पृथ्वी की उत्पत्ति
पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बंधित दो सिधांत महत्वपूर्ण है
1. आरंभिक सिद्धांत
i. गैसीय परिकल्पना
- इमेनुअल कांट
ii. नीहारिका परिकल्पना
- लाप्लास
- ऑटो शिमिड व कार्ल वाइज़ास्कर ने नीहारिका परिकल्पना में कुछ संशोधन किया।
2. आधुनिक सिद्धांत
- बिग बेंग सिद्धांत, इसे विस्तरित ब्रह्माण्ड परिकल्पना कहा जाता है
आरंभिक सिद्धांत
गैसीय परिकल्पना - इमेनुअल कांट ( जर्मन दार्शनिक )
- इनके अनुसार गैस और धूल कण से बना हुआ बादल (ठोस ) था
- यह गैस का बादल गुरुत्वाकर्षण बल के कारण टकराने लगे
- इसके बाद तापमान में बढ़ोतरी हुई
- गर्म बादल फैलने लगा
- यह अब ठोस से गैस में बदलने लगा
- इसके बाद यह घुमने लगा
- इसके बाद यह बादल टूटा और ग्रह बन गया
- बादल ( नेबुला ) के बीच का हिस्सा सूर्य बना
- इमेनुअल कांट की इस परिकल्पना में 1796 ई में गणितज्ञ लाप्लेस (Laplace) ने इसका संशोधन प्रस्तुत किया जो नीहारिका परिकल्पना (Nebular hypothesis) के नाम से जाना जाता है।
नीहारिका परिकल्पना (Nebular hypothesis)
- इस परिकल्पना के अनुसार ग्रहों का निर्माण धीमी गति से घूमते हुए पदार्थों के बादल से हुआ
- अंतरिक्ष में बड़ा बादल : लगभग 4.6 बिलियन वर्ष पहले, अंतरिक्ष में गैस और धूल का एक विशाल बादल तैर रहा था। इस बादल को नेबुला कहा जाता है।
- गुरुत्वाकर्षण के कारण यह बादल अंदर की ओर ढहने लगा, इसे एक साथ खींचा जा रहा था।
- घूमना और चपटा होना : जैसे-जैसे बादल ढहता गया, यह तेज़ी से घूमने लगा और एक डिस्क के आकार में चपटा हो गया,।
- सूर्य का निर्माण : ढहते बादल से अधिकांश सामग्री डिस्क के केंद्र में एकत्र हो गई। यह केंद्र गर्म और घना हो गया जिससे हमारा सूर्य बन गया।
- ग्रहों का निर्माण : डिस्क में बची हुई गैस और धूल एक साथ चिपक कर गुच्छे बनाने लगे। ये गुच्छे बड़े होते गए और अंततः हमारे सौर मंडल में ग्रह, चंद्रमा और अन्य वस्तुएँ बन गए।
नीहारिका परिकल्पना में संसोधन
- 1950 ई० में रूस के ऑटो शिमिड (Otto schmidt) व जर्मनी के कार्ल वाइज़ास्कर (Carl weizascar) ने नीहारिका परिकल्पना (Nebular hypothesis) में कुछ संशोधन किया।
- उनके विचार से सूर्य एक सौर नीहारिका से घिरा हुआ था जो मुख्यतः हाइड्रोजन, हीलीयम और धूलकणों की बनी थी।
- इन कणों के घर्षण व टकराने (Collision) से एक चपटी तश्तरी की आकृति के बादल का निर्माण हुआ और अभिवृद्धि (Accretion) प्रक्रम द्वारा ही ग्रहों का निर्माण हुआ।
- इसके बाद वैज्ञानिकों ने पृथ्वी या अन्य ग्रहों की ही नहीं वरन् पूरे ब्रह्मांड की उत्पत्ति संबंधी समस्याओं को समझने का प्रयास किया।
आधुनिक सिद्धांत
बिग बेंग सिद्धांत
- आधुनिक समय में ब्रह्मांड की उत्पत्ति संबंधी सर्वमान्य सिद्धांत बिग बैंग सिद्धांत है।
- इसे विस्तरित ब्रह्मांड परिकल्पना (Expanding universe hypothesis) भी कहा जाता है।
- 1920 ई० में एडविन हब्बल ने प्रमाण दिये कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है। समय बीतने के साथ आकाशगंगाएँ एक दूसरे से दूर हो रही हैं।
- वैज्ञानिक मानते हैं कि आकाशगंगाओं के बीच की दूरी बढ़ रही है, परंतु प्रेक्षण आकाशगंगाओं के विस्तार को नहीं सिद्ध करते।
- अतः गुब्बारे का उदाहरण आंशिक रूप से ही मान्य है।
- ब्रह्मांड के विस्तार का अर्थ है आकाशगंगाओं के बीच की दूरी में विस्तार का होना।
- हॉयल (Hoyle) ने इसका विकल्प 'स्थिर अवस्था संकल्पना' (Steady state concept) के नाम से प्रस्तुत किया।
- इस संकल्पना के अनुसार ब्रह्मांड किसी भी समय में एक ही जैसा रहा है। यद्यपि ब्रह्मांड के विस्तार संबंधी अनेक प्रमाणों के मिलने पर वैज्ञानिक समुदाय अब ब्रह्मांड विस्तार सिद्धांत के ही पक्षधर हैं।
बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड का विस्ता
अवस्था 1
- लगभग 13.7 अरब साल पहले, ब्रह्मांड एक बेहद छोटे और अत्यधिक गर्म बिंदु पर था, जिसे एक सिंगुलैरिटी कहा जाता है।
- इसमें सभी पदार्थ एक साथ संकुचित थे और तापमान और घनत्व अत्यधिक थे।
अवस्था 2
बिग बैंग का विस्फोट
- यह विस्फोट ब्रह्मांड को तेजी से फैलाने लगा।
- विस्फोट के तुरंत बाद, ब्रह्मांड का विस्तार बहुत तेज था।
- इस प्रक्रिया में कुछ ऊर्जा ने पदार्थ में बदलना शुरू किया।
- विस्फोट के पहले कुछ सेकंड में ही ब्रह्मांड का आकार तेजी से बढ़ने लगा, लेकिन बाद में विस्तार की गति धीरे-धीरे कम हो गई।
- इसी दौरान, ब्रह्मांड में पहले परमाणु बनने लगे।
अवस्था 3
तापमान और पदार्थ का निर्माण
- बिग बैंग के तीन लाख वर्षों बाद, ब्रह्मांड का तापमान इतना गिर गया कि परमाणु बनने लगे।
- इस समय ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया, जिससे प्रकाश आसानी से ब्रह्मांड में यात्रा कर सकता था।
तारों का निर्माण
- ब्रह्मांड की शुरुआत में ऊर्जा और पदार्थ समान रूप से वितरित नहीं थे। विभिन्न क्षेत्रों में पदार्थ की घनता अलग-अलग थी।
- घनत्व में इन भिन्नताओं के कारण गुरुत्वाकर्षण बल भी अलग-अलग हो गए। इससे कुछ क्षेत्रों में पदार्थ का एकत्रण (केंद्रित होना) होने लगा।
- यह पदार्थ का एकत्रण आकाशगंगाओं (ग्रहों, सितारों, और अन्य वस्तुओं का समूह) के निर्माण का आधार बना। एक आकाशगंगा का आकार 80 हजार से 1 लाख 50 हजार प्रकाश वर्ष तक हो सकता है।
- आकाशगंगाओं के भीतर हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल होते हैं, जिन्हें नीहारिका (Nebula) कहा जाता है। नीहारिका में गैस के झुंड बनते हैं।
- ये गैसीय झुंड समय के साथ घने और ठोस पिंडों में बदलने लगते हैं। इन पिंडों के संकुचन और गर्म होने से तारे बनने लगते हैं।
- तारों का निर्माण लगभग 5 से 6 अरब वर्षों पहले हुआ।
ग्रहों का निर्माण
अवस्था 1
- एक विशाल गैसीय और धूल भरा बादल होता है। इसे नीहारिका कहा जाता है।
- इस गैसीय बादल में गुरुत्वाकर्षण बल के कारण एक केंद्रीय क्रोड (गर्म और घना क्षेत्र) बन जाता है।
- इस क्रोड के चारों ओर गैस और धूल का एक घूमता हुआ डिस्क (चक्राकार परत) बनता है।
अवस्था 2
- गैसीय डिस्क में छोटे-छोटे गोलक बनना शुरू होते हैं, जिन्हें "ग्रहाणु" कहते हैं। ये छोटे गोलक पदार्थ के संघटन से बनते हैं।
- ये छोटे गोलक आपस में टकराते और चिपकते हैं। इस प्रक्रिया में अधिक बड़े पिंड बनते हैं।
- यह, टकराव और चिपकने की प्रक्रिया, ग्रहाणुओं के निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण होती है।
अवस्था 3
- जब कई छोटे ग्रहाणु आपस में मिलकर बड़े पिंड बनाने लगते हैं, तो ये पिंड धीरे-धीरे बड़े होते जाते हैं।
- परिणामस्वरूप : ये बड़े पिंड ग्रहों में विकसित हो जाते हैं।
पृथ्वी का उद्भव
- पृथ्वी शुरू में एक गर्म, चट्टानी और वीरान ग्रह थी।
- इसका वायुमंडल बहुत पतला था और हाइड्रोजन और हीलियम से बना था।
- समय के साथ, पृथ्वी पर ऐसी घटनाएँ और प्रक्रियाएँ हुईं जिनसे इसका वायुमंडल और सतह बदल गई।
- आज की पृथ्वी में बहुत सारा पानी है और जीवन के लिए अनुकूल वातावरण है।
- इसकी संरचना परतदार है, जिसमें विभिन्न परतें शामिल हैं।
स्थलमंडल का विकास
- ग्रहाणुओं के इकट्ठा होने से ग्रह बनें।
- जब पदार्थ गुरुत्वबल के कारण संहत हो रहा था, तो उन इकट्ठा होते पिंडों ने पदार्थ को प्रभावित किया।
- इससे अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न हुई। यह क्रिया जारी रही और उत्पन्न ताप से पदार्थ पिघलने/गलने लगा।
- ऐसा पृथ्वी की उत्पत्ति के दौरान और उत्पत्ति के तुरंत बाद हुआ।
- अत्यधिक ताप के कारण, पृथ्वी आंशिक रूप से द्रव अवस्था में रह गई
- तापमान की अधिकता के कारण ही हल्के और भारी घनत्व के मिश्रण वाले पदार्थ घनत्व के अंतर के कारण अलग होना शुरू हो गए।
- इसी अलगाव से भारी पदार्थ (जैसे लोहा), पृथ्वी के केन्द्र में चले गए और हल्के पदार्थ पृथ्वी की सतह या ऊपरी भाग की तरफ आ गए।
- समय के साथ यह और ठंडे हुए और ठोस रूप में परिवर्तित हो गए।