अपरदन के विभिन्न प्रक्रमों द्वारा निर्मित विशिष्ट स्थलरुप
1. नदी
- V आकार की घाटी
- जलोढ़ सांखू
- जलोढ़ पंख
- नदी विसर्प
- गोखुर झील
- तटबंध
- बाढ़ का मैदान
2. भूमिगत जल
- लेपीज
- घेलरंध्र
- कन्दरा
- अंधी घाटी
- तेरा रोसा
- हम्स
3. सागरीय जल
- तटीय कगार
- तटीय कन्दरा
- स्टैक
- पुलिन
- रोधिका
- संयोजक रोधिका
- तट रेखा
4. हिमानी
- U आकार की घाटी
- लटकती घाटी
- एरिट
- हिम गवर
- गिरिश्रृंग
- नुनाटक
- हिमोढ़
- भेड़ शिला
5. पवन
- वातगर्त
- छत्रक शैल
- ज्युमेन
- यारडांग
- गुम्बदाकार टीला
- बालुकास्तुप
- लोएस
- प्लाया
भू-आकृति (Landform)
- भू-आकृति छोटे से मध्यम आकार के स्थलखंड को कहते हैं।
- यह पृथ्वी के धरातल पर स्थित भौतिक स्वरूप है।
भूदृश्य (Landscape)
- कई भू-आकृतियाँ मिलकर एक व्यापक भूदृश्य का निर्माण करती हैं।
- भूदृश्य, भू-आकृतियों के समूह का एक बड़ा रूप होता है, जो भूवल (Geosphere) के विस्तृत भाग का प्रतिनिधित्व करता है।
- भू-आकृतियाँ विभिन्न भू-प्रक्रियाओं और कारकों जैसे- प्रवाहित जल, भूमिगत जल, वायु, हिमनद, और तरंगों के अपरदन और निक्षेपण के माध्यम से निर्मित होती हैं।
- भू-आकृतियाँ समय के साथ भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के प्रभाव से बदलती रहती हैं।
- प्रत्येक भू-आकृति का एक प्रारंभ होता है, और उसके बाद उसमें आकार, आकृति, और प्रकृति में बदलाव आता है।
- जलवायु में परिवर्तन भू-आकृतिक प्रक्रियाओं की गहनता को प्रभावित करता है।
- बायुराशियों का ऊर्ध्वाधर संचलन भू-आकृतियों के रूपांतरण का कारण बन सकता है।
प्रवाहित जल
- आद्र प्रदेशों में जहाँ अत्यधिक वर्षा होती है, सबसे महत्त्वपूर्ण भू-आकृतिक कारक है जो धरातल का निम्नीकरण करता है।
1. परत प्रवाह
- विस्तृत और संकीर्ण मार्गों पर बहने का तरीका है
2. रैखिक प्रवाह
- घाटियों में नदियों, सरिताओं के रूप में बहता है।
प्रवाहित जल की अवस्थाएं
1. युवावस्था
- नदियाँ उथली घाटियाँ बनाती हैं।
- बाढ़ के मैदान संकरे होते हैं या अनुपस्थित होते हैं।
- जल विभाजक चौड़े और समतल होते हैं, जिनमें दलदल और झीलें होती हैं।
- कठोर चट्टानों के अनावरित होने पर जलप्रपात और क्षिप्रिकाएँ बनती हैं।
2. प्रोढ़ावस्था
- नदियों में जल की मात्रा अधिक होती है, और सहायक नदियाँ मिलकर V-आकार की घाटियाँ बनाती हैं।
- मुख्य नदी विस्तृत बाढ़ के मैदान में बहती है।
- जलप्रपात और क्षिप्रिकाएँ लुप्त हो जाती हैं।
3. वृद्धावस्था
- नदियाँ विस्तृत बाढ़ के मैदानों में स्वतंत्र रूप से बहती हैं।
- विभाजक समतल होते हैं, जिनमें झील और दलदल पाये जाते हैं।
- स्थलरूप समुद्रतल के बराबर या थोड़े ऊँचे होते हैं।
अपरदनात्मक स्थालिकृतियाँ = घाटियाँ
- घाटियाँ तंग और छोटी सरिताओं से शुरू होती हैं।
- ये सरिताएँ लंबी और विस्तृत अवनालिकाओं में बदलती हैं, जो समय के साथ गहरी, चौड़ी, और लंबी होकर घाटियों का रूप लेती हैं।
घाटियों के प्रकार
V आकार की घाटी
- यह घाटी नदी की निरंतर कटाव की प्रक्रिया के कारण बनती हैं।
गार्ज
- एक गहरी, संकरी घाटी।
- दोनों पार्श्व तीव्र ढाल वाले होते हैं।
- तल और ऊपरी भाग की चौड़ाई समान होती है।
- कठोर चट्टानों में बनता है।
केनियन
- गॉर्ज की तरह गहरी घाटी।
- खड़ी ढाल वाले किनारे तल की अपेक्षा ऊपरी भाग अधिक चौड़ा होता है।
- अवसादी चट्टानों के क्षैतिज स्तरण में बनता है।
जलगर्तिका
- नदी तल में अपरदित छोटे चट्टानी टुकड़े वृत्ताकार घूमते हैं।
- इन गड्ढों का आकार समय के साथ बढ़ता जाता है, जिससे नदी घाटी गहरी होती जाती है।
अवनमित
- कुंड जल के गिरने और शिलाखंडों के वृत्ताकार घूमने से बने गहरे कुंड।
अधःकर्तित विसर्प
- ये नदियाँ के मोड़ जो नदी के तल में गहरे कटे हुए होते हैं।
- यह आमतौर पर कठिन चट्टानों में होता है।
- तल में गहरे कटे हुए मोड़ होते हैं, लेकिन नदी का ढाल आम तौर पर कम होता है।
गभीरीभूत विसर्प
- ये नदियाँ के मोड़ जो बाढ़ या डेल्टा मैदानों में होते हैं।
- ये आमतौर पर बाढ़ मैदानों और डेल्टा क्षेत्रों में होते हैं जहाँ नदी का ढाल बहुत कम होता है।
- यहाँ नदी के मोड़ ज्यादा वक्रित और विस्तृत होते हैं, और अधिक घिसावट की वजह से बनते हैं।
नदी वेदिकाएँ (River Terraces)
- ये पुरानी नदी घाटियों या बाढ़ मैदानों के तलों के चिह्न हैं।
- ये स्थल अपरदित होते हैं, जो नदी निक्षेपित बाढ़ मैदानों के लंबवत् अपरदन से बनते हैं।
- नदी वेदिकाएँ विभिन्न ऊँचाइयों पर हो सकती हैं।
युग्म वेदिकाएँ
- नदी के दोनों तरफ समान ऊँचाई वाली वेदिकाएँ।
जलोढ़ पंख
- जलोढ़ पंख तब बनते हैं जब नदी ऊँचाई वाले स्थानों से आकर धीमे ढाल वाले मैदानों में पहुँचती है और वहाँ मिट्टी और चट्टान जमा कर देती है।
- जब नदी पर्वतीय क्षेत्रों से बहती है, तो यह भारी मात्रा में मिट्टी और चट्टान ले आती है।
- जब नदी धीमी ढाल वाले मैदानों में आती है, तो यह अपना भार (मिट्टी और चट्टान) नहीं ले जा पाती।
- इसलिए, यह सामग्री शंकु के आकार में जमा हो जाती है, जिसे जलोढ़ पंख कहते हैं।
- जो नदियाँ जलोढ़ पंखों से बहती हैं, वे प्रायः अपने वास्तविक वाह-मार्ग को बहुत दूर तक नहीं बहतीं बल्कि अपना मार्ग बदल लेती हैं और कई शाखाओं में बँट जाती हैं जिन्हें जलवितरिकाएँ (Distributaries) कहते हैं।
डेल्टा
- डेल्टा वह क्षेत्र है जहाँ नदी अपने साथ लाए हुए मटेरियल को समुद्र में छोड़ देती है, जिससे एक शंकु जैसे आकार का क्षेत्र बन जाता है।
- इसमें मटेरियल का निक्षेप व्यवस्थित होता है, जिसमें तट पर मोटे कण और समुद्र में बारीक कण जमा होते हैं।
बाढ़-मैदान (Floodplains)
- बाढ़-मैदान वे क्षेत्र होते हैं जो नदी के किनारे पर बनते हैं जब बाढ़ के दौरान मटेरियल जमा होता है।
- जब नदी तीव्र ढाल से मंद ढाल में आती है, तो बड़े पदार्थ पहले ही तट पर जमा हो जाते हैं।
- ऊँचाई पर बने होते हैं और बाढ़ के पानी से प्रभावित नहीं होते।
- ये बाढ़ निक्षेप और सरिता निक्षेप से बनते हैं।
- पुराना नदी मार्ग भर जाता है और वहाँ स्थूल पदार्थ जमा होते हैं।
नदी विसर्प
- बाढ़-मैदान वे क्षेत्र होते हैं जो नदी के किनारे पर बनते हैं जब बाढ़ के दौरान मटेरियल जमा होता है।
- जब नदी तीव्र ढाल से मंद ढाल में आती है, तो बड़े पदार्थ पहले ही तट पर जमा हो जाते हैं।
- ऊँचाई पर बने होते हैं और बाढ़ के पानी से प्रभावित नहीं होते।
- ये बाढ़ निक्षेप और सरिता निक्षेप से बनते हैं।
- पुराना नदी मार्ग भर जाता है और वहाँ स्थूल पदार्थ जमा होते हैं।
भौम जल
- भौम जल वह पानी है जो चट्टानों के नीचे छिपा होता है और विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा चट्टानों के अपरदन और स्थलरूप निर्माण में भूमिका निभाता है।
कन्दरा/गुफा
- चट्टानों के बीच चूना पत्थर और डोलोमाइट चट्टानें होती है तथा पानी दरारों और संधियों से रिस कर चट्टानों के संस्तरण के साथ क्षैतिज दिशा में बहता है।
- चूना पत्थर की चट्टानों की घुलन क्रिया से रिक्त स्थान बनते हैं।
- इन रिक्त स्थानों से लंबे और तंग कंदराएँ बनती हैं।
हिमनद
- पृथ्वी पर परत के रूप में हिम प्रवाह या पर्वतीय ढालों से घाटियों में रैखिक प्रवाह के रूप में बहते हिम संहति को हिमनद कहते हैं।
- हिमनद प्रतिदिन कुछ सेंटीमीटर या इससे कम से लेकर कुछ मीटर तक प्रवाहित हो सकते हैं।
- हिमनद मुख्यतः गुरुत्वबल के कारण गतिमान होते हैं।
- हिमनदों से प्रबल अपरदन होता है जिसका कारण इसके अपने भार से उत्पन्न घर्षण है।
सर्क
- हिमानी के ऊपरी भाग में तल पर अपरदन होता है जिसमे खड़े किनारे वाले गर्त बन जाते है जिन्हे सर्क कहा जाता है
शृंग
- जब दो सर्क एक दूसरे से विपरीत दिशा में मिल जाते है तो नुकीली चोटी जैसी आकृति बन जाती है जिसे शृंग कहा जाता है
अरेत
- लगातार अपदरन से सर्क के दोनों तरफ की दीवारें तंग हो जाती हैं और इसका आकार कंघी या आरी के समान कटकों के रूप में हो जाता है, जिन्हें अरेत (तीक्ष्ण कटक) कहते हैं।
- इनका ऊपरी भाग नुकीला तथा बाहरी आकार टेढ़ा-मेढ़ा होता है।
- इन कटकों पर चढ़ना प्रायः असंभव होता है।
हिमनद घाटियाँ/गर्त
- U आकार की होती हैं।
- तल चौड़े और किनारे चिकने।
- ढाल तीव्र होती है।
- घाटी में मलबा बिखरा होता है या हिमोढ़ मलबा दलदली रूप में होता है।
- चट्टानी धरातल पर झीलें उभरी होती हैं ।
हिमोढ़ (Moraines) क्या है?
- हिमनद द्वारा छोड़े गए मलबे और मिट्टी के ढेर।
प्रकार:
1. अंतस्थ हिमोढ़
- हिमनद के आखिरी हिस्से में जमा मलबे के लंबे ढेर।
2. पार्रिवक हिमोढ़