परिचय
- प्रत्येक व्यक्ति का समाज में एक स्थान होता है।
- प्रत्येक की एक प्रस्थिति और एक या अनेक भूमिकाएँ होती हैं लेकिन साधारणतः इनका चुनाव करना हमारे नियंत्रण में नहीं होता
संस्था
- कानून या प्रथा द्वारा स्वीकृत नियमों के अनुसार कार्य करने वाली इकाई है और उसके नियमित तथा निरंतर कार्य चालन को इन नियमों को जाने बिना समझा नहीं जा सकता।
- संस्थाएँ व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाती हैं, साथ ही ये व्यक्तियों को अवसर भी प्रदान करती हैं।
- यहाँ सामाजिक संस्थाएँ होती हैं जो प्रतिबंधित और नियंत्रित, दंडित और पुरस्कृत करती हैं।
सामाजिक संस्थाएँ
1. बृहत = राज्य
2. लघु = परिवार
सामाजिक संस्था के प्रति दृष्टिकोण
1. प्रकार्यवादी दृष्टिकोण
2. संघर्षवादी दृष्टिकोण
प्रकार्यवादी दृष्टिकोण
- सामाजिक संस्थाओं को सामाजिक मानकों, आस्थाओं, मूल्यों और समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए निर्मित संबंधों की भूमिका के जटिल ताने-बाने के रूप में देखती है।
- सामाजिक संस्थाएँ सामाजिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए विद्यमान होती हैं।
सामाजिक संस्था के प्रकार
1. औपचारिक
- कानून
- शिक्षा
2. अनौपचारिक
- परिवार
- धर्म
संघर्षवादी दृष्टिकोण
- समाज में सभी व्यक्तियों का स्थान समान नहीं है।
- सभी सामाजिक संस्थाएँ चाहे वे पारिवारिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक, कानूनी या शैक्षणिक हों, समाज के प्रभावशाली अनुभागों चाहे वे वर्ग, जाति, जनजाति या लिंग के संदर्भ में हों, के हित में संचालित होती हैं।
परिवार विवाह और नातेदारी
- परिवार एक 'नैसर्गिक’ सामाजिक संस्था है।
- परिवार (निजी क्षेत्र) आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक (सार्वजनिक क्षेत्रों) से संबंधित है।
- परिवार अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य करता है जो समाज की बुनियादी आवश्यकताएँ पूरी करते हैं और सामाजिक व्यवस्था को स्थायी बनाने में सहायता करते हैं।
- यदि महिलाएँ परिवार की देखभाल करें और पुरुष परिवार की जीविका चलाएँ तो आधुनिक औद्योगिक समाज श्रेष्ठ कार्य निष्पादन करते हैं।
- परिवार को औद्योगिक समाज की आवश्यकताएँ पूरी करने वाली एक सर्वोत्तम साधन संपन्न इकाई के रूप में देखा जाता है।
- ऐसे परिवार में घर का एक सदस्य घर से बाहर कार्य करता है और दूसरा सदस्य घर और बच्चों की देखभाल करता है
परिवार के स्वरूप में परिवर्तन
भारत में औसत आयु में वृद्धि होने के कारण संयुक्त परिवार में निरंतर वृद्धि हुई है।
पुरुषों की आयु महिलाओं की आयु
1941-50 - 32.5 1941-50 31.7
1981-85-55.4 1981-85-55.7
👉भारत में संयुक्त परिवार तेजी से कम हो रहे है ।
परिवार के स्वरूप
1. आवास/ स्थान के आधार पर
- मातृस्थानिक
- पितृस्थानिक
2. अधिकार और प्रभाव के आधार पर
- मातृतंत्रात्मक
- पितृतंत्रात्मक
3. वंश के आधार पर
- मातृवंशीय
- पितृवंशीय
परिवार लिंगवादी होते है ???
- आधुनिक समाज यह प्रचलित है कि लड़का वृद्धावस्था में अभिभावकों की मदद करेगा तथा लड़की विवाह करके दूसरे घर चली जाएगी
- इसकी वजह से लडकियों पर कम और लडको पर ज्यादा धन खर्च किया जाता है
- इस कारण ही कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा मिल रहा है।
- 2001 की जनगणना के अंतर्गत, प्रति हजार लड़कों पर 927 लड़कियाँ हैं।
विवाह