प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी Class 9 Social Science Geography Chapter 5 Natural Vegetation And Wildlife praakrtik vanaspati tatha vanya praanee
0HIMANSHUसितंबर 24, 2024
भारत एक विशाल देश है।
हमारा देश भारत विश्व के मुख्य 12 जैव विविधता बाले देशों में से एक है।
लगभग 47,000 विभिन्न जातियों के पौधे पाए जाने के कारण यह देश विश्व में दसवें स्थान पर और एशिया के देशों में चौथे स्थान पर है।
भारत में लगभग 15,000 फूलों के पौधे हैं जो कि विश्व में फूलों के पौधों का 6 प्रतिशत है।
देश में बहुत से बिना फूलों के पौधे हैं जैसे कि फर्न शैवाल (एलेगी) तथा कवक (फंजाई) भी पाए जाते हैं।
भारत में लगभग 90,000 जातियों के जानवर तथा, विभिन्न प्रकार की मछलियाँ, ताजे तथा समुद्री पानी की पाई जाती है।
प्राकृतिक वनस्पति का अर्थ है कि वनस्पति को यह भाग, जो कि मनुष्य की सहायता के बिना अपने आप पैदा होता है और लंबे समय तक उस पर मानवी प्रभाव नहीं पड़ता। इसे अक्षत वनस्पति कहते हैं।
अतः विभिन्न प्रकार की कृषिकृत फसलें फल और बागान, वनस्पति का भाग तो हैं परंतु प्राकृतिक बनस्पति नहीं है।
वह वनस्पति जो कि मूलरूप से भारतीय है उसे 'देशज' कहते हैं लेकिन जो पौधे भारत के बाहर से आए हैं उन्हें 'विदेशज पौधे कहते हैं।
वनस्पति-जगत शब्द का अर्थ किसी विशेष क्षेत्र में, किसी समय में पौधों की उत्पत्ति से है।
प्राणि जगत जानवरों के विषय में बताता है।
वनस्पति के प्रकार
उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन
उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन
उष्ण कटिबंधीय कंटीले वन तथा झाड़ियाँ
पर्वतीय वन
मैंग्रोव वन
उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन
क्षेत्र -: ये वन पश्चिमी घाटों के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूहों, असम के ऊपरी भागों तथा तमिलनाडु के तट तक सीमित हैं।
ये उन क्षेत्रों में भली-भाँति विकसित हैं जहाँ 200 से०मी० से अधिक वर्षा के साथ एक थोड़े समय के लिए शुष्क ऋतु पाई जाती है।
इन वनों में वृक्ष 60 मी० या इससे अधिक ऊँचाई तक पहुँचते हैं।
चूँकि ये क्षेत्र वर्ष भर गर्म तथा आर्द्र रहते हैं अतः यहाँ हर प्रकार की वनस्पति - वृक्ष, झाड़ियाँ व लताएँ उगती हैं और वनों में इनकी विभिन्न ऊँचाईयों से कई स्तर देखने को मिलते हैं।
वृक्षों में पतझड़ होने का कोई निश्चित समय नहीं होता।
यह वन साल भर हरे-भरे लगते हैं।
इन वनों में पाए जाने वाले व्यापारिक महत्त्व के कुछ वृक्ष आबनूस (एबोनी), महोगनी, रोजवुड, रबड़ और सिंकोना हैं।
जानवर:- हाथी, बंदर, लैमूर और हिरण ,एक सींग वाले गैंडे देखने को मिलते हैं।
इन जंगलों में कई प्रकार के पक्षी, चमगादड़ तथा कई रेंगने वाले जीव भी पाए जाते हैं।
उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन
ये भारत में सबसे बड़े क्षेत्र में फैले हुए वन हैं।
इन्हें मानसूनी वन भी कहते हैं और ये उन क्षेत्रों में विस्तृत हैं जहाँ 70 सेमी से 200 सेमी तक वर्षा होती है।
इस प्रकार के वनों में वृक्ष शुष्क ग्रीष्म ऋतु में छः से आठ सप्ताह के लिए अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं।
जल की उपलब्धि के आधार पर इन वनों को आर्द्र तथा शुष्क पर्णपाती वनों में विभाजित किया जाता है।
इनमें से आर्द्र या नम पर्णपाती वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ 100 सेमी 200 सेमी तक वर्षा होती है।
अतः ऐसे वन देश के पूर्वी भागों, उत्तरी-पूर्वी राज्यों, हिमालय के गिरिपद प्रदेशों, झारखंड, पश्चिमी उड़ीसा, छत्तीसगढ़ तथा पश्चिमी घाटों के पूर्वी ढालों में पाए जाते हैं।
सागोन इन वनों की सबसे प्रमुख प्रजाति है।
बाँस, साल, शीशम,
चंदन, रवैर, कुसुम, अर्जुन तथा शहतूत के वृक्ष व्यापारिक महत्त्व वाली प्रजातियाँ हैं।
शुष्क पर्णपाती वन
उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ वर्षा 70 से०मी० से 100 सेमी के बीच होती है।
ये वन प्रायद्वीपीय पठार के ऐसे वर्षा वाले क्षेत्रों, उत्तर प्रदेश तथा बिहार के मैदानों में पाए जाते हैं।
विस्तृत क्षेत्रों में प्रायः सागोन, साल, पीपल तथा नीम के वृक्ष उगते हैं।
इन क्षेत्रों के बहुत बड़े भाग कृषि कार्य में प्रयोग हेतु साफ कर लिए गए हैं और कुछ भागों में पशुचारण भी होता है।
इन जंगलों में पाए जाने वाले जानवर प्रायः सिंह, शेर सूअर, हिरण और हाथी हैं।
विविध प्रकार के पक्षी, छिपकली. साँप और कछुए भी यहाँ पाए जाते हैं।
कंटीले वन तथा झाड़ियाँ
जिन क्षेत्रों में 70 सेमी से कम वर्षा होती वहाँ प्राकृतिक वनस्पति में कंटीले वन तथा झाड़ियाँ पाई जाती हैं।
इस प्रकार की वनस्पति देश के उत्तरी-पश्चिमी भागों में पाई जाती है जिनमें गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा हरियाणा के अर्थ शुष्क क्षेत्र सम्मिलित हैं।
अकासिया, खजूर (पाम), यूफोरबिया तथा नागफनी (कैक्टाई) यहाँ की मुख्य पादप प्रजातियाँ हैं।
इन वनों के वृक्ष बिखरे हुए होते हैं।
इनकी जड़ें लंबी तथा जल की तलाश में चारों ओर फैली होती हैं।
पत्तियाँ प्रायः छोटी होती हैं जिनसे वाष्पीकरण कम से कम हो सके।
शुष्क भागों में झाड़ियाँ और कंटीले पादप पाए जाते हैं।
इन जंगलों में प्रायः चूहे. खरगोश, लोमड़ी, भेड़िाए, शेर, सिंह, जंगली गधा, घोड़े तथा ऊँट पाए जाते हैं।
पर्वतीय वन
पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान की कमी तथा ऊँचाई के साथ-साथ प्राकृतिक वनस्पति में भी अंतर दिखाई देता है।
वनस्पति में जिस प्रकार का अंतर हम उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों से टुंड्रा की ओर देखते हैं उसी प्रकार का अंतर पर्वतीय भागों में ऊँचाई के साथ-साथ देखने को मिलता है।
1,000 मी से 2,000 मी तक की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में आर्द्र शीतोष्ण कटिबंधीय वन पाए जाते हैं।
इनमें चौड़ी पत्ती वाले ओक तथा चेस्टनट जैसे वृक्षों की प्रधानता होती है।
1,500 से 3,000 मी की ऊँचाई के बीच शंकुधारी वृक्ष जैसे चीड़ (पाइन), देवदार, सिल्वर-फर, स्पूस, सीडर आदि पाए जाते हैं।
ये वन प्रायः हिमालय की दक्षिणी ढलानों, दक्षिण और उत्तर-पूर्व भारत के अधिक ऊँचाई वाले भागों में पाए जाते हैं।
अधिक ऊँचाई पर प्रायः शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदान पाए जाते हैं।
प्रायः 3,600 मी० से अधिक ऊँचाई पर शीतोष्ण कटिबंधीय वनों तथा घास के मैदानों का स्थान अल्पाइन बनस्पति ले लेती है।
सिल्वर-फर, जूनिपर, पाइन व बर्च इन वनों के मुख्य वृक्ष हैं।
जैसे-जैसे हिमरेखा के निकट पहुँचते हैं इन वृक्षों के आकार छोटे होते जाते हैं।
अंततः झाड़ियों के रूप के बाद वे अल्पाइन घास के मैदानों में विलीन हो जाते हैं।
इनका उपयोग गुज्जर तथा बुक्करवाल जैसी घुमक्कड़ जातियों द्वारा पशुचारण के लिए किया जाता है।
अधिक ऊँचाई वाले भागों में माँस, लिचन घास. टुंड्रा वनस्पति का एक भाग है।
इन वनों में प्रायः कश्मीरी महामृग, चितरा हिरण, जंगली भेड़, खरगोश, तिब्बतीय बारहसिंघा, याक, हिम तेंदुआ, गिलहरी, रोछ, आइयैक्स, कहीं-कहीं लाल पांडा, घने बालों वाली भेड , तथा बकरियां पाई जाती हैं।
मैंग्रोव वन
यह वनस्पति तटवतीय क्षेत्रों की सबसे महत्त्वपूर्ण बनस्पति है।
मिट्टी और बालू इन तटों पर एकत्रित हो जाती है।
भने मैंग्रोवएक प्रकार की वनस्पति है जिसमें पौधों की जड़ें पानी में डूबी रहती हैं।
गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टा भाग में यह वनस्पति मिलती है।
गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा में सुंदरी वृक्ष पाए जाते हैं जिनसे मजबूत लकड़ी प्राप्त होती है।
नारियल, ताड़, क्योड़ा वं ऐंगार के वृक्ष भी इन भागों में पाए जाते हैं।
इस क्षेत्र का रॉयल बंगाल टाइगर प्रसिद्ध जानवर है।
इसके अतिरिक्त कछुए, मगरमच्छ, घड़ियाल एवं कई प्रकार के सौंप भी इन जंगलों में मिलते हैं।
वन्य प्राणी
वनस्पति की भाँति ही. भारत विभिन्न प्रकार की प्राणी संपत्ति में भी धनी है।
यहाँ जीवों की लगभग 90,000 प्रजातियाँ मिलती हैं।
देश में लगभग 2,000 से अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
यह कुल विश्व का 13 प्रतिशत है।
यहाँ मछलियों की 2,546 प्रजातियाँ हैं जो विश्व की लगभग 12 प्रतिशत है।
भारत में विश्व के 5 से 8 प्रतिशत तक उभयचरी, सरीसृप तथा स्तनधारी जानवर भी पाए जाते हैं।
स्तनधारी जानवरों में हाथी सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है।
ये असम कर्नाटक और केरल के उष्ण तथा आर्य वनों में पाए जाते हैं।
एक सींग वाले गैंडे अन्य जानवर हैं जो पश्चिमी बंगाल तथा असम के दलदली क्षेत्रों में रहते हैं।
कच्छ के रन तथा थार मरुस्थल में क्रमशः जंगली गधे तथा ऊँट रहते हैं।
भारतीय भैंसा, नील गाय, चौसिंथा, छोटा मृग (गैजल) तथा विभिन्न प्रजातियों वाले हिरण आदि कुछ अन्य जानवर हैं जो भारत में पाए जाते हैं।
यहाँ बंदरों की भी अनेक प्रजातियों पाई जाती हैं।
भारत जीव सुरक्षा अधिनियम सन 1972 में लागू किया गया था
भारत विश्व का अकेला देश है जहाँ शेर तथा बाघ दोनों पाए जाते हैं।
भारतीय शेरों का प्राकृतिक वास स्थल गुजरात में गिर जंगल है।
बाघ मध्य प्रदेश तथा झारखंड के वनों, पश्चिमी बंगाल के सुंदरवन तथा हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
बिल्ली जाति के सदस्यों में तेंदुआ भी है। यह शिकारी जानवरों में मुख्य है।
हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाले जानवर अत्यधिक ठंड में भी जीवित रहते हैं।
लद्दाख की बर्फीली ऊँचाइयों में याक पाए जाते हैं जो गुच्छेदार सींगो बाला बैल जैसा जीव है जिसका भार लगभग एक टन होता है।
तिब्बतीय बारहसिंघा, भारल (नीली भेड़), जंगली भेड़ तथा कियांग (तिब्बती जंगली गधे) भी यहाँ पाए जाते हैं।
कहीं-कहीं लाल पांडा भी कुछ भागों में मिलते हैं।
भारत में अनेक रंग-बिरंगे पक्षी पाए जाते हैं। मोर, बत्तख, तोता, मैना, सारस तथा कबूतर आदि कुछ पक्षी प्रजातियाँ हैं जो देश के वनों तथा आर्द्र क्षेत्रों में रहती हैं।
जानवरों की उपयोगिता
जानवर हमें बोझा ढोने, कृषि कार्य तथा यातायात के साधन के रूप में मदद करते हैं।
इनसे माँस, एवं अंडे भी प्राप्त होते हैं।
मछली से पौष्टिक आहार मिलता है।
बहुत से कीड़े-मकौड़े फसलों, फलों और वृक्षों के परागण में मदद करते हैं और हानिकारक कीड़ों पर जैविक नियंत्रण रखते हैं।
प्रत्येक प्रजाति का पारिस्थितिक तंत्र में योगदान है।
अतः उनका संरक्षण अनिवार्य है।
जीव तथा जंतुओं का संरक्षण
मनुष्यों द्वारा पादपों और जीवों के अत्यधिक उपयोग के कारण पारिस्थतिक तंत्र असंतुलित हो गया है।
लगभग 1,300 पादप प्रजातियाँ संकट में हैं तथा 20 प्रजातियाँ विनष्ट हो चुकी हैं।
काफी वन्य जीवन प्रजातियाँ भी संकट में हैं और कुछ विनष्ट हो चुकी हैं।
पारिस्थितिक तंत्र के असंतुलन का मुख्य कारण लालची व्यापारियों का अपने व्यवसाय के लिए अत्यधिक शिकार करना है।
रासायनिक और औद्योगिक अवशिष्ट तथा तेजाबी जमाव के कारण प्रदूषण, विदेशी प्रजातियों का प्रवेश, कृषि तथा निवास के लिए वनों की अंधाधुन कटाई पारिस्थितिक तंत्र के असंतुलन का कारण हैं।
अपने देश की पादप और जीव संपत्ति की सुरक्षा के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं:
देश में अठारह जीव मंडल निचय (आरक्षित क्षेत्र) स्थापित किए गए हैं।
सन् 1992 से सरकार द्वारा पादप उद्यानों को वित्तीय तथा तकनीकी सहायता देने की योजना बनाई है।
शेर संरक्षण, गैंडा संरक्षण, भारतीय भैसा संरक्षण तथा पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन के लिए कई योजनाएँ बनाई गई हैं।
106 नेशनल पार्क, 573 वन्य प्राणी अभयवन और कई चिड़ियाघर राष्ट्र की पादप और जीव संपत्ति रक्षा के लिए बनाए गए हैं।
अठारह जीव मंडल निचय (आरक्षित क्षेत्र)
सुंदरवन
सिमलीपाल
कच्छ
मन्नार की खाड़ी
दिहांग दिबांग
ठंडा रेगिस्तान
नीलगिरी
डिनु साइकवोवा
शेष अचलम
नंदादेवी
अगस्त्यमलाई
पन्ना
नाकरेक
कंचनजंगा
ग्रेट निकोबार
पंचमढ़ी
मानस
अचनकमर-अमरकंटक
भारत प्राचीन समय से अपने मसालों तथा जड़ी-बूटियों के लिए विख्यात रहा है।
आयुर्वेद में लगभग 2,000 पादपों का वर्णन है और कम से कम 500 तो निरंतर प्रयोग में आते रहे हैं।
'विश्व संरक्षण संघ' ने लाल सूची के अंतर्गत 352 पादपों की गणना की है जिसमें से 52 पादप अति संकटग्रस्त हैं और 49 पादपों को विनष्ट होने का खतरा है।
भारत में प्रायः औषधि के लिए प्रयोग होने वाले कुछ निम्नलिखित पादप हैं:
सर्पगंधा: यह रक्तचाप के निदान के लिए प्रयोग होता है और केवल भारत में ही पाया जाता है।
जामुन: पके हुए फल से सिरका बनाया जाता है जो कि वायुसारी और मूत्रवर्धक है और इसमें पाचन शक्ति के भी गुण हैं। बीज का बनाया हुआ पाउंडर मधुमेह (Diabetes) रोग में सहायता करता है।
अर्जुन: ताजे पत्तों का निकाला हुआ रस कान के दर्द के इलाज में सहायता करता है। यह रक्तचाप की नियमिता के लिए भी लाभदायक है।।
बबूल: इसके पत्ते आँख की फुंसी के लिए लाभदायक हैं। इससे प्राप्त गोंद का प्रयोग शारीरिक शक्ति की वृद्धि के लिए होता है।
नीम: जैव और जीवाणु प्रतिरोधक है।
तुलसी पादप: जुकाम और खाँसी की दवा में इसका प्रयोग होता है।
कचनार: फोड़ा (अल्सर) व दमा रोगों के लिए प्रयोग होता है। इस पौधे की जड़ और कली पाचन शक्ति में सहायता करती है।