूर अपनी बचत को बैंक खाते में जमा कर देते हैं।
  • बैंक इन जमा राशियों को स्वीकार करते हैं और उस पर ब्याज भी देते हैं। इससे लोगों का पैसा सुरक्षित रहता है और उन्हें उस पर अतिरिक्त लाभ भी मिलता है। जरूरत पड़ने पर लोग अपने खाते से पैसा आसानी से निकाल सकते हैं। इस तरह के जमा को "माँग जमा" कहा जाता है, क्योंकि इसे कभी भी माँग के अनुसार निकाला जा सकता है।


आर्थिक विकास और माँग जमा की भूमिका

  • माँग जमा एक खास सुविधा है जो इसे मुद्रा जैसा महत्वपूर्ण बनाती है। चेक के माध्यम से भुगतान इसका उदाहरण है। चेक एक कागज होता है, जिसमें खाता धारक बैंक से कहता है कि उसकी तय राशि किसी दूसरे व्यक्ति को दी जाए।
  • यह तरीका नकद के बिना लेन-देन करना आसान बनाता है। माँग जमा में मुद्रा के सभी जरूरी गुण होते हैं, इसलिए इसे भी करेंसी की तरह भुगतान के रूप में माना जाता है और इसे आधुनिक अर्थव्यवस्था में मुद्रा का हिस्सा माना जाता है।
  • बैंक इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे माँग जमा को सुरक्षित रखते हैं और जरूरत पड़ने पर भुगतान की सुविधा प्रदान करते हैं। करेंसी और माँग जमा दोनों ही बैंकिंग सिस्टम का अहम हिस्सा हैं और ये आर्थिक विकास में मदद करते हैं।


बैंकों की ऋण गतिविधियाँ

  • बैंक द्वारा जमा राशि का उपयोग: बैंक जमा किए गए धन का उपयोग एक दिलचस्प तरीके से करते हैं। बैंक जमा राशि का एक छोटा हिस्सा, लगभग 15%, नकद के रूप में अपने पास रखते हैं। यह प्रावधान इसलिए है कि किसी भी दिन केवल कुछ जमाकर्ता ही नकदी निकालने आते हैं। इस वजह से बैंक का काम आराम से चलता है और उसे अतिरिक्त नकदी की जरूरत नहीं होती।
  • ऋण देने के लिए जमा राशि का उपयोग: बाकी जमा राशि का बड़ा हिस्सा बैंक ऋण देने के लिए इस्तेमाल करते हैं। ऋण की माँग आर्थिक गतिविधियों के लिए हमेशा रहती है। इस तरह, बैंक उन लोगों के बीच मध्यस्थता करते हैं, जिनके पास अतिरिक्त धन (जमाकर्ता) है और जिन्हें धन की जरूरत (कर्जदार) है।
  • बैंक की आय और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा: बैंक जमा पर ब्याज देते हैं, लेकिन ऋण पर उससे ज्यादा ब्याज लेते हैं। कर्जदारों से मिले ज्यादा ब्याज और जमाकर्ताओं को दिए गए ब्याज के बीच का अंतर बैंकों की आय का मुख्य स्रोत है। इस प्रक्रिया से बैंक आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं, क्योंकि वे अपने द्वारा दिए गए ऋण से व्यापार, निवेश और विकास को वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं।


साख (ऋण) स्थितियाँ

  • ऋण और उसकी भूमिका: हमारे जीवन में कई बार हमें धन के लिए ऋण (उधार) लेना पड़ता है। ऋण का मतलब है कि एक व्यक्ति किसी से पैसे, वस्तुएं या सेवाएं लेता है और वादा करता है कि वह बाद में चुकता करेगा। ऋण की भूमिका को दो उदाहरणों से समझ सकते हैं।
  • ऋण का अच्छा असर: पहले उदाहरण में, सलीम ने काम करने के लिए ऋण लिया। इस ऋण से उसे खर्च पूरे करने और समय पर काम खत्म करने में मदद मिली। इससे उसकी कमाई बढ़ी। इस तरह, ऋण ने उसकी स्थिति को बेहतर किया।
  • ऋण का बुरा असर (कर्ज-जाल): दूसरे उदाहरण में, किसान फसल उगाने के लिए ऋण लेते हैं। यह ऋण बीज, खाद, पानी और अन्य खर्चों के लिए होता है। किसान आमतौर पर फसल बेचकर ऋण चुकता करते हैं। लेकिन अगर फसल खराब हो जाए, तो वह ऋण नहीं चुका पाते। जैसे स्वप्ना के साथ हुआ, और उसे अपनी ज़मीन बेचनी पड़ी। इसे "कर्ज-जाल" कहते हैं, जब ऋण स्थिति को और खराब कर देता है।
  • ऋण का सही उपयोग: ऋण का उपयोग सही तरीके से किया जाए, तो यह आय बढ़ाने में मदद करता है। लेकिन अगर नुकसान हो, तो यह मुश्किलें बढ़ा सकता है। इसलिए, ऋण लेने से पहले सही योजना बनाना जरूरी है।


ऋण की शर्तें

  • ऋण की शर्तें और ब्याज दर: हर ऋण के साथ कुछ शर्तें जुड़ी होती हैं, जिनमें ब्याज दर सबसे महत्वपूर्ण है। कर्जदार को महाजन या बैंक को मूल रकम के साथ ब्याज भी चुकाना पड़ता है। यह ब्याज ऋण की लागत को बढ़ा देता है, जिससे कर्जदार को अधिक राशि चुकानी पड़ती है।
  • समर्थक ऋणाधार (गाड़ी, ज़मीन आदि): इसके अलावा, उधारदाता संपत्ति के रूप में "समर्थक ऋणाधार" की माँग कर सकता है। समर्थक ऋणाधार वह संपत्ति होती है, जैसे ज़मीन, इमारत, गाड़ी, या बैंक में जमा राशि, जिसे कर्जदार गारंटी के रूप में देता है। अगर कर्जदार ऋण नहीं चुका पाता, तो उधारदाता इस संपत्ति को बेचकर अपना पैसा वसूल सकता है।
  • ऋण की शर्तें और भुगतान के तरीके: ऋण की शर्तों में ब्याज दर, समर्थक ऋणाधार, जरूरी दस्तावेज, और भुगतान के तरीके शामिल होते हैं। ये शर्तें हर ऋण व्यवस्था में अलग हो सकती हैं और उधारदाता तथा कर्जदार की स्थिति पर निर्भर करती हैं। इसके बाद हम देखेंगे कि अलग-अलग ऋण व्यवस्थाओं में ये शर्तें कैसे बदलती हैं।


भारत में औपचारिक और अनौपचारिक ऋण

भारत में लोग अपने खर्चों और जरूरतों को पूरा करने के लिए औपचारिक और अनौपचारिक स्रोतों से ऋण लेते हैं।

1. औपचारिक स्रोत

  • बैंकों और सहकारी समितियों से मिलने वाले ऋण औपचारिक स्रोत में आते हैं। 
  • इनका संचालन भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की देखरेख में होता है। 
  • आरबीआई सुनिश्चित करता है कि बैंक छोटे किसानों, छोटे व्यापारियों और जरूरतमंदों को सस्ती ब्याज दरों पर ऋण दें। 
  • बैंकों को अपने ऋण की ब्याज दर और वितरण की जानकारी समय-समय पर आरबीआई को देनी होती है।

2. अनौपचारिक स्रोत

  • साहूकार, व्यापारी, रिश्तेदार, और दोस्तों से मिलने वाले ऋण अनौपचारिक स्रोत हैं। 
  • इन पर कोई निगरानी नहीं होती और ये उच्च ब्याज दर पर ऋण देते हैं। 
  • अक्सर गरीब लोग इन स्रोतों पर निर्भर रहते हैं, जिससे उनका ऋण-जाल में फँसना आसान हो जाता है।

3. कर्ज का बोझ और गरीबी

  • अनौपचारिक स्रोतों के ऊँचे ब्याज दरों के कारण गरीब परिवारों की अधिकांश आय ऋण चुकाने में चली जाती है। 
  • कई बार तो कर्ज की अदायगी उनकी पूरी कमाई से भी अधिक हो जाती है। यह गरीबों को विकास के अवसरों से वंचित कर देता है।

4. अमीर और गरीब के बीच अंतर

  • औपचारिक ऋण का लाभ अधिकतर अमीर परिवारों को मिलता है। शहरी अमीर परिवारों के 83% ऋण औपचारिक स्रोतों से आते हैं, जबकि गरीब परिवारों के 54% ऋण अनौपचारिक स्रोतों से लिए जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भी यही स्थिति है।

5. समाधान

  • औपचारिक ऋण का विस्तार ग्रामीण इलाकों में बैंकों और सहकारी समितियों की पहुँच बढ़ाकर किया जाना चाहिए, ताकि लोग अनौपचारिक ऋणदाताओं पर निर्भर न रहें। 
  • इसके साथ ही, सस्ता और सुलभ ऋण सभी लोगों, विशेषकर गरीब परिवारों तक पहुँचाना जरूरी है। सस्ते ऋण से गरीब परिवारों को अपनी आय बढ़ाने और जीवन स्तर सुधारने में मदद मिलेगी। 
  • यह कदम न केवल व्यक्तिगत विकास को प्रोत्साहित करेगा, बल्कि देश की आर्थिक प्रगति में भी योगदान देगा।
  • सस्ता और समान ऋण वितरण न केवल गरीबों की मदद करेगा, बल्कि देश के विकास को भी गति देगा।


निर्धनों के लिए स्वयं सहायता समूह (SHG)

1. ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण प्राप्त करने की कठिनाइयाँ

  • ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धन परिवारों को ऋण लेना अक्सर कठिन होता है। 
  • बैंकों से कर्ज लेना मुश्किल है, क्योंकि इसके लिए ऋणाधार (जैसे संपत्ति या गारंटी) और कागजात की आवश्यकता होती है, जो गरीबों के पास नहीं होते। 
  • दूसरी ओर, साहूकार बिना कागजात के भी कर्ज देते हैं, लेकिन वे ऊँची ब्याज दरें वसूलते हैं और कर्जदारों को परेशान करते हैं।

2. स्वयं सहायता समूह (SHG) का समाधान

  • इस समस्या का समाधान "स्वयं सहायता समूह" (SHG) के रूप में निकला है। 
  • इस योजना के तहत ग्रामीण गरीबों, खासकर महिलाओं, को छोटे समूहों में संगठित किया जाता है। हर समूह में 15-20 सदस्य होते हैं, जो नियमित रूप से मिलते हैं और बचत करते हैं। 
  • यह बचत प्रति व्यक्ति 25 से 100 रुपये या अधिक हो सकती है। समूह के सदस्य अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए इस बचत से छोटे कर्ज ले सकते हैं।

3. SHG द्वारा कर्ज की व्यवस्था

  • समूह अपने सदस्यों को कम ब्याज पर कर्ज देता है, जो साहूकार की तुलना में सस्ता होता है।
  • नियमित बचत के बाद, समूह बैंक से भी कर्ज लेने के योग्य हो जाता है। 
  • यह कर्ज स्वरोजगार के अवसर बढ़ाने, जमीन छुड़ाने, बीज और खाद खरीदने, घर बनाने, सिलाई मशीन या पशु खरीदने जैसे उद्देश्यों के लिए दिया जाता है।

4. समूह के निर्णय और कर्ज की जिम्मेदारी

  • स्वयं सहायता समूह में सभी निर्णय, जैसे कर्ज की रकम, ब्याज दर, और भुगतान की अवधि, सदस्य मिलकर लेते हैं। 
  • कर्ज लौटाने की जिम्मेदारी भी पूरे समूह की होती है, जिससे बैंक निर्धन महिलाओं को आसानी से ऋण देने के लिए तैयार हो जाते हैं।

5. SHG का सामाजिक और आर्थिक लाभ

  • SHG गरीबों को ऋणाधार की समस्या से उबारने में मदद करता है। 
  • यह न केवल आर्थिक सहायता देता है, बल्कि महिलाओं को स्वावलंबी बनाता है। समूह की बैठकों के दौरान सदस्य स्वास्थ्य, पोषण और घरेलू हिंसा जैसे मुद्दों पर भी चर्चा कर सकते हैं। 
  • इस तरह, स्वयं सहायता समूह न केवल आर्थिक, बल्कि सामाजिक बदलाव का माध्यम भी बनते हैं।



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