परिचय
1. उपनिवेशवाद ,औद्योगीकरण एवं नगरीकरण ने भारतीय समाज में संरचनात्मक बदलावों को स्थापित किया भारतीय जनमानस इससे बहुत प्रभावित हुआ, कुछ कारखानों में काम करने लग गये, कुछ शहरों में जाने लग गये लोगो ने अपने काम करने की कुछ संरचनाओं में परिवर्तन शुरू किया
3. संरचनात्मक परिवर्तन समाज की संस्थाओं के नियमों में परिवर्तन आने शुरू हो जाये तो उसे संरचनात्मक परिवर्तन कहा जाता है
सामाजिक बदलाव
1. सामाजिक सुधार आन्दोलन
1. संस्कृतिकरन
2. आधुनिकीकरण
3. लोकिकीकरण/पंथनिरपेक्षिकरण
4. पश्चिमीकरण
2. सामाजिक भेदभाव के लिए संघर्ष
1. सामाजिक कुरीतियों से भारतीय समाज बुरी तरह से ग्रस्त था।
2. आधुनिकीकरण
3. लोकिकीकरण/पंथनिरपेक्षिकरण
4. पश्चिमीकरण
2. सामाजिक भेदभाव के लिए संघर्ष
1. सामाजिक कुरीतियों से भारतीय समाज बुरी तरह से ग्रस्त था।
2. सती प्रथा, बाल-विवाह, विधवा पुनर्विवाह निषेध और जाति-भेद
3. उपनिवेशवाद से पूर्व भारत में इन सामाजिक भेदभावों के विरुद्ध संघर्ष हुए।
4. संघर्ष की शुरुआत बौद्ध धर्म , भक्ति एवं सूफी आंदोलनों, जैन धर्म से हुई
उपनिवेशवाद में सामाजिक परिवर्तन
- 19वीं शताब्दी से आधुनिकता के रूप में सामाजिक आन्दोलन शुरू हुए ये आन्दोलन समाज में उन लोगो ने की जिनका उदय पश्चिमी शिक्षा से काफी ज्यादा प्रभावित था जिनके पास कुछ मिश्रित विचार थे
- वे भारत और पश्चिम के मिले जुले स्वरूप से उत्पन्न हो रहे थे
- ये विचार आधुनिक विचारो और प्राचीन भारतीय विचरों को समाहित करते थे
उदाहरण
1. राममोहन राय
2. कंदुकीरी विरेशलिंगम
3. गोविन्द महादेव रानाडे
सामाजिक परिवर्तन के कारण
1. संगठनों के स्वरूप
2. संचार माध्यम
3. विचारों की प्रकृति
- सती प्रथा का विरोध किया और आधुनिक सिद्धांतों तथा हिंदू शास्त्रों का हवाला दिया।
- पुस्तक 'द सोर्स ऑफ़ नॉलेज' में नये-न्याय के तर्कों को देखा जा सकता है।
- उन्होंने जुलियस हक्सले द्वारा लिखे ग्रंथों को भी अनुवादित किया।
3. गोविन्द महादेव रानाडे
- विधवा-विवाह के समर्थन में शास्त्रों की सहायता लेते हुए 'द टेक्स्ट ऑफ द हिंदू लॉ’ की रचना की
- उन्होंने विधवाओं के पुनर्विवाह को नियम के अनुसार बताया।
- उन्होंने वेदों की व्याख्या की जो विधवा पुनर्विवाह को स्वीकृति प्रदान करते हैं और उसे के अनुसार मानते हैं।
सामाजिक परिवर्तन के कारण
- शिक्षा की नयी प्रणाली में आधुनिक और उदारवादी प्रवृत्ति थी
- यूरोप में हुए पुनर्जागरण, धर्म-सुधारक आंदोलन से उत्पन्न साहित्य को सामाजिक विज्ञान और भाषा-साहित्य में सम्मिलित किया गया।
- इस नए प्रकार के ज्ञान में मानवतावादी, पंथनिरपेक्ष और उदारवादी प्रवृत्तियाँ थीं। औपनिवेशिक भारत में आधुनिक पविर्तनों की शुरुआत होती है जिससे समाज में कुछ बदलाव आते है
- सतीश सबरवाल द्वारा बताये गये कुछ बदलाव
2. संचार माध्यम
3. विचारों की प्रकृति
- नयी प्रौद्योगिकी ने संचार के विभिन्न स्वरूपों को गति प्रदान की।
- प्रिंटिंग प्रेस, टेलीग्राफ़ तथा माइक्रोफ़ोन, लोगों के आवागमन एवं पानी के जहाज तथा रेल के आने से यह संभव हुआ।
- रेल से वस्तुओं के आवागमन में नवीन विचारों को तीव्र गति प्रदान करने में सहायता प्रदान की
- विचारों का भी आदान प्रदान होने लगा था
- पंजाब और बंगाल के समाज सुधारकों के विचार-विनिमय मद्रास और महाराष्ट्र के समाज सुधारकों से होने लगे।
- बंगाल के केशव चंद्र सेन ने 1864 में मद्रास का दौरा किया।
- पंडिता रमाबाई ने देश तथा विदेश के अनेक क्षेत्रों का दौरा किया।
- ईसाई मिशनरी नागालैंड, मिजोरम और मेघालय में गये
नये संगठनों की स्थापना
- बंगाल में ब्रह्म समाज और पंजाब में आर्य समाज की स्थापना हुई।
- 1914 ई. में अंजुमन-ए-ख्वातीन-ए-इस्लाम की स्थापना हुई।
- ये भारत में मुस्लिम महिलाओं की राष्ट्र स्तरीय संस्था थी।
- अखबार, पत्रिका आदि के माध्यम से भी सामाजिक विषयों पर वाद-विवाद जारी रखा।
- समाज सुधारकों द्वारा लिखे हुए विचारों का अनेक भाषाओं में अनुवाद भी हुआ।
महिला शिक्षा की बात
समाज में समस्याओं का कारण क्या है ?
- राष्ट्र का आधुनिक बनना जरूरी है लेकिन प्राचीन विरासत को बचाए रखना भी जरूरी है।
- समाज सुधारक जोतिबा फुले ने पुणे में महिलाओं के लिए पहला विद्यालय खोला।
- सुधारकों ने एकमत होकर ये माना कि समाज के उत्थान के लिए महिलाओं का शिक्षित होना जरूरी है।
- आधुनिकता के उदय से पहले भी भारत में स्त्रियाँ शिक्षित हुआ करती थीं।
- महिला शिक्षा कुछ विशेषाधिकार प्राप्त समूहों तक सिमित थी।
- इस प्रकार महिलाओं की शिक्षा को न्यायोचित ठहराने के विचारों को आधुनिक व पारंपरिक विचारधाराओं का समर्थन मिला।
- 19वीं सदी में हो रहे सुधारों ने एक ऐसा दौर उत्पन्न किया जिसमें बौद्धिक तथा सामाजिक उन्नति के प्रश्न और उनकी पुनर्व्याख्या शामिल हैं।
- जोतिबा फुले ने आर्यों के आगमन से पूर्व के काल को अच्छा माना जबकि बाल गंगाधर तिलक ने आर्यों के युग को गरिमामय माना।
- सच्चे हिंदुत्व के सच्चे विचारों का कमजोर होना
- धर्म में जाति एवं लैंगिक शोषण अंतर्निहित था
- मुस्लिम समाज सुधारकों ने बहुविवाह और पर्दा प्रथा पर सक्रिय स्तर पर बहस की।
- जहाँआरा शाह नवास ने अखिल भारतीय मुस्लिम महिला सम्मेलन में, बहुविवाह के विरुद्ध प्रस्ताव प्रस्तुत किया
- अखबारों, पत्रिकाओं आदि में इन प्रस्तावों को लेकर बहस छिड़ गई।
- पंजाब से की एक पत्रिका 'तहसिब-ए-निसवान' ने बहुविवाह-विरोधी प्रस्ताव का समर्थन किया अन्य पत्रिकाओं ने इसका विरोध किया
- ब्रह्म समाज ने सती प्रथा का विरोध किया।
- रूढ़िवादी हिंदुओं ने ये दावा किया कि सुधारकों को कोई अधिकार नहीं है कि वो धर्मग्रंथों की व्याख्या करें।
संस्कृतीकरण
- मैसूर नरसिंहाचार श्रीनिवास ने संस्कृतीकरण शब्द दिया
- वह प्रक्रिया जिसमें निम्न जाति या जनजाति उच्च जातियों की जीवन पद्धति, अनुष्ठान, मूल्य, आदर्श, विचारधाराओं का पालन करते हैं।
संस्कृतीकरण के प्रभाव
1. भाषा
2. साहित्य
3. विचारधारा
4. संगीत
5. नृत्य
6. नाटक
7.अनुष्ठान व
8. जीवन पद्धति
संस्कृतीकरण की आलोचना
1. कुछ व्यक्ति, असमानता पर आधारित सामाजिक संरचना में, अपनी स्थिति में तो सुधार कर लेते हैं लेकिन इससे समाज में असमानता व भेदभाव समाप्त नहीं हो जाते
2. उच्चजाति की जीवनशैली उच्च एवं निम्न जाति के लोगों की जीवनशैली निम्न है। अतः उच्च जाति के लोगों की जीवनशैली का अनुकरण करने की इच्छा को प्राकृतिक मान लिया गया है।
3. संस्कृतिकरण एक ऐसे प्रारूप को सही ठहराती है जो असमानता पर आधारित है समाज पवित्रता अपवित्रता को महत्त्व देता है। पवित्रता और अपवित्रता के जातिगत पक्षों को उपयुक्त माना जाएगा उच्च जाति द्वारा निम्न जाति के प्रति भेदभाव एक प्रकार का विशेषाधिकार है।
4. उच्च जाति के अनुष्ठानों, रिवाजों और व्यवहार को संस्कृतीकरण के कारण स्वीकृति मिलने से महिलाओं को असमानता का सबसे ज्यादा सामना करना पड़ा। इससे दहेज प्रथा और अन्य समूहों के साथ जातिगत भेदभाव इत्यादि बढ़ गए हैं।
5. दलित संस्कृति एवं दलित समाज के मूलभूत पक्षों को भी पिछड़ापन मान लिया जाता है निम्न जाति के लोगों द्वारा किए गए श्रम को भी निम्न माना जाता है। शिल्प तकनीकी योग्यता, विभिन्न औषधियों की जानकारी, पर्यावरण का ज्ञान, कृषि या पशुपालन संबंधी जानकारी इत्यादि ।
पश्चिमीकरण
पश्चिमीकरण
- यह भारतीय समाज और संस्कृति में 150 सालों के ब्रिटिश शासन के परिणामस्वरूप आए परिवर्तन हैं
- पश्चिमीकरण का मतलब उस पश्चिमी सांस्कृतिक प्रतिमान से है जिसे भारतीयों के उस छोटे समूह ने अपनाया जो पहली बार पश्चिमी संस्कृति के संपर्क में आए हैं।
- इन्होंने पश्चिमी प्रतिमान चिंतन के प्रकारों, स्वरूपों एवं जीवनशैली को स्वीकारा और समर्थन एवं विस्तार भी किया।
- ऐसे लोग कम ही थे जो पश्चिमी जीवन शैली को अपना चुके थे
पश्चिमी सांस्कृतिक तत्वों का प्रयोग बढने लगा था जैसे
आधुनिकीकरण
- पोशाक, खाद्य-पदार्थ, आम लोगों की आदतों, परिवारों में टेलीविजन, फ्रिज, सोफा सेट, खाने की मेज उठने-बैठने के कमरे में कुर्सी
- भारतीय कला और साहित्य पर भी पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव पड़ा।
- शैली, प्रविधि और कलात्मक विषय को पश्चिमी संस्कृति तथा देशज परंपराओं ने निर्मित किया।
आधुनिकीकरण
- समाज में परिवर्तन करने कि क्षमता
- सीमित संकीर्ण-स्थानीय दृष्टिकोण कमजोर पड़ जाते हैं
- सार्वभौमिक और विश्वजनीन दृष्टिकोण ज्यादा प्रभावशाली होता है
- उपयोगिता और विज्ञान की सत्यता को महत्त्व दिया जाता है
- सामाजिक तथा राजनीतिक स्तर पर व्यक्ति को प्राथमिकता दी जाती है
- व्यवहार और विचार, परिवार या जनजाति या जाति या समुदाय द्वारा तय नहीं होते।
- आपको अपना व्यवसाय अपनी पसंद से चुनने की स्वतंत्रता होती है न कि यह विवशता कि के व्यवसाय आपके माता-पिता ने किया वही आप भी करें।
- कार्य का चुनाव आपकी इच्छा पर आधारित न कि जन्म पर।
- हमारी एक वैज्ञानिक परंपरा भी है।
- हमारी एक सक्रिय पंथनिरपेक्ष व राजनीतिक व्यवस्था है। लेकिन इसके साथ ही जाति एवं समुदाय में गतिशीलता भी पाई जाती है।
- सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवहार को परंपरा तथा आधुनिकता का एक जटिल मिश्रण कह देते है।
परंपराओं की पहचान दो गुणों से होती है
1. बाहुलता तर्क-वितर्क की परंपरा।
2 भारतीय परंपराओं में लगातार परिवर्तन होते रहे हैं
1. बाहुलता तर्क-वितर्क की परंपरा।
2 भारतीय परंपराओं में लगातार परिवर्तन होते रहे हैं
- उन्हें पुनर्परिभाषित करने की चेष्टा कभी नहीं रुकी है। उदाहरण 19वीं सदी के समाज सुधारकों और उनके आंदोलनों में देखा। ये प्रक्रियाएँ आज भी जीवंत हैं।
पंथनिरपेक्षीकरण
जाति का पंथनिरपेक्षीकरण वाद-विवाद होता रहा
- पंथनिरपेक्ष का अर्थ है धर्म के प्रभाव में कमी आना
- आधुनिक समाज ज्यादा से ज्यादा पंथनिरपेक्ष होता है।
- उदाहरण- आधुनिक समाज में धार्मिक संस्थानों और लोगों के बीच बढ़ती दूरी
जाति का पंथनिरपेक्षीकरण वाद-विवाद होता रहा
- पारंपरिक भारतीय समाज में जाति व्यवस्था अधिक क्रियाशील थी पवित्र-अपवित्र से संबंधित विश्वास व्यवस्था इस क्रियाशीलता का केंद्र थी
जाति
- राजनीतिक दबाव समूह के रूप में ज्यादा कार्य कर रही है।
- भारत में जाति संगठनों और जातिगत राजनीतिक दलों का उद्भव हुआ है।
- ये जातिगत संगठन अपनी माँग मनवाने के लिए दबाव डालते हैं
बदली हुई भूमिका को जाति का पंथनिरपेक्षीकरण कहा गया है।
Watch Chapter Video