परिचय
पाठ की मूल संवेदना/प्रतिपाद्य:
Summary
भीष्म साहनी द्वारा रचित संस्मरण गांधी, नेहरु और यास्सर अराफात, उनकी आत्मकथा 'आज के अतीत' का एक अंश है। इसमें लेखक ने किशोरावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक अपने अनुभवों को स्मृति के आधार पर शब्दबद्ध किया है। जहाँ एक ओर गांधी और नेहरू के साथ बिताए निजी क्षणों का मार्मिक उल्लेख है वहीं यास्सेर अराफात के साथ बिताए निजी क्षणों को अंतर्राष्ट्रीय मैत्री जैसे मूल्यों के रूप में देखा जा सकता है।
गांधी जी
- लेखक का गाँधी जी के साथ पहला अनुभव लेखक अपने भाई के साथ सेवाग्राम आया हुआ था। वहीं पर गांधी जी से उनकी प्रथम मुलाकात हुई। लेखक ने जैसा चित्रों में देखा था वे हूबहू वैसे ही लग रहे थे। वे तेजी से चलते हुए लेखक से धीमें स्वर में हंसते हुए बातचीत कर रहे थे।
- सेवाग्राम का वातावरण लेखक तीन सप्ताह तक सेवाग्राम में रहा। रोज शाम को प्रार्थना होती थी। वहाँ का वातावरण देशभक्तिपूर्ण था। कस्तूरबा गांधी लेखक को अपनी माँ जैसी प्रतीत होती थी। लेखक को वहाँ कई देशभक्तों से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। जैसे पृथ्वीसिंह आज़ाद, मीरा बेन, अब्दुल गफ्फार खान, राजेन्द्र बाबू आदि।
- रोगी बालक और गांधी जी आश्रम के किनारे एक खोखे में रहने वाले बालक के पेट में असहनीय दर्द हो रहा था। वह निरंतर गाधीजी को ही बुला रहा था। बापू ने उसका फूला हुआ पेट देखा और सारा माजरा समझ गए कि इसने गन्ने का रस अधिक मात्रा में पी लिया है। बापू ने उसे तब तक उल्टी कराई जब तक उसे आराम नहीं हो गया। इसी प्रकार वे तपेदिक के मरीज की देखभाल व उसका हालचाल भी लेते रहते थे।
जवाहरलाल नेहरु जी
- नेहरू जी का व्यक्तित्व : नेहरू जी का व्यक्तित्व उदार और विनम्र था। वे देर रात तक काम करते और सुबह चरखा कातते थे। हर विषय पर उनकी पकड़ मजबूत थी। नेहरू जी के हृदय में सभी के लिए सम्मान की भावना थी। वह हर व्यक्ति के साथ नरमी से पेश आते थे। उदाहरण के लिए जब लेखक ने वार्तालाप के बहाने उन्हें अनदेखा करते हुए अखबार नहीं दिया तब कुछ देर चुप खड़े रहने के बाद नेहरू जी ने विनम्रता से कहा कि "यदि आपने देख लिया हो तो क्या मैं एक नज़र देख सकता हूँ?" यह वाक्य पंडित जी के बड़प्पन का सूचक है।
- धर्म के प्रति नेहरु जी के विचार धर्म के प्रति नेहरु जी के विचार बहुत उदार थे। उनका मानना था कि ईश्वर की आराधना का अधिकार सभी को है। वे धर्म के संकीर्ण रूप के खिलाफ थे।
यास्सेर अराफात
- यास्सेर अराफात का आतिथ्य प्रेम आमंत्रण मिलने पर लेखक अफ्रजिएशियाई लेखक संघ के सम्मेलन में ट्यूनिस गया हुआ था। राजधानी पहुँचने पर यास्सैर अराफात उनकी अगवानी करने के लिए स्वयं आए। खाने की मेज पर स्वयं फल छील छीलकर खिला रहे थे तथा शहद की चाय भी बनाई। जब लेखक हाथ धोने गुसलखाने गया तो अराफात स्वयं तौलिया लेकर बाहर खड़े हो गए। ये घटनाएँ उनके आतिथ्य प्रेम को दर्शाती हैं।
- गांधी जी के बारे में अराफात के विचार गांधी जी अहिंसक आंदोलन के जन्मदाता थे। इसी कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी प्रसिद्धि थी। फिलीस्तीन के प्रति साम्राज्यवादी शक्तियों के अन्यायपूर्ण रवैये को अहिसंक आंदोलन द्वारा समाप्त करने में अराफात ने गांधी जी को अपना आदर्श माना। अराफात गांधी जी को भारत का ही नहीं वरन् अपना भी नेता मानते थे।