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भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास notes in Hindi chapter 6 geography Book 1 Landforms and their development bhoo-aakrtiyaan tatha unaka vikaas 2024-25

भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास notes


 

अपरदन के विभिन्न प्रक्रमों द्वारा निर्मित विशिष्ट स्थलरुप 

1. नदी 

  • V आकार की घाटी 
  • जलोढ़ सांखू 
  • जलोढ़ पंख 
  • नदी विसर्प 
  • गोखुर झील 
  • तटबंध 
  • बाढ़ का मैदान 

2. भूमिगत जल  

  • लेपीज 
  • घेलरंध्र 
  • कन्दरा 
  • अंधी घाटी 
  • तेरा रोसा 
  • हम्स 

3. सागरीय जल  

  • तटीय कगार 
  • तटीय कन्दरा 
  • स्टैक 
  • पुलिन 
  • रोधिका 
  • संयोजक रोधिका 
  • तट रेखा 

4. हिमानी 

  • U आकार की घाटी 
  • लटकती घाटी 
  • एरिट 
  • हिम गवर 
  • गिरिश्रृंग 
  • नुनाटक 
  • हिमोढ़
  • भेड़ शिला  

5. पवन 

  • वातगर्त 
  • छत्रक शैल 
  • ज्युमेन 
  • यारडांग 
  • गुम्बदाकार टीला 
  • बालुकास्तुप 
  • लोएस 
  • प्लाया 


भू-आकृति (Landform) 

  • भू-आकृति छोटे से मध्यम आकार के स्थलखंड को कहते हैं। 
  • यह पृथ्वी के धरातल पर स्थित भौतिक स्वरूप है।

भूदृश्य (Landscape)

  • कई भू-आकृतियाँ मिलकर एक व्यापक भूदृश्य का निर्माण करती हैं।
  • भूदृश्य, भू-आकृतियों के समूह का एक बड़ा रूप होता है, जो भूवल (Geosphere) के विस्तृत भाग का प्रतिनिधित्व करता है।
  • भू-आकृतियाँ विभिन्न भू-प्रक्रियाओं और कारकों जैसे- प्रवाहित जल, भूमिगत जल, वायु, हिमनद, और तरंगों के अपरदन और निक्षेपण के माध्यम से निर्मित होती हैं।
  • भू-आकृतियाँ समय के साथ भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के प्रभाव से बदलती रहती हैं। 
  • प्रत्येक भू-आकृति का एक प्रारंभ होता है, और उसके बाद उसमें आकार, आकृति, और प्रकृति में बदलाव आता है।
  • जलवायु में परिवर्तन भू-आकृतिक प्रक्रियाओं की गहनता को प्रभावित करता है। 
  • बायुराशियों का ऊर्ध्वाधर संचलन भू-आकृतियों के रूपांतरण का कारण बन सकता है।


प्रवाहित जल 

  • आद्र प्रदेशों में जहाँ अत्यधिक वर्षा होती है, सबसे महत्त्वपूर्ण भू-आकृतिक कारक है जो धरातल का निम्नीकरण करता है।

1. परत प्रवाह 

  • विस्तृत और संकीर्ण मार्गों पर बहने का तरीका है

2. रैखिक प्रवाह

  • घाटियों में नदियों, सरिताओं के रूप में बहता है।


प्रवाहित जल की अवस्थाएं 

1. युवावस्था

  • नदियाँ उथली घाटियाँ बनाती हैं।
  • बाढ़ के मैदान संकरे होते हैं या अनुपस्थित होते हैं।
  • जल विभाजक चौड़े और समतल होते हैं, जिनमें दलदल और झीलें होती हैं।
  • कठोर चट्टानों के अनावरित होने पर जलप्रपात और क्षिप्रिकाएँ बनती हैं।

2. प्रोढ़ावस्था  

  • नदियों में जल की मात्रा अधिक होती है, और सहायक नदियाँ मिलकर V-आकार की घाटियाँ बनाती हैं।
  • मुख्य नदी विस्तृत बाढ़ के मैदान में बहती है।
  • जलप्रपात और क्षिप्रिकाएँ लुप्त हो जाती हैं।

3. वृद्धावस्था 

  • नदियाँ विस्तृत बाढ़ के मैदानों में स्वतंत्र रूप से बहती हैं।
  • विभाजक समतल होते हैं, जिनमें झील और दलदल पाये जाते हैं।
  • स्थलरूप समुद्रतल के बराबर या थोड़े ऊँचे होते हैं।


अपरदनात्मक स्थालिकृतियाँ = घाटियाँ  

  • घाटियाँ तंग और छोटी सरिताओं से शुरू होती हैं।
  • ये सरिताएँ लंबी और विस्तृत अवनालिकाओं में बदलती हैं, जो समय के साथ गहरी, चौड़ी, और लंबी होकर घाटियों का रूप लेती हैं।


घाटियों के प्रकार 

V आकार की घाटी 

  • यह  घाटी नदी की निरंतर कटाव की प्रक्रिया के कारण बनती हैं।

गार्ज 

  • एक गहरी, संकरी घाटी।
  • दोनों पार्श्व तीव्र ढाल वाले होते हैं।
  • तल और ऊपरी भाग की चौड़ाई समान होती है।
  • कठोर चट्टानों में बनता है।

केनियन

  • गॉर्ज की तरह गहरी घाटी।
  • खड़ी ढाल वाले किनारे तल की अपेक्षा ऊपरी भाग अधिक चौड़ा होता है।        
  • अवसादी चट्टानों के क्षैतिज स्तरण में बनता है।

जलगर्तिका 

  • नदी तल में अपरदित छोटे चट्टानी टुकड़े वृत्ताकार घूमते हैं।
  • इन गड्ढों का आकार समय के साथ बढ़ता जाता है, जिससे नदी घाटी गहरी होती जाती है।

अवनमित 

  • कुंड जल के गिरने और शिलाखंडों के वृत्ताकार घूमने से बने गहरे कुंड।

अधःकर्तित विसर्प

  • ये नदियाँ के मोड़ जो नदी के तल में गहरे कटे हुए होते हैं।
  • यह आमतौर पर कठिन चट्टानों में होता है।
  • तल में गहरे कटे हुए मोड़ होते हैं, लेकिन नदी का ढाल आम तौर पर कम होता है।

गभीरीभूत विसर्प

  • ये नदियाँ के मोड़ जो बाढ़ या डेल्टा मैदानों में होते हैं।
  • ये आमतौर पर बाढ़ मैदानों और डेल्टा क्षेत्रों में होते हैं जहाँ नदी का ढाल बहुत कम होता है।
  • यहाँ नदी के मोड़ ज्यादा वक्रित और विस्तृत होते हैं, और अधिक घिसावट की वजह से बनते हैं।

नदी वेदिकाएँ (River Terraces)

  • ये पुरानी नदी घाटियों या बाढ़ मैदानों के तलों के चिह्न हैं।
  • ये स्थल अपरदित होते हैं, जो नदी निक्षेपित बाढ़ मैदानों के लंबवत् अपरदन से बनते हैं।
  • नदी वेदिकाएँ विभिन्न ऊँचाइयों पर हो सकती हैं।

युग्म वेदिकाएँ

  • नदी के दोनों तरफ समान ऊँचाई वाली वेदिकाएँ।

जलोढ़ पंख 

  • जलोढ़ पंख तब बनते हैं जब नदी ऊँचाई वाले स्थानों से आकर धीमे ढाल वाले मैदानों में पहुँचती है और वहाँ मिट्टी और चट्टान जमा कर देती है।
  • जब नदी पर्वतीय क्षेत्रों से बहती है, तो यह भारी मात्रा में मिट्टी और चट्टान ले आती है।
  • जब नदी धीमी ढाल वाले मैदानों में आती है, तो यह अपना भार (मिट्टी और चट्टान) नहीं ले जा पाती।

  • इसलिए, यह सामग्री शंकु के आकार में जमा हो जाती है, जिसे जलोढ़ पंख कहते हैं।

  • जो नदियाँ जलोढ़ पंखों से बहती हैं, वे प्रायः अपने वास्तविक वाह-मार्ग को बहुत दूर तक नहीं बहतीं बल्कि अपना मार्ग बदल लेती हैं और कई शाखाओं में बँट जाती हैं जिन्हें जलवितरिकाएँ (Distributaries) कहते हैं।

डेल्टा

  • डेल्टा वह क्षेत्र है जहाँ नदी अपने साथ लाए हुए मटेरियल को समुद्र में छोड़ देती है, जिससे एक शंकु जैसे आकार का क्षेत्र बन जाता है।
  • इसमें मटेरियल का निक्षेप व्यवस्थित होता है, जिसमें तट पर मोटे कण और समुद्र में बारीक कण जमा होते हैं।

बाढ़-मैदान (Floodplains)

  • बाढ़-मैदान वे क्षेत्र होते हैं जो नदी के किनारे पर बनते हैं जब बाढ़ के दौरान मटेरियल जमा होता है।
  • जब नदी तीव्र ढाल से मंद ढाल में आती है, तो बड़े पदार्थ पहले ही तट पर जमा हो जाते हैं।
  • ऊँचाई पर बने होते हैं और बाढ़ के पानी से प्रभावित नहीं होते। 
  • ये बाढ़ निक्षेप और सरिता निक्षेप से बनते हैं।
  • पुराना नदी मार्ग भर जाता है और वहाँ स्थूल पदार्थ जमा होते हैं।

नदी विसर्प 

  • बाढ़-मैदान वे क्षेत्र होते हैं जो नदी के किनारे पर बनते हैं जब बाढ़ के दौरान मटेरियल जमा होता है।
  • जब नदी तीव्र ढाल से मंद ढाल में आती है, तो बड़े पदार्थ पहले ही तट पर जमा हो जाते हैं।
  • ऊँचाई पर बने होते हैं और बाढ़ के पानी से प्रभावित नहीं होते। 
  • ये बाढ़ निक्षेप और सरिता निक्षेप से बनते हैं।
  • पुराना नदी मार्ग भर जाता है और वहाँ स्थूल पदार्थ जमा होते हैं।


भौम जल 

  • भौम जल वह पानी है जो चट्टानों के नीचे छिपा होता है और विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा चट्टानों के अपरदन और स्थलरूप निर्माण में भूमिका निभाता है।


कन्दरा/गुफा  

  • चट्टानों के बीच चूना पत्थर और डोलोमाइट चट्टानें होती है तथा पानी दरारों और संधियों से रिस कर चट्टानों के संस्तरण के साथ क्षैतिज दिशा में बहता है।
  • चूना पत्थर की चट्टानों की घुलन क्रिया से रिक्त स्थान बनते हैं।
  • इन रिक्त स्थानों से लंबे और तंग कंदराएँ बनती हैं।

हिमनद

  • पृथ्वी पर परत के रूप में हिम प्रवाह या पर्वतीय ढालों से घाटियों में रैखिक प्रवाह के रूप में बहते हिम संहति को हिमनद कहते हैं।
  • हिमनद प्रतिदिन कुछ सेंटीमीटर या इससे कम से लेकर कुछ मीटर तक प्रवाहित हो सकते हैं। 
  • हिमनद मुख्यतः गुरुत्वबल के कारण गतिमान होते हैं।
  • हिमनदों से प्रबल अपरदन होता है जिसका कारण इसके अपने भार से उत्पन्न घर्षण है।

सर्क

  • हिमानी के ऊपरी भाग में तल पर अपरदन होता है जिसमे खड़े किनारे वाले गर्त बन जाते है जिन्हे सर्क कहा जाता है 

शृंग

  • जब दो सर्क एक दूसरे से विपरीत दिशा में मिल जाते है तो नुकीली चोटी जैसी आकृति बन जाती है जिसे शृंग कहा जाता है  

अरेत

  • लगातार अपदरन से सर्क के दोनों तरफ की दीवारें तंग हो जाती हैं और इसका आकार कंघी या आरी के समान कटकों के रूप में हो जाता है, जिन्हें अरेत (तीक्ष्ण कटक) कहते हैं। 
  • इनका ऊपरी भाग नुकीला तथा बाहरी आकार टेढ़ा-मेढ़ा होता है। 
  • इन कटकों पर चढ़ना प्रायः असंभव होता है।

हिमनद घाटियाँ/गर्त

  • U आकार की होती हैं।
  • तल चौड़े और किनारे चिकने।
  • ढाल तीव्र होती है।
  • घाटी में मलबा बिखरा होता है या हिमोढ़ मलबा दलदली रूप में होता है।
  • चट्टानी धरातल पर झीलें उभरी होती हैं ।


हिमोढ़ (Moraines)  क्या है?

  • हिमनद द्वारा छोड़े गए मलबे और मिट्टी के ढेर।

प्रकार:

1. अंतस्थ हिमोढ़

  • हिमनद के आखिरी हिस्से में जमा मलबे के लंबे ढेर।

2. पार्रिवक हिमोढ़

  • हिमनद की घाटी की दीवार के किनारे पर बने ढेर।

3. पाश्विक हिमोढ़

  • अंतस्थ हिमोढ़ से मिलकर घोड़े की नाल या आर्ध चंद्राकार ढेर बनाते हैं।

4. तलीय हिमोढ़

  • घाटी के तल पर जमा मलबे की परत, जो हिमनद के पिघलने पर बनती है।

5. मध्यस्थ हिमोढ़

  • घाटी के बीच में पाश्विक हिमोढ़ के साथ मिलकर बने ढेर, जो कम स्पष्ट होते हैं।


एस्कर

  • बर्फ के नीचे जमा हुए मलबे और चट्टानों के ढेर होते हैं, जो बर्फ के पिघलने के बाद दिखते हैं।
  • ग्रीष्म ऋतु में हिमनद पिघलता है और जल बर्फ के ऊपर से बहता है, बर्फ के छिद्रों से नीचे भी रिसता है।
  • यह पानी हिमनद के नीचे एकत्रित होता है और बर्फ के नीचे नदी के रूप में बहता है।
  • यह जल बड़े गोलाश्म, चट्टानी टुकड़े और मलबा लेकर आता है, जो बर्फ के नीचे जमा हो जाता है।
  • बर्फ के पिघलने के बाद, ये मलबे वक्राकार ढेर के रूप में दिखाई देते हैं, जिन्हें एस्कर कहते हैं।

हिमानी धौत मैदान

  • हिमानी धौत मैदान, बर्फ के पिघलने से बने समतल और विस्तृत क्षेत्र होते हैं, जहां पर गाद और मलबा जमा होता है।
  • जब बर्फ पिघलती है, तो बर्फ के नीचे से पानी बहकर बाहर आता है और जमीन पर गाद, बजरी, रेत, और मिट्टी लाकर जमा कर देता है।
  • यह पानी हिमानी-जलोढ़ निक्षेप (बजरी, रेत, चौका मिट्टी आदि) एकत्र करता है और विस्तृत, समतल मैदानों में फैलाता है।

ड्रमलिन

  • ड्रमलिन अंडाकार या लम्बे, चिकने और वक्राकार पहाड़ी की तरह दिखते हैं।
  • जब हिमनद पिघलती है, तो वह बहुत सारे पत्थर, रेत और मिट्टी को अपने साथ ले जाती है। ये मलबा बर्फ के नीचे जमा हो जाता है और बर्फ के हटने पर यह मलबा एक खास आकृति में जमा होता है।

भृगु (cliff) 

  • ये समुद्री किनारों पर ऊँची, खड़ी चट्टानों के रूप में पाए जाते हैं, जो तरंगों के घर्षण से बनते हैं। 
  • समुद्री भृगु की तलहटी पर एक समतल या मंद ढाल वाला प्लेटफार्म होता है, जो तरंगों द्वारा लाए गए मलबे से ढका होता है।

वेदिकाएँ (Terraces)

  • जब ये प्लेटफार्म तरंगों की औसत ऊँचाई से ऊपर उठ जाते हैं, तो इन्हें तरंग घर्षित वेदिकाएँ कहा जाता है।

कंदराएँ (Caves)

  • तरंगों के निरंतर घर्षण से भृगु के आधार पर रिक्त स्थान बनते हैं, जिससे समुद्री कंदराएँ बनती हैं।

स्टैक (Stack)

  • भृगु के निवर्तन से कुछ अवशेष चट्टानें तट पर अलग-थलग छूट जाती हैं, जो पहले भृगु का हिस्सा थीं, इन्हें समुद्री स्टैक कहा जाता है। 
  • ये भी अपरदन की प्रक्रिया से धीरे-धीरे समाप्त हो जाती हैं।


निक्षेपित स्थलरूप

पुलिन (Beaches)

  • पुलिन समुद्र किनारे की वह रेत है जो अधिकतर थल से नदियों और सरिताओं द्वारा अथवा तरंगों के अपरदन से लाई गई होती है।

रोधिका (Bars)

  • समुद्री अपतट पर, तट के समांतर पाई जाने वाली रेत और शिगिल की कटक को रोधिका कहते हैं। 
  • ये तट से कुछ दूरी पर समुद्र के भीतर पाई जाती हैं और तरंगों तथा धाराओं द्वारा लाए गए अवसाद से बनती हैं।

रोध (Barriers)

  • जब रेत का निक्षेपण इतना अधिक हो जाता है कि रोधिका समुद्र के जल स्तर से ऊपर दिखाई देने लगती है, तो इसे रोध या बैरियर कहते हैं। 
  • ये संरचनाएँ खाड़ी के प्रवेश द्वार या नदी के मुहाने पर बनती हैं और तटीय क्षेत्रों की रक्षा करती हैं।

स्पिट (Spits)

  • जब एक रोधिका का एक सिरा खाड़ी या स्थल से जुड़ जाता है और दूसरा सिरा समुद्र की ओर बढ़ता रहता है, तो इसे स्पिट कहते हैं।

पेडीमेंट (Pediment)

  • एक हल्की ढाल वाला, चौड़ा और सपाट चट्टानी सतह है, जो पहाड़ों या पहाड़ियों के आधार पर पाई जाती है। 
  • यह मुख्य रूप से अपरदन प्रक्रियाओं के कारण बनता है, जहां पानी और हवा पहाड़ के सामने से अपक्षयित सामग्री को हटाकर एक समतल सतह छोड़ देते हैं।

पेडीप्लेन (Pediplain)

  • एक विस्तृत, लहरदार मैदान होता है, जो कई पेडीमेंटों के एक साथ मिल जाने के परिणामस्वरूप बनता है। 
  • जब अपरदन जारी रहता है, तो पहाड़ धीरे-धीरे घिस जाते हैं, और उनके पेडीमेंट पड़ोसी पहाड़ों के पेडीमेंटों से मिलकर एक व्यापक, समतल मैदान बना लेते हैं, जिसे पेडीप्लेन कहा जाता है।

प्लाया

  • प्लाया एक प्रकार का स्थलरूप है जो मरुभूमियों में पाया जाता है। यह मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में बनता है जो पहाड़ियों और पर्वतों से घिरे होते हैं। 
  • इन क्षेत्रों में अपवाह मुख्यतः बेसिन के मध्य में केंद्रित होता है। बेसिन के किनारों से लगातार लाए गए अवसादों के जमाव के कारण बेसिन के मध्य में एक समतल मैदान का निर्माण होता है। 
  • जब इस क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध होता है, तो यह समतल मैदान उथली जल वाली झील में बदल जाता है।

अपवाहन गर्त (Deflation Hollows)

  • जब मरुस्थलीय क्षेत्रों में पवनें लगातार एक दिशा में चलती हैं, तो वे चट्टानों और असंगठित मिट्टी के कणों को उड़ाकर ले जाती हैं। 
  • इस प्रक्रिया से धरातल पर उथले और चौड़े गर्त (depressions) बन जाते हैं, जिन्हें अपवाहन गर्त कहते हैं।

गुहा (Caves)

  • पवनों के तीव्र वेग के कारण जब उड़ते हुए धूल और रेत के कण चट्टानों पर लगातार टकराते हैं, तो चट्टानों की सतह पर छोटे-छोटे गड्ढे या गुहिकाएँ (caves) बन जाती हैं। 
  • ये गुहिकाएँ समय के साथ और गहरी और विस्तृत होती जाती हैं।

छत्रक (Mushroom) शैल

  • यह एक प्रकार का चट्टानी अवशेष होता है, जिसमें शिला का निचला हिस्सा पतला और ऊपरी हिस्सा चौड़ा और गोल होता है, जिससे यह एक छत्रक (मशरूम) के आकार का दिखता है।

बरखान (Barchan)

  • ये नव-चंद्राकार (crescent-shaped) बालू-टिब्बे होते हैं जिनकी भुजाएँ पवन की दिशा में निकली होती हैं। 
  • बरखान का निर्माण तब होता है जब पवनों की दिशा स्थायी होती है और रेत की आपूर्ति कम होती है।

सीफ़ (Seif)

  • ये बरखान की तरह होते हैं, लेकिन इनकी केवल एक ही भुजा होती है। 
  • पवन की दिशा में बदलाव के कारण सीफ टिब्बे विकसित होते हैं, और इनकी भुजा ऊँची और लंबी हो सकती है।

परबलयिक (Parabolic) टिब्बे

  • ये टिब्बे बरखान से भिन्न होते हैं और उनकी आकृति परवलयिक होती है। 
  • इनके निर्माण में वनस्पति का भी योगदान होता है, जो रेतीले धरातल को स्थिरता प्रदान करती है।

अनुदैर्ध्य टिब्बे (Longitudinal Dunes)

  • जब रेत की आपूर्ति कम होती है और पवन की दिशा स्थायी रहती है, तो ये टिब्बे बनते हैं। 
  • ये लंबाई में अत्यधिक विस्तारित होते हैं और ऊँचाई में कम होते हैं।

अनुप्रस्थ टिब्बे (Transverse Dunes)

  • ये टिब्बे पवन की दिशा के समकोण (right angle) पर बनते हैं। 
  • इनका निर्माण तब होता है जब पवन की दिशा निश्चित होती है और रेत का स्रोत पवन की दिशा के समकोण पर होता है।




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