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Hindi Poem Chapter 2 सरोज स्मृति सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ( काव्य खण्ड हिंदी )- अंतरा व्याख्या

 Chapter 2 सरोज स्मृति  सूर्यकांत त्रिपाठी निराला


कविता  :  सरोज स्मृति


कवि - सूर्यकांत त्रिपाठी निराला


परिचय 

  • सरोज स्मृति कविता निराला जी की स्वर्गीय पुत्री सरोज पर केंद्रित है |
  • यह कविता एक शोक गीत है |
  • इसमे पुत्री की आकस्मिक मृत्यु पर पिता का दर्द दिखाया गया है |
  • इस कविता मे एक भाग्यहीन पिता  का संघर्ष , कुछ न कर पाने का दर्द दिखाया गया है |


देखा विवाह आमूल नवल,

तुझ पर शुभ पड़ा कलश का जल।

देखती मुझे तू हँसी मंद,

होठों में बिजली फँसी स्पंद

उर में भर झूली छबि सुंदर

प्रिय की अशब्द शृंगार-मुखर

तू खुली एक-उच्छ्वास-संग,

विश्वास-स्तब्ध बँध अंग-अंग

नत नयनों से आलोक उतर

काँपा अधरों पर थर-थर-थर।

देखा मैंने, वह मूर्ति-धीति

मेरे वसंत की प्रथम गीति


प्रसंग :  प्रस्तुत पंक्तियाँ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित शोक गीत ‘सरोज स्मृति’ से ली गई हैंयह कविता कवि की नवविवाहिता पुत्री सरोज की आकस्मिक मृत्यु पर पिता का विलाप है

व्याख्या :

  • कवि निराला अपनी पुत्री सरोज को संबोधित करते हुए कहता है मैंने तेरा विवाह देखा तब तो पूरी तरह से नया रूप धारण किए हुए थी तेरे ऊपर कलश का शुभ जल छिड़का गया उस समय तो मुझे मंद मंद मुस्कान के साथ देख रही थी तब लगता था कि तेरे होठों पर बिजली फस कर रह गई है अर्थात मुस्कुराहट बिजली के सामान कौंध रही थी|
  • कवि कहता है तुम्हारे हृदय मे पति की सुंदर छवि थी और यह बात तुम्हारे शृंगार से पता चल रही थी | हल्की हल्की मुस्कान देख कर कवि को अपनी प्रिय (मनोहरा देवी ) की याद आ जाती है और अपनी बेटी के शृंगार मे उन्हे अपनी पत्नी का सौन्दर्य दिखने लगता है 

  • जिस तरह एक गहरी सांस धीरे धीरे फैलती है , सरोज का सौन्दर्य भी उसी प्रकार उसके अंग अंग मे फैल रहा था |
  • कवि कहता है , विवाह की लज्जा के कारण उसकी आँखों मे चमक है और यह चमक उसकी होंठों पर फैल रही है और होंठों पर एक कंपन पैदा कर रही है |
  • कवि कहते हैं , (सरोज को एक मूर्ति के समान बताते हुए) उसे देखकर सूर्यकांत त्रिपाठी को अपने जीवन की पहली वसंत गीत याद आ जाती है |
  • वसंत का पहला गीत कवि ने मनोहरा देवी के साथ गाय था , और सरोज को देखकर उसे मनोहरा देवी की याद आ जाती है | 

 

शृंगार, रहा जो निराकार,

रस कविता में उच्छ्वसित-धार

गाया स्वर्गीया-प्रिया-संग-

भरता प्राणों में राग-रंग,

रति-रूप प्राप्त कर रहा वही,

आकाश बदल कर बना मही।

हो गया ब्याह, आत्मीय स्वजन,

कोई थे नहीं, न आमंत्रण

था भेजा गया, विवाह-राग

भर रहा न घर निशि-दिवस जाग;

प्रिय मौन एक संगीत भरा

नव जीवन के स्वर पर उतरा।

 

प्रसंग :  प्रस्तुत पंक्तियाँ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित शोक गीत ‘सरोज स्मृति’ से ली गई हैंयह कविता कवि की नवविवाहिता पुत्री सरोज की आकस्मिक मृत्यु पर पिता का विलाप है

व्याख्या :

  • कवि कहता है उसने अपनी कविताओं मे सुंदरता के भाव को अभिव्यक्त किया था और जो भाव कविताओं मे रस बनकर बहता था वह विवाह के दिन सरोज मे दिख रहा था |
  • पुत्री सरोज का शृंगार ऐसा लग रहा है , की वह शृंगार गीत है जो उन्होंने अपनी स्वर्गीय पत्नी के साथ गाया था |
  • और यह गीत कवि के राग रंग मे उत्साह भरता था |
  • नववधू के रूप मे सरोज का सौन्दर्य रति  के समान लग रहा था , (रति कामदेव की पत्नी थी ) और ऐसा लगता था की कवि की पत्नी की सुंदरता आकाश से उतर कर सरोज मे आ गई है |
  • अब शादी हो गई , और शादी मे किसी भी रिश्तेदार को नहीं बुलाया गया था (आमंत्रण नहीं भेजा गया था )
  • विवाह मे कोई मांगलिक गीत नहीं गाए गए , न ही रात जागकर गीत गाए गए , विवाह मे कोई चहल पहल भी न थी , हर तरफ बस मन की खुशी थी |



माँ की कुल शिक्षा मैंने दी.

पुष्प-सेज तेरी स्वयं रची,

सोचा मन में, "वह शकुंतला,

पर पाठ अन्य यह, अन्य कला।

" कुछ दिन रह गृह तू फिर समोद,

बैठी नानी की स्नेह-गोद।

मामा-मामी का रहा प्यार,

भर जलद धरा को ज्यों अपार;

वे ही सुख-दुख में रहे न्यस्त,

तेरे हित सदा समस्त, व्यस्त;

वह लता वहीं की, जहाँ कली तू खिली,

स्नेह से हिली, पली.

अंत भी उसी गोद में शरण ली,

मूँदे दृग वर महामरण


प्रसंग :  प्रस्तुत पंक्तियाँ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित शोक गीत ‘सरोज स्मृति’ से ली गई हैंयह कविता कवि की नवविवाहिता पुत्री सरोज की आकस्मिक मृत्यु पर पिता का विलाप है

व्याख्या :

  • कवि अपनी स्वर्गीय पुत्री सरोज को संबोधित करते हुए कह रहे हैं की माँ के अभाव मे शादी के समय जो शिक्षा अपनी पुत्री को एक माँ देती है वह मैंने स्वयं दी |
  • शकुंतला महाकवि कालिदास के नाटक ‘अभिज्ञान शकुंतलम’ की नायिका थी , इस समय कवि को शकुंतला की याद आ गई , क्योंकि जिस तरह महर्षि  कर्ण ने माँ विहीन शकुंतला को विवाह के बाद शिक्षा दी थी , उसी प्रकार निराला जी ने विवाह के समय सरोज को शिक्षा दी | लेकिन शकुंतला की  माँ ने उसे खुद छोड़ दिया था परंतु सरोज की माँ की मृत्यु हुई थी |
  •  कुछ दिन घर मे रहकर सरोज अपने नाना नानी के घर चली गई , वहाँ उसे सिर्फ नाना नानी का ही नहीं बल्कि मामा मामी का भी बहुत प्यार मिला |
  • मामा मामी सरोज पर प्यार की ऐसी वर्ष करते थे , जैसे पृथ्वी पर बादल करते हैं |
  • ननिहाल मे सभी लोग सरोज के दुख सुख का ख्याल रखते थे |
  • कवि कहते हैं सरोज जिस लता की कली थी (अर्थात उसकी माँ) , उस लता का पोषण भी वही  हुआ था , सरोज ननिहाल मे पल कर किशोरी बनी और अंत मे सरोज ननिहाल मे ही अपनी आंखे मूँदी (अर्थात मृत्यु हुई )

 

मुझ भाग्यहीन की तू संबल

युग वर्ष बाद जब हुई विकल,

दुख ही जीवन की कथा रही

क्या कहूँ आज, जो नहीं कही!

हो इसी कर्म पर वज्रपात

यदि धर्म, रहे नत सदा माथ

इस पथ पर, मेरे कार्य सकल

हों भ्रष्ट शीत के-से शतदल !

कन्ये, गत कर्मों का अर्पण

कर, करता मैं तेरा तर्पण!


प्रसंग :  प्रस्तुत पंक्तियाँ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला द्वारा रचित शोक गीत ‘सरोज स्मृति’ से ली गई हैंयह कविता कवि की नवविवाहिता पुत्री सरोज की आकस्मिक मृत्यु पर पिता का विलाप है

 व्याख्या :

  • कवि कहते हैं मैं तो हमेशा से ही भाग्यहीन था , तू ही मेरा एकमात्र सहारा थी , युग के बाद जब तू मुझसे बिछड़ गई है , अब तो दुख ही जीवन की कथा बन गई है |
  • कवि का जीवन दुखों से भरा था , इसलिए कवि जैसा चाहता था वैसा अपनी पुत्री के लिए नहीं कर पाया इस बात का उसे बेहद अफसोस है , कवि कहता है अपने कर्तव्य निभाते हुए अगर मेरे सारे कार्य नष्ट हो जाते हैं (जैसे सर्दी मे कमाल का फूल होता है) तब भी मुझे कोई चिंता नहीं |
  • हे पुत्री ,मैं अपने बीते जीवन के सभी सत्कार्यों का फल तुझे अर्पित कर तेरा श्राद कर रहा हूँ तेरे प्रति मेरी यही श्रद्धांजलि है |


विशेष :-

  •  कवि ने इस कविता मे अपनी पुत्री सरोज के बचपन से लेकर मृत्यु तक का वर्णन करता है |
  • मामा मामी मे अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है |
  • जलद धरा को ज्यों – मे उपमा अलंकार है
  • छायावादी कविता है
  • खड़ी बोली का सुंदर प्रयोग
  • यह एक छंद मुक्त कविता है



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