दूसरा देवदास ममता कालिया Gadya Antra Hindi chapter 7 class 12
0Eklavya Study Pointनवंबर 23, 2024
परिचय
दूसरा देवदास कहानी ममता कालिया द्वारा रचित
युवामन की संवेदना, भावना, विचारगत उथल पुथल को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करती है।
यह
कहानी युवा हृदय में पहली बार आकस्मिक मुलाकात की हलचल, कल्पना और रूमानियत
का उदाहरण है।
इस
कहानी में लेखिका ने स्पष्ट किया है की प्रेम के लिए किसी निश्चित व्यक्ति समय और
स्थिति का होना आवश्यक नहीं।
हर की पौड़ी 'गंगा आरती
संध्या के समय हर की पौड़ी पर होने वाली गंगा
जी की आरती का दृश्य अत्यंत मनोहारी होता है, हर की पौड़ी, पर भक्तों की भीड़ जमा होती है।
फूलों के दोने इस समय एक रूपए के बदले दो रुपए
के हो जाते हैं, भक्तों को इससे कोई शिकायत नहीं होती।
आरती के समय बहुत सरे दीप जल उठते हैं और पंडित
अपने आसन से उठ खड़े हो जाते हैं और हाथ में अंगोछा लपेट कर पांच मंजिली निलांजलि
को पकड़ते हैं और आरती शुरू हो जाती है ।
घंटे घडियाल बजते हैं, लोग अपनी फूलों की
छोटी छोटी कश्तियों गंगा की लहरों पर तैरते रखा मुहं से उठा है ।
एवं
गंगापुत्र दोनपुजारियों का स्वर थकते ही लता मंगेशकर जी की सुरीली आवाज़ में 'ओम जय जगदीश हो गूंजने लगताअधिकांश औरते गीले
वस्त्रों में ही आरती में शामिल रहती हैं ।
गंगा पुत्र
गंगापुत्र उन गोताखोरों को कहते हैं जो गंगा
घाट पर हर समय तैनात रहते हैं, यदि कोई गंगा में डूबने लगता है तो ये उसे बचा लेते हैं।
इनकी जीविका का साधन लोगों द्वारा अर्पित किया
जाने वाला पैसा है, लोग फूल के दोने में पैसा भी रखते हैं।
लोग अपना दोला लहरों पर बहा देते हैं, तब गंगापुत्र दोने
में से पैसे उठाकर अपने मुहं में रख लेता है और उनका पूरा जीवन के घाट पर ही बीत
जाता है ।
गंगा ही उनका जी और आजीविका है ।वह बीस बीस
चक्कर लगाकर मुहं भर रेजगारी बटोरता है और बीवी या बहन रेजगारी बेच कर नोट कमाती
हैं।
पुजारी का आशीर्वाद
संभव नाम का लड़का यहाँ अपनी नानी के पास आया
था, उसने इसी साल MA पूरा किया था तथा सिविल सर्विसेज प्रतियोगिताओं में बैठने
वाला था |
माता-पिता की आज्ञानुसार वह हरिद्वार गंगा के
दर्शन करने आया था ताकि सिविल सेवा में उसका चुनाव हो जाये |
बहुत देर तक स्नान करने के बाद वह पानी से बहार
आया और पंडित ने उसके माथे पर चन्दन तिलक लगाया जब पुजारी उसकी कलाई पर कलावा बांध
रहा था तो उसी समय एक दुबली नाज़ुक से कलाई पुजारी की तरफ बढ़ गई |
पुजारी
ने उस पर कलावा बांध दिया और लड़की को देखकर संभव आकर्षित हो गया जब लड़की ने कहा
की अब तो आरती हो चुकी अब हम कल आरती की बेला आयेंगे |
तब पुजारी ने लड़की के 'हम' को युगल अर्थ में लेकर आशीर्वाद दिया सुखी रहो
फूलो फलो, जब भी आओ साथ ही आँना गंगा मैया मनोरथ पूरे करें।
पुजारी ने ये समझ लिया था की वे प्रेमी
प्रेमिका है, परन्तु वास्तव में वे अंजन थे ।
संभव के मन में हलचल
उस लड़की से इस छोटी सी मुलाकात ने संभव के मन
में हलचल पैदा कर दी और संभव बेचैन हो गया |
उसकी भूख प्यास भी न जाने कहाँ गायब हो गई |
नींद और स्वप्न के बीच उसकी आँखों में घाट की पूरी बात दौड़ रही थी, संभव उस लड़की को
अपने मन की बात बता देना चाहता था, उस रात संभव को ठीक से नींद तक नहीं आई ।
उसकी आँखों में उस लड़की की छवि बसी हुई थी , वह उन प्रश्नों के
बारे में सोच रहा था जिन्हें वह उसके मिलने पर करने वाला था |
संभव के जीवन में आने वाली यह पहली लड़की थी ।
मंसा देवी मंदिर
संभव ने जब मंसा देवी के मन्दिर में प्रवेश
किया था तब सभी लोग अपनी अपनी मनोकामना पूरी करने हेतु लाल पीला धागा लेकर गिठान
बाँध रहे थे,
संभव ने भी धागा लेकर बाँधा और उसे बांधते समय
पारो के विषय में सोचा था की कितना अच्छा हो की उसका मेल पारो से हो जाए ।
संभव मंसा देवी जाने के लिए केबल कार में बैठा
था, अब उसे गुलाबी रंग
ही अच्छा लग रहा था सबके हाथ में चढ़ावा देखकर वह दुखी था की वह चढ़ावे की थाली
खरीद कर नहीं लाया |
नीचे पक्तियों में सुंदर सुंदर फूल खिले हुए थे, पूरा हरिद्वार
सामने खुला हुआ था जगह जगह मंदिरों के बुर्ज और गंगा मैया की खूबसूरत धार दिख रही
थी |
मनोकामना की गाँठ
अभी कुछ ही क्षण बीते थे की उसकी मुलाकात पारो
से हो गई, उसने जैसा चाहा वैसा ही हुआ, पारो के मन की दिशा बड़ी विचित्र हो रही थी,
वह सोच
रही थी की यह कैसा संयोग है, इतनी भीड़ होने पर भी जिससे मुलाकात हुई थी, उससे आज भी मुलाकात
हो गई ।
पारो का संभव से इस प्रकार मिलना उसके अंदर
गुदगुदी सी पैदा कर रहा था, पारो को लगता है मनोकामना की गाँठ भी कितनी अनूठी है,
अभी बांधो और अभी फल की प्राप्ति कर लो वह फूली
न समाती थी, वह स्वयं को भाग्यशाली समझ रही थी क्योंकि देवी माँ ने उसकी मनोकामना इतनी
जल्दी पूरी कर दी थी ।
संभव भी मन में पारो से मिलन की मनोकामना पाले
हुआ था, उसे इस मिलन की आशा तो थी पर उसकी मनोकामना इतनी जल्दी पूरी होगी, यह निश्चित नहीं था
|
जब
उसने अचानक प्रकट हुई पारो को देखा तो उसने यही सोचा 'हे, ईश्वरे मैंने कब सोचा था की मनोकामना का इतना
जल्दी शुभ परिणाम मिलेगा |
दूसरा देवदास शीर्षक पात्र पर आधारित है, देवदास प्रेम कहानी
का प्रमुख पात्र है, पर इस कहानी में उसका नीम संभव है, पर पारो नाम दोनों
में है ।
वैसे यहाँ देवदास शब्द का प्रतीकात्मक रूप में
लिया, देवदास उसे कहते
हैं जो अपनी प्रेमिका को पागलपन की हद तक प्यार करता है, संभव भी पारो को
पाने के लिए हर प्रयास करता है ।