भारत का भौतिक स्वरूप Class 9 Social Science Geography Chapter 2 Physical Features Of India bhaarat ka bhautik svaroop
0HIMANSHUसितंबर 24, 2024
परिचय
हमारे देश में हर प्रकार की भू-आकृतियाँ पायी जाती हैं. जैसे- पर्वत, मैदान, मरुस्थल, पठार तथा द्वीप समूह।
भारत की भूमि बहुत अधिक भौतिक विभिन्नताओं को दर्शाती है।भूगर्भीय तौर पर प्रायद्वीपीय पठार पृथ्वी की सतह का प्राचीनतम भाग है।
इसे भूमि का एक बहुत ही स्थिर भाग माना जाता था।
हिमालय एवं उत्तरी मैदान हाल में बनी स्थलाकृतियाँ हैं।
भूगर्भ वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालय पर्वत एक अस्थिर भाग है।
हिमालय पर्वत श्रृंखला एक युवा स्थलाकृति को दर्शाती है. जिसमें ऊँचे शिखर, गहरी घाटियाँ तथा तेज बहने वाली नदियाँ है
उत्तरी मैदान जलोढ़ निक्षेपों से बने हैं।
प्रायद्वीपीय पठार आग्नेय तथा रूपांतरित शैलों वाली कम ऊँची पहाड़ियों एवं चौड़ी घाटियों से बना है।
भारत की भौगोलिक आकृतियों का विभाजन :
1. हिमालय पर्वत श्रृंखला 2. उत्तरी मैदान 3. प्रायद्वीपीय पठार 4. भारतीय मरुस्थल 5. तटीय मैदान 6. द्वीप समूह
हिमालय पर्वत
भारत की उत्तरी सीमा पर हिमालय, भूगर्भीय रूप से युवा एवं बनावट के दृष्टिकोण से वलित पर्वत श्रृंखला है।
ये पर्वत श्रृंखलाएँ सिंधु से लेकर ब्रह्मपुत्र तक फैली हैं।
हिमालय विश्व की सबसे ऊँची पर्वत श्रेणी है।
ये 2,400 कि॰मी॰ की लंबाई में फैले एक अर्द्धवृत्त का निर्माण करते हैं।
चौड़ाई कश्मीर में 400 कि॰मी॰ एवं अरुणाचल में 150 कि॰मी॰ है।
पश्चिमी भाग की अपेक्षा पूर्वी भाग की ऊँचाई में अधिक विविधता पाई जाती है।
हिमालय का विभाजन
महान या आंतरिक हिमालय या हिमाद्रि
हिमाचल या निम्न हिमालय
शिवालिक
महान या आंतरिक हिमालय या हिमाद्रि
सबसे उत्तरी भाग में स्थित
यह सबसे अधिक सतत् श्रृंखला है, जिसमें 6,000 मीटर की औसत ऊँचाई वाले सर्वाधिक ऊँचे शिखर हैं।
इसमें हिमालय के सभी मुख्य शिखर हैं।
महान हिमालय के वलय की प्रकृति असंममित है।
हिमालय के इस भाग का क्रोड ग्रेनाइट का बना है।
यह श्रृंखला हमेशा बर्फ से ढँकी रहती है तथा इससे बहुत-सी हिमानियों का प्रवाह होता है।
हिमाचल या निम्न हिमालय
इन श्रृंखलाओं का निर्माण अत्याधिक संपीडित तथा परिवर्तित शैलों से हुआ हैं।
इनकी ऊँचाई 3,700 मीटर से 4,500 मीटर के बीच तथा औसत चौड़ाई 50 किलोमीटर है।
पीर पंजाल श्रृंखला सबसे लंबी तथा सबसे महत्त्वपूर्ण श्रृंखला है, धौलाधर एवं महाभारत श्रृंखलाएँ महत्त्वपूर्ण हैं।
इसी श्रृंखला में कश्मीर की घाटी तथा हिमाचल के कांगड़ा एवं कुल्लू की घाटियाँ स्थित हैं।
इस क्षेत्र को पहाड़ी नगरों के लिए जाना जाता है।
शिवालिक
हिमालय की सबसे बाहरी श्रृंखला
इनकी चौड़ाई 10 से 50 कि॰मी॰ तथा ऊँचाई 900 से 1.100 मीटर के बीच है।
ये श्रृंखलाएँ, उत्तर में स्थित मुख्य हिमालय की श्रृंखलाओं से नदियों द्वारा लायी गयी असंपिडित अवसादों से बनी है।
ये घाटियाँ बजरी तथा जलोढ़ की मोटी परत से ढँकी हुई हैं।
निम्न हिमाचल तथा शिवालिक के बीच में स्थित लंबवत् घाटी को दून के नाम से जाना जाता है।
कुछ प्रसिद्ध दून हैं- देहरादून, कोटलीदून एवं पाटलीदून।
नदी घाटियों की सीमाओं के आधार पर हिमालय का विभाजन
सतलुज एवं सिंधु के बीच स्थित हिमालय के भाग को पंजाब हिमालय के नाम से जाना जाता है। लेकिन पश्चिम से पूर्व तक क्रमशः इसे कश्मीर तथा हिमाचल हिमालय के नाम से भी जाना जाता है।
सतलुज तथा काली नदियों के बीच स्थित हिमालय के भाग को कुमाँऊ हिमालय के नाम से भी जाना जाता है।
काली तथा तिस्ता नदियाँ, नेपाल हिमालय का निर्माण करती है
तिस्ता तथा दिहांग नदियाँ असम हिमालय का सीमांकन करती है।
उत्तरी मैदान
उत्तरी मैदान तीन प्रमुख नदी प्रणालियों सिंधु, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों से बना है।
यह मैदान जलोढ़ मृदा से बना है।
लाखों वर्षों में हिमालय के गिरिपाद में स्थित बहुत बड़े बेसिन में जलोढ़ों का निक्षेप हुआ, जिससे इस उपजाऊ मैदान का निर्माण हुआ है।
इसका विस्तार 7 लाख वर्ग कि॰मी॰ के क्षेत्र पर है।
यह मैदान लगभग 2,400 लंबा एवं 240 से 320 कि॰मी॰ चौड़ा है।
यह सघन जनसंख्या वाला भौगोलिक क्षेत्र है।
समृद्ध मृदा आवरण, प्रर्याप्त पानी की उपलब्धता एवं अनुकूल जलवायु के कारण कृषि की दृष्टि से यह भारत का अत्यधिक उत्पादक क्षेत्र है।
उत्तरी पर्वतों से आने वाली नदियाँ निक्षेपण कार्य में लगी हैं।
नदी के निचले भागों में ढाल कम होने के कारण नदी की गति कम हो जाती है. जिससे नदीय द्वीपों का निर्माण होता है।
ये नदियाँ अपने निचले भाग में गाद एकत्र हो जाने के कारण बहुत-सी धाराओं में बँट जाती हैं।
इन धाराओं को वितरिकाएँ कहा जाता है।
उत्तरी मैदान का विभाजन
1. पंजाब का मैदान 2. गंगा का मैदान 3. ब्रह्मपुत्र का मैदान
पंजाब का मैदान
सिंधु तथा इसकी सहायक नदियों के द्वारा बनाये गए इस मैदान का बहुत बड़ा भाग पाकिस्तान में स्थित है।
सिंधु तथा इसकी सहायक नदियाँ झेलम चेनाब रावी ब्यास तथा सतलुज हिमालय से निकलती हैं।
मैदान के इस भाग में दोआबों की संख्या बहुत अधिक है।
गंगा का मैदान
यह उत्तरी भारत में हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड के कुछ भाग तथा पश्चिम बंगाल में फैला है।
इन विस्तृत मैदानों की भौगोलिक आकृतियों में भी विविधता है।
ब्रह्मपुत्र का मैदान
यह मैदान ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा लाए गए अवसादों से निर्मित है
जिसका विस्तार अरुणाचल प्रदेश और असम में है ।
आकृतिक भिन्नता के आधार पर उत्तरी मैदानों का विभाजन
भाभर
तराई
जलोढ़ : दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
1. बांगर
2. तराई
भाभर
नदियाँ पर्वतों से नीचे उतरते समय शिवालिक की ढाल पर 8 से 16 कि॰मी॰ के चौड़ी पट्टी में गुटिका का निक्षेपण करती हैं।
इसे 'भाबर' के नाम से जाना जाता है।
सभी सरिताएँ इस भाबर पट्टी में विलुप्त हो जाती हैं।
तराई
इस पट्टी के दक्षिण में ये सरिताएँ एवं नदियाँ पुनः निकल आती हैं। एवं नम तथा दलदली क्षेत्र का निर्माण करती हैं, जिसे 'तराई' कहा जाता है।
यह वन्य प्राणियों से भरा घने जंगलों का क्षेत्र था।
बँटवारे के बाद पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को कृषि योग्य भूमि उपलब्ध कराने के लिए इस जंगल को काटा जा चुका है।
जलोढ़
उत्तरी मैदान का सबसे विशालतम भाग पुराने जलोढ़ का बना है।
वे नदियों के बाढ़ वाले मैदान के ऊपर स्थित हैं तथा वेदिका जैसी आकृति प्रदर्शित करते हैं।
इस भाग को बांगर के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र की मृदा में चूनेदार निक्षेप पाए जाते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में 'कंकड़' कहा जाता है।
बाढ़ वाले मैदानों के नये तथा युवा निक्षेपों को 'खादर' कहा जाता है।
इनका लगभग प्रत्येक वर्ष पुनर्निमाण होता है।
इसलिए ये उपजाऊ होते हैं तथा गहन खेती के लिए आदर्श होते हैं।
प्रायद्वीपीय पठार
प्रायद्वीपीय पठार एक मेज की आकृति वाला स्थल है जो पुराने आग्नेय तथा रूपांतरित शैलों से बना है।
यह प्राचीनतम भूभाग का एक हिस्सा है जो गोंडवाना भूमि के टूटने एवं अपवाह के कारण बना था
इस पठार के दो मुख्य भाग हैं-
1. 'मध्य उच्चभूमि’
2. 'दक्कन का पठार'।
मध्य उच्चभूमि
नर्मदा नदी के उत्तर में प्रायद्वीपीय पठार का भाग
विंध्य श्रृंखला दक्षिण में सतपुड़ा श्रृंखला तथा उत्तर-पश्चिम में अरावली से घिरी है।
पश्चिम में यह धीरे-धीरे राजस्थान के बलुई तथा पथरीले मरुस्थल से मिल जाता है।
इस क्षेत्र में बहने वाली नदियाँ, चंबल, सिंध, बेतवा तथा केन उत्तर-पूर्व की तरफ बहती हैं, इस प्रकार वे इस क्षेत्र के ढाल को दर्शाती हैं।
मध्य उच्चभूमि पश्चिम में चौड़ी लेकिन पूर्व में संकीर्ण है।
इस पठार के पूर्वी विस्तार को स्थानीय रूप से बुंदेलखंड तथा बघेलखंड के नाम से जाना जाता है।
इसके और पूर्व के विस्तार को दामोदर नदी द्वारा अपवाहित छोटा नागपुर पठार दर्शाता है।
दक्षिण का पठार एक त्रिभुजाकार भूभाग है. जो नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित है।
उत्तर में इसके चौड़े आधार पर सतपुड़ा की श्रृंखला है, जबकि महादेव, कैमूर की पहाड़ी तथा मैकाल श्रृंखला इसके पूर्वी विस्तार हैं।
दक्षिण का पठार
पश्चिम में ऊँचा एवं पूर्व की ओर कम ढाल वाला है।
एक भाग उत्तर-पूर्व में भी देखा जाता है, जिसे स्थानीय रूप से 'मेघालय', 'कार्बी एंगलौंग पठार' तथा 'उत्तर कचार पहाड़ी' के नाम से जाना जाता है।
यह एक भ्रंश के द्वारा छोटा नागपुर पठार से अलग हो गया है। पश्चिम से पूर्व की ओर तीन महत्त्वपूर्ण श्रृंखलाएँ गारो, खासी तथा जयंतिया हैं।
पूर्वी एवं पश्चिमी सिरे पर क्रमशः पूर्वी तथा पश्चिमी घाट स्थित हैं।
पूर्वी घाट के 600 मीटर की औसत ऊँचाई की तुलना में पश्चिमी घाट की ऊँचाई 900 से 1,600 मीटर है।
पश्चिमी घाट पश्चिमी तट के समानांतर स्थित है। वे सतत् हैं तथा उन्हें केवल दरों के द्वारा ही पार किया जा सकता है।
पूर्वी घाट का विस्तार महानदी घाटी से दक्षिण में नीलगिरी तक है।
पूर्वी घाट का विस्तार सतत् नहीं है।
ये अनियमित हैं क्योकि बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों ने इनको काट दिया है।
पश्चिमी घाट को विभिन्न स्थानीय नामों से जाना जाता है। पश्चिमी घाट की ऊँचाई, उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ती जाती है। इस भाग के शिखर ऊँचे हैं, जैसे अनाई मुडी (2.695 मी) तथा डोडा बेटा (2,633 मी०)।
पूर्वी घाट का सबसे ऊँचा शिखर महेंद्रगिरी (1,500 मी) है। पूर्वी घाट के दक्षिण-पश्चिम में शेवराय तथा जावेडी की पहाड़ियाँ स्थित हैं।
प्रायद्वीपीय पठार में काली मृदा पायी जाती है, जिसे 'दक्कन ट्रैप' के नाम से भी जाना जाता है।
अरावली की पहाड़ियाँ प्रायद्वीपीय पठार के पश्चिमी एवं उत्तर-पश्चिमी किनारे पर स्थित है।
ये बहुत अधिक अपरदित एवं खंडित पहाड़ियों हैं।
ये गुजरात से लेकर दिल्ली तक दक्षिण-पश्चिम एवं उत्तर-पूर्व दिशा में फैली हैं।
भारतीय मरुस्थल
अरावली पहाड़ी के पश्चिमी किनारे पर थार का मरुस्थल स्थित है।
यह बालू के टिब्बों से बँका एक तरंगित मैदान है।
इस क्षेत्र में प्रति वर्ष 150 मिमी से भी कम वर्षा होती है।
इस शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र में वनस्पति बहुत कम है।
वर्षा ऋतु में ही कुछ सरिताएँ दिखती हैं और उसके बाद वे बालू में ही विलीन हो जाती हैं।
पर्याप्त जल नहीं मिलने से वे समुद्र तक नहीं पहुँच पाती हैं।
'लूनी' इस क्षेत्र की सबसे बड़ी नदी है।
तटीय मैदान
प्रायद्वीपीय पठार के किनारे संकीर्ण तटीय पट्टीयों का विस्तार है।
यह पश्चिम में अरब सागर से लेकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक विस्तृत है।
पश्चिमी तट, पश्चिमी घाट तथा अरब सागर के बीच स्थित एक संकीर्ण मैदान है।
इस मैदान के तीन भाग हैं
उत्तरी भाग को कोंकण (मुंबई तथा गोवा),
मध्य भाग को कन्नड मैदान
दक्षिणी भाग को मालाबार
बंगाल की खाड़ी के साथ विस्तृत मैदान चौड़ा एवं समतल है।
उत्तरी भाग में इसे 'उत्तरी सरकार' कहा जाता है।
दक्षिणी भाग 'कोरोमंडल' तट के नाम से जाना जाता है।
बड़ी नदियाँ, जैसे महानदी, गोदावरी. कृष्णा तथा कावेरी इस तट पर विशाल डेल्टा का निर्माण करती हैं।
चिल्का झील पूर्वी तट पर स्थित एक महत्त्वपूर्ण भू-लक्षण है।
द्वीप समूह
भारत में दो द्वीपों का समूह भी स्थित है।
लक्षद्वीप समूह छोटे प्रवाल द्वीपों से बना है। पहले इनको लकादीव, मीनिकाय तथा एमीनदीव के नाम से जाना जाता था।
1973 में इनका नाम लक्षद्वीप रखा गया।
यह 32 वर्ग किमी के छोटे से क्षेत्र में फैला है।
कावारत्ती द्वीप लक्षद्वीप का प्रशासनिक मुख्यालय है।
इस द्वीप समूह पर पादप तथा जंतु के बहुत से प्रकार पाए जाते हैं।
पिटली द्वीप, जहाँ मनुष्य का निवास नहीं है, वहाँ एक पक्षी अभयारण्य है।
बंगाल की खाड़ी में अंडमान एवं निकोबार द्वीप है। यह द्वीप समूह आकार में बड़े संख्या में बहुल तथा बिखरे हुए हैं।
यह द्वीप समूह मुख्यतः दो भागों में बाँटा गया है- उत्तर में अंडमान तथा दक्षिण में निकोबार।
यह द्वीप समूह देश की सुरक्षा के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।
इन द्वीप समूहों में पाए जाने वाले पादप एवं जंतुओं में बहुत अधिक विविधता है।
ये द्वीप विषवत् वृत के समीप स्थित हैं एवं यहाँ की जलवायु विषुवतीय है तथा यह घने जंगलों से आच्छादित है।
भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह के बैरेन द्वीप पर स्थित है।