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सामाजिक विषमता एवं बहिस्कार के स्वरूप Important short and long questions CHAPTER – 3 class 12 Sociology Forms of social inequality and exclusion samajik vishamata evam bahiskaar ke svarup

सामाजिक विषमता एवं बहिस्कार के स्वरूप Important questions


प्रश्न -  सामाजिक विषमता सामाजिक क्यों  है?

उत्तर -

तीन प्रमुख उत्तर हो सकते हैं : 

  • वे व्यक्ति से नहीं बल्कि समूह से संबद्ध है।
  • ये आर्थिक नहीं हैं
  • ये व्यवस्थित एवं संरचनात्मक हैं



प्रश्न - विभिन्न सामाजिक संसाधन क्या है?

उत्तर -

सामाजिक संसाधन के रूप

1. आर्थिक पूँजी - भौतिक संपत्ति आय

2. सांस्कृतिक पूँजी - प्रतिष्ठा शैक्षणिक योग्यता

3. सामाजिक पूँजी - सामाजिक संगती सम्पर्क जाल

  • पूँजी के ये तीनों रूप अक्सर आपस में घुले-मिले होते हैं तथा एक को दूसरे में बदला जा सकता है।


प्रश्न - निम्न का अर्थ बताइए।

उत्तर -

1. भेदभाव

2. पूर्वाग्रह

3. रूढ़िबद्ध धारणाएँ

1. भेदभाव

  • किसी व्यक्ति या समूह के साथ उनके जाति, धर्म, लिंग, या किसी अन्य विशेषता के आधार पर अलग-अलग और अनुचित व्यवहार करना। 
  • किसी को कम अवसर देना या अधिकारों से वंचित रखना भेदभाव है।

2. पूर्वाग्रह

  • किसी व्यक्ति या समूह के प्रति पहले से ही एक नकारात्मक या सकारात्मक राय बना लेना, बिना उसे सही से समझे या उसके बारे में तथ्य जाने। 
  • यह राय अक्सर अधूरी जानकारी या गलत धारणाओं पर आधारित होती है।

3. रूढ़िबद्ध धारणाएँ

  • रूढ़िबद्ध धारणाएँ वे सामान्य विचार या धारणाएँ होती हैं, जो किसी विशेष समूह के बारे में लोगों के मन में बनी होती हैं। 
  • ये धारणाएँ अक्सर सामान्यीकरण होती हैं, जिनमें किसी समूह के सभी लोगों को एक जैसा माना जाता है, जैसे कि "महिलाएँ कमजोर होती हैं" या "युवक गैर-जिम्मेदार होते हैं।"


प्रश्न - सामाजिक बहिष्कार किसे कहते है?

उत्तर -

  • वह तौर-तरीके जिनके द्वारा व्यक्ति या समूह को समाज में पूरी तरह घुलने-मिलने से रोका जाता है ।
  • यह उन सभी कारकों पर ध्यान दिलाता है जो व्यक्ति या समूह को उन अवसरों से वंचित करते हैं जो अधिकांश जनसंख्या के लिए खुले होते हैं।



प्रश्न - अस्पृश्यता क्या है?

उत्तर -

  • वर्ण व्यवस्था में ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र व्यवस्था थी 
  • जाति व्यवस्था का अत्यंत घृणित एवं दूषित पहलू है वे समूह जिनको इस जातिगत अधिक्रम मे शामिल नहीं किया गया जिनके साथ बहुत अन्याय किया गया था  जाति व्यवस्था में कर्मकाण्डीय दृष्टिकोण के आधार पर कुछ जातिओं को पवित्र और अपवित्र माना जाता था
  • अपवित्र मानी जाने वाली जातियों के जरा छू जाने से ही अन्य सभी जातियों के सदस्य अत्यंत अशुद्ध हो जाते हैं, जिसके कारण अछूत कहे जाने वाले व्यक्ति को तो अत्यधिक कठोर दंड भुगतना पड़ता है उच्च जाति का जो व्यक्ति छुआ गया है उसे भी फिर से शुद्ध होने के लिए कई शुद्धीकरण क्रियाएँ करनी होती हैं।



प्रश्न - जाति व आर्थिक असमानता के बीच क्या सम्बन्ध है?

उत्तर -

  • ऊँची जातियों को अधिक सामाजिक और आर्थिक लाभ मिले हैं। नीची जातियों को समाज में निम्नतर कार्यों और कम आय वाले कामों तक सीमित रखा गया।
  • जाति के आधार पर लोगों को शिक्षा, नौकरी, और संसाधनों तक समान अवसर नहीं मिलते थे। 
  • ऊँची जातियों को बेहतर शिक्षा और रोजगार के अवसर मिलते थे, जबकि नीची जातियों को आर्थिक रूप से कमजोर बनाए रखा गया।
  • भूमि और संपत्ति ऊँची जातियों के पास केंद्रित रही है, जिससे वे आर्थिक रूप से मजबूत रहे। नीची जातियों के पास बहुत कम या कोई संपत्ति नहीं होती थी, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर रही।
  • जातिगत भेदभाव के कारण नीची जातियों के लोगों को उच्च वेतन वाली नौकरियों और व्यवसायों में प्रवेश करना कठिन होता है, जिससे उनकी आर्थिक असमानता और बढ़ जाती है।


प्रश्न - दलित किसे कहते हैं?

उत्तर -

  • दलित का अर्थ होता है पैरों से कुचला हुआ
  • यह जाति व्यवस्था द्वारा शोषित लोगों का द्योतक है 
  • यह शब्द न तो डॉक्टर अंबेडकर द्वारा गढ़ा गया था न ही अक्सर उनके द्वारा इसका प्रयोग किया गया था
  • पर इसमें उनका चिंतन तथा दर्शन एवं उनके उस आंदोलन का मूल भाव निश्चित रूप से दिखाई देता है 
  • जो उनके नेतृत्व में दलितों को सशक्त बनाने के लिए चलाया गया था।

 

प्रश्न - राज्य द्वारा अनुसूचित जातियों व जनजातियों के प्रति भेदभाव मिटाने के लिए गए कदम कौन कौन से है ?

उत्तर -

  • अनुसूचित जाति व जनजातियों के लिए राज्य व केन्द्रीय विधान-मंडलों में आरक्षण
  • सरकारी नौकरी में आरक्षण
  • अस्पृश्यता (अपराध) 1955
  • 1850 का जातीय निर्योग्यता निवारण अधिनियम
  • अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति अस्पृश्यता उन्मूलन कानून-1989
  • उच्च शैक्षिक संस्थानों के 93वें संशोधन के अंतर्गत अन्य पिछड़े वर्ग को आरक्षण देना।
  • अनुच्छेद 17 संविधान अस्पृश्यता का अंत व दंड का प्रावधान



प्रश्न - जातीय विषमता को दूर करने के लिए गैर राजकीय संगठनों की क्या भूमिका रही है?

उत्तर -

  • जातीय विषमता को दूर करने में गैर-राजकीय संगठनों (NGOs) की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है। 
  • ये संगठन समाज के हाशिए पर मौजूद जातियों और समुदायों को सशक्त बनाने के लिए विभिन्न तरीकों से काम करते हैं।
  • स्वाधीनता पूर्व ज्योतिबाफुले, पेरियार, सर सैयद अहमद खान, डॉ. अम्बेडकर, महात्मा गांधी, राजाराम मोहन राय आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
  • उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी, कर्नाटक में दलित संघर्ष समिति
  • विभिन्न भाषाओं के साहित्य में योगदान
  • समाज सुधार कार्यक्रम  

1. सत्यशोधक समाज जोतिबा फुले द्वारा

2. ब्रह्म समाज राजा राममोहन राय

3. आर्य समाज दयानन्द सरस्वती



प्रश्न - अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) कौन है? या O.B.C को परिभाषित करने के मानदंड क्या है?

उत्तर -

  • अन्य पिछड़ा वर्ग सामाजिक, शैक्षिक रूप से पिछड़ी जातियों के वर्ग, को अन्य पिछड़ा वर्ग कहा जाता है इसमें सेवा करने वाली शिल्पी जातियों के लोग शामिल है।
  • इन वर्गों की प्रमुख विशेषता संस्कृति, शिक्षा, और सामाजिक दृष्टि से इनका पिछड़ापन है। 
  • ये वर्ग न तो उच्च जाति में आते हैं न ही निम्न जाति में आते हैं।
  • काका कालेलकर की अध्यक्षता में सबसे पहले" पिछड़े वर्ग आयोग" का गठन किया था। 
  • आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1953 में सरकार को सौंप दी थी।
  • 1979 में दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग (बी. पी. मंडल आयोग) गठित किया गया।
  • आज अन्य पिछड़े वर्गों के बीच भारी विषमता देखने को मिलती है। 
  • एक ओर तो OBC का वह वर्ग है जो धनी किसान है तो दूसरी ओर गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहा ।




प्रश्न -'आदिवासी' से आप क्या समझते है?

उत्तर -

  • आदिवासी शब्द का अर्थ होता है मूल निवासी
  • आदिवासी' शब्द भी राजनीतिक जागरूकता और अधिकारों की लड़ाई का सूचक बन गया हैं
  • औपनिवेशिक सरकार द्वारा की जा रही घुसपैठ के विरुद्ध संघर्ष के अंतर्गत 1930 के दशक में गढ़ा गया था।
  • आदिवासी होने का मतलब विकास परियोजनाओं' के नाम पर वनों का छिन जाना



प्रश्न - अक्षमता व गरीबी में क्या सम्बन्ध है?

उत्तर -

  • सरकारी सहायता और सामाजिक सुरक्षा का अभाव
  • सामाजिक बहिष्कार
  • आर्थिक अवसरों की कमी
  • शिक्षा में बाधाएँ
  • स्वास्थ्य और देखभाल का बोझ



प्रश्न - सामाजिक स्तरीकरण की कुछ विशेषताए बताइए।

उत्तर -

  • वह व्यवस्था जो एक समाज में लोगों का वर्गीकरण करते हुए एक अधिक्रमित संरचना में उन्हें श्रेणीबद्ध करती है
  • इस व्यवस्था को सामाजिक स्तरीकरण कहा जाता है  
  • लोगों की पहचान एवं अनुभव, उनके दूसरों से संबंध तथा साथ ही संसाधनों एवं अवसरों तक उनकी पहुँच को आकार देता है।

सामाजिक स्तरीकरण

1. समाज की एक विशिष्टता है।

2. पीढ़ी-दर-पीढ़ी बना रहता है।

3. विचारधारा द्वारा समर्थन मिलता है




प्रश्न - नारी से सम्बन्धित कौन-कौन से मुद्दे हैं?

उत्तर -

  • लिंग भेदभाव
  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • यातना और हिंसा
  • आर्थिक असमानता
  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व
  • सामाजिक मान्यताएँ



प्रश्न - जाति व्यवस्था एक भेदभावपूर्ण व्यवस्था है। वर्णन करें?

उत्तर -

  • जाति एक बहुत असमान संस्था थी 
  • जहां कुछ जातियों को तो इस व्यवस्था से लाभ मिल रहा था अन्य को इसकी वजह से आधीनता वाला जीवन व्यतीत करना पड़ता था 
  • जाति जन्म द्वारा कठोरता से निर्धारित हो गई उसके बाद किसी व्यक्ति के जीवन स्थिति बदल पाना असंभव था 
  • चाहे उच्च जाति के लोग उच्च स्तर के लायक हो या न हो
  • जाति जन्म से ही निर्धारित होती है 
  • पिता की जाति में ही जन्म होता है 
  • यह चुनाव का विषय नहीं होती है 
  • एक जाती में जन्म लेने वाला व्यक्ति उस जाति से जुड़े व्यवसाय को ही अपना सकता था 
  • जाति में खाने और कहना बांटने के बारे में भी नियम शामिल होते है 
  • इस व्यवस्था में एक अधिक्रमित स्थिति देखने को मिलती है 
  • यह एक खंडात्मक संगठन के रूप में कार्य करती है 



प्रश्न -  स्त्री व पुरूष में असमानता सामाजिक है, न कि प्राकृतिक, उदाहरण सहित व्याख्या करें।

उत्तर -

  • स्त्री-पुरुष में असमानता सामाजिक है, न कि प्राकृतिक यदि स्त्री-पुरुष प्राकृतिक आधार पर असमान है तो क्यों कुछ महिलाएँ समाज में शीर्ष स्थान पर पहुँच जाती है। 
  • दुनिया में ऐसे भी समाज है जहाँ परिवारों में महिलाओं की सत्ता व्याप्त है जैसे केरल के 'नायर' परिवारों में और मेघालय की 'खासी' जनजाति।
  • यदि महिला जैविक या शारीरिक आधार पर अयोग्य समझी जाती तो कैसे वह सफलतापूर्वक कृषि और व्यापार को चला पाती। 
  • यह कहना न्याय संगत होगा कि स्त्री-पुरुष के बीच असमानता के निर्धारण में जैविक/प्राकृतिक या शारीरिक तत्वों की कोई भूमिका नहीं है।



प्रश्न -  अक्षमता के प्रति आम व्यक्ति के क्या विचार है? विस्तार से लिखिए।

उत्तर -

  • अन्यथा सक्षम  लोग केवल इसलिए 'अक्षम' नहीं होते कि वे शारीरिक या मानसिक रूप से 'बाधित' होते हैं, 
  • लेकिन इसलिए भी अक्षम होते हैं कि समाज कुछ इस रीति से बना है कि वह उनकी जरूरतों को पूरा नहीं करता। 
  • अन्यथा सक्षम व्यक्तियों के अधिकारों को अभी हाल ही में मान्यता मिली है।
  • भारत में निर्योग्य, बाधित, अक्षम, अपंग, 'अंधा' और 'बहरा' जैसे विशेषणों का प्रयोग लगभग एक ही भाव को दर्शाने के लिए किया जाता है। 
  • अक्सर किसी व्यक्ति का अपमान करने के लिए उस पर इन शब्दों की बौछार कर दी जाती है।
  • ऐसी सोच का मूल कारण उस सांस्कृतिक संकल्पना से है जो दोषपूर्ण शरीर को दुर्भाग्य का परिणाम मानती है।



प्रश्न - स्त्रियों को समानता का अधिकार देने के लिए 1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कराची अधिवेशन द्वारा किए गए प्रयासों की विवचना कीजिए।

उत्तर -

घोषणा

  • सभी नागरिक कानून के समक्ष एक समान
  • मताधिकार का प्रयोग
  • प्रतिनिधित्व करने और सार्वजनिक पद धारण करने का अधिकार
  • किसी भी नागरिक को उसकी पृष्ठभूमि के आधार पर   सार्वजनिक रोज़गार के संबंध में निर्योग्य नहीं ठहराया जाएगा।



 

प्रश्न - 'स्त्री-पुरुष तुलना' नामक पुस्तक किसके द्वारा लिखी गई? यह पुस्तक क्या दर्शाती है?

उत्तर -

  • 'स्त्री-पुरुष तुलना' ताराबाई शिंदे द्वारा लिखी गई एक निबंध-आधारित पुस्तक है, जो 1882 में प्रकाशित हुई थी। 
  • यह पुस्तक भारतीय नारीवाद का शुरुआती प्रतीक मानी जाती है। 
  • इसमें ताराबाई ने पुरुषों और महिलाओं के बीच समाज में होने वाले भेदभाव पर सवाल उठाया है।
  • इसमें ताराबाई ने पितृसत्तात्मक समाज की धारणाओं और रीति-रिवाजों को चुनौती दी है, जो पुरुषों को विशेषाधिकार देते हैं और महिलाओं पर कठोर सामाजिक बंधन थोपते हैं।
  • वह एक विधवा और विधुर के बीच के भेदभाव को दिखाती हैं। 
  • विधुर को आसानी से पुनर्विवाह करने की छूट मिलती है, जबकि विधवा को समाज में कठोर नियमों और पीड़ाओं का सामना करना पड़ता है।



 

प्रश्न - 'सुलताना ड्रोम्स' नामक पुस्तक किसके द्वारा लिखी गई? इस पुस्तक को लिखने के पीछे लेखक की मंशा क्या है?

उत्तर -

  • 'सुलताना ड्रीम्स' पुस्तक का लेखन रोकैया सखावत हुसैन द्वारा किया गया है। 
  • यह एक काल्पनिक लघु कहानी है, जिसे पहली बार 1905 में प्रकाशित किया गया था।

मुख्य मंशा

  • महिलाओं को अपनी क्षमताओं और सामर्थ्य को पहचानने के लिए प्रेरित करना।
  • समाज में लैंगिक समानता को स्थापित करने की दिशा में एक विचारशील कदम रखना।
  • पितृसत्ता की सीमाओं को उजागर करना और महिलाओं के अधिकारों की वकालत करना।



प्रश्न -उपनिवेश काल के दौरान नारी सम्बन्धित मुद्दे समाज सुधार आंदोलनों ने किस प्रकार उठाए?

उत्तर -

  • राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा तथा बाल विवाह का विरोध किया तथा विधवा विवाह का समर्थन किया।
  • ज्योतिबा फूले ने जातिय व लैंगिक अत्याचारों के विरोध में आन्दोलन किया।
  • सर सैयद अहमद खान ने इस्लाम में सामाजिक सुधारों के लिए लड़कियों के स्कूल तथा कॉलेज खोले।
  • दयानंद सरस्वती ने नारियों की शिक्षा में योगदान दिया।
  • रानाडे ने विधवा विवाह पुनर्विवाह पर जोर दिया।
  • ताराबाई शिंदे ने "स्त्री-पुरूष तुलना" लिखी जिसमें गलत तरीके से पुरूषों को ऊँचा दर्जा देने की बात कही गई।
  • बेगम रोकेया सखावत हुसैन ने 'सुल्तानाज ड्रीम' नामक किताब लिखी जिसमें हर लिंग को बराबर अधिकार देने पर चर्चा की गई है।
  • 1931 में कराची में भारतीय कांग्रेस द्वारा एक अध्यादेश जारी करके स्त्रियों को बराबरी का हक देने पर बल दिया गया। सार्वजनिक रोजगार, शक्ति या सम्मान के संबंध में निर्योग्य नहीं ठहराया जाएगा।


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