खनिज ( Minerals )
- खनिज ऐसे पदार्थ होते है जो प्रकृति के द्वारा प्राप्त होते है
- खानिजों को भूमि / चट्टानों के भीतर से प्राप्त किया जाता है
- खनन की प्रक्रिया के द्वारा खनिज प्राप्त होते हैं
खनिज का उपयोग
- खनन से खनिजों की प्राप्ति की जाती है
- मानव विकास के साथ ही खनिजों की खोज और प्रयोग शुरू हो गया था
- जैसे ताम्र युग, कांस्य युग एवं लौह युग।
- प्राचीन काल में खनिजों का उपयोग औजार बनाने, बर्तन बनाने एवं हथियार बनाने के लिए होता था
- खनिजों का वास्तविक विकास औद्यौगिक क्रांति के बाद हुआ जिसने इसका आधुनिक विकास किया
खनिज की पहचान
- खनिज की पहचान उसके रंग, क्रिस्टल संरचना , चमक कठोरता , घनत्व , अवस्था , विद्युत् की चालकता के अधर पर किया जाता है
खनिज संसाधन के प्रकार
I. धात्विक खनिज
- धातु के स्रोत धात्विक खनिज हैं सोना , चांदी , लोहा , ताम्बा , मैंगनीज
- धात्विक खनिजों को लौह एवं अलौह धात्विक श्रेणी में बांटा जा सकता है
1. लौह धात्विक खनिज
- ऐसे खनिज जिनमें लोहे के अंश समाहित होते हैं वे सभी लौह धात्विक खनिज कहलाते हैं
- जैसे – लौह अयस्क , लोहा , मैंगनीज , निकेल ,टंग्स्टन , कोबाल्ट इत्यादि
2. अलौह धात्विक खनिज
- ऐसे खनिज जिनमें लोहे के अंश समाहित नहीं होते हैं वे सभी अलौह धात्विक खनिज कहलाते हैं
- जैसे – ताम्बा और बॉक्साइट
II. अधात्विक खनिज
अधात्विक खनिज में आते है चूना पत्थर , ग्रेफाइट , हीरा ,जिप्सम , संगमरमर , ग्रेनाईट , नमक , ग्रेफाईट , अभ्रक इत्यादि
III. ऊर्जा संसाधन या ईंधन खनिज
- इन्हें जीवाश्म ईंधन या खनिज ईंधन के नाम से भी जानते हैं
- यह खनिज, पृथ्वी में दबे प्राणी एवं पादप जीवों से प्राप्त होते हैं
- जैसे - कोयला और पेट्रोलियम आदि।
खानिजों की विशेषता
- खनिज संसाधन असमान रूप से वितरित होते हैं।
- खनिजों की गुणवत्ता और मात्रा के बीच प्रतिलोमी संबंध पाया जाता है अर्थात् अधिक गुणवत्ता वाले खनिज, कम गुणवत्ता वाले खनिजों की तुलना में कम मात्रा में पाए जाते हैं।
- ये सभी खनिज समय के साथ समाप्त हो जाते हैं।
- खनिजों को बनने में लंबा समय लगता है
- आवश्यकता पड़ने पर इनका तुरंत पुनर्भरण नहीं किया जा सकता। इसलिए खनिज संसाधनों को संरक्षित किया जाना चाहिए
- खनिज संसाधनों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए क्योंकि इन्हें दुबारा उत्पन्न नहीं किया जा सकता
भारत में खानिजों का वितरण
- भारत में अधिकांश धात्विक खनिज प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र की प्राचीन क्रिस्टलीय शैलों में पाए जाते हैं।
- कोयले का लगभग 97 प्रतिशत भाग दामोदर, सोन, महानदी और गोदावरी नदियों की घाटियों में पाया जाता है।
- पेट्रोलियम के आरक्षित भंडार असम, गुजरात तथा मुंबई हाई अर्थात् अरब सागर के अपतटीय क्षेत्र में पाए जाते हैं।
भारत में खनिज मुख्यतः तीन विस्तृत पट्टियों में पाए जाते हैं।
1. उत्तर पूर्वी पठारी प्रदेश
- प्रमुख राज्य - छोटा नागपुर (झारखंड ) छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल ,
- प्रमुख खनिज - लौह अयस्क , कोयला , मैंगनीज ,अभ्रक
2. दक्षिण - पश्चिमी पठार प्रदेश
- प्रमुख राज्य - कर्णाटक , गोवा, तमिलनाडु , केरल
- प्रमुख खनिज - लौह अयस्क , कोयला , मैंगनीज ,अभ्रक
3. उत्तर पश्चिमी प्रदेश
- प्रमुख राज्य - राजस्थान ( अरावली ) गुजरात
- प्रमुख खनिज - ताम्बा , जिंक , बलुआ पत्थर , ग्रेनाईट, संगमरमर , जिप्सम मुल्तानी मिटटी
लौह खनिज
लौह अयस्क
- भारत में लौह अयस्क के प्रचुर संसाधन हैं।
- यहाँ एशिया के विशालतम लौह अयस्क आरक्षित हैं।
- हमारे देश में इस अयस्क के दो प्रमुख प्रकार- हेमेटाइट तथा मैग्नेटाइट पाए जाते हैं।
- बेहतरीन गुणवत्ता के कारण इसकी दुनिया भर में भारी माँग है।
- लौह अयस्क की खदानें देश के उत्तर-पूर्वी पठार प्रदेश में कोयला क्षेत्रों के निकट स्थित है
- लौह अयस्क के कुल आरक्षित भंडारों का लगभग 95% भाग ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गोआ, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु राज्यों में स्थित हैं।
भारत में लोह अयस्क क्षेत्र
1. ओडिशा में - सुंदरगढ़, मयूरभंज, झार स्थित पहाड़ी श्रृंखलाओं में
2. झारखंड की ऐसी ही पहाड़ी श्रृंखलाओं में कुछ सबसे पुरानी लौह अयस्क की खदानें हैं
3. कर्नाटक में, लौह अयस्क के निक्षेप बल्लारि जिले के संदूर होसपेटे क्षेत्र में तथा चिकमगलूरु जिले की बाबा बूदन पहाड़ियों में
4. महाराष्ट में – चंद्रपुर और रत्नागिरी में
5. तेलंगाना - करीम नगर, वारांगल जिले,
6 .आंध्र प्रदेश - कुरूनूल, कडप्पा तथा अनंतपुर जिले
7. तमिलनाडु - सेलम तथा नीलगिरी जिले लौह अयस्क खनन के अन्य प्रदेश हैं।
8. गोआ - लौह अयस्क के महत्वपूर्ण उत्पादक के रूप में उभरा है।
लोहे के गुण -
- लोहे के उपयोग हमें हर जगह देखने को मिलता है छोटी सी पिन से लेकर बड़े-बड़े जहाज तक में लोहे का उपयोग दिखता है
- लोहे के उपयोग से मशीने बनती है मशीन उद्योग का आधार है
- लोहा सस्ता और टिकाऊ होता है
- लोहा भारी और मजबूत होता है
मैंगनीज
- लौह अयस्क के प्रगलन के लिए मैंगनीज़ एक महत्वपूर्ण कच्चा माल है
- इसका उपयोग लौह-मिश्रातु, बैटरी , पेंट बनाने में भी किया जाता है।
- मैंगनीज लगभग सभी भूगर्भिक संरचनाओं में पाया जाता है
- मध्य प्रदेश एवं ओडिशा मैंगनीज़ के अग्रणी उत्पादक है।
प्रमुख मैंगनीज के क्षेत्र
1. ओडिशा की मुख्य खदानें - बोनाई, केन्दुझर, सुंदरगढ़, गंगपुर, कोरापुट, कालाहांडी तथा बोलनगीर स्थित हैं।
2. मध्य प्रदेश में मैंगनीज की पट्टी बालाघाट, छिंदवाड़ा, निमाड़, मांडला और झाबुआ जिलों तक विस्तृत है।
3. कर्नाटक एक अन्य प्रमुख उत्पादक है तथा यहाँ की खदानें धारवाड़, बल्लारी, बेलगावी, उत्तरी कनारा, चिकमगलूरु, शिवमोगा, चित्रदुर्ग तथा तुमकुरु में स्थित हैं।
4. महाराष्ट्र भी मैंगनीज का एक महत्वपूर्ण उत्पादक हैं। यहाँ मैंगनीज का खनन नागपुर, भंडारा तथा रत्नागिरी जिलों में होता है।
5. तेलंगाना, गोआ तथा झारखंड मैंगनीज़ के अन्य गौण उत्पादक हैं।
अलौह खनिज
1. बॉक्साइट
बॉक्साइट एक अयस्क है जिसका प्रयोग एल्यूमिनियम के विनिर्माण में किया जाता है।
बॉक्साइट टरश्यरी तथा लैटराईट चट्टानों में पाया जाता है।
प्रमुख बॉक्साइट के क्षेत्र
1. ओडिशा बॉक्साइट का सबसे बड़ा उत्पादक है।
2. कालाहांडी तथा संभलपुर अग्रणी उत्पादक हैं।
3. झारखंड , गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य हैं
4. कर्नाटक, तमिलनाडु, तथा गोआ बॉक्साइट के गौण उत्पादक हैं।
2. ताम्बा
- बिजली की मोटरें, ट्रांसफार्मर तथा जेनेरेटर्स बनाने विद्युत उद्योग के लिए ताँबा एक अनिवार्य धातु है।
- यह एक मिश्रातु योग्य, आघातवर्ध्य तथा तन्य धातु हैं।
- आभूषणों को मजबूती प्रदान करने के इसे स्वर्ण के साथ भी मिलाया जाता है।
- ताँबा निक्षेप मुख्यतः झारखंड के सिंहभूमि जिले में, मध्य प्रदेश के बालाघाट तथा राजस्थान के झुंझुनु एवं अलवर जिलों में पाए जाते हैं।
अधात्विक खनिज
अभ्रक - Mica
- अभ्रक का उपयोग मुख्यतः विद्युत एवं इलेक्ट्रोनिक्स उद्योगों में किया जाता है।
- इसे पतली चादरों में विघटित किया जा सकता है
- जो काफ़ी सख्त और सुनम्य flexible होती है।
प्रमुख क्षेत्र
1. भारत में अभ्रक मुख्यतः झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना व राजस्थान में पाया जाता है। इसके पश्चात् तमिलनाडु, पं. बंगाल और मध्य प्रदेश आते हैं।
2. झारखंड में उच्च गुणवत्ता वाला अभ्रक निचले हजारीबाग पठार की 150 कि.मी. लंबी व 22 कि.मी. चौड़ी पट्टी में पाया जाता है।
3. आंध्र प्रदेश में, नेल्लोर जिले में सर्वोत्तम प्रकार के अभ्रक का उत्पादन किया जाता है।
4. राजस्थान में अभ्रक की पट्टी लगभग 320 कि.मी. लंबाई में जयपुर से भीलवाड़ा और उदयपुर के आसपास विस्तृत है।
5. कर्नाटक के मैसूर व हासन जिले, तमिलनाडु के कोयम्बटूर, तिरुचिरापल्ली, मदुरई तथा कन्याकुमारी महाराष्ट्र के रत्नागिरी
ऊर्जा संसाधन
- इन्हें ईंधन खनिज ( जीवाश्म ईंधन )के नाम से भी जाना जाता है
- ऊर्जा सभी क्रियाकलापों के लिए आवश्यक हैं। जैसे खाना पकाने में, रोशनी व ताप के लिए, गाड़ियों के संचालन तथा उद्योगों में मशीनों के संचालन में ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
- ऊर्जा का उत्पादन ईंधन खनिजों जैसे कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम तथा विद्युत से किया जाता है।
1. परंपरागत साधन
- कोयला
- पेट्रोलियम
- प्राकृतिक गैस
2. गैर परंपरागत साधन
- नाभिकीय ऊर्जा
- सौर ऊर्जा
- पवन ऊर्जा
- भूतापीय ऊर्जा
- तरंग ऊर्जा
कोयला
- कोयला महत्वपूर्ण ऊर्जा का स्रोत है जिसका मुख्य प्रयोग विद्युत उत्पादन तथा लौह अयस्क के प्रगलन के लिए किया जाता है।
- कोयला मुख्य रूप से दो भूगर्भिक कालों की शैल क्रमों में पाया जाता है जिनके नाम हैं गोंडवाना और टर्शियरी निक्षेप।
- गोंडवाना कोयले के प्रमुख संसाधन पं. बंगाल, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में अवस्थित कोयला क्षेत्रों में है।
- टर्शियरी कोयला असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय तथा नागालैंड में पाया जाता है।
- इसके अतिरिक्त भूरा कोयला या लिगनाइट तमिलनाडु के तटीय भागों पांडिचेरी, गुजरात और जम्मू एवं कश्मीर में भी पाया जाता है।
- भारत में सर्वाधिक महत्वपूर्ण गोंडवाना कोयला क्षेत्र दामोदर घाटी में है।
पेट्रोलियम - खनिज तेल
- भारत अपनी पेट्रोलियम आवश्यकता की पूर्ती के लिए इसका आयात करता है
- क्या भारत में पेट्रोलियम संसाधन है ?
- भारत में पहला तेल भण्डार 1889 में असम के डीगबोई में खोजा गया
- भारत में प्राकृतिक गैस का उद्योग 1960 में शुरू हुआ था
पेट्रोलियम का उपयोग
- यह मोटर वाहनों, रेलवे तथा वायुयानों के अंतर-दहन ईंधन के लिए ऊर्जा का एक अनिवार्य स्रोत है।
- इसके अनेक सह-उत्पाद पेट्रो-रसायन उद्योगों, जैसे कि उर्वरक कृत्रिम रबर, कृत्रिम रेशे , दवाइयाँ , वैसलीन, स्नेहकों, मोम, साबुन तथा अन्य सौंदर्य सामग्री में प्रक्रमित किए जाते हैं।
- भारत में मुम्बई हाई, गुजरात और असम प्रमुख पेट्रोलियम उत्पादक क्षेत्र हैं।
प्राकृतिक गैस
- प्राकृतिक गैस पेट्रोलियम के भंडार के साथ पाई जाती है
- इसका उपयोग औद्योगिक ईंधन के रूप में किया जा सकता है।
- इसका उपयोग बिजली क्षेत्र में ईंधन के रूप में बिजली पैदा करने के लिए,
- उद्योगों में हीटिंग के उद्देश्य के लिए, रासायनिक, पेट्रोकैमिकल और उर्वरक उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है।
- प्राकृतिक गैस पंसदीदा परिवहन ईंधन (सीएनजी) और
- घरों में खाना पकाने के ईंधन (पीएनजी) के रूप में भी उभर रहा है।
- भारत के प्रमुख गैस भंडार मुम्बई हाई और अन्य संबद्ध क्षेत्र पश्चिमी तट पर पाए जाते हैं जिनको खंभात बेसिन में पाए जाने वाले क्षेत्र संपूरित करते हैं।
- पूर्वी तट पर कृष्णा-गोदावरी बेसिन में प्राकृतिक गैस के नए भंडार की खोज की गई है।
1. परंपरागत साधन
- कोयला
- पेट्रोलियम
- प्राकृतिक गैस
2. गैर परंपरागत साधन
- नाभिकीय ऊर्जा
- सौर ऊर्जा
- पवन ऊर्जा
- भूतापीय ऊर्जा
- तरंग ऊर्जा
नाभिकीय ऊर्जा / परमाणु ऊर्जा
- नाभिकीय ऊर्जा के उत्पादन में प्रयुक्त होने वाले महत्वपूर्ण खनिज यूरेनियम और थोरियम हैं।
- यूरेनियम धारवाड़ शैलों में पाए जाते हैं।
- भौगोलिक रूप से यूरेनियम अयस्क सिंहभूम ताँबा पट्टी के साथ अनेक स्थानों पर मिलते हैं।
- यह राजस्थान के उदयपुर, अलवर, झुंझुनू जिलों, मध्य प्रदेश के दुर्ग जिले, महाराष्ट्र के भंडारा जिले तथा हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में भी पाया जाता है।
- थोरियम मुख्यतः केरल के तटीय क्षेत्र की पुलिन बीच (beach)की बालू में मोनाजाइट एवं इल्मेनाइट से प्राप्त किया जाता है।
- विश्व के सबसे समृद्ध मोनाजाइट निक्षेप केरल के पालाक्काड तथा कोलाम जिलों, आंध्र प्रदेश के विशाखापट्नम तथा ओडिशा में महानदी के नदी डेल्टा में पाए जाते हैं।
- परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना 1948 में की गई थी और इस दिशा में प्रगति 1954 में ट्रांबे परमाणु ऊर्जा संस्थान की स्थापना के बाद हुई जिसे बाद में 1967 में, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के रूप में पुनः नामित किया गया।
महत्वपूर्ण नाभिकीय ऊर्जा परियोजनाएँ-
1. तारापुर (महाराष्ट्र),
2.कोटा के पास रावतभाटा (राजस्थान),
3. कलपक्कम (तमिलनाडु),
4. नरोरा (उत्तर प्रदेश),
5. कैगा (कर्नाटक)
सौर ऊर्जा
- सौर ऊर्जा फोटोवोल्टाइक सेलों में विपाशित सूर्य की किरणों को ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है जिसे सौर ऊर्जा के नाम से जाना जाता है।
- सौर ऊर्जा को काम में लाने के लिए जिन दो प्रक्रमों को बहुत ही प्रभावी माना जाता है ये हैं फोटोवोल्टयाइक और सौर-तापीय प्रौद्योगिकी।
- अन्य सभी अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की अपेक्षा सौर-तापीय प्रौद्योगिकी अधिक लाभप्रद है। यह पर्यावरण अनुकूल तथा निर्माण में आसान है।
- सौर ऊर्जा तेल आधारित संयंत्रों को अपेक्षा 7 प्रतिशत अधिक और नाभिकीय ऊर्जा से 10 प्रतिशत अधिक प्रभावी है।
- यह सामान्यतः हीटरों, फ़सल शुष्कको (Crop dryer), कुकर्स (Cookers) आदि जैसे उपकरणों में अधिक प्रयोग की जाती है।
- भारत के पश्चिमी भागों गुजरात व राजस्थान में सौर ऊर्जा के विकास की अधिक संभावनाएँ है।
पवन ऊर्जा wind energy
- पवन ऊर्जा पूर्ण रूप से प्रदूषण मुक्त और ऊर्जा का असमाप्य स्रोत है।
- प्रवाहित पवन से ऊर्जा को परिवर्तित करने की अभियांत्रिकी बिल्कुल सरल है।
- पवन की गतिज ऊर्जा को टरबाइन के माध्यम से विद्युत ऊर्जा में बदला जाता है।
- भारत ने पहले से ही पवन ऊर्जा का उत्पादन आरंभ कर दिया है। पवन ऊर्जा के लिए राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र तथा कर्नाटक में अनुकूल परिस्थितियाँ विद्यमान हैं।
ज्वारीय तथा तरंग ऊर्जा / Tidal and Wave Energy
- महासागरीय धाराएँ ऊर्जा का अपरिमित भंडार-गृह है।
- सत्रहवीं एवं अठारहवीं शताब्दी के प्रारंभ से ही ज्वारीय तरंगों और महासागरीय धाराओं से अधिक ऊर्जा तंत्र बनाने के प्रयास जारी हैं।
- भारत के पश्चिमी तट पर वृहत ज्वारीय तरंगें उत्पन्न होती हैं।
- भारत के पास तटों के साथ ज्वारीय ऊर्जा विकसित करने की व्यापक संभावनाएँ हैं,
- परंतु अभी तक इनका उपयोग नहीं किया गया है।
भूतापीय ऊर्जा
- जब पृथ्वी के गर्भ से मैग्मा निकलता है तो अत्यधिक ऊष्मा निर्मुक्त होती है। इस ताप ऊर्जा को सफलतापूर्वक काम में लाया जा सकता है और इसे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है।
- इसमें से निकलते गर्म पानी से ताप ऊर्जा पैदा की जा सकती है। इसे भूतापीय ऊर्जा के नाम से जानते हैं।
- इस ऊर्जा को अब एक प्रमुख ऊर्जा स्रोत के रूप में माना जा रहा है जिसे एक वैकल्पिक स्रोत के रूप में विकसित किया जा सकता है।
- मध्यकाल से ही गर्म भूमिगत ताप के उपयोग का पहला सफल प्रयास (1890 में) बोयजे शहर, इडाहो (यू.एस.ए.) में हुआ था जहाँ आसपास के भवनों को ताप देने के लिए गरम जल के पाइपों का जाल तंत्र (नेटवर्क) बनाया गया था।
- यह संयंत्र अभी भी काम कर रहा है।
जैव-ऊर्जा
- जैव-ऊर्जा उस ऊर्जा को कहा जाता है जिसे जैविक उत्पादों से प्राप्त किया जाता है जिसमें कृषि अवशेष, नगरपालिका औद्योगिक तथा अन्य अपशिष्ट शामिल होते हैं।
- जैव-ऊर्जा, ऊर्जा परिवर्तन का एक संभावित स्रोत है।
- इसे विद्युत ऊर्जा, ताप-ऊर्जा अथवा खाना पकाने के लिए गैस में परिवर्तित किया जा सकता है।
- यह अपशिष्ट एवं कूड़ा-कचरा प्रक्रमित करेगा एवं ऊर्जा भी पैदा करेगा।
- यह विकासशील देशों के ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक जीवन को भी बेहतर बनाएगा तथा पर्यावरण प्रदूषण घटाएगा, उनकी आत्मनिर्भरता बढ़ाएगा तथा जलाऊ लकड़ी पर दबाव कम करेगा।
- नगरपालिका कचरे को ऊर्जा में बदलने वाली ऐसी ही एक परियोजना नई दिल्ली के ओखला में स्थित है।
खनिज संसाधनों का संरक्षण
- खनिज संसाधनों को बनने में लाखों वर्षों का समय लगता है ऐसे में यदि हम अपनी भावी पीढियों को यह संसाधन उपलब्ध करना चाहते हैं तो इनका सदुपयोग करना आवश्यक है
- ऐसे में हमें खनिजों का संरक्षण पर ध्यान देना होगा सतत पोषणीय विकास की चुनौती के लिए आर्थिक विकास की चाह का पर्यावरणीय मुद्दों से समन्वय आवश्यक है।
- संसाधन उपयोग के परंपरागत तरीकों के परिणामस्वरूप बड़ी मात्रा में अपशिष्ट के साथ-साथ अन्य पर्यावरणीय समस्याएँ भी पैदा होती हैं।
- सतत पोषणीय विकास भावी पीढ़ियों के लिए संसाधनों के संरक्षण का आह्वान करता है।
- संसाधनों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों, जैसे- सौर ऊर्जा, पवन, तरंग, भूतापीय आदि