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वन एवं वन्य जीव संसाधन Class 10 Social Science Geography Chapter 2 Forest And Wildlife Resources van evam vanya jeev sansaadhan

वन एवं वन्य जीव संसाधन


  • पृथ्वी एक आवासीय स्थल है जिस पर हम रहते हैं, जो अत्यधिक जैव-विविधताओं से भरी हुई है। 
  • मानव और दूसरे जीवधारी एक जटिल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं, जिसका हम मात्र एक हिस्सा हैं और अपने अस्तित्व के लिए इसके विभिन्न तत्त्वों पर निर्भर करते हैं।
  • वन पारिस्थितिकी तंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि ये प्राथमिक उत्पादक हैं जिन पर दूसरे सभी जीव निर्भर करते हैं।
  • भारत, जैव विविधता के संदर्भ में विश्व के सबसे समृद्ध देशों में से एक है। 
  • यहाँ विश्व की सारी जैव उपजातियों की 8 प्रतिशत संख्या (लगभग 16 लाख) पाई जाती है



भारत में वन और वन्य जीवन का संरक्षण

  • वन्य जीवन और वनों में तेज गति से हो रहे ह्रास के कारण इनका संरक्षण बहुत आवश्यक हो गया है। 
  • संरक्षण से पारिस्थितिकी विविधता बनी रहती है तथा हमारे जीवन साध्य संसाधन जल, वायु और मृदा बने रहते हैं। 
  • यह विभिन्न जातियों में बेहतर जनन के लिए वनस्पति और पशुओं में जींस (genetic) विविधता को भी संरक्षित करती है। 
  • 1960 और 1970 के दशकों के दौरान, पर्यावरण संरक्षकों ने राष्ट्रीय वन्यजीवन सुरक्षा कार्यक्रम की पुरजोर माँग की। 
  • भारतीय वन्यजीवन (रक्षण) अधिनियम 1972 में लागू किया गया जिसमें वन्य जीवों के आवास रक्षण के अनेक प्रावधान थे। 
  • सारे भारत में रक्षित जातियों की सूची भी प्रकाशित की गई। 
  • इस कार्यक्रम के तहत बची हुई संकटग्रस्त जातियों के बचाव पर, शिकार प्रतिबंधन पर, वन्यजीव आवासों का कानूनी रक्षण तथा जंगली जीवों के व्यापार पर रोक लगाने आदि पर प्रबल जोर दिया गया है। 
  • केंद्रीय सरकार व कई राज्य सरकारों ने राष्ट्रीय उद्यान और वन्य जीव पशुविहार (sanctuary) स्थापित किए । 
  • केंद्रीय सरकार ने कई परियोजनाओं की भी घोषणा की जिनका उद्देश्य गंभीर खतरे में पड़े कुछ विशेष वन प्राणियों को रक्षण प्रदान करना था। 
  • इन प्राणियों में बाघ, एक सींग वाला गैंडा, कश्मीरी हिरण अथवा हंगुल (hangul), तीन प्रकार के मगरमच्छ स्वच्छ जल मगरमच्छ, लवणीय जल मगरमच्छ और घड़ियाल, एशियाई शेर, और अन्य प्राणी शामिल हैं। 
  • कुछ समय पहले भारतीय हाथी, काला हिरण, चिंकारा, भारतीय गोडावन (bustard) और हिम तेंदुओं आदि के शिकार और व्यापार पर संपूर्ण अथवा आशिक प्रतिबंध लगाकर कानूनी रक्षण दिया है।
  • संरक्षण के विभिन्न तरीकों की गहनता से खोज की जा रही है। संरक्षण नियोजन में कीटों को भी महत्त्व मिल रहा है।
  • वन्य जीव अधिनियम 1980 और 1986 के तहत् सैकड़ों तितलियों, पतंगों, भृगों और एक ड्रैगनफ्लाई को भी संरक्षित जातियों में शामिल किया गया है। 
  • 1991 में पौधों की भी 6 जातियाँ पहली बार इस सूची में रखी गई



बाघ परियोजना

  • वन्यजीवन संरचना में बाघ (टाईगर) एक महत्त्वपूर्ण जंगली जाति है। 
  • 1973 में अधिकारियों ने पाया कि देश में 20वीं शताब्दी के आरंभ में बाघों की संख्या अनुमानित संख्या 55,000 से घटकर मात्र 1,827 रह गई है। 
  • बाघों को मारकर उनको व्यापार के लिए चोरी करना, आवासीय स्थलों का सिकुड़ना, भोजन के लिए आवश्यक जंगली उपजातियों की संख्या कम होना और जनसंख्या में वृद्धि बाघों की घटती संख्या के मुख्य कारण हैं। 
  • बाघों की खाल का व्यापार, और उनकी हड्डियों का एशियाई देशों में परंपरागत औषधियों में प्रयोग के कारण यह जाति विलुप्त होने की कगार पर पहुँच गई है। 
  • चूँकि भारत और नेपाल दुनिया की दो-तिहाई बाधों को आवास उपलब्ध करवाते हैं, अतः ये देश ही शिकार, चोरी और गैर-कानूनी व्यापार करने वालों के मुख्य निशाने पर हैं। 
  • 'प्रोजेक्ट टाईगर' विश्व की बेहतरीन वन्य जीव परियोजनाओं में से एक है और इसकी शुरुआत 1973 में हुई। 
  • बाथ संरक्षण मात्र एक संकटग्रस्त जाति को बचाने का प्रयास नहीं है, अपितु इसका उद्देश्य बहुत बड़े आकार के जैवजाति को भी बचाना है। 
  • उत्तराखण्ड में कॉरबेट राष्ट्रीय उद्यान, पश्चिम बंगाल में सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान, मध्य प्रदेश में बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, राजस्थान में सरिस्का वन्य जीव पशुविहार (sanctuary). असम में मानस बाघ रिजर्व (reserve) और केरल में पेरियार बाघ रिजर्व (reserve) भारत में बाघ संरक्षण परियोजनाओं के उदाहरण हैं।



वन और वन्य जीव संसाधनों के प्रकार और वितरण

  • यदि हम वन और बन्य जीव संसाधनों को संरक्षित करना चाहें, तो उनका प्रबंधन, नियंत्रण और विनियमन अपेक्षाकृत कठिन है। 
  • भारत में अधिकतर वन और वन्य जीवन या तो प्रत्यक्ष रूप में सरकार के अधिकार क्षेत्र में हैं या वन विभाग अथवा अन्य विभागों के जरिये सरकार के प्रबंधन में हैं।


वनों का विभाजन 

आरक्षित वन 

  • देश में आधे से अधिक वन क्षेत्र आरक्षित वन घोषित किए गए हैं। जहाँ तक वन और वन्य प्राणियों के संरक्षण की बात है, आरक्षित वनों को सर्वाधिक मूल्यवान माना जाता है।

रक्षित वन वन

  • विभाग के अनुसार देश के कुल वन क्षेत्र का एक-तिहाई हिस्सा रक्षित है। इन वनों को और अधिक नष्ट होने से बचाने के लिए इनकी सुरक्षा की जाती है।

अवर्गीकृत वन 

  • अन्य सभी प्रकार के वन और बंजरभूमि जो सरकार, व्यक्तियों और समुदायों के स्वामित्व में होते हैं, अवर्गीकृत वन कहे जाते हैं।

  • आरक्षित और रक्षित वन ऐसे स्थायी वन क्षेत्र हैं जिनका रख-रखाव इमारती लकड़ी, अन्य वन पदार्थों और उनके बचाव के लिए किया जाता है। 
  • मध्य प्रदेश में स्थायी वनों के अंतर्गत सर्वाधिक क्षेत्र है जोकि प्रदेश के कुल वन क्षेत्र का भी 75 प्रतिशत है। 
  • इसके अतिरिक्त जम्मू और कश्मीर, आंध्र प्रदेश, उत्तराखण्ड केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में भी कुल वनों में एक बड़ा अनुपात आरक्षित वनों का है; जबकि बिहार, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान में कुल बनों में रक्षित वनों का एक बड़ा अनुपात है। 
  • पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में और गुजरात में अधिकतर वन क्षेत्र अवर्गीकृत वन हैं तथा स्थानीय समुदायों के प्रबंधन में हैं।



समुदाय और वन संरक्षण

  • वन हमारे देश में कुछ मानव प्रजातियों के आवास भी हैं। 
  • भारत के कुछ क्षेत्रों में तो स्थानीय समुदाय सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर अपने आवास स्थलों के संरक्षण में जुटे हैं क्योंकि इसी से ही दीर्घकाल में उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति हो सकती है। 
  • सरिस्का बाघ रिजर्व में राजस्थान के गाँवों के लोग वन्य जीव रक्षण अधिनियम के तहत वहाँ से खनन कार्य बन्द करवाने के लिए संघर्षरत हैं। 
  • कई क्षेत्रों में तो लोग स्वयं वन्य जीव आवासों की रक्षा कर रहे हैं और सरकार की ओर से हस्तक्षेप भी स्वीकार नहीं कर रहे हैं। 
  • राजस्थान के अलवर जिले में 5 गाँवों के लोगों ने तो 1,200 हेक्टेयर वन भूमि भैरोंदेव डाकव सोंचुरी' घोषित कर दी जिसके अपने ही नियम कानून हैं; जो शिकार वर्जित करते हैं तथा बाहरी लोगों की घुसपैठ से यहाँ के वन्य जीवन को बचाते हैं।
  • हिमालय में प्रसिद्ध चिपको आंदोलन कई क्षेत्रों में वन कटाई रोकने में ही कामयाब नहीं रहा अपितु यह भी दिखाया कि स्थानीय पौधों की जातियों को प्रयोग करके सामुदायिक वनीकरण अभियान को सफल बनाया जा सकता है। 
  • टिहरी में किसानों का बीज बचाओ आंदोलन और नवदानय ने दिखा दिया है कि रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के बिना भी विविध फसल उत्पादन द्वारा आर्थिक रूप से व्यवहार्य कृषि उत्पादन संभव है।

  • भारत में संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम क्षरित वनों के प्रबंध और पुनर्निर्माण में स्थानीय समुदायों की भूमिका के महत्त्व को उजागर करते हैं। 
  • औपचारिक रूप में इन कार्यक्रमों की शुरुआत 1988 में हुई जब ओडिशा राज्य ने संयुक्त वन प्रबंधन का पहला प्रस्ताव पास किया। 
  • वन विभाग के अंतर्गत 'संयुक्त वन प्रबंधन' क्षरित वनों के बचाव के लिए कार्य करता है और इसमें गाँव के स्तर पर संस्थाएँ बनाई जाती हैं जिसमें ग्रामीण और वन विभाग के अधिकारी संयुक्त रूप में कार्य करते हैं। 
  • इसके बदले ये समुदाय मध्य स्तरीय लाभ जैसे गैर-इमारती वन उत्पादों के हकदारी होते हैं तथा सफल संरक्षण से प्राप्त इमारती लकड़ी लाभ में भी भागीदार होते हैं।
  • भारत में पर्यावरण के विनाश और पुनर्निर्माण की क्रियाशीलताओं से सीख मिलती है कि स्थानीय समुदायों को हर जगह प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन में शामिल करना चाहिए। 
  • परंतु स्थानीय समुदायों को फैसले लेने की प्रक्रिया में मुख्य भूमिका में आने में अभी देर है। 
  • अतः वे ही विकास क्रियाएँ मान्य होनी चाहिए जो जनमानस पर केंद्रित हों, पर्यावरण हितैषी हो और आर्थिक रूप से प्रतिफलित हों।

 

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